नमस्कार अथवा नमस्ते- भारतीय महाद्वीप में अभिवादन करनेकी एक लाभप्रद और सात्विक पद्धति

पृष्ठभूमि की जानकारी

हम अपने लेख, ग्रीटिंग पर एक आध्यात्मिक दृष्टिकोण के साथ स्वयं को परिचित करने के लिए प्रोत्साहित करते हैं I यह इस लेख को समझने के क्रम में महत्वपूर्ण पृष्ठभूमि जानकारी प्रदान करता है I

१. नमस्कार अथवा नमस्ते शब्द का परिचय

नमस्कार अथवा नमस्ते भारतीय महाद्वीप में अभिवादन करने का एक प्रचलित चलन है I इसका प्रयोग किसी व्यक्ति से मिलने अथवा उससे विदाई लेते समय, दोनों में किया जाता है I नमस्कार करते समय उस व्यक्ति का पीठ आगे की ओर झुकी हुर्इ, छाती के मध्य में हथेलियाँ आपस में जुड़ी हुई व उंगलियां आकाश की ओर होती है । इस मुद्रा के साथ साथ वह व्यक्ति ‘नमस्ते’ या ‘नमस्कार’ शब्द बोलते हुए अभिवादन करता है । हाथों की इस मुद्रा को नमस्कार मुद्रा कहते हैं ।

जापानी तरीके की तरह बिना स्पर्श के, झुक कर हाथ को लहराकर, अभिवादन  करना, लोकप्रिय तरीका होने के बावजूद, आध्यात्मिक दृष्टि से यह अभिवादन  अन्य  सभी के तरीकों से भिन्न है । इस लेख के माध्यम से हम इसके आध्यात्मिक अर्थ तथा हमें इसके आध्यात्मिक स्तर पर मिलने वाले लाभ को  समझेंगे ।

२. नमस्कार अथवा नमस्ते का अर्थ

‘नमस्कार’ एक संस्कृत शब्द है जो संस्कृत के ‘नमः’ शब्दसे लिया गया है, जिसका अर्थ है प्रणाम करना I हमारे लेख ” मनुष्य किन घटकों से बना है ?”, में हमने बताया है कि प्रत्येक व्यक्ति के अंदर परमात्मा (ईश्वरीय तत्व) होता है जिसे हम आत्मा कहते हैं । नमस्कार अथवा नमस्ते करते समय एक व्यक्ति की आत्मा दूसरे व्यक्ति की आत्मा का अभिनन्दन और नमस्कार करती है ।

‘नमस्ते’ और ‘नमस्कार’ शब्द पर्याय होते हुए भी उन दोनों के बीच एक आध्यात्मिक अंतर हैI नमस्कार शब्द नमस्ते से अधिक सात्विक है

3. नमस्कार अथवा नमस्ते के अर्थ में आध्यात्मिक शोध

३.१ नमस्कार अथवा नमस्ते के आध्यात्मिक लाभ

नमस्ते(नमस्कार) के अर्थ में आध्यात्मिक शोध करने पर हमने यह पाया कि यह दूसरे व्यक्तको नमस्कार करने की आध्यात्मिक रूप से एक बहुत ही लाभप्रद और सात्विक पद्धति है I इसके कारण हैं :

