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१. प्रस्तावना

बचपन से ही मुझमें र्इश्वर के अस्तित्व के प्रति श्रद्धा जागृत हुई ।

तदुपरांत जीवन-यापन के लिए मेरे पिताजी ने उन दिनों युगोस्लाविया की कम्युनिस्ट पार्टी में प्रवेश किया और उस दिन से हमारे घर में र्इश्वर शब्द का उल्लेख करने पर प्रतिबंध लग गया ।

मेरी दादी ने मुझे सभी से छिपाकर प्रार्थना करना सिखाया और वे ही मुझे र्इश्वर की कहानियां भी सुनातीं । कभी-कभी चुपके से वे मुझे चर्च में ले जाती थीं ।

बचपन से ही मैं घर में अकेले रहने से डरती थी । प्रायः मैं बीमार रहती थी और जब भी मुझे बुखार हो जाता, मुझे भयानक सपने आते थे एवं मुझे मर जाने का डर लगता था । मेरी दादी सोने से पहले र्इश्वर से प्रार्थनाएं करती थीं, इसलिए मुझे सदैव दादी के साथ सोना अच्छा लगता था । मुझे स्मरण है कि मैं तबतक नहीं सोती थी, जबतक मेरी दादी मेरा नाम लेकर मेरी सुरक्षा के लिए र्इश्वर से प्रार्थना नहीं कर लेतीं । इसके पश्‍चात ही मैं शांति से सो पाती थी । इससे मेरे मन में दृढ संस्कार बन गया कि र्इश्वर होते हैं और वे हमारी रक्षा करते हैं ।

मैं जानती हूं कि बडे होने पर में किसी परिस्थिति में घबरा जाने पर मेरे मन में यह दृढ भावना रहती कि र्इश्वर मेरी रक्षा के लिए मेरे साथ हैं ।

दीर्घकालतक मेरे मन में ऐसी भावना थी कि सामान्य जीवन की अपेक्षा मनुष्यजीवन का एक उच्चतम ध्येय है; परंतु मैं समझ नहीं पाती कि वह क्या है । इसके लिए मैंने पुस्तकों में ढूंढा, विविध व्याख्यानों में भी गई; परंतु मैं जो चाहती थी, उसका कुछ अंश ही मुझे वहां मिलता था ।

२. मेरी साधना कैसे आरंभ हुई ?

वर्ष २००७ में मेरे शहर में SSRF ने अध्यात्म विषय पर व्याख्यान आयोजित किया । पहली बार ही मैं इस प्रकार के कार्यक्रम में गई । र्इश्वर के विषय में उन्होंने ऐसे शब्दों में समझाया कि मैं उसे समझ सकी । मैंने र्इश्वर के नामजप के संदर्भ में समझकर शीघ्र ही नामजप करना आरंभ किया । अल्पावधि में ही मैंने नामजप के लाभ अनुभव किए और मुझे अधिकाधिक नामजप करने की इच्छा हुई । व्याख्यान में मैंने SSRF के जालस्थल के विषय में सुना और व्याख्यान के उपरांत मैंने तुरंत जालस्थल को भेंट दी ।

प.पू. डॉ. आठवलेजी, जो कि SSRF के प्रेरणास्रोत हैं और मानवता के लिए दिन-रात अविरत कार्य करते हैं तथा आध्यात्मिक शोध के संदर्भ में SSRF का मार्गदर्शन करते हैं, उनकी कृपा से ही यह जालस्थल आरंभ हुआ है, यह सुनकर मैं प्रभावित हुई ।

पूरे विश्‍व के साधक, जो इस जालस्थल के लिए र्इश्वर की सेवा (सत्सेवा)  के रूप में कार्य करते हैं, उनके साथ सम्मिलित होने की मेरी दृढ इच्छा थी ।

मेरे जीवन की समस्याओं के मूल कारणों के उत्तर तथा उन पर विजय प्राप्त करने के सामान्य उपायों संबंधी जानकारी भी मुझे SSRF के इस जालस्थल द्वारा मिली ।

