सत्य की संगत (सत्संग)

Case Studies

  • सत्संग के लाभ

    सत्संग का क्या अर्थ है ? सत्संग के लाभ सत्संग के प्रकार संतों का सत्संग १. सत्संग के लाभ – प्रस्तावना एक साधक की आध्यात्मिक यात्रा में ‘सत्संग’, साधना का एक महत्त्वपूर्ण अंग है । विशेषकर आध्यात्मिक यात्रा के आरंभ में जबतक अध्यात्म हमारे जीवन का अविभाज्य अंग न बन जाए एक अनुभवी साधक के … सत्संग के लाभ को पढ़ना जारी रखें

  • सत्संग का क्या अर्थ है ?

    ‘सत्संग’ का क्या अर्थ है ? ‘सत्संग’ का क्या अर्थ है ? सत्संग के लाभ सत्संग के प्रकार संतों का सत्संग सत का संग अर्थात सत्संग, जहां ‘सत्’ का अर्थ है परम सत्य अर्थात् ईश्‍वर, तथा संग का अर्थ है साधकों अथवा संतों का सान्निध्य । संक्षेप में, सत्संग से तात्पर्य है ईश्‍वर के अस्तित्त्व … सत्संग का क्या अर्थ है ? को पढ़ना जारी रखें

  • सत्संग के प्रकार

    सत्संग क्या है सत्संग के लाभ सत्संग के प्रकार संतों के साथ सत्संग १. प्रस्तावना जैसा कि हमारे लेख, सत्संग क्या है, में स्पष्ट किया गया है, सत्संग का अर्थ है, सत का संग अर्थात सत में रहना। हम विविध माध्यमों से सत के सान्निध्य में रह सकते हैं । यहां सत्संग के अनेक प्रकार … सत्संग के प्रकार को पढ़ना जारी रखें

  • अध्यात्म का अध्ययन क्या है ?

    1. अध्यात्म के अध्ययन का महत्त्व हमें साधना क्यों करनी चाहिए, यह समझने के लिए अध्यात्मशास्त्र का अध्ययन करना आवश्यक है । जब हमारी बुद्धि साधना का महत्त्व समझ लेती है, तब हम नियमित साधना करने के समर्पित प्रयास कर सकते हैं । अध्यात्म के सिद्धांतों को समझ लेने से अपने जीवनसंबंधी तथा साधनासंबंधी अधिक … अध्यात्म का अध्ययन क्या है ? को पढ़ना जारी रखें

  • माया तथा अध्यात्म विषयक ग्रंथ लिखना

    इस लेख में माया तथा अध्यात्म विषयक ग्रंथ के अंतर को समझाया गया है तथा इसके साथ ही इनका पाठक, लेखक तथा वातावरण पर पडने वाले प्रभाव को भी वर्णित किया गया है ।

  • अध्यात्मविषयक ग्रंथ पर लेखक का प्रभाव

    इस लेख में औसत आध्यात्मिक स्तरवाले व्यक्ति, ढोंगी संत तथा खरे संत द्वारा लिखित अध्यात्म विषयक ग्रंथ से पाठकों पर होने वाले प्रभाव को बताया गया है । SSRF की साधिका कुमारी प्रियंका जी द्वारा अपनी जागृत छठवीं इंद्रिय की सहायता से सूक्ष्म चित्रों के माध्यम से इसका विश्लेषण किया गया हैं ।

  • अध्यात्म विषयक ग्रंथ लिखना

    इस लेख में परम पूज्य डॉ. आठवले के साथ उनके केवल अध्यात्म विषयक ग्रंथ ही लिखने के महत्त्व पर हुई संपादकीय दल से बातचीत का वर्णन है I ।