आधुनिक चिकित्सा विज्ञान की सीमाएं एवं आध्यात्मिक उपचार की आवश्यकता

१. आध्यात्मिक दृष्टिकोण से आधुनिक चिकित्सा विज्ञान का परिचय

अनादि काल से रोग एवं उसके उपचारों के अध्ययन ने मानव जाति कोआकर्षित किया है I आज आधुनिक चिकित्सा विज्ञान जैसे एलोपैथी, ने रोगोपचार की प्राथमिक विधि के रूप में व्यापक स्वीकृति एवं ख्याति अर्जित की है I आधुनिक चिकित्सा के क्षेत्र में प्रगति ने विभिन्न रोगों के शारीरिक एवं मनोवैज्ञानिक कारणों को स्पष्ट किया है I फिर भी, यह भी सत्य है कि आधुनिक चिकित्सा विज्ञान आज भी अनेक रोगों के कारणों को पूर्णतया समझ नहीं पाया है I

२. आधुनिक चिकित्सा विज्ञान की सीमाएं

जहां एक ओर किसी भी रोग के वास्तविक कारण समझना स्वाभाविक रूपसे महत्वपूर्ण है; क्योंकि जैसे रोगोपचार में सहायता होती है; वहीं दूसरी ओर यह समझना भी समान रूप से महत्वपूर्ण है कि दो में से एक व्यक्ति रोगी क्यों हो जाता है, जबकि दोनों को रोग होने के समान अवसर थे I आधुनिक चिकित्सा विज्ञान प्रथम बिंदु के बारे में विस्तार से वर्णन करता है, लेकिन दूसरे बिंदु का अधिक वर्णन करने में वह असमर्थ है I आधुनिक चिकित्सा विज्ञान के क्षेत्र में अनेक बार रोग के उपचार का अर्थ रोग के लक्षण अथवा सूचक का उपचार करना होता है I इसलिए, अनेक रोगों में, लक्षणों को छिप (दब) जाने के पश्चात भी, रोगी को जीवन भर उपचार जारी रखने पडते हैं, जिससे लक्षण दबे रहें इसमें वास्तविक रोग का उपचार होता ही नहीं I  चूंकि इसका कोई स्थायी उपचार नहीं होता, रोगी को उपचार से होने वाले दुष्प्रभाव के साथ-साथ रोग से उत्पन्न शारीरिक एवं मनोवैज्ञानिक तनाव भी सहन करना पडता है I

३. बेहतर स्वास्थ्य के लिए आध्यात्मिक उपचारों का महत्व

पारंपरिक भारतीय स्वास्थ्य प्रणाली आयुर्वेद बताता है कि, रोग के कारण तीन स्तरों पर हो सकते हैं, जैसे शारीरिक, मानसिक एवं आध्यात्मिक I SSRF में, आध्यात्मिक शोध के माध्यम से, हमें यह ज्ञात हुआ कि रोगों का मूल कारण मुख्यतः आध्यात्मिक स्वरूप का होता है । वास्तव में व्यक्ति को कोर्इ विशिष्ट रोग होने का मूल कारण ८०% तक आध्यात्मिक स्वरूप का होता है । इन आध्यात्मिक कारणों में मृत पूर्वज अथवा अनिष्ट शक्तियां (भूत, राक्षस, दानव आदि), व्यक्ति का प्रारब्ध  अथवा उसके कर्म भी सम्मिलित हो सकते हैं I प्रत्येक व्यक्ति का आध्यात्मिक कारण भिन्न होता है I यही कारण है कि क्यों दो में से एक व्यक्ति रोगी हो जाता है, जबकि दोनों को रोग होने के समान अवसर थेI

साधना एवं आध्यात्मिक उपचार , आध्यात्मिक मूल के रोगों से मुक्त होने का महत्वपूर्ण साधन है I चूंकि व्यक्ति को रोग होने का आध्यात्मिक कारण समझ पाना अथवा अनुभव कर पाना कठिन होता है, इसलिए रोगी व्यक्ति को अपने सामान्य निर्धारित चिकित्सकीय उपचार के साथ आध्यात्मिक उपचार करते रहने चाहिए I जब व्यक्ति साधना करने लगता है, तब उसका आध्यात्मिक स्तर  बढने लगता है और उसकी आध्यात्मिक संरचना में, आतंरिक बदलाव होने लगते हैं I इसका प्रभाव मन एवं देह पर भी होता है I इसका लाभ यह होता है कि, रोग से और उससे उत्पन्न होनेवाली अन्य समस्याओं से सुरक्षा में वृद्धि हो जाती है I उदाहरण के लिए, यदि कोई व्यक्ति रोग के संपर्क में आ भी जाए, तो वह रोग के कारण होनेवाले शारीरिक एवं मानसिक कष्ट से, साधना न करनेवाले व्यक्ति की तुलना में कम प्रभावित होता है I साधना एवं आध्यात्मिक उपचार न केवल रोग को ठीक करने में अपितु व्यक्ति के मन की आध्यात्मिक शुद्धि और उसे अधिक निस्वार्थ बनाने में सहायता करते हैं I

४. आनेवाले समय में चिकित्सा विज्ञान से अधिक आध्यात्मिक उपचार का महत्व

विश्व इस समय अस्थिर स्थिति में है I अनेक संतों ने अपनी भविष्यवाणी में आगामी कुछ वर्षो में तीसरे विश्व युद्ध और अभूतपूर्व प्राकृतिक आपदाओं की संभावना जतार्इ है I इस युद्ध के परिणामस्वरुप अनेक मूलभूत सुविधाओं का अभाव रहेगा I कारखाने बंद हो जाएंगे और चिकित्सा विज्ञान से निर्माण होनेवाली औषधियां अनुपलब्ध होंगी I उस समय, रोगोपचार के लिए लोगों को आध्यात्मिक उपचारों और उपलब्ध वैकल्पिक चिकित्सा पद्धतियों पर ही निर्भर रहना पडेगा I इस दृष्टिकोण से, अभी से ही आध्यात्मिक उपचार को सीखना और उनका अभ्यास करना आवश्यक है I

देखें खंड – ‘विभिन्न रोगों और विकारों के लिए आध्यात्मिक उपचारी जप