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१. परिचय

जब मैं ५ वर्ष की थी, बिछावन पर लेटे-लेटे विचार किया करती थी कि मेरा जन्म क्यों हुआ, मेरे माता-पिता ऐसे क्यों हैं और मेरा जन्म अन्य परिवार में क्यों नहीं हुआ । मैं सोचा करती कि मां के गर्भ में आने से पहले मैं क्या थी, मेरा भविष्य कैसा होगा । इनमें से किसी भी विचार का उत्तर मुझे नहीं मिलता ।

वास्तव में मैंने कभी ईश्वर पर विश्वास नहीं किया ना ही किसी धर्म को माना । मेरे मन में ईश्वर की अयोग्य छवि थी । बालविहार अथवा विद्यालय के बच्चों ने मुझे बताया था कि ईश्वर एक लंबी सफेद दाढीवाले वृद्ध व्यक्ति हैं, जो आकाश में बैठकर सृष्टि पर शासन करते हैं । मैं इस पर तनिक भी विश्वास नहीं करती थी । टेलीविजन पर मैंने देखा कि अलग धार्मिक आस्था के कारण युद्ध तथा झगडों में कितने लोग अन्यों की हत्या कर देते हैं । मैं सोचती ईश्वर अवश्य ही बहुत क्रूर होंगे; क्योंकि इतने सारे लोग उनके कारण एकदूसरे से लडते हैं, एकदूसरों की हत्या कर एकदूसरे को यातना देते हैं । किंतु एक दृढ भावना भी थी कि कुछ तो है जो मेरी समझ के परे है -कोई शक्ति जिसने हमारे संसार की निर्मिति की है । प्रकृति, जानवर तथा पेड-पौधों के माध्यम से मैं उस शक्ति से जुडे होने का अनुभव करती । जब भी पर्यावरण के साथ उचित वर्तन नहीं होता अथवा लोग जब जानवरों अथवा अन्य सजीव प्राणियों को कष्ट देते तो मुझे दुख होता ।

२. किशोरावस्था

वर्ष २००८ में जब मैं लगभग १२ वर्ष की थी, मेरे माता-पिता के बीच वैवाहिक समस्याएं थीं । मेरे पिताजी मानसिक रोग से भी पीडित थे, जिसे कभी-कभी संभालना तथा समझना अति कठिन हो जाता । उस समय, मेरी मां हमें सुरक्षित रखने के लिए हर संभव प्रयास करती जिससे कि परिवार टूट न जाए । हम सभी को अच्छा नहीं लगता और हमारा परिवार थोडा टूटा हुआ लगता । मैं विद्यालय से सीधे घर जाना टालती और अपने मित्रों से मिलती और संध्याकाल घर में आती । मुझे घर में तथा अपनेआप में बेचैनी अनुभव होती, लगता मैं अपने वास्तविक रूप से अलग हट गई हूं ।

१३ वर्ष की अवस्था में, मैं अन्य लडकियों से अपनी तुलना करती और अपनेआप को देखकर दुखी हो जाती । सुंदर न होने तथा अधिक मोटे होने के विचार मेरे मन में उत्पन्न हो गए । इसलिए मैंने डायटिंग करना आरंभ किया और १-२ माह के उपरांत मेरे मित्रों तथा मेरे परिवारवालों ने बताया कि अब मेरा शरीर पहले से सुंदर लग रहा है तथा उन्होंने मेरे वजन घटाने की प्रशंसा भी की । मेरा २-३ किलोवजन घटा; किंतु सामान्य वजन होने पर भी मैं डायटिंग करती रही । मैं और सुंदर बनना चाहती थी और चाहती थी कि लोग मेरी और प्रशंसा करे । वजन घटाने हेतु स्वयं को प्रेरित करने के लिए मैं फैशन मैगजीन पढती तथा इंटरनेट पर वजन घटाने के पद्धतियों को ढूंढती । अपने खाने की मात्रा को घटाने का मैंने प्रयास किया और प्रतिदिन भोजन की कैलोरी गिनती । किसी कारण से यह अति हो गया और मैं डायटिंग को नहीं रोक सकी, यद्यपि मैं उस समय तक बहुत पतली हो गई थी । मैं क्षुधानाश (एनोरेक्जिया)से पीडित हो गई ।

