परात्पर गुरु डॉ. जयंत बाळाजी आठवले की मानवजाति के प्रति निरपेक्ष प्रीति – भाग १
किसी से निरपेक्ष प्रेम करना अत्यधिक कठिन है । यदि कोई बिना किसी अपेक्षा के इस प्रकार का प्रेम करे, तो यह उनके दिव्य स्वभाव को दर्शाता है । हममें से जो ईश्वरप्राप्ति करना चाहते हैं, उनके लिए परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी निरपेक्ष प्रीति की मूर्ति हैं, जिनसे हम यह सीख सकते हैं ।
विषय सूची
१. परिचय – परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी की निरपेक्ष प्रीति
विश्व के इतिहास में, समय – समय पर संपूर्ण मानवता को ईश्वरप्राप्ति करवाने हेतु, उन्हें आध्यात्मिक प्रगति पथ पर आगे ले जाने के लिए आध्यात्मिक रूप से उन्नत एक विशेष संत आध्यात्मिक क्षमता के साथ जन्म लेते हैं ।
परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी उन्हीं दुर्लभ और पूजनीय संतों में से एक हैं |
उन्होंने सहस्त्रों साधकों के जीवन को प्रभावित किया है तथा उनकी आध्यात्मिक स्तर पर प्रगति होने हेतु सटीकता, संवेदनशीलता, मृदुता तथा कुशलतापूर्वक उनका मार्गदर्शन किया है, जो केवल एक महान संत ही कर सकते हैं । साधना हेतु उनके अमूल्य मार्गदर्शन के कारण ही १०० से अधिक साधक संत पद पर विराजमान हुए हैं और सैकडों साधक संत पद की ओर अग्रसर हैं । यह विश्व के आध्यात्मिक इतिहास में एक अद्वितीय उपलब्धि है ।
यदि आप साधकों से पूछें, तो वे ऐसी अनेक घटनाएं तथा अनुभूतियां बताएंगे जो उनकी आध्यात्मिक यात्रा (साधना) में परात्पर गुरु डॉ. आठवले जी से जुडी हैं, और जिन्हें साधकों ने अपने हृदय में संजो रखा है । साधक उन्हें प्रेम से परम पूज्य डॉक्टरजी कहते हैं । आध्यात्मिक आनंद हो अथवा आध्यात्मिक कष्ट, साधकों के मन और मुख में सदैव परम पूज्य डॉक्टरजी का ही नाम रहता है, जैसे बच्चा अपने माता-पिता को पुकारता है, वैसे ही साधक उन्हें उनके एकमात्र आधारस्तंभ के समान पुकारते हैं ।
हमारे परम पूज्य डॉक्टरजी का एक सामान्य दैवी गुण, जिसे सभी साधक बहुत आत्मीयता से स्मरण करते हैं और जो उन्हें उनके जीवन की सभी बाधाओं से लडने की शक्ति प्रदान करता है, वह है उनकी प्रीति । जिस प्रकार मधुमक्खी फूलों की ओर आकर्षित होती है, उसी प्रकार परम पूज्य डॉक्टरजी की असीम प्रीति के दैवी गुण के कारण विश्व के कोने-कोने से साधक खींचे चले आते हैं, जिससे उन्हें अपनी साधना में दृढ रहने की प्रेरणा मिलती है ।
इस लेख में, परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी का जन्मोत्सव मनाने हेतु, हम उनकी असीम प्रीति तथा क्यों सहस्त्रों साधकों के लिए, वे मानवता के प्रति निरपेक्ष प्रीति के सगुण रूप हैं; इसकी कुछ झलकियां साझा करते हुए उनके चरणों में श्रद्धासुमन अर्पित करते हैं ।
२. युवावस्था से ही प्रीतिमय
