जटाएं क्यों न होने दें - आध्यात्मिक परिप्रेक्ष्य

१. प्रस्तावना

जीवन के सभी क्षेत्रों के व्यक्तियों ने, चाहे कलाजगत हो अथवा खेलजगत, जटा धारण करना आरंभ किया है । फलस्वरूप इस प्रकार की केशरचना समाज में बढती मात्रा में प्रचलित होने लगी है । जिनके केश सीधे हैं, उन्होंने भी अपने केश की जटाएं बनाने की विविध पद्धतियां विकसित की हैं ।

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२. जटाएं कैसे बनाई जाती हैं ?

जटाएं अधितर जानबूझकर बनाई जाती हैं । केश की बनावट विविध प्रकार की होती हैं, इस कारण उनकी जटाएं बनाने के लिए विविध पद्धतियां प्रयुक्त होती हैं, उदा. कंघी उलटी घुमाना (केश को छेडना) । इसके अतिरिक्त, केश को बिना कंघी किए अथवा कटवाए प्राकृतिक रूप से लंबे होने देने से बढते समय वे एक-दूसरे में फंस जाते हैं और उनके ऐंठे जाने तथा उलझने से रस्सियों की भांति जटाएं बन जाती हैं । इस पद्धति को उपेक्षा करना, प्राकृतिक, जैविक अथवा मुक्त पद्धति कहते है ।

३. इस प्रकार की केशरचना अपनाने के कारण

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जटा धारण करनेवाले लोग उनके जटाओं की ओर आकृष्ट होने के विभिन्न कारण बताते हैं, जैसे : पश्चिमी सभ्यता के मापदंड अनुसार सुंदर दिखने के लिए, वांशिक अथवा सांस्कृतिक धरोहर बनाए रखने के लिए, व्यक्तिगत स्वतंत्रता मनाने के लिए, फैशन (नवरूढी) के लिए, अपने व्यक्तित्व को अनोखे ढंग से प्रदर्शित करने के लिए, धार्मिक कारणों से, अपनी प्रवृत्ति दर्शाने के लिए इत्यादि ।

४. अनिष्ट शक्तियों से प्रभावित

  1. वास्तव में अनिष्ट शक्तियां लोगों पर प्रभाव डालकर उनके मन में जटाएं बनाने के ऊपर उल्लेखित विचार उत्पन्न कर उन्हें वैसा करने के लिए प्रोत्साहित करती हैं । जटाओं की निर्मिति आध्यात्मिक कष्टों से संबंधित हैं । मूलतः इन जटाओं के फलस्वरूप मनुष्य की देह के बाहर काली (नकारात्मक) शक्ति का केंद्र निर्मित होता है । जटा धारण करने से व्यक्ति पर अनिष्ट शक्तियों के आक्रमण की संभावना ५ प्रतिशत बढ जाती है । इसलिए जटाएं बनाना अनुचित है ।

अनिष्ट शक्तियों के आक्रमण के कारण हमारी एक साधिका के केश अपनेआप उलझ गए ।

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साधिका के केश के अपनेआप उलझने की इस घटना का स्पष्टीकरण इस प्रकार है । इस साधिका के केश पर पिछले ७-८ महीनों से आक्रमण कर सूक्ष्म स्तरीय-मांत्रिक ने जटाएं बनाने की प्रक्रिया आरंभ की । इन जटाओं के कारण साधिका नकारात्मक विचारों से ग्रस्त हुई । नित्य दैनिक कृत्य करने के लिए भी वे सक्षम नहीं रही । वे किसी यंत्रमानव की भांति व्यवहार करने लगी और उनके मन में आत्महत्या के विचार आने लगे । केश धोने के उपरांत भी वे अपनेआप उलझने लगे तथा उनमें गांठें बनने लगीं । उनके केश घुटने तक लंबे हैं और ६-७ घंटों में ही वे नीचे से लेकर उनके कानों तक उलझ गए । साधना तथा आध्यात्मिक उपचारों के कारण जटाओं की इस समस्या पर वे कुछ महीनों में विजय प्राप्त कर सकी । इससे स्पष्ट होता है कि अनिष्ट शक्तियां लोगों को जटाओं के माध्यम से नकारात्मक रूप से प्रभावित कर उनकी जटाओं में काली शक्ति के केंद्र निर्मित करती हैं । इसलिए अनिष्ट शक्तियों को जटाएं बनाना अच्छा लगता है । अतः लोग अपने केश की जटाएं न बनाए ।

