‘सत्संग’ का क्या अर्थ है ?

सत का संग अर्थात सत्संग, जहां ‘सत्’ का अर्थ है परम सत्य अर्थात् ईश्‍वर, तथा संग का अर्थ है साधकों अथवा संतों का सान्निध्य । संक्षेप में, सत्संग से तात्पर्य है ईश्‍वर के अस्तित्त्व को अनुभव करने के लिए अनुकूल परिस्थिति ।

ईश्‍वर का नामजप करना आरंभ करने के उपरांत साधना का यह अगला चरण है, किन्तु इसका अर्थ यह नहीं कि हम नामजप करना छोड दें । इसे नामजप के साथ करना चाहिए । नियमित रूप से समविचारी व्यक्तियों के साथ रहने से  सहायता ही होती है ।

सत्संग में सहभागी होने के कई लाभ हैं ।

सत्संग में हम अध्यात्म शास्त्र के विषय में प्रश्‍न पूछ सकते हैं, जिससे हमार शंकाआें का समाधान होता है । साधना तथा उसके सिद्धांतों के विषय में कोई शंकाएं हों, तो उनका निराकरण किए बिना हम मन लगाकर साधना नहीं कर  पाएंगे ।

सत्संग में हम एक-दूसरे को अपनी आध्यात्मिक अनुभूतियां बता सकते हैं तथा अनुभूतियों की आधारभूत आध्यात्मिक कारणमीमांसा समझ सकते हैं । इससे किसी दूसरे की श्रद्धा से प्रेरित होकर हमें अपने पथ पर दृढ रह पाते हैं ।

सूक्ष्म स्तर पर व्यक्ति को चैतन्य का लाभ प्राप्त होता है । सत्संग से प्राप्त अधिक सात्त्विकता साधना में सहायक होती  है । हमारे आस-पास के राजसी एवं तामसी घटकों के आध्यात्मिक प्रदूषण के कारण ईश्‍वर तथा साधना के विषय में विचार करना भी कठिन हो जाता है । तथापि जब हम पूरे दिन नामजप करने वाले लोगों के समूह में होते हैं, तब इसके ठीक विपरीत होता है ! उनसे प्रक्षेपित सात्त्विक किरणों से अथवा चैतन्य से हमें लाभ होता है । हो सकता है हम पिछले सप्ताह जीवन में हुए उतार-चढाव से त्रस्त अवस्था में सत्संग में पहुंचें, किन्तु सत्संग में आंतरिक पुनरुज्जीवन होता है तथा सत्संग की समाप्ति तक हम नव चैतन्ययुक्त स्थिति में आ सकते हैं ।

नीचे दिया चित्र दर्शाता है कि सत्संग के समय वास्तव में क्या प्रक्रिया होती है ।

HIN-What-is-satsang