३. आध्यात्मिक अनुभूतियां एवं साधना के महत्त्व के संदर्भ में सीखने को मिले सूत्र

वर्ष २००७ में मैंने जब साधना आरंभ की, तब मुझे पहली अनुभूति हुई ।

१. एक दिन सवेरे जब मैं सत्संग के लिए जा रही थी, तब मुझे चंदन की सुगंध आई । सुगंध कहां से आई, यह देखने के लिए मैंने इधर-उधर देखा, तो कुछ पता नहीं चला । पूरी बस यात्रा में वह सुगंध मेरे साथ रही । आसपास के लोगों से सुगंध के विषय में पूछने पर उन्हें कोई सुगंध नहीं आ रही थीा । मैंने लंबी सांस ली । मुझे लगा कि यह सुगंध सदा के लिए मेरे साथ रहे ।

मैंने यह अनुभूति सत्संग में बताई । अगले स्तर के साधकों ने बताया कि मुझे अनुभूति हुई है और कहा कि हम उचित मार्ग पर हैं इसकी पुष्टि हो तथा साधना के प्रति हमारी श्रद्धा बढे, इसलिए र्इश्वर हमें अनुभूति देते हैं ।

२. एक रात मैं यात्रा से अकेली लौट रही थी । मैंने देखा कि अकस्मात मेरा नामजप अपनेआप भीतर से होने लगा है । मैं पूर्णतः शांत और निश्‍चिंत थी । घर लौटने पर मुझे आश्‍चर्य हुआ कि यात्रा की कालावधि तीव्र गति से बीत गई । इससे पहले यात्रा करते समय मैं सोचती रहती थी कि मैं कब घर पहुंचूंगी; परंतु इस बार मैंने घडी देखी, तो अधिकांश समय निकल चुका था और मुझे उसका पता भी नहीं चला ।

३. एक बार मैं स्नानगृह में हाथ धोने गई और ऐसे ही दर्पण में देखा, तो मुझे प.पू. डॉ. आठवलेजी का हंसता हुआ मुख दिखाई दिया । मैंने आंखें बंद कीं और पुन:देखा तो वे हंस ही रहे थे । मैं भी हंस पडी ।

उस दिन से जब भी मैं दर्पण के निकट जाती थी, मुझे इस अनुभूति का स्मरण होता और मैं हंस पडती ।

अनुभूतियों से आध्यात्मिक सिद्धांतों पर मेरी श्रद्धा दृढ हुई और साधना करने के लिए प्रेरणा भी मिली । पूर्व में हुई अनुभूतियां समझने में मुझे SSRF से बहुत सहायता मिली और मैं नई अनुभूतियों का स्वागत करने लगी । इस क्षण से मेरे जीवन को नई दिशा मिली ।

४. प्रारब्ध का सामना

मुझे प्रतीत हुआ कि मेरे जीवन में विविध घटनाएं तीव्रता से घट रही हैं । इन घटनाओं का सामना कर पाना असंभव-सा था परंतु आश्‍चर्य की बात यह थी कि मैं उनका सामना कर पाई । (SSRF की संपादकीय टिप्पणी : जब कोई साधक तीव्र लगन से साधना आरंभ करता है, र्इश्वर तीव्रता और सहजता से उसका प्रारब्ध समाप्त करने में सहायता करते हैं ।)

मेरे परिवार में मेरे पति और चार बच्चे थे । मैं एक बडी नौकरी बडे उत्तरदायित्त्व से कर रही थी । कभी-कभी मुझे २४ घंटे काम करना पडता था । किसी प्रकार मुझे यह करने की ऊर्जा मिलती थी । विवाह के उपरांत पति के साथ आरंभ हुई समस्याएं उस समय अधिक तीव्र होने के साथ बढने भी लगी थीं । (SSRF की संपादकीय टिप्पणी : यह सब प्रारब्ध के अनुसार घट रहा था ।)

