आध्यात्मिक उपचारों से मद्यपान करना छोड देना

SSRF द्वारा प्रकाशित प्रकरण अध्ययनों का मूल उद्देश्य है, उन शारीरिक अथवा मानसिक समस्याओं के विषय में पाठकों का दिशादर्शन करना, जिनका मूल कारण आध्यात्मिक हो सकता है । यदि समस्या का मूल कारण आध्यात्मिक हो, तो यह ध्यानमें आया है कि सामान्यतः आध्यात्मिक उपचारों का समावेश करने से सर्वोत्तम परिणाम मिलते हैं । SSRF शारीरिक एवं मानसिक समस्याओं के लिए इन आध्यात्मिक उपचारों के साथ ही अन्य परंपरागत उपचारों को चालू रखने का परामर्श देता है । पाठकों के लिए सुझाव है कि वे स्वविवेक से किसी भी आध्यात्मिक उपचारी पद्धति का पालन करें ।

सार :

श्री. निकम को १५ वर्षों से मद्यपान का व्यसन था । व्यक्तिगत जीवन के सभी क्षेत्रों में हानि करने के साथ ही एक रूढिवादी समाज में यह एक सामाजिक कलंक भी था । मद्यपान छोडने के लिए उन्होंने कई बार प्रयास किए; परंतु असफल रहे । श्री. निकम के मद्यपान के व्यसन का वृत्तांत तथा इस व्यसन पर उन्होंने साधनाद्वारा किस प्रकार विजय प्राप्त की, यह उन्हीं के शब्दों में नीचे दिया है ।

१. नई दिशा मिलना

प.पू. डॉ. आठवलेजी के मार्गदर्शनानुसार साधना करनेवाले दो साधकों ने मार्च १९९९ में हमारे गांव में अध्यात्मशास्त्र विषय पर प्रवचन किया । मैं प्रवचन में उपस्थित था । उन्होंने संक्षेप में अध्यात्मशास्त्र समझाया । इस शास्त्र के हमारे दैनिक जीवन पर पडनेवाले प्रभाव, साधना कैसे आरंभ करें तथा विशिष्ट आध्यात्मिक उपचारों से जीवन की ऐसी समस्याएं जिन्हें पराजित करना संभव नहीं होता, ऐसी समस्याओं पर विजय प्राप्त कैसे करें आदि विषय उन्होंने समझाए ।

एक उदाहरण के रूप में उन्होंने समझाया कि कैसे अनिष्ट शक्तियों (भूत, प्रेत, पिशाच इ.) से आविष्ट होने जैसे आध्यात्मिक कारणों से व्यसन लगता है तथा इस पर विशिष्ट उपचार लागू होने की प्रक्रिया भी समझाई । उन्होंने ४ अप्रैल १९९९ को होनेवाले प.पू. डॉ.आठवलेजी के सार्वजनिक प्रवचन का निमंत्रण भी दिया ।

उस संपूर्ण प्रवचन में मैंने सूक्ष्म-स्तर पर एक विशेषता अनुभव की । यह प्रवचन आजतक सुने अन्य प्रवचनों से भिन्न था । इस नई जानकारी से मुझमें एक आशा जाग्रत हुई कि उनकेद्वारा समझाए अध्यात्मशास्त्र का जीवन में आचरण करने से मैं अपने मद्यपान के व्यसन को छोड सकता हूं । मुझे लगा कि मुझे उनसे व्यक्तिगत रूप में मिलना चाहिए, इसलिए मैं प्रवचन के उपरांत उनके पास गया और अपना परिचय दिया । उनकी बात करने की शैली और प्रेम के कारण मेरी आंखों से आंसू निकले और लगा कि मैं उन्हें लंबे समय से जानता हूं । मैंने उन्हें अपने इस व्यसन की समस्या के बारे में तथा उसे छोडने के विचार के बारे में बताया ।

उन्होंने मुझे निम्नलिखित परामर्श दिया :

२. श्री. निकम द्वारा किए प्रयास और उनमें हुए परिवर्तन

मैंने अपने कुलदेवता का नामजप उसी क्षण से आरंभ किया और प.पू. डॉक्टरजी के प्रवचन के आयोजन में सम्मिलित हुआ । आगे के कुछ दिनों में मुझे धीरे-धीरे अपनेआप में कुछ परिवर्तन दिखाई देने लगे । मेरी अशांति और तनाव घटने लगे । मुझे अपनी नौकरी में अब आनंद मिलने लगा । पहले कार्यस्थल पर कर्त्तव्य पूर्ण करने में तनाव होता था;परंतु अब मैं अपना कार्य समय पर पूर्ण कर पाता हूं और मेरे पास अब सार्वजनिक प्रवचन की सिद्धता के लिए पर्याप्त समय, उत्साह और उत्कंठा रहती है । SSRF  के साधकों से मिलने तथा देर राततक पूर्वसिद्धता करने के लिए मैं अब सायंकाल की प्रतीक्षा में रहता हूं । मद्यपान करने की इच्छा जो सामान्यतया मन में बार-बार उभर आती थी, बिना प्रयत्न किए अचानक से घट गई । शीघ्र ही मैंने अनुभव किया कि समय बिताने के लिए अब मुझे उसकी आवश्यकता नहीं पडती । ४ अप्रैल के प्रवचन के पहले डेढ माह की कालावधि में मद्यपान करने का १५ वर्षों का व्यसन चला गया । तबसे अर्थात छः वर्षों से मैंने मद्यपान करना बंद किया है ।