३. क्षुधानाश के कारण खाने की इच्छा न होना

क्षुधानाश के कारण, मैं प्रतिदिन स्वयं को बीते दिन की तुलना में अल्प मात्रा में खाने के लिए विवश करती और शीघ्र ही मेरे भोजन की मात्रा घटकर एक दिन में २०० -३०० कैलोरी रह गई । मेरी प्राणशक्ति तथा मानसिक शक्ति घट गई; किंतु मेरा मन रूप-सौंदर्य, पतले होने से संबंधित विचारों तथा स्वयं के तथा अन्यों के प्रति अत्यधिक क्रोध एवं घृणा के विचारों से भरा रहता । मैं अपने ही संसार में जीती तथा मेरा दृष्टिकोण पूर्णतःविकृत हो गया था । क्षुधानाश के कारण मेरा वजन सामान्य से अल्प हो गया था इसलिए मेरे परिवारजन तथा मित्रों ने बताया कि मैं रोगी दिख रही हूं तथा स्वस्थ तो तनिक भी नही हूं । उन्होंने मुझे डायटिंग रोकने तथा वजन घटाने के प्रयास को बंद करने का परामर्श दिया । मैं क्रोधित हो जाती और सोचती कि वे केवल मुझसे ईर्ष्या करते हैं, क्योंकि मैं इतना श्रम करके वजन घटाने में सक्षम रही तथा स्वयं को अल्प खाने से रोक सकती थी एवं वे ये सब करने में पूर्णतः असफल ही होंगे । (संपादक की टिप्पणी : अत्यंत पतले होने तथा किसी भी प्रकार से वजन घटाने जैसे विचार अनिष्ट शक्तियों द्वारा प्रेरित होती हैं । इसका समाधान है अध्यात्म के मूलभूत छः सिद्धांतों के अनुसार साधना करना ।)

जब भी लोग भोजन करते मैं उनकी आलोचना करती तथा किसी खाद्य पदार्थ को देखकर अरूचि ही दर्शाती । परिवार की समस्याओं के कारण हम कदाचित ही एक परिवार के रूप में एकत्रित भोजन करते । ऐसी परिस्थिति में तथा क्षुधानाश के कारण मैं अभिभावकों को दिखाने के लिए कि मैं कितनी अल्प मात्रा में भोजन लेती हूं तथा मैं कितनी अनुशासित हूं, अत्यल्प भोजन करती । मैं अपने भोजन पर पूर्णतः नियंत्रण रखना चाहती थी । मेरी मां मेरे क्षुधानाश से चिंतित हुईं और मुझे इसके उपचार हेतु जाने को कहा । किंतु मैं भावुक तथा क्रोधित होकर उन पर चिल्लाती कि मुझे जो खाना चाहती हूं मैं खा सकती हूं, यह मेरा शरीर है और मैं जैसा चाहूं, इसके साथ वैसा व्यवहार कर सकती हूं । मैं अपने शरीर से घृणा करती थी और उसे अधिक से अधिक हानि पहुंचाना चाहती थी ।

उस कालावधि में, मुझे आत्महत्या के विचार आने लगे और ये संस्कार दृढ होने लगे कि मैं अपने माता-पिता की बुरी बेटी हूं; क्योंकि मैं उनके लिए अनेक समस्याएं खडी की थी । मैं किसी भी प्रकार से अपने जीवन से मुक्ति पाना चाहती थी ।

४. ध्यान आकृष्ट करना

मेरे दुबले-पतले शरीर की बनावट से मैं सबको आकृष्ट करती और विचार करती कि मेरे यह कर पाने के कारण अन्य लोग मेरी प्रशंसा करेंगे । इसलिए मैं छोटे स्कर्ट और तंग शर्ट जैसे मेरी अंग-प्रदर्शन करनेवाले वस्त्र पहनने लगी । परंतु तब मैं अपने शरीर से लज्जित भी हो जाती क्योंकि मैं स्वयं को मोटा समझती थी । शीघ्र ही १३-१४ वर्ष की अवस्था में, मैं बाहर जाकर मद्यपान करने लगी । मेरे माता-पिता को इसका पता नहीं था; क्योंकि जाते समय बोलकर जाती कि मैं रात में सहेली के घर ही सो जाऊंगी । उस समय मेरा वर्तन मेरी सामान्य स्थिति से हटकर था । मेरे बात करने की पद्धति भी अलग हो गई थी ।