जब परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी डॉक्टर बने, तब उन्हें शीघ्र ही भान हो गया कि मनुष्य का मन ही वह कारण है जिससे उसे दुख प्राप्त होता है एवं इसका प्रभाव उसके शारीरिक स्वास्थ्य पर भी होता है । इसलिए लोगों की अधिक समग्र रूप से सहायता करने के लिए उन्होंने मन पर, विशेषकर अंतर्मन पर, शोध करना प्रारंभ किया। कभी – कभी रोगियों के पास उन्हें फीस देने के पैसे नहीं होते थे, ऐसी परिस्थितियों में वे न केवल उनके उपचार की फीस माफ करते, अपितु उन्हें नि:शुल्क दवाई तथा घर जाने के लिए बस का किराया भी देते थे।
कुछ रोगी दवाइयों से ठीक नहीं होते, किंतु जब वही रोगी वैकल्पिक आध्यात्मिक उपचारों को अपनाते हुए आध्यात्मिक उपचारक अथवा संतों के पास जाते, तो उनके द्वारा बताए गए आध्यात्मिक उपचारों से वे ठीक भी हो जाते थे । जब वे लोग परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी से पुनः मिलते तब वे उन्हें बताते थे कि वे किस प्रकार आध्यात्मिक उपायों से ठीक हुए । यद्यपि, उस समय परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी नास्तिक थे, तब भी लोगों की सहायता करने की उनकी तीव्र इच्छा के कारण, उन्होंने अपनी व्यक्तिगत मान्यताओं को एक ओर रख रोगियों द्वारा बताए गए आध्यात्मिक उपचारों का और साधना के विषय में अधिक जानकारी लेने लगे । जब उन्हें यह पता चला कि आधुनिक विज्ञान के वैश्विक दृष्टिकोण से परे भी कोई और विश्व है, तो उसी क्षण से उनके दैवी आध्यात्मिक कार्य का प्रारंभ हुआ और शेष सब इतिहास है ।
३. आध्यात्मिक यात्रा का आरंभ
जब कोई व्यक्ति साधना आरंभ करता है, तो वह अधिकतर अपने ही बारे में सोचता है । लेकिन परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के संबंध में यह भिन्न है । प्रारंभ से ही, उन्होंने अपनी साधना को एक लक्ष्य के रूप में लिया जो केवल स्वयं के कल्याण के लिए ही नहीं अपितु दूसरों के कल्याण के लिए भी था । अध्यात्म उनके लिए अपरिचित क्षेत्र था (क्योंकि वे विज्ञान के क्षेत्र से थे) । प्रारंभ में, यह उनके लिए इतना सरल नहीं था । वो प्रति सप्ताहांत विविध संतों से अध्यात्म के विषय में अनेक प्रश्न पूछने तथा उनसे सीखने हेतु उनके पास लंबी दूरी की यात्रा करके जाते थे । वे अपनी लिखी हुई जानकारी को सावधानीपूर्वक टाइपराइटर पर प्रविष्ट करते क्योंकि उस समय व्यक्तिगत संगणक नहीं होते थे । उसके उपरांत, उन टिप्पणियों को वो दूसरों के लाभ के लिए चक्रलेखित करते थे ।
शीघ्र ही उनकी अपने गुरु परम पूज्य भक्तराज महाराजजी (उच्चतम श्रेणी के एक संत) से भेंट हुई ।
अल्पावधि में ही डॉक्टरजी की साधना एवं सेवा की लगन से प्रसन्न होकर, उनके गुरु ने उन्हें आशीर्वाद दिया और उनसे कालानुसार साधना कैसे करें, इस विषय पर लोगों का मार्दर्शन करने हेतु आध्यात्मिक ग्रंथ लिखने को कहा । जिससे लोगों को इस काल में साधना करने का मार्गदर्शन प्राप्त हो सके |
४. परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी की मानवजाति के प्रति निरपेक्ष प्रीति
परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी की मानवजाति के प्रति निरपेक्ष प्रीति, प्रत्येक जीव की आध्यात्मिक उन्नति में सहायता करने हेतु उनके द्वारा किए जा रहे अथक प्रयासों से निश्चित ही झलकती है । उनका अपने गुरु की आज्ञा का पालन हेतु बताई सेवा करने की तडप और समाज की आध्यात्मिक प्रगति कराने के प्रयासों के कुछ उदाहरण आगे दिए गए हैं ।
१. आध्यात्मिक ग्रंथ लिखने हेतु समर्पित होना
अपने गुरु द्वारा बताए गए एक वाक्य के आधार पर, उसी क्षण से परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी ने अपना पूरा जीवन ऐसे आध्यात्मिक ग्रंथ लिखने हेतु समर्पित किया जिसे सर्वसाधारण मनुष्य भी समझ सके । आजतक वो ३०० से अधिक ग्रंथ लिखे चुकें हैं । इन ग्रंथो में जो ज्ञान है, वह मात्र दूसरे पवित्र धार्मिक ग्रंथो से ली गई उद्धरण जानकारी नहीं है, अपितु ऐसा अद्भुत ज्ञान है, जिसमें कम से कम ५० से ७० % भाग अति जागृत छठवीं इंद्रिय के माध्यम से प्राप्त किया गया ईश्वरीय ज्ञान है, जो इस विश्व में और कहीं भी उपलब्ध नहीं है । ये ग्रंथ मानवता को कलियुग के अंत तक मार्गदर्शन करेंगे । जब कभी वह अस्वस्थ भी रहते हैं तब भी वो ग्रंथ लिखने की सत्सेवा करते ही रहते हैं । यह ग्रंथ बहुत ही मामूली दर पर उपलब्ध हैं ।
२. मानवजाति को गुरुकृपायोग की राह दिखाने वाले
गुरु शिष्य परंपरा भारत की सबसे प्राचीन परंपरा है । इसके अंतर्गत शिष्य अपने गुरु के बताए अनुसार निष्ठा से साधना अभ्यास करके आध्यात्मिक प्रगति करता है । प्राचीन काल में शिष्य अत्यंत कडी तपस्या और त्याग के अत्यधिक कठिन मार्ग पर चलकर साधना करते थे, तभी वास्तविक गुरु उन्हें स्वीकार करते थे और आगे ईश्वरप्राप्ति तक उनका मार्गदर्शन करते थे।
किंतु, परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी ने मानव कल्याण की अपनी तीव्र ईच्छा के कारण और अपने गुरु के आशीर्वाद से, गुरुकृपायोग का मार्ग स्थापित किया । यह मार्ग ईश्वर तक ले जानेवाले अन्य सभी आध्यात्मिक मार्गों से श्रेष्ठ है । इस मार्ग को अपनाने के अद्वितीय विशेषता यह है, कि कोई भी साधक विश्व के किसी भी कोने में बैठ कर, इसी जन्म में शीघ्र आध्यात्मिक प्रगति कर सकता है और इसी जन्म में ईश्वर को प्राप्त कर सकता है । ऐसा करके, उन्होंने प्रत्येक जीव (केवल आध्यात्मिक रूप से विकसित नहीं) को आध्यात्मिक प्रगति करने का अवसर प्रदान किया है । यही वास्तविक आध्यात्मिक प्रीति है ।
सचेत और अचेतन मन पर उनके द्वारा किए शोध के कारण, उन्होंने स्वभाव दोष निर्मूलन (पर्सनैलिटी डिफेक्ट रिमूवल) प्रक्रिया को विकसित किया । यह प्रक्रिया मन को शुद्ध करने तथा शीघ्र ही आध्यात्मिक प्रगति हेतु नीव रखने में सहायता करती है । इस प्रक्रिया का मार्गदर्शन निःशुल्क किया जाता है । इस प्रक्रिया ने अनेक लोगों को मानसिक स्थिरता प्रदान कर उनके व्यक्तित्व और जीवन के प्रति दृष्टिकोण को सुधारने में सहायता प्रदान की है ।
३. लोगों का आध्यात्मिक स्तर पर मार्गदर्शन करना, जिससे शीघ्रातिशीघ्र ही उनकी उन्नति हो सके