  1. नमस्कार अथवा नमस्ते करनेके पीछे का प्रयोजन :
    • नमस्कार अर्थात दूसरोंमें दैवी रूप को देखना, यह आध्यात्मिक शक्ति को बढ़ाता है और दैवी चेतना (चैतन्य) को आकर्षित करता है । यदि नमस्कार अथवा नमस्ते ऐसी आध्यात्मिक भाव से किया जाये कि हम सामने वाले व्यक्ति की आत्मा को नमस्कार कर रहे हैं, यह हममें कृतज्ञता और समर्पण की भावना जागृत करता है I यह आध्यात्मिक विकासमें सहायता करता है I
    • नमस्कार अथवा नमस्ते करते समय यदि हम ऐसा विचार रखते हैं कि “आप हमसे श्रेष्ठ हैं, मैं आपका अधीनस्त हूँ, मुझे कुछ भी ज्ञान नहीं और आप सर्वज्ञ हैं”, यह अहंकारको कम करने और विनम्रताको बढ़ाने में सहायक होता है I
  2. नमस्कार अथवा नमस्ते के समय हाथ की मुद्रा :
    • नमस्कार मुद्रा करने से, दैवी चैतन्य बडी मात्रामें देह में अवशोषित होता है I’नमस्ते’ अथवा ‘नमस्कार’ शब्द कहने पर आकाशतत्व का आवाहन हो जाता है I इन शब्दों को हाथ की मुद्रा के साथ कहने पर पृथ्वीतत्व का भी आवाहन होता है I मुद्रा स्वयं पृथ्वीतत्व से सम्बंधित है, इस कारण यह संभव हो पता है I इस प्रकार पांच संपूर्ण सृष्टिके सिद्धांतों को अधिकाधिक मात्रा में जागृत करने पर अत्याधिक आध्यात्मिक सकारात्मकता आकृष्ट होती है I इसप्रकार, एक से अधिक पंचमहाभूतों का आवाहन होने पर आध्यात्मिक सकारात्मकता अधिक मात्रा में आकृष्ट होती है I
  3. शारीरिक संपर्क का न होना :
    • शारीरिक सम्पर्क दो व्यक्तियों के बीच सूक्ष्म-ऊर्जाके प्रवाहको और सुगम बनाता  है I अभिवादन की इस पद्धति में शारीरिक सम्पर्क न होने के कारण अन्य व्यक्ति के नकारात्मक रूप से प्रभावित करने की क्षमता न्यूनतम हो जाती हैI
    • इसके आध्यात्मिक लाभों के कारण, नमस्कार करने वाले दोनों व्यक्तियों के बीच की नकारात्मक स्पंदन कम हो जाते हैं और सात्विक स्पंदन का लाभ प्राप्त होता है I
    • अभिवादन की इस पद्धति के आध्यात्मिक होने के कारण सत्व गुण बढता है और इससे नमस्कार अथवा नमस्ते करने वाले दोनों व्यक्तियों के एक दूसरे को नकारात्मक स्पंदनों से संक्रमित करने की संभावना और भी न्यून हो जाती हैं । परंतु यदि किसी व्यक्ति को अनिष्ट शक्ति का कष्ट है तो उसके नमस्कार करने पर भी नकारात्मक स्पंदनों का ही प्रवाह होगा I अनिष्ट शक्ति उस व्यक्ति की उँगलियों के माध्यम से अभिवादन किए जानेवाले व्यक्ति तथा वातावरण में नकारात्मक स्पंदन का वमन कर सकती है I तथापि हाथ मिलाने, जिसमें कि शारीरिक संपर्क होता है, की तुलना में, अनिष्ट शक्ति से पीडित व्यक्ति के नमस्कार करने पर भी नकारात्मक स्पंदन का प्रभाव बहुत ही सीमित होता है I नमस्कार अथवा नमस्ते भावपूर्ण होने पर नकारात्मक स्पंदन पूर्ण रूप से नष्ट हो जाते हैं ।

३.२ नमस्कार अथवा नमस्ते से उत्पन्न आध्यात्मिक संवेदनाएं

सूक्ष्म ज्ञान पर आधारित नीचे दिया गया चित्र नमस्कार करते समय दो व्यक्तियों के बीच उत्पन्न आध्यात्मिक संवेदनाओं को दर्शाता है I इस उदाहरण में नमस्कार करने वाले व्यक्ति का आध्यात्मिक स्तर ३०% है और जिसे नमस्कार अथवा नमस्ते किया जा रहा है, उस व्यक्ति का आध्यात्मिक स्तर ५०% है I सूक्ष्म-ज्ञान पर आधारित यह चित्र कु. प्रियांका लोटलीकर ने अतिजाग्रत् छठवीं इन्द्रिय के उपयोग से बनाया है ।

नमस्कार अथवा नमस्ते से उत्पन्न स्पंदनों का सूक्ष्म चित्र

निम्नांकित तालिका सूक्ष्म ज्ञान पर आधारित उपरोक्त चित्रके प्रत्येक पहलूका विवरण प्रदान करती है I निम्नांकित तालिका को और अच्छे से समझने हेतु कृपया ‘चक्र’ शीर्षकयुक्त लेख पढ़ें I