कार्यस्थल तथा घर में प्रतिदिन के तनाव के कारण, मेरी थायरॉईड में एक गांठ बन गई । तंत्रिका अवरोध (नर्वस ब्रेकडाऊन) से बचने के लिए नामजप और प्रार्थना के माध्यम से मैं अपनेआप को शांत रखने का प्रयत्न करती थी । थायरॉईड की गांठ ठीक नहीं हो रही थी, इसलिए मुझे डॉक्टर के पास जाना ही पडा । डॉक्टर के अनुसार गांठ बनने का कारण सदैव तनावग्रस्त रहना था; तबतक मेरी स्थिति चिंताजनक नहीं थी । उन्होंने कहा कि स्व-नियंत्रण द्वारा मैं गांठ का बढना रोक सकती हूं । उन्होंने मुझे अब कुछ समय अपने लिए निकालने की आवश्यकता भी बताई ।

मैं समझ गई कि र्इश्वर ने मेरे लिए वह समय निकाला है । उस क्षण से मैंने SSRF के मार्गदर्शन में तीव्र साधना आरंभ की ।

नामजप एवं प्रार्थना के साथ मैं दिन में दो बार-दोपहर और सायंकाल में नमक-पानी के उपाय करती थी । अगले स्तर के साधकों द्वारा बताई गई स्वयंसूचनाएं देने से दम निकालनेवाली नौकरी से निर्मित चिंताएं तथा भय अल्प होने लगे । (SSRF की संपादकीय टिप्पणी : उस समय मारिया ने गुरुकृपायोगानुसार  साधना के स्वभावदोष निर्मूलन तथा अहंनिर्मूलन की प्रक्रिया आरंभ की थी ।)

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घर की स्थिति बिगडती जा रही थी और पति के साथ बार-बार झगडे होते रहते थे, जिसका अंत मारपीट में होता । ऐसी स्थितियों में अपनी सुरक्षा हेतु मेरा नामजप और प्रार्थनाएं बढ जाती थीं । कई बार सहायता के लिए रोने पर र्इश्वर ने मेरी रक्षा की है । इस अनुभव से र्इश्वर के प्रति मेरी श्रद्धा और बढ गई । र्इश्वरप्राप्ति की लगन अधिकाधिक बढने लगी ।

इस प्रकार विविध परिस्थितियों से भागते-भागते एक दिन मेरे साथ एक गंभीर सडक दुर्घटना हुई । मुझे स्मरण है कि ट्रक के नीचे गिरते समय मैंने रोकर कहा, हे र्इश्वर, मुझे क्या करना चाहिए और उन्हें कहते हुए सुना, चीख पडो और मैंने वैसा किया । मेरे आसपास के लोगों ने मेरी चीख सुनी और उन्होंने ट्रक को रोका । मुझे चिकित्सालय में भर्ती किया गया । सभी को आश्‍चर्य हुआ कि मैं जीवित कैसे हूं । केवल मैं ही जानती थी कि मुझे जीवित रखने का चमत्कार र्इश्वर ने किया था ।

५. साधना से तीव्र प्रारब्ध न्यून होना

उस प्रसंग के पश्‍चात मैंने नौकरी छोडने तथा विवाहविच्छेद करने का निर्णय लिया । मैं दूसरे शहर में रहने गई और जून २०१२ से मैंने नया जीवन आरंभ किया । यह जीवन र्इश्वरप्राप्ति के लिए समर्पित था । पूरा रिक्त समय मैं अपनी साधना में लगाने लगी ।

SSRF के जालस्थल की सेवा करनेवाले साधकों के साथ मैं जुड गई । मुझे SSRF सर्बियन के जालस्थल के लिए भाषांतरित लेखों का समन्वय करने की सेवा मिली ।

६. परिवर्तन का आरंभ

SSRF के मार्गदर्शनानुसार साधना करते समय मैंने अपनेआप में मूलभूत परिवर्तन लाना, आध्यात्मिक अनुभूतियां दीर्घकालीन होने के लिए प्रयत्न करना तथा मेरा जीवन समृद्ध और उद्देश्यपूर्ण कैसे हो इत्यादि बातें प्रत्यक्ष सीखीं ।

अनेक साधकों की भांति SSRF के मार्गदर्शनानुसार आरंभ हुई मेरी आध्यात्मिक यात्रा उत्साहजनक और संतोषभरी रही । अपने पूरे जीवन में मैं उत्कंठा से इसकी प्रतीक्षा कर रही थी ।