सभी की पसंद को ध्यान में रखकर तथा इस प्रकार सभी को प्रसन्न रखकर मानसिक स्तर पर मार्गदर्शन प्रदान करना बहुत आसान है । ऐसा करने से, बड़ी प्रसिद्धि प्राप्त कर सकते हैं । लेकिन, इस पद्धति से उतनी आध्यात्मिक प्रगति नहीं हो पाती जितनी होनी चाहिए । परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी का दृष्टिकोण सदा से ही साधकों को आध्यात्मिक स्तर पर मार्गदर्शन करने का होता है । समय अत्यंत बहुमूल्य है और एक भी क्षण व्यर्थ नहीं किया जा सकता, केवल आध्यात्मिक स्तर का मार्गदर्शन ही मनुष्य को शीघ्र गति से प्रगति करने में सहायता कर सकता है । इसी कारण से परात्पर गुरु के मार्गदर्शन की पद्धति अत्यंत सुलभ और स्पष्ट होती है, जिससे साधक का थोड़ा समय भी व्यर्थ नहीं होता । वो बताते हैं, कि सभी को स्वभावदोष और अहं निर्मूलन की प्रक्रिया का अभ्यास करना चाहिए, भले ही यह थोड़ा कठिन मार्ग क्यों न हो ।
४. मानवता के लिए आध्यात्मिक शोध करना
हम सभी एक ऐसी शिक्षा प्रणाली के उत्पाद है जो आधुनिक वैज्ञानिक दृष्टिकोण पर आधारित है । दुर्भाग्यवश, ऐसी शिक्षा प्रणाली जीवन के आध्यात्मिक पहलू पर बिल्कुल ध्यान नहीं देती । लेकिन, अधिकतर लोग यह नहीं जानते कि जीवन का आध्यात्मिक पहलू ही हमें सबसे अधिक प्रभावित करता है और यही निश्चित करता है कि हमारे जीवन में सुख होंगे या दुख । इसीलिए, परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी ने एक आध्यात्मिक शोध विभाग की ही स्थापना की है , जो हमारे जीवन के प्रत्येक पहलू पर शोध करता है ।
यह आध्यात्मिक शोध, प्रभामंडल और ऊर्जा स्कैनरों के उपयोग से और आध्यात्मिक शोध दल के साधकों के दिव्य ज्ञान की जागृत छठवीं इंद्रिय के माध्यम से किया जाता है । परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी स्वयं ही इस आध्यात्मिक शोध दल के प्रतिपालक हैं, और परिणामों को सत्यापित करने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं । आध्यात्मिक आयाम में उनकी गहरी अंतर्दृष्टि के कारण ही हम यह समझ पाते हैं कि कौन से शोध प्रयोग पहले किए जाएं । उदाहरण के तौर पर, कभी एक आधुनिक शोधकर्ता इस विषय पर जांच करने का कभी नहीं सोचेगा कि अंतिम संस्कार पर काले वस्त्र पहने जाने चाहिए या नहीं । क्योंकि उसके मन में यह विचार कभी आएगा ही नहीं, कि काले रंग के नकारात्मक आध्यात्मिक परिणाम होते हैं, इस विषय पर शोध करना है; क्योंकि यह कदाचित आजकल बहुत लोकप्रिय है ।
इस शोध का मुख्य उद्देश्य लोगों को यह समझने में सहायता करना है, कि उनके प्रत्येक कर्म और प्रथाएं उन्हें आध्यात्मिक स्तर पर कैसे प्रभावित करती हैं । उदाहरण के लिए, “संगीत, भोजन, रंग या कला इत्यादि हमें आध्यात्मिक स्तर पर कैसे प्रभावित करते हैं ?” लोग प्रायः यह जान के आश्चर्यचकित होते हो जाते हैं कि वो प्रतिदिन ऐसी कितनी कृतियां करते हैं जिनसे नकारत्मक स्पन्दन प्रक्षेपित होते हैं, जिससे अंततः आगे समस्याएं एवं कष्ट उत्पन्न होते हैं ।