५. जटा धारण करने से उत्पन्न शारीरिक समस्याएं

  • मार्इग्रेन (अर्धशीर्षी) : जटाओं के कारण सिर की त्वचा विचित्र प्रकार से खींच जाने से कभी-कभी मार्इग्रेन उत्पन्न होता है । केश को कसकर ऐंठने से तथा उनके भार के कारण सिर की त्वचा पर तनाव आकर सिर में वेदना होने लगती है ।
  • निद्रा से संबंधित समस्याएं : रस्सी समान जटाएं तकिए जैसी सुखप्रद न होने से जटाओं के साथ सोना असुविधाजनक होता है । यदि जटाएं बहुत लंबी हो, तो उन्हें सिर के ऊपर बांधकर कुछ लोग इस समस्या से छुटकारा पाने का प्रयास करते हैं ।
  • समय का व्यय : केश धोने तथा उन्हें बांधने में बहुत समय लगता है -कभी-कभी इस काम में कई घंटे व्यर्थ हो जाते हैं ।
  • फफूंदी (भुकडी) : केश सुखने में समय लगता है । गीले केश के साथ यदि कोई सो जाता है, तो उसमें फंफूदी और भुकडी का संक्रमण होता है, जिससे व्यक्ति की ओर अनिष्ट शक्ति आकृष्ट हो जाती है ।
  • दुर्गंध : केश गीले होने के कारण अन्य लोगों को जटाओंवाले व्यक्ति से दुर्गंध अथवा बासी गंध आती है ।
  • सिर की त्वचा का संक्रामक रोग से ग्रस्त होना : केश धोने की प्रक्रिया जटिल होने से लोग दीर्घकाल तक उन्हें धोते नहीं है । इससे रूसी उत्पन्न होकर खुजली आने लगती है ।
  • केश झडना : जटाओं के केश कसकर बांधने अथवा भारी हो जाने से जडों से टूटने लगते हैं । इससे कहीं-कहीं गंजापन तो कहीं-कहीं केश अल्प हो जाते हैं ।
  • वेदना : केश धोने पर सुखाते समय अधिक भार होने तथा खींचे जाने के कारण उत्पन्न वेदनाओं के लिए कुछ लोग वेदनाशामक औषधियां लेते हैं ।
  • केश कटवा देना : यह सब बहुत असुविधाजनक लगने से और जटाओं को खोल पाना जटिल होने से कुछ लोग केश पूर्णतः कटवा लेते हैं और गंजे हो जाते हैं ।

जब कोई जटाओं से छुटकारा पाने के लिए केश कटवा लेता है, तब भी समय के साथ सूक्ष्म स्तरीय-मांत्रिक उस जटा रखनेवाले व्यक्ति के केशों में काली शक्ति का केंद्र बनाते हैं । ऐसी समस्याएं निर्मित करनेवाली अनिष्ट शक्तियों से बचने का एकमात्र मार्ग है – तीव्र साधना ।

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६. जटा रखने के मानसिक परिणाम

जटा रखनेवाले लोगों को अन्यों की नकारात्मक प्रतिक्रियाओं को सहना पडता है । जटाओं के कारण केश झडने, उनसे दुर्गंध आने अथवा सारे केश कटवाकर गंजे हो जाने से उनका आत्मविश्वास न्यून हो सकता है । जटाओं के कारण वेदना होने से अथवा इस प्रकार की केशरचना के अन्य नकारात्मक अंगों के कारण निराशा आ सकती है ।

७. बच्चों के मन पर होनेवाला परिणाम

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अभिभावकों की केशरचना की रुझान का बोझ बच्चों को बाल्यावस्था से ही उठाना पडता है । भविष्य में बच्चे भी ऐसी ही केशरचना करने लगते है, जिसका उन पर दीर्घकाल तक विपरीत परिणाम होता है ।