ठीक इसी समय मेरी मां मुझे चिकित्सालय ले गई; क्योंकि उस समय मेरा पेट फूल गया और मुझे कई दिनों से कोष्ठबद्धता (कब्ज) हो गर्इ थी । मुझे बहुत ठंड लग रही थी, मैं ठंड से कांप रही थी और मेरे पूरे शरीर में वेदना हो रही थी । चिकित्सक ने मुझे क्षुधानाश के लिए उपचार कराने का परामर्श दिया । मेरी अत्यंत दयनीय स्थिति के बारे में उन्होंने मुझे भान कराया । उपचार कराने की मेरी काई इच्छा नहीं थी; इसलिए मैंने अधिक खाने का और मां की सहायता लेने का आश्वासन दिया । तब मेरी मां ने मुझे खाने का आग्रह किया । एक बार खाने के टेबल पर बैठकर मैं बहुत रोने लगी । उन्होंने मेरे लिए जितना भोजन परोसा था वह देखकर मुझे डर लगा ।

कुछ समय पश्चात मेरा वजन बढ गया; इससे मुझे बुरा लगने लगा । मेरी खाने की आदतें अभी भी सामान्य नहीं हुई थी । मैं अभी भी मेरी प्रतिदिन की कैलोरीज गिनती और प्रतिदिन मेरा वजन देखती थी; क्योंकि मुझे वजन बढकर मोटे होने का डर लगता था । परंतु अब मेरे मित्र तथा परिवार के सदस्य मेरे दुबले-पतले होने पर कोई ताने नहीं दे रहे थे ।

५. क्षुधानाश की समस्या को छिपाना और सामान क्रय करने (खरीदने) का व्यसन लगना

परिवार की स्थिति अत्यंत दयनीय होने से मेरी १४-१५ वर्ष की अवस्था में मेरे माता-पिता ने विवाहविच्छेद किया । मेरे पिताजी का मानसिक स्वास्थ्य और भी बिगड गया और लगभग १ वर्ष तक उन्हें मिल नहीं पाई । साथ ही मुझे अपने बारे में नकारात्मक विचार आने लगे और माता-पिता के विलग होने के लिए मैं अपनेआप को दोषी ठहराने लगी । मैं अपनेआप को दंडित करना चाहती थी और इसके लिए मैंने पुनः खाना अल्प कर दिया; यहां तक कि दिन में मैं केवल एक सेव खाती थी । मेरा वजन ३६ किलोग्राम हुआ, जो पहले की तुलना में १५ किलोग्राम अल्प था । खाने से मेरे मन में अपराध की भावना उत्पन्न होने से खाना खाने के लिए मैं अपने कक्ष में छिप जाती और जब मेरी मां मुझे देखने आती, तो फल का टुकडा अपने पीछे छिपाती । मुझे लगा कि मैं कुछ भी खाने के कतर्इ पात्र नहीं हूं और मुझे पीडा होनी चाहिए ।

फैशन के प्रति मेरी रूचि बढ गई और मैं मेरी तुलना मॉडल्स के साथ करने लगी । मैं और भी दुबली-पतली होना चाहती थी, जिससे मेरी हड्डियां स्पष्ट दिखे । वस्त्र खरीदने की मेरी आदत भी बढ गई । कभी-कभी तो मैं सप्ताह में २-३ बार भी शॉपिंग के लिए जाती थी । मेरी मां मुझे खाद्यपदार्थ खरीदने के लिए पैसे देती थी, परंतु मैं उन्हें वस्त्र खरीदने में उडा देती थी । (संपादकीय टिप्पणी : शॉपिंग की अनियंत्रित प्रवृत्ति होना, प्रायः अनिष्ट शक्तियों के कारण भी होता है ।)

६. SSRF से परिचय होना

मेरा स्वास्थ्य बहुत बिगड गया और मैं इतनी शक्तिहीन हो गई कि मैं बडी कठिनाई से चल पाती थी । मेरी त्वचा पर लाल चकत्ते आए, त्वचा शुष्क हुई और होंठ नीले पड गए । मेरी मां को मेरे स्वास्थ के प्रति चिंता थी, इसलिए उन्होंने पिताजी से संपर्क किया । स्वास्थ्य की समस्याओं के कारण पिताजीे मुझे विविध चिकित्सकों के पास ले जाते थे । लंबे समय के उपरांत मुझे देखने से उन्हें धक्कासमान लगा । मुझे इस स्थिति से बाहर निकालने के लिए वे मेरी सहायता करना चाहते थे । पिछले कुछ वर्षों में क्या हुआ, वर्त्तमान जीवन तथा उसके कारणों आदि विषयों पर हमारी बातचीत हुई । उनसे बात करने पर मुझे बहुत अच्छा लगा । उन्होंने भी मुझे पुनः खाना खाने के लिए तैयार कर लिया, परंतु मैं अधिक कुछ खा पाने और अपना वजन बढाने में असमर्थ थी ।