क्रमांक व्याख्या
जब एक व्यक्ति किसी दूसरे व्यक्ति का अभिवादन इस भावना के साथ करता है कि मैं अपने समक्ष व्यक्ति की आत्मा के प्रति अपनी श्रद्धा प्रकट कर रहा हूँतब उस व्यक्ति के भीतर भाव ­के एक चक्र का निर्माण होता है I
१अ जहाँ भाव होता है, वहां ईश्वर के साथ समागम होता है और हम ईश्वरीय विचारों के और समीप पहुँच पाते हैं I
१आ परिणामस्वरूप, जिस व्यक्तिका अभिवादन हो रहा है उसके चारों ओर भावके एक चक्रका निर्माण हो जाता है I
इसके फलस्वरूप, यह दैवी तत्व अथवा र्इश्वरीय शक्तिके एक प्रवाह ओर अपनी तरफ आकर्षित करता है I
२अ दैवी तत्वका एक चक्र निर्मित होकर सक्रिय हो जाता है I
जहां कहीं भी दैवी तत्वका संचार होता है, वहां आनन्द का प्रवाह अकर्षित होता है । आनन्द एक प्रकार की सूक्ष्म ऊर्जा होती है जो किसी व्यक्ति को उच्चतम हर्ष की अनुभूति प्रदान करती है जो  किसी प्रेरक पर आश्रित नहीं होती I
३अ यह अभिवादन कर रहे व्यक्ति के चारों ओर आनन्द के चक्र का निर्माण कर उसे सक्रिय करता है I
३आ जिस व्यक्तिका अभिवादन हो रहा हो, वह भी आनंद के प्रवाह को आत्मसात कर पाता है I
३इ परिणामस्वरूप जिस व्यक्ति का अभिवादन हो रहा हो, उसके चारों ओर  भी आनंद का चक्र निर्मित एवं सक्रिय होता है I
३ई इससे संपूर्ण वातावरण में आनंद के कणों का सक्रियण एवं उत्सर्जन होता है I
जो व्यक्ति अभिवादन की पहल करता है, उसके प्रति भी दैवी चैतन्यका एक प्रवाह आकर्षित होता है I
४अ जिसके फलस्वरूप उस व्यक्ति के चारों ओर चैतन्य के एक चक्र का निर्माण एवं सक्रियण हो जाता है I
४आ यह चैतन्य वातावरण में उत्सर्जित होता है I
४आ२ अभिवादित हो रहा व्यक्ति भी अभिवादन करने वाले  व्यक्ति से  चैतन्य के प्रवाह को आत्मसात करता है I
४इ चैतन्य का प्रवाह अभिवादित हो रहे व्यक्ति की ओर प्रत्यक्ष रूप से आकर्षित होता है I
४ई अभिवादित हो रहे व्यक्ति के चारों ओर चैतन्य के चक्र का निर्माण एवं सक्रियण हो जाता है I
४उ वातावरण में चैतन्य कण उत्सर्जित एवं सक्रिय होते हैं जिससे पूरे वतावरण को आध्यात्मिक लाभ होता है ।

३.३

नमस्कार अथवा नमस्ते करते समय ध्यानमें रखने योग्य बातें :

  • नमस्कार अथवा नमस्ते करते समय आँखें बंद रखें :ईश्वर या किसी व्यक्तिको नमस्कार करते समय आँखें बंद रखने से  हमें अपने  अंतःकरण में  झांकना तथा  स्वयं में  ईश्वर का  स्वरुप देख पाना और एक व्यक्ति के भीतर की आत्मा (ईश्वर) पर ध्यान केंद्रित कर पाना सुलभ होता है ।
  • नमस्कार अथवा नमस्ते करते समय हाथमें कोई वस्तु न रखें सामान्यतः नमस्कार करते समय हाथ में कोई वस्तु रखने से उंगलियां और उनके अग्रभाग सीधे नहीं रहते । जिसके फलस्वरूप  सात्विकता के प्रवाह का  उंगलियोंके  अग्रभाग में प्रवेश बाधित हो जाता है । नमस्कार कर रहे व्यक्ति के प्रति उत्सर्जित सात्विकता हथेलीमें रखी वस्तुसे टकरा कर वापस लौट जाती है । यही नहीं, यदि हाथमें रखी वस्तु रज अथवा तम प्रधान हो और यदि नमस्कार अथवा नमस्ते करते समय उसका स्पर्श  मस्तक या वक्ष से हो जाये तो उससे प्रवाहित हो रहा रजतम नमस्कार कर रहे व्यक्ति की देह में प्रविष्ट हो सकता है I

४. सारांश में

  • अभिवादनके सभी प्रकारों में नमस्कार अथवा नमस्ते को ‘Spiritual Science Research Foundation’ सर्वाधिक सात्विक अभिवादन की विधि मानते हुए इसे जहां  तक संभव हो व्यवहारमें लाने की अनुशंसा करता है I
  • यहाँ तक कि, यदि कहीं नमस्कार करने की सांस्कृतिक प्रथा न हो, तो भी हम मनसे दूसरे व्यक्तिको नमस्कार कर सकते हैं I
  • भावपूर्ण नमस्कार अथवा नमस्ते करने के लिए आवश्यक है कि हम नियमित रूपसे साधना करें । इसका कारण यह है कि साधना से ही हममें  भाव उत्पन्न हो  पाता है  ।