८. जटा रखने के आध्यात्मिक स्तर पर होनेवाला परिणाम

इसप्रकार की अनुचित केशरचना से, जिसमें केश एक-दूसरे में उलझे तथा ऐंठे हुए गए होते हैं, रजोगुणी (सकारात्मक एवं नकारात्मक) और तमोगुणी (नकारात्मक) स्पंदन प्रक्षेपित होते हैं । इससे जटाओं की ओर अनिष्ट शक्तियां आकृष्ट हो जाती हैं । जटाओं में निर्मित काली शक्ति के केंद्र स्थूल तथा सूक्ष्म स्तर पर कार्य करते हैं । सूक्ष्म (आध्यात्मिक) स्तर पर उनका कार्य अधिक होता है । वे बाह्य वायुमंडल सूक्ष्मस्तर पर प्रदूषित करती हैं । जटाधारी व्यक्ति जहां जाता है, वहां के वातावरण में दबाव उत्पन्न होता है और सूक्ष्म दुर्गंध भी आती है । इसलिए जटाधारी व्यक्ति जहां भी रहता है, उस घर का वातावरण आध्यात्मिक दृष्टि से प्रदूषित हो जाने से उस घर में तनाव उत्पन्न होता है ।

प्रभाव नकारात्मक शक्ति में प्रतिशत की मात्रा में वृद्धि काली (नकारात्मक) शक्ति के आवरण में वृद्धि (मीटर में) अहंभाव में प्रतिशत की मात्रा में वृद्धि
जटाधारी प्रौढ

अभिभावकों की रूचि के कारण जटाएं रखनेवाले बच्चे

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* दर्शकों के लिए उपर्युक्त निरीक्षण १० मिनटों के लिए है ।

कुछ लोगों के मन में प्रश्न होगा कि कुछ आध्यात्मिक व्यक्ति जैसे साधु अथवा संन्यासी जटाएं क्यों रखते हैं ? इसका उत्तर इस प्रकार है :

१. सामान्यतः जो आध्यात्मिक मार्ग में हैं, उनके लिए आध्यात्मिक दृष्टि से केश बढाना तथा न काटना लाभदायक होता है । इसलिए कुछ मार्गों से साधना करनेवाले साधक उनके केश तथा दाढी बढाते हैं । कुछ अन्य मार्गों में केश बढाना आवश्यक नहीं होता ।
२. जटाधारी होने पर भी तपस्वी अनिष्ट शक्तियों से प्रभावित नहीं होते; उनकी तीव्र साधना के कारण उनके पास अत्यधिक सकारात्मक शक्ति (सात्त्विकता) होती है । हम आगे दिएनुसार एक सूक्ष्म प्रयोग करेंगे ।

यहां दो छायाचित्र दिए हैं । एक छायाचित्र जटाधारी सामान्य व्यक्ति का है और दूसरा जटाधारी तपस्वी का है । पाठक देख सकते है कि छायाचित्र अ की तुलना में छायाचित्र आ की ओर देखने से क्या प्रतीत होता है । पश्चात आप आगे दिया उत्तर पढ सकते है ।

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                          छायाचित्र अ                                                      छायाचित्र आ

छायाचित्र आ की ओर देखने पर प्रसन्न और शांत लगता है और छायाचित्र अ की ओर देखने पर कष्टदायक लगता है । साथ ही छायाचित्र आ को देखते समय अपनी दृष्टि साधु के मुख पर जाती है, जिससे आनंद प्रक्षेपित होता है । जो लोग अनिष्ट शक्तियों से प्रभावित नहीं हैं, वे स्वाभाविक रूप से किसी भी आनंद प्रक्षेपित करनेवाले घटक की ओर आकृष्ट होते हैं ।

९. सारांश

  • धारण करने से व्यक्ति पर शारीरिक, मानसिक तथा आध्यात्मिक तीनों स्तरों पर पूर्णतः नकारात्मक प्रभाव पडता है ।
  • शक्तियां जटाओं की ओर आकृष्ट होकर उस व्यक्ति और उसके आसपास के लोगों को दुष्प्रभावित करती हैं ।
  • उपर्युक्त कारणों से जटा बनाना अनुचित है ।
  • तथा किसी सजीव-निर्जीव से प्रक्षेपित होनेवाले अच्छे और कष्टदायक स्पंदनों को समझने के लिए साधना करना आवश्यक है । जब कोई अध्यात्म के छः मूलभूत सिद्धांतों के अनुसार साधना करता है, तब वह अनिष्ट शक्तियों के प्रभाव से मुक्त जीवनशैली अपनाकर सात्त्विक (सकारात्मक) जीवन जी सकता है ।