इसके साथ ही, आध्यात्मिक शोध आध्यात्मिक आयाम पर प्रकाश डालता है, कि किस प्रकार हमारे जीवन में अनिष्ट शक्तियाँ अत्यंत कष्टदायी हो सकती हैं जबकि सकारात्मक शक्तियाँ तथा देवता (ईश्वरीय तत्त्व के विविध रूप) हमें आध्यात्मिक शक्ति प्रदान कर सकते हैं । परात्पर गुरुदेवजी ने सदैव ही विश्व को इस तथ्य से अवगत कराने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है, कि वर्ष १९९९ से २०२३ की अवधि में, आध्यात्मिक जगत में एक सूक्ष्म महायुद्ध चल रहा है, जैसा कि हम जानते हैं उसका परिणाम धरती के जीवन पर प्रचण्ड रूप से पड़ेगा, तथा जिसका समापन तृतीय विश्व युद्ध के स्वरूप में दिखाई देगा ।
अनिष्ट शक्तियों और उनके कार्य प्रणाली के बारे में ज्ञान ने विश्वभर के सहस्त्रों लोगों को उन समस्याओं की पहचान करने में सहायता की है, जो आध्यात्मिक प्रकृति के हैं । परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी इतने तक ही नहीं रुके । उन्होंने अत्यंत ही सरल, किंतु शक्तिशाली, स्व-उपचार पद्धतियों एवं साधना से आध्यात्मिक समस्याओं का उपचार कैसे करें, यह समझाकर विश्वभर के सहस्त्रों लोगों की सहायता की हैं । हमारी SSRF की वेबसाइट (जालस्थल) पर जीवन के सभी क्षेत्र एवं विभिन्न संस्कृतियों के लोगों के अनेक प्रकरण अध्ययनों से परिपूर्ण है, जिन्हें इन उपचारों से शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक स्तर पर लाभ मिला है । इस आध्यात्मिक शोध के कारण, उन्हें वर्तमान युग की सबसे उत्तम प्रकार की साधना एवं आध्यात्मिक उपचार की पद्धतियों की जानकारी प्राप्त हो सकी है ।
आध्यात्मिक शोध केंद्र में भौतिक लोक (दृश्यमान विश्व) की अनेकों वस्तु और कलाकृतियाँ का सबसे बडा संग्रह है जिन्हें अस्तित्त्व के सूक्ष्म लोकों (अदृश्य विश्व) की अनिष्ट शक्तियों द्वारा प्रभावित किया गया है अथवा उनमें हेर फेर किया गया है । वास्तविक तथ्य यह है, कि परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी की दूरदृष्टि के कारण ही हम इस तरह की वस्तुओं की पहचान करने में, उनका विश्लेषण करने में और भविष्य की पीढ़ियों को उन्हें देखने हेतु संग्रहीत करने में, सक्षम हुए हैं ।
आए दिन हम कहीं ना कहीं चमत्कार की घटनाएँ सुनते ही रहते हैं, और कैसे श्रद्धालुओं का समूह उस स्थान पर चमत्कार देखने की आशा में पहुंच जाते हैं । लेकिन हमारे आध्यात्मिक शोध केंद्र में हम सहस्त्रों, सहस्त्रों नहीं तो सैंकड़ों ऐसी घटनाओं को घटित होते देखते आए हैं । वास्तव में, उच्च स्तरीय सकारात्मक (दैवीय) शक्तियों एवं अनिष्ट शक्तियों के कारण, यहां ऐसी बहुत सी सकारात्मक और नकारात्मक, दोनों प्रकार की घटनाएँ, प्रतिदिन हो रही हैं । परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी की उपस्थिति एवं उनके मार्गदर्शन के कारण ही हम इतनी अधिक मात्रा में आध्यात्मिक घटनाओं को पहचानने में और उसके साक्षी बनने में सक्षम हो पाए हैं ।
इन सभी सकारात्मक और नकारात्मक घटनाओं का लेखांकन किया गया है और परिश्रम से संग्रहित कर, इन्हें अध्यात्म संग्रहालय में रखा गया है ।
