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सारांश
श्री. ऑरित्रा मल्लिक अनिद्रा रोग से वर्ष २००७ से ग्रसित थे । उन्होंने अनिद्रा के उपचार हेतु अलग-अलग पद्धतियां अपनार्इं; किंतु किसी से भी उन्हें स्थायी उपचार नहीं मिला । साधना ने अनिद्रा रोग पर विजय प्राप्त करने में श्री. ऑरित्रो की सहायता कैसे की, उनके ही शब्दों में उनका अनुभव आगे दिया गया है ।
१. परिचय
मेरा नाम ऑरित्रा मल्लिक है, मैं २५ वर्ष का हूं तथा हाउस्टन, टेक्सास (यूएसए) में रहता हूं । वर्ष २०१० से मैं SSRF के परामर्शानुसार २ वर्षों से साधना कर रहा हूं । मैंने अभियांत्रिकी की शिक्षा महाविद्यालय में ली । अपने जीवन में जिन समस्याओं का सामना कर रहा था, उनका समाधान करने में साधना ने बहुत सहायता की, उन्हीं में से एक था अनिद्रा रोग ।
सोने, सोए रहने अथवा रात्रि अच्छे से सो पाने की अक्षमता को अनिद्रा रोग कहते हैं ।
२. अनिद्रा रोग का अनुभव करना तथा उसके उपचार
लगभग वर्ष २००७ से मैं अनिद्रा रोग से ग्रस्त रहने लगा । पहले मैं रातों में जग जाता था । कुछ समय तक मैं पुनः नहीं सो पाता था । धीरे-धीरे अनिद्रा की तीव्रता बढते गर्इ । कर्इ बार मैं दो दिनों में एक अथवा दो घंटों से अधिक नहीं सो पाता था । मैं लंबे समय से नींद से वंचित रहने लगा । मैं केवल सवेरे के घंटों में ही विश्रांति कर पाता था । किंतु वह नींद आरामदायक नहीं थी और प्रायः विचित्र तथा हिंसक स्वप्नों से भरी रहती ।
लंबी रातें अत्यधिक कष्टदायक रहतीं और इसलिए मैंने अपने उपचार के लिए अनेक पद्धतियां ढूंढी । मैंने मैग्नेश्यिम सप्लीमेंट्स, पारंपरिक चीनी औषधि, ध्यान लगाना, हर्बल चाय, व्यायाम, मेलाटोनिन इत्यादि को अपनाकर देखा । मैं अनुशंसित औषधियां लेना टालता क्योंकि मैं सोचता था कि वे व्यसनकारक हैं और मैं गो लियों पर आश्रित होकर उनका दुष्प्रभाव नहीं झेलना चाहता था ।
३. अनिद्रा के उपचार हेतु साधना तथा आध्यात्मिक उपचार
मर्इ २०१० में, मैंने SSRF का जालस्थल (वेबसार्इट) देखा । मुझे वहां उपलब्ध लेख बहुत आकर्षक लगे और मैंने उसी सितंबर माह से गंभीरतापूर्वक साधना करना आरंभ कर दिया । मुझे अनुभव हुआ कि नामजप ने मुझे शांत रखने में सहायता की तथा इसने मुझे अनुभव कराया कि यह सदैव मेरे साथ रहनेवाला साथी है । उस समय, मैं गाडी अत्यधिक चलाता था, इसलिए मुझे लगनेवाली बाेरियत को मैं नामजप करके दूर करता था । मेरे ध्यान में आया कि जब मुझे सोने में समस्या होती, तो उस समय केवल लेटे रहने की अपेक्षा मैं नाम जप करके अच्छा अनुभव कर सकता था । मेरे यह भी ध्यान में आया कि कभी-कभी श्री गुरुदेव दत्त का नामजप मुझे सोने में सहायता करता प्रतीत होता था; तथापि मैं अब भी अधिकांश समय जगा ही रहता था ।
वास्तव में मुझे अनुभव होनेवाले विचित्र लक्षणों के कारण मुझे आशंका थी कि मैं वर्ष २००७ से किसी अनिष्ट सूक्ष्म-शक्ति से प्रभावित हूं । SSRF जालस्थल पर अनिष्ट शक्तियों (भूत, प्रेत, राक्षस इत्यादि) के संदर्भ में उपलब्ध जानकारी ने मेरी आशंका को बल दिया । उसी नवंबर माह में मैं SSRF के अपने पहले सत्संग में सम्मिलित हुआ । सत्संग के उपरांत SSRF के एक साधक ने मुझे संपर्क कर पूछा कि मुझे सत्संग कैसा लगा । मैंने उन्हें बताया कि बहुत अच्छा लगा और मैं उनसे अध्यात्म तथा साधना के विषय में पूछने लगा । इसके उपरांत शीघ्र ही मैं नियमित रूप से सत्संग में उपस्थित रहने लगा और विविध उपचारों को अपनाकर कष्ट कैसे न्यून हो सकते हैं, इस संदर्भ में वह मुझे परामर्श देता ।
सोने से पूर्व नमक-पानी के उपचार, बक्से के उपचार तथा सिर पर पवित्र विभूति लगाना मुझे बहुत प्रभावकारी लगे । समस्या अभी भी थी किंतु पूर्व से कहीं अधिक नियंत्रण में थी । मैंने आध्यात्मिक उपचारों के साथ प्रतिदिन २ घंटे ध्यानपूर्वक नामजप करना आरंभ किया । मेरे ध्यान में आया कि जिस दिन मैं ये करता उस दिन अनिद्रा की समस्या नहीं होती । मैं आशान्वित हुआ और मुझे लगा कि अंतिमतः अपनी स्थिति के उपचार के लिए संभवतः मुझे उपाय मिल गया है ।
४. अनिद्रा पर रामबाण उपचार
मैं साधना करता रहा तथा साधना के अगले चरण जैसे सत्सेवा, स्वभाव दोष निर्मूलन प्रक्रिया करना तथा भावजागृति इत्यादि करने लगा । तब मुझे अनुभव हुआ कि अनिद्रा अब और अधिक नियंत्रित होती जा रही थी । ऐसा लगने लगा कि मैं यदि और अधिक साधना करुंगा तो अनिद्रा एक पुरानी स्मृति मात्र बन कर रह जाएगी ।
वर्ष २०१२ में, मुझे विशेष रूप से अनुभव हुआ कि सोने से पूर्व दिनभर में हुर्इ चूकों को लिखने तथा उनसे सीखने के कारण मैं सहजता से सो पाता हूं । जिस दिन मैं यह नहीं करता, मुझे कभी-कभी अनिद्रा की पुनरावृति का अनुभव होता; किंतु तब भी यह पूर्व की भांति नहीं होता और मैं किसी समय सो ही जाता हूं ।
वास्तव में यह पूर्णतः विस्मयकारी है, साधना ने एक ऐसी कठिन तथा असहाय समस्या को दूर कर दिया जो लगता था कि पूरा जीवन ढोना पडेगी । साधना करने से अनिद्रा से इतनी राहत मिली कि मैं इसके लिए पर्याप्त कृतज्ञता व्यक्त ही नहीं कर सकता । मैं केवल निश्चय कर सकता हूं कि मैं नियमित रूप से साधना करूंगा तथा अन्यों को इसका महत्व समझने में सहायता करूंगा ।