अंतर्मन के अयोग्य संस्कारों को नष्ट करने के लिए नामजप कार्य करता है । यह विधि, विक्षेपण विधि कहलाती है और हमें नामजप से लाभ प्राप्त करने में सहायक होती है ।
यदि हम चित्र में देखें,तो हमें बाह्य मन और अंतर्मन के बीच एक अवरोध (रेखा)दिखाई देता है । इस अवरोध की अपनी कुछ विशेषताएं हैं । यह बाह्य मन को अंतर्मन में छिपे रहस्यों को जानने नहीं देता । यह अवरोध छिद्रयुक्त (पोरस)होता है जो अंतर्मन से एक समय में एक ही विचार को बाहर निकलने देता हैं । सर्वाधिक दृढ विचार ही प्रकट होता है । अतएव अंतर्मन के संस्कार निरंतर बाह्यमन से टकराकर पुनः उसी केंद्र में लौटते हैं जहां से वे उभरे हैं,इससे वह केंद्र और शक्तिशाली हो जाता है ।
तथापि नामजप से जब भक्ति का केंद्र दृढ हो जाता है,तब वही सबसे अधिक दृढ विचार होता है जो बाह्यमन में उभरता है । जितनी बार भी देवता का नाम बाह्ममन में आता है, वह अवरोध को बंद कर देता है और किसी भी अन्य संस्कार को उभरने नहीं देता । इसके परिणामस्वरूप कोई भी विचार अंतर्मन से बाहर नहीं आ पाता और अवरोध से टकराकर नीचे चला जाता है, जैसा कि हम चित्र में देख सकते हैं ।
इस प्रक्रिया में, अन्य संस्कारों की ओर अधिक ध्यान नहीं जाता । इस प्रकार निरंतर उपेक्षित होने पर, अन्य केंद्रों के संस्कार घटने लगते हैं, और अंतत: समाप्त हो जाते हैं । अतः भक्ति के केंद्र से अंतर्मन की शुद्धि करने का यह एक अन्य प्रभावशाली मार्ग है ।