७. SSRF के आध्यात्मिक शोध केंद्र में निवास

जुलार्इ २०१२ में मैं SSRF के शोधकेंद्र में साधकों के एक गुट के साथ गई । वहां पर मैंने दो माह निवास किया । केंद्र के SSRF के साधकों ने प्रेमभरे स्मितहास्य से हमारा स्वागत किया । मुझे लगा कि मैं अपने घर आई हूं ।

यद्पि मैं अंग्रेजी बोलना नहीं जानती थी, कुछ दिनों में मैंने जाना कि इसका कोई महत्त्व नहीं है; क्योंकि यहां संपर्क करने की भाषा प्रेम की थी । हम एकदूसरे से प्रेमभरे नेत्रों से ही बातें करते थे । (SSRF की संपादकीय टिप्पणी : SSRF के आध्यात्मिक शोधकेंद्र में इसी जीवन में र्इश्वरप्राप्ति करने के एकमात्र उद्देश्य से साधक एकदूसरे से जुडे होते हैं, इसलिए यहां सभी को निरपेक्ष प्रेम का अनुभव होता है ।)

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हमें इस प्रेम के विविध प्रकार अनुभव करने के अनेक अवसर मिले ः सहयोगी साधक सदैव ध्यान रखते कि हमारे लिए जो आवश्यक है वह छूटे नहीं, उनकी समझदारी से भरी आंखें सदैव सहायता करने हेतु तत्पर थीं, हम अनेक नई बातें सीखते और साधना में सहायक अनुभूतियां आपस में बांटते इत्यादि । मुझे प्रत्येक क्षण उत्साहजनक और आनंदमय प्रतीत होता था । मैंने पहली बार ही निर्विचार अवस्था अनुभव की । नामजप के समय मैंने देखा कि मेरे मन की एकाग्रता अधिक बढ गई है । मेरा मन निर्विचार अवस्था में शीघ्र ही चला जाता था । अपनी चूकें तथा उनके लिए कारणभूत दोष तुरंत मेरे ध्यान में आते थे । मैं केवल अंतर्मन से प्रार्थनाएं करती थी । प्रतिक्षण मैं कृतज्ञता अनुभव करती और र्इश्वर की सेवा करने की मुझ में तीव्र लगन रहती थी । ऐसा लगता था कि सदैव सत्सेवा ही करती रहूं ।

८. प.पू.डॉ.आठवलेजी से भेंट

पहली बार जब मैंने उन्हें देखा, मैं अत्यंत प्रभावित हुई । मुझे उनमें और मुझमें विशेष घनिष्ठता अनुभव हुई । उनकी भांति बनने तथा सहजता से परिपूर्ण होने की इच्छा भीतर से हुई ।

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मुझे इतनी कृतज्ञता लगी कि प्रतिदिन भाव के कारण मेरे भावाश्रु बहते थे । उस निवासकाल में मेरी स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं के लिए मैंने वहां के चिकित्सक को दिखाया । जांच करते समय मेरी जिह्वा पर उन्हें ॐ का चिह्न दिखाई दिया ।

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मेरी जिह्वा पर आया ईश्‍वरीय चैतन्य का प्रतीक देखकर, मैं कृतज्ञताभाव से अत्यंत गदगद हो गई । (SSRF की संपादकीय टिप्पणी : साधकों का भाव तथा गुरुतत्त्व की कृपा के कारण इस प्रकार केशारीरिक ईश्‍वरीय परिवर्तन हो रहे हैं । इस घटना को और समझने के लिए कृपया हमारे उन्नतों के शरीर में होनेवाले ईश्‍वरीय परिवर्तन, इस लेख का संदर्भ लें ।)

आध्यात्मिक शोधकेंद्र में मैं दो बार गई । प्रत्येक भेंट में कुछ अलग-सा था और प्रत्येक बार मैंने कुछ नया ही सीखा । मैंने सीखा कि र्इश्वर की ओर से आनेवाले तथा अनिष्ट शक्तियों से आनेवाले विचारों में क्या अंतर होता है । आध्यात्मिक उपचारों के उपरांत ये विचार गति से नष्ट हो जाते थे । इन विचारों की तीव्रता और बारंबारता शीघ्र घटने लगी । इन विचारों का स्रोत समझना अत्यंत सरल हुआ कि जो भी सकारात्मक है, वह र्इश्वर की ओर से आता है और जो नकारात्मक है, वह अनिष्ट शक्तियों की ओर से आता है ।