कुछ सप्ताह उपरांत उन्होंने मुझे बताया कि SSRF नामक एक संगठन से उनका परिचय हुआ है । उन्होंने बताया कि उनकी स्थिति में सुधार आने के लिए इस संगठन ने उनकी किस प्रकार सहायता की । परंतु मुझे इसके बारे में संदेह था । मैं कई बार उन्हें पूछती कि क्या SSRF र्इश्वर से संबंधित है ? परंतु पिताजी मुझे यह कहकर शांत करते थे कि SSRF का ईश्वर से कोई संबंध नहीं है; किंतु केवल यह सीखाता है कि जीवन क्या है तथा अपने सत्य अस्तित्व को कैसे ढूंढना है ।

उस समय मेरे पिताजी अंग्रेजी से जर्मन भाषा में लेख अनुवाद करने की सत्सेवा करते थे । परंतु जर्मन उनकी मातृभाषा न होने से अनुवाद में आनेवाली कुछ अडचनों के लिए वे मेरी सहायता लेते थे । SSRF के जालस्थल के लेखों का अनुवाद करने में मुझे बहुत आनंद मिलता था; इसलिए मेंने उन्हें अपने लिए अनुवाद की सेवा के बारे में पूछा । उस समय मुझे बोध हुआ कि निश्चित ही ईश्वर से संबंधित है । किंतु ये ईश्वर मैंने बचपन में जैसे उनके संदर्भ में सुन रखा था उससे अलग हैं । ये ईश्वर बहुत सुंदर हैं और तनिक भी क्रूर नहीं हैं । वे प्रकृति में तथा पृथ्वी में विद्यमान हैं ।

७. साधना का आरंभ

शीघ्र ही पिताजी ने मुझे SSRF के साधकों से परिचित कराया । मैंने भी अंग्रेजी लेखों को जर्मन भाषा में अनुवाद करने तथा अनुवाद में सुधार करने की सत्सेवा आरंभ की । मैंने ईश्वर का नामजप आरंभ किया और सत्संग में उपस्थित रहने लगी ।

एक रात मुझे बहुत अस्वस्थ लगने लगा और यह बताने के लिए मैं ने पिताजी को जगाया । भूमि पर लेटकर मैं रो रही थी और पूरे शरीर में वेदनाएं हो रही थी । वेदनाएं असहनीय थी, इसलिए मैंने उन्हें एम्ब्युलेंस बुलाने के लिए कहा । परंतु वे शांत रहे । उन्होंने मुझे लेटे रहने को कहा और बताया कि वे मेरा ध्यान रखेंगे । वे मेरे लिए पानी लाए, मेरे सर्व ओर SSRF की अगरबत्ती घुमाई, कपूर जलाया और मेरे पूरे शरीर पर विविध देवताओं के चित्र रखें ।

मैं गहरी नींद से सो गर्इ और ३ घंटों के उपरांत मुझे प्रसन्न और हल्का लगने लगा । शरीर की वेदनाएं समाप्त हो गई थी । इस प्रसंग के बारे में मैं अपनेआप को समझा नहीं पा रही थी; परंतु मुझे निश्चिति हुई कि ईश्वर जैसी सर्वशक्तिमान शक्ति ने ही मुझे इन वेदनाओं से बचाया है । इस प्रसंग से ईश्वर के प्रति मेरी श्रद्धा बढ गई और उनके प्रति तीव्र कृतज्ञता लगने लगी । ईश्वर से प्रार्थना करना, उनका नामजप करना और सत्सेवा करना, मैं बंद नहीं करना चाहती थी । ईश्वर की अनुभूति लेने की मेरी उत्कंठा बढ गई ।