३. श्री. निकम में हुए परिवर्तन की प्रक्रिया का आध्यात्मिक परिप्रेक्ष्य

३.१ किसी भी समस्या का मूल आध्यात्मिक आयाम में होने का कारण

अध्यात्मशास्त्र के अनुसार किसी भी समस्या अथवा व्याधि का आध्यात्मिक मूल कारण दो प्रकार का होता है :

१. सामान्यतया देखा जाए, तो तमोगुण में वृद्धि एवं सत्त्वगुण में न्यूनता आने से यह होता है । (ब्रह्मांड के तीन मूलभूत सूक्ष्म घटकों के संदर्भ लेख में अधिक पढें)

२. विशेषरूप से देखा जाए, तो यह किसी विशिष्ट घटक के कारण उदा. किसी विशिष्ट अनिष्ट शक्ति (भूत, प्रेत, पिशाच इ.)के आक्रमण के कारण होता है ।

सामान्यतया व्यसन पूर्वजों अथवा अनिष्ट शक्तियों (भूत, प्रेत, पिशाच इ.) के सूक्ष्म-देहों के आवेशन से लगता है । इसलिए उन पर विजय प्राप्त करने के लिए किए जानेवाले प्रयत्नों में विशिष्ट आध्यात्मिक उपचार अंतर्भूत न किए जाने से पूर्ण एवं स्थायी सफलता नहीं मिलती । इस बात से यह स्पष्ट होता है कि क्यों श्री.निकमद्वारा मद्यपान का व्यसन छोडने के लिए किए गए अनेक प्रयत्न विफल हुए ।

३.२ श्री. निकम के उदाहरण में आध्यात्मिक उपचारों का प्रभाव कैसे पडा ?

३.२ अ. ईश्‍वर के नाम का जप करना

  • मानसिक स्तर पर : र्इश्वर का नाम बार-बार दोहराने से, अवचेतन में (अंतर्मन में)भक्तिकेंद्र निर्मित होता है । यह केंद्र व्यसनपूर्ति के विचारों से विक्षेपण विधिद्वारा संघर्ष करता है ।

देखें संदर्भ लेख : विक्षेपण विधिद्वारा नामजप कैसे कार्य करता है ?

  • आध्यात्मिक स्तर पर : आध्यात्मिक सिद्धांत के अनुसार ईश्‍वर के नाम के साथ स्पर्श, रूप, रस, गंध और उसकी दैवी शक्ति एकसाथ होते हैं । परिणामस्वरूप जब हम ईश्‍वर के नाम का जप करते हैं, हमें उसके साथ रहनेवाली दैवी शक्ति प्राप्त होती है । इससे हममें सत्त्वगुण बढता है और व्यसन के विरूद्ध लडने के लिए शक्ति मिलती है । ईश्‍वरीय शक्ति विशिष्ट उपचार के रूप में कार्य करती है और अनिष्ट शक्तियों (भूत, प्रेत, पिशाच इ.)के साथ लडकर उन्हें दूर करती है । इससे हममें तमोगुण की मात्रा घट जाती है ।

देखे संदर्भ लेख : आध्यात्मिक उपचार के रूप में नामजप के कार्य करने की प्रक्रिया

३.२ आ. प्रार्थना

नामजप करने से हमें ईश्‍वरीय शक्ति प्राप्त होती है । प्रार्थना करने से हम उस शक्ति के प्रवाह को दिशा देते हैं । प्रार्थना करने से अनिष्ट शक्तियों (भूत, प्रेत, पिशाच इ.) के साथ लडने में सहायता मिलती है ।

देखें संदर्भ लेख : आध्यात्मिक उपचार के रूप में प्रार्थना के कार्य करने की प्रक्रिया

३.२ इ. सत का संग (सत्संग)

साधकों के साथ रहने से हमें वातावरण में बढे हुए सत्त्वगुण का लाभ मिलता है । साधना न करनेवालों की तुलना में साधकों में, उनके वार्तालाप में और क्रियाओं में सत्त्वगुण अधिक मात्रा में होता है ।

देखें संदर्भ लेख : सत्य की संगत (सत्संग)

३.२ ई. ईश्‍वर की सेवा करना (सत्सेवा)

इससे सत्त्वगुण का लाभ अत्यधिक मात्रा में मिलता है ।

देखें संदर्भ लेख : ईश्वर की सेवा करना (सत्सेवा)

३.३ मद्यपान के व्यसन से छुटकारा पाने के लिए और क्या कर सकते हैं ?

  • स्वभावदोष निर्मूलन : क्रोध, लोभ जैसे हमारे स्वभावदोष मन में खुले घावों समान होते हैं । इन दुर्बलताओं का लाभ उठाकर अनिष्ट शक्तियां उनके माध्यम से व्यक्ति को आविष्ट करती हैं ।

देखें संदर्भ लेख : स्वभावदोष निर्मूलन

  • अहंनिर्मूलन – इसका कार्य भी स्वभावदोष निर्मूलन समान होता है ।

देखें संदर्भ लेख : अहं