५. मानवजाति को आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्त करवाकर उनके दुःख कम करने की तडप
SSRF की वेबसाइट (जालस्थल) पर एक लेख है, जिसमें मृत्यु के उपरांत कर्मकांड के रूप में जमीन में शव को गाडना तथा दाह-संस्कार करने के लाभ और हानि को तुलना करके दिखाया है । जब लेख लिखा गया था, तब उसमें दाह-संस्कार के लाभों को इस दृष्टिकोण से बताया गया था कि उसमें आध्यात्मिक शास्त्र के अनुसार अनुष्ठान के सभी पहलुओं का पालन किया गया है, जैसे मंत्रोच्चारण, कुछ विशिष्ट अनुष्ठान, अंतिम संस्कार हेतु उचित चिता का उपयोग करना इत्यादि । तभी एक दिन एक साधक ने हमें ध्यान में लाकर दिया कि यदि कोई विदेश में रहकर दाह संस्कार करवाने की इच्छा रखता हो, तो उसके पास केवल दहागृह में शव जलाना ही एकमात्र विकल्प होता है, जो दाह-संस्कार के विपरीत है । ऐसे शमशान घाटों में इसकी जानकारी नहीं होती कि कोई भी अनुष्ठान, मंत्रोच्चारण अथवा ऐसे मंत्रों से मृत्यु के उपरांत लिंग देह को आगे की यात्रा करने में सहायता कैसे प्राप्त हो सकती है।
साधक शॉन ने यह बात परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी को बताई । अंतिम संस्कारों की विविध पद्धतियों के सूक्ष्म निष्कर्ष लेने पर, परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी ने कहा, कि मंत्रों के साथ किए गए दाह संस्कार पद्धति के आध्यात्मिक लाभ, दाह गृह में लागू होने वाली प्रक्रिया से कही अधिक श्रेष्ठ है । तब उन्होंने कुछ देर विचार किया और कहा, “हम उन सूक्ष्म देहों की सहायता कैसे कर सकते हैं जिनका अंतिम संस्कार दाह गृह में किया जाता है ?” लगभग तुरंत, उन्होंने बोलना जारी रखा और कहा कि हमें आवश्यक मंत्र अपनी वेबसाइट (जालस्थल) पर डालने चाहिए । जब शॉन ने उनसे पूछा कि क्या हमें उत्पादन लागत को पूरा करने के लिए ऑडियो फाइलों के लिए मामूली शुल्क लेना चाहिए , तब परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी ने यह कहकर उत्तर दिया कहा कि, “नहीं, इन्हें समाज को निशुल्क दीजिए ; इन मंत्रों पर हमारा अधिकार नहीं है” । बाद में उन्होंने कहा कि ये मंत्र प्राचीन भारत की ओर से मानवजाति को एक देन है, और उन पर किसी का अधिकार नहीं हो सकता । यह मानवजाति को निशुल्क ही उपलब्ध होना चाहिए ।”
जब परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी यह सब बता रहे थे, शॉन की भावजागृती हुई । शॉन ने समाज के प्रति परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी की निरपेक्ष प्रीति को अनुभव किया । इस घटना के माध्यम से शॉन के मन में यह सुदृढ़ हुआ कि कैसे परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी यह निरंतर सोचते है कि विश्व के सभी लोग, जिनमें मृत्योपरांत की सूक्ष्म देह भी सम्मिलित है, उन्हें आध्यात्मिक शोध केंद्र एवं आश्रम में उपलब्ध आध्यात्मिक ज्ञान से लाभ प्राप्त हो सके । इससे आध्यात्मिक कष्ट के कारण उत्पन्न समस्याओं को दूर करने में सहायता हो सकती है ।