मैं सामान्य की भांति खाना खाने लगी । अपनी देह तथा फैशन के विचार अचानक से अल्प हो गए । मेरे अधिकतर वस्त्र काले रंग के होने के कारण तामसिक थे । मैंने उन्हें अन्यों को दे दिया । साधकों ने मुझे अंग-प्रदर्शन करनेवाले वस्त्र न पहनने का तथा केश बांधकर रखने का भी परामर्श दिया । इसके अनुसार आचरण करने पर सडक से जाते समय मुझे सुरक्षित लगने लगा । पहले के समान अब कोई पुरुष मेरी ओर देखकर टिप्पणी नहीं करते थे । मेरे मन में अंतमुर्खता के विचार भी बढ गए ।

८. भारत के गोवास्थित SSRF के आध्यात्मिक शोधकेंद्र को भेंट

साधना आरंभ करने के उपरांत, वर्ष २०१२ में जब मैं १६ वर्ष की थी, साधना आरंभ करने के ७-८ माह के उपरांत मुझे भारत के गोवास्थित SSRF के आध्यात्मिक शोधकेंद्र में जाने का अवसर मिला । इस समय ईश्वर ने मुझे यह अनुभूति दी : जब विमान भारत में उतरनेवाला ही था, मैं अचानक से रोने लगी, जिसका कारण मुझे पता नहीं था । मैं लगभग ३० मिनट तक रोती रही । आकाश में मैंने देखा, तो सभी देवी-देवताएं मेरा स्वागत कर रहे थे । उन सभी से ऊपर भगवान श्रीकृष्ण (ब्रह्मांड के सर्वोच्च देवता) का विशाल रूप था और वे भी मेरा स्वागत कर रहे थे ।

उन्होंने कहा, लारा, घर लौटने पर तुम्हारा स्वागत है । अब सबकुछ ठीक होगा, चिंता मत करो, तुम अब सुरक्षित हो । मुझे लगा कि मैं घर लौट आई हूं । मैंने ऊपर से मुंबई को देखा और चकित रह गई । मैं और भी रोने लगी । मैंने ईश्वर से पूछा कि मैं इतने वर्ष कहां थी ?मुझे क्या हुआ था ? मुंबई इतना बडा शहर कैसे हो गया ? मुझे दिखाई दिया कि १००० वर्ष पहले मैं भारत में साधना कर रही हूं । परंतु मुझसे कुछ पाप हुए होंगे, मेरा आध्यात्मिक स्तर गिरा होगा और अब मैंने साधना के लिए पुनः जन्म लिया है । (ईश्वर ने मुझे यह अनुभव दिया ।)

SSRF के आध्यात्मिक शोधकेंद्र के निवासकाल में मुझे साधना में लगे रहने लिए बहुत स्फूर्ति और प्रेरणा मिली । कई बार साधना के महत्त्व का मुझे भान होता था । लगता था कि केवल साधना एवं ईश्वर के साथ आंतरिक सत्संग से ही मैं पीडामुक्त होकर आनंद अनुभव कर सकती हूं । कभी-कभी मेरे मन में आत्महत्या के विचार आते थे और मैं निराशा में चली जाती थी । ऐसी स्थिति में मैं ईश्वर से आर्तता से प्रार्थना करती थी और अपने आसपास उनके अस्तित्व को अनुभव करती थी । ऐसे प्रसंगों से ही मैंने अनुभव किया कि ईश्वर ही मेरे अच्छे मित्र और माता एवं पिता हैं । लगता था कि मैं एक छोटी बच्ची हूं, जो ईश्वर के बिना असहाय है ।

९. मुझमें विद्यमान अनिष्ट शक्ति का भान होना

दूसरी बार जब मैं SSRF के शोधकेंद्र में गई, मुझमें प्रविष्ट अनिष्ट शक्ति (भूत, प्रेत, पिशाच इ.), अर्थात सूक्ष्म स्तरीय-मांत्रिक, हिंसक रूप में प्रकट होने लगा । इससे मुझे पता चला कि उसने मेरे जीवन को किस प्रकार प्रभावित किया होगा; क्योंकि प्रकटीकरण के समय मुझे तीव्र लैंगिकता के विचार आते, वस्त्र निकाल कर फेंक देने की और केश खुले छोडने की इच्छा होती थी । कुछ वर्ष पहले भी मुझे ऐसे ही विचार आते थे ।