मैंने जाना कि मेरे स्वभावदोष, भावनाप्रधानता और अहं के कारण अनिष्ट शक्तियों के लिए मेरा मन अस्थिर करना और साधना में बाधाएं लाना अत्यंत सरल था । र्इश्वर की कृपा से स्वभावदोष और अहं निर्मूलन की कठोर प्रक्रिया से मैंने सीखा कि इसे तुरंत कैसे पहचानना है और इसपर आध्यात्मिक उपचार कैसे करने हैं ।

उदा.पहले मुझसे कोई चूक होने पर मैं निराश होती थी और उस चूक तथा उसके परिणामों के विषय में सोचती रहती थी । मुझे अपने विषय में ही नकारात्मक विचार आने लगते, मैं अपनेआप को समेट लेती और निराशा में चली जाती थी । नियमित साधना तथा SSRF द्वारा बताए उपायों से जीवन की समस्याओं के प्रति देखने का मेरा दृष्टिकोण अधिक व्यापक हुआ । अब मेरे लिए मेरी चूकें स्वीकार करना सरल हो गया है और ये चूकें पुन:न हों, इसलिए मैं अधिक प्रयास भी करने लगी हूं । इससे भी महत्त्वपूर्ण है कि मैं निराश नहीं होती । मन में नकारात्मक विचारों को स्थान देने की अपेक्षा मैं परिस्थिति की ओर तटस्थता से देख पाती हूं और उसमें र्इश्वर मुझे क्या सिखाना चाहते हैं, यह देख पाती हूं ।

मैंने देखा कि इस प्रक्रिया के माध्यम से मुझमें परिवर्तन आ रहा है । अपनेआप में सिमटनेवाले, असंतुष्ट, अपनेआप को असुरक्षित समझनेवाले और निराश व्यक्ति की अपेक्षा मैं निष्कपट, जिज्ञासु, आनंदी और सभी को सहायता करनेवाली बन गई । र्इश्वर द्वारा मुझमें उत्पन्न मेरे इन गुणों का मेरी आध्यात्मिक उन्नति और अन्य साधकों की प्रगति के लिए उपयोग हो, ऐसी प्रार्थना मैंने र्इश्वर से आर्तता से की । र्इश्वर यह सब करवा रहे थे । मुझे र्इश्वर की ओर केवल एक पग बढाना था और र्इश्वर शेष सबकुछ करते थे । (SSRF की संपादकीय टिप्पणी : मार्च २०१४ में प.पू.डॉ.आठवलेजी ने कहा कि मारिया नित्य भावावस्था में रहती है, जो उनके मुखपर झलकता है ।)

साधना करने पर र्इश्वर ने मुझे आश्‍वस्त किया कि हम सभी के अंतर्मन में सर्वोच्च सुख अर्थात आनंद की अवस्था होती है । आनंद की इस प्राकृतिक अवस्था तक पहुंचने के लिए हमें लगनपूर्वक प्रयास करने चाहिए । अब मैं यह अवस्था प्रतिदिन अनुभव करती हूं ।

र्इश्वर की इस कृपा के लिए मैं अत्यंत कृतज्ञ हूं । – मारिया विडाकोत्त, सर्बिया.

९. ६१ प्रतिशत आध्यात्मिक स्तर प्राप्त करना

३० नवंबर २०१४ को मारिया दादी के ६१ प्रतिशत आध्यात्मिक स्तर प्राप्त करने की घोषणा सर्बिया के साधकों के लिए हुर्इ एक कार्यशाला में की गर्इ । र्इश्वर की कृपा तथा मारिया दादी के गुण जैसे नम्रता, अन्यों के लिए प्रेम तथा भाव के कारण वे अपने जीवन में अनेक कठिनार्इयों का सामना करते हुए जीवन-मृत्यु के चक्र से मुक्त हो गर्इं । र्इश्वर के चरणो में हमारी प्रार्थना है कि विश्वभर के साधक उनके प्रयासों से सीख ले कर उनके समान शीघ्र आध्यात्मिक प्रगति करे ।