६. भावी पीढी को आत्मनिर्भर बनाना एवं साधकों को उनके क्षेत्रों में आध्यात्मिक श्रेष्ठता प्राप्त करने में सहायता करना
परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के पास अति जागृत छठवीं इंद्रिय और ईश्वरीय ज्ञान तक पहुंच होने के कारण, वे साधकों को विभिन्न क्षेत्र एवं कलाओं में सरलता से मार्गदर्शन करने की अद्वितीय क्षमता रखते हैं । अनेक साधकों ने देखा है कि किस प्रकार उन्हें प्रत्येक क्षेत्र में आध्यात्मिक कौशल और निपुणता प्राप्त है । वे हर परियोजना के हर क्षेत्र में आध्यात्मिक चैतन्य आकर्षित एवं उत्पन्न करने की क्षमता रखते हैं । हालांकि, उनकी निरपेक्ष प्रीति और महानता निहित है उनका यह सुनिश्चित करने में कि प्रत्येक क्षेत्र में संतों और साधकों को इतना विकसित किया जाए कि वे आत्मनिर्भर बन सकें ।
यह सुनिश्चित करने के लिए, वे हर परियोजना के छोटे से छोटे पहलू का विवरण बहुत बारीकी से करते हैं, जिससे कि वे हर साधक की समझ और अंतर्दृष्टि को उसके संबंधित क्षेत्र में विकसित कर सकें । हर परियोजना के अंत में, उसे पूर्ण होने में उनकी महत्त्वपूर्ण भूमिका होते हुए भी, वह सारा श्रेय खुद न लेकर ईश्वर और उस परियोजना में सम्मिलित साधकों को ही देते हैं ।
७. सिद्धांत उन्मुख होना
परम पूज्य परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी ने सदैव ही साधकों को सिखाया है कि कैसे सिद्घांत उन्मुख होकर ब्रह्मांड के वैश्विक सिद्धांत पर श्रद्धा रखनी है । ऐसा करके, उन्होंने साधकों को केवल उन पर ही आश्रित न रखकर, अध्यात्म शास्त्र पर पूर्ण श्रद्धा रखने में सहायता की हैं । उदाहरण के तौर पर, यदि किसी साधक को आध्यात्मिक कष्ट हो रहा है, तो कोई जाए और साधक का उपचार करें, उसके स्थान पर, वह साधक को प्रोत्साहित करते हैं कि वह स्वयं ही आध्यात्मिक उपाय सीखकर अपना उपचार स्वयं कर सके ।
उनकी आध्यात्मिक प्रीति के कारण, परात्पर गुरुदेव डॉ. आठवलेजी ने बार बार साधकों को यह बताया है, कि वे नहीं चाहते कि लोग उनके स्थूल देह पर निर्भर रहें अपितु वे चाहते हैं कि सभी उनके शाश्वत सनातन रूप, जो कि निर्गुण अव्यक्त गुरु तत्व है, उसे अनुभव करने का प्रयास करें । इससे साधकों को सभी परिस्थितियों में स्थिर रहने हेतु सहायता होगी क्योंकि गुरु तत्त्व को स्थान और समय की मर्यादा नहीं होती ।
८. अधिकाधिक लोग भावी ईश्वरीय राज्य के साक्षी बने, इसके लिए उनके मन में असीम प्रीति होना
परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के कार्य का सबसे मुख्य पहलू रहा है, धरती पर आध्यात्मिक जागृति कर नए युग का निर्माण करने हेतु मार्ग प्रशस्त करना । इस युग को प्रायः धरती पर ईश्वरीय राज्य की स्थापना भी कहते हैं । किंतु यह नया युग, जिसका आरंभ २०२४ से होगा, उसमें प्रवेश करने का मार्ग अत्यंत भयंकर आपदाओं एवं विनाश से भरा होने वाला है, जिसमें विश्व की जनसंख्या का एक बडा भाग नष्ट हो जाएगा ।