मेरे द्वारा ही भूमि पर अथवा दीवार पर सिर पटकाकर अथवा गरदन मरोडकर सूक्ष्म स्तरीय-मांत्रिक मुझे कष्ट पहुंचाने का प्रयास करता था । परंतु ऐसी स्थिति में मुझे ईश्वर के अस्तित्व का भान होता और वे मुझे इन स्थितियों से सुरक्षितरूप से बाहर निकालते थे । प्रकटीकरण के पश्चात मुझे बहुत अच्छा और हल्का लगता था । लगता था कि मानो SSRF के शोधकेंद्र में विद्यमान आध्यात्मिक शुद्धता के कारण मांत्रिक की शक्ति और क्षमता अल्प हुई है । साधक मुझ पर आध्यात्मिक उपचार कर मेरी सहायता करते थे ।

SSRF के शोधकेंद्र में आध्यात्मिक उपचारों के रूप में मुझे ५-६ घंटे नामजप करने को बताया गया था । SSRF के जालस्थल के लिए चित्र बनाने की सत्सेवा भी मुझे मिली । इससे मेरे मन में व्याप्त विचारों पर मात करने में बहुत सहायता मिली क्योंकि सेवा के कारण मेरा मन उसी में लीन हो जाता । आनंद तथा ईश्वर के साथ आंतरिक सत्संग भी बढा ।

SSRF के साधकों द्वारा बनाई स्व-सूचनाओं का लेने से मुझे सूक्ष्मस्तरीय -मांत्रिक द्वारा निर्मित विचारों का भान होता था । मेरी साधना तथा आध्यात्मिक उपचारों में बाधा लाने का उसका उद्देश्य था । स्व-सूचनाओं के अभ्यास से मुझे मेरे अपने तथा मांत्रिक के विचारों में अंतर समझ में आने लगा । मांत्रिक के विचारों की उपेक्षा करने से उसका मुझ पर नियंत्रण अल्प हुआ ।

१०. वर्तमान स्थिति (२०१४)

मुझे लगता है कि ईश्वर की कृपा से अनिष्ट शक्तियों के मेरे कष्ट अल्प हुए । साधना और आध्यात्मिक उपचारों से निश्चित ही लाभ हुआ । अब मुझे मेरे बारे में अल्प नकारात्मक विचार आते हैं । मैं प्रत्येक क्षण का अधिक आनंद ले पाती हूं । लगता है कि ईश्वर का सदैव भान न कर पाने पर भी वे सदैव मेरे साथ ही हैं । मेरी खाने की आदतों में सुधार आया है । लगता है कि ईश्वर ने मुझे जो शरीर दिया है, उसे हानि पहुंचाने की अपेक्षा अच्छा और स्वास्थ्यवर्धक खाना खाकर उसका संगोपन करूं ।

कभी-कभी मुझे लगता है कि मैं बहुत मोटी हो गई हूं (प्रत्यक्ष में वैसा न होने पर भी)। परंतु ऐसी स्थिति में अपने सहयोगी साधकों से चर्चा करती हूं और वे मेरे मन की इस स्थिति से बाहर निकालने में मेरी सहायता करते हैं । ईश्वर ने मुझे भान करवाया कि दुबली-पतली होने पर जब मुझे लगता था कि मैं बहुत सुंदर दिखती हूं, तब भी मैं सुखी नहीं थी । वजन घटाने और फैशन के वस्त्र पहनने के भ्रामक सुख की तुलना में साधना से मिलनेवाला आनंद कई गुना अधिक था । कभी-कभी सत्संग अथवा सेवा करते समय ईश्वर मुझे देहभान खोने की अनुभूति देते हैं । इसका ठीक से वर्णन करना और इसे समझ पाना मेरे लिए कठिन है; परंतु इस अवस्था में बहुत अच्छा लगता है । ईश्वर के मेरे अंतर में निवास करने से मुझे बहुत अच्छा लगता है और उनकी उपस्थिति में सब कुछ सुंदर प्रतीत होता है ।

इस मार्ग पर ले आने के लिए और मुझे पीडा और कष्ट से मुक्ति दिलाने के लिए मैं ईश्वर के प्रति कोटि-कोटि कृतज्ञ हूं । क्षुधानाश की इस स्थिति से केवल ईश्वरकृपा के कारण ही मैं शीघ्र बाहर आ सकी । मैं अब नियमित साधना कर आनंद का अनुभव कर सकती हूं ।

– कु.लारा म्युलर, विएन्ना, ऑस्ट्रिया, यूरोप (साधिका की गोपनीयता के उद्देश्य से नाम में परिवर्तन किया है ।)