SSRF की वेब साइट (जालस्थल) पर वर्ष २००७ के आरंभ से ही, २०२४ तक क्या होने वाला है, इसका विवरण यथार्थ दिनांकों के साथ प्रकाशित किया जा चुका है । प्रारंभ में, भीषण विनाश की अवधि वर्ष २०१५ से २०२३ तक बताई गई थी । किसी के लिए, नए युग को देखने हेतु जीवित रहने के बार में, परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी ने सदैव कहा है कि यह उनके आध्यात्मिक उन्नति के लिए किए जा रहे प्रयासों पर निर्भर करेगा । जैसे ही हम तीव्र विनाश की अवधि के निकट पहुंचे, तब एक दिन परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी ने वेब साइट (जालस्थल) पर भीषण विनाश की अवधि को २०१५ -२०२३ से बदलकर २०१९-२०२३ लिखने को कहा ।
यह सुनकर, वहां उपस्थित साधकों ने अनुभव किया कि उनकी भावजागृति हुई है । उन्होंने परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी की मानवता के प्रति असीम प्रीति एवं आध्यात्मिक शक्ति को अनुभव किया क्योंकि वो मानवजाति को इस भयानक काल से अस्थाई रूप से दूर होता देखने के साक्षी बने थे । केवल एक अत्यंत उच्चकोटि के संत ही अपनी संकल्प शक्ति से मानव इतिहास की अवधि में इस प्रकार के बदलावों को प्रभावी गति से बदल सकते हैं । दिनांक में परिवर्तन होने की इस घटना में साधकों ने यह अनुभव किया कि उन्होंने इस भयावह विनाश के वास्तविक काल को कम कर, मानवता को आनेवाले समय के लिए सज्ज होने का अवसर ही दिया है । उस क्षण का परिमाण और गंभीरता तथा जिसके वो साधक साक्षी बने थे, उसकी अनुभूति सदा ही उनके साथ रहेगी।
५. निष्कर्ष
इतिहास जब मुडकर इस समय की ओर देखेगा, तो उसे परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी की अनन्य महानता दिखाई देगी, मानवजाति के आध्यात्मिक उत्थान में उनके योगदान और आध्यात्मिक आयाम को समझने हेतु समाज को आध्यात्मिक रूप से जागृत करने के कार्य के बारे में बात की जाएगी । वे अद्वितीय हैं – एक समष्टि परात्पर गुरु हैं (जो अखिल मानव जाति को ईश्वरप्राप्ति करवा सकते हैं) । भले ही उनका कार्य इतना विशाल है, तब भी जिस विनम्रता और प्रेम के साथ वो अपना दैनिक कार्य करते हैं और जिस प्रकार वे दूसरों से बात करते हैं, यह कुछ ऐसा है, जिसका हम सभी अनुसरण करने की इच्छा रखते हैं ।
सभी साधकों के लिए, उनके साथ हुई भेंट और उनसे जुड़ी स्मृतियां अति विशिष्ट हैं क्योंकि वे उनके द्वारा दिखाए गए अनन्य प्रेम से पूरित हैं । हम साधक, जिन्होंने उन्हें प्रत्यक्ष रूप से अनुभव किया, उनके सानिध्य में रहने को मिले जीवनभर के इस एक अवसर के लिए सदैव कृतज्ञ रहेंगे और जो प्रेम उन्होंने हमें दिया है, वह सदैव हमारे हृदय में अंकित रहेगा । उन्होंने इस अवधारणा को सिद्ध किया है कि नेतृत्त्व दूसरों के प्रति अपार प्रीति रखकर ही किया जाना चाहिए ।
हमारी बस यही प्रार्थना है कि हम भी असीम प्रीति और मानवता की सेवा करना सीखें जैसे उन्होंने सिखाया है ; और यदि हम उनका थोड़ा भी अनुकरण कर ले, तो ये जीवन सार्थक हो जाएगा।