शारीरिक रोग – आध्यात्मिक कारण तथा उपचार

सारांश : हम जानते हैं कि शारीरिक व्याधियां, मानसिक कारकों तथा शारीरिक कारकों दोनों के कारण हो सकती हैं । किंतु हममें से अधिकतर लोग इस तथ्य से अनभिज्ञ होंगे कि अधिकांश प्रसंगों में :

  • हमारी शारीरिक व्याधियां, प्रथमतः केवल आध्यात्मिक कारणों से होती हैं, अथवा
  • वर्तमान रोग को बढाने में आध्यात्मिक कारकों का अत्यधिक योगदान हो सकता है, अथवा
  • अनेक प्रसंगों में आध्यात्मिक कारक, योग्य उपचार का उचित प्रतिसाद नहीं मिलने हेतु उत्तरदायी होते हैं ।

इस लेख में, हमने कुछ आध्यात्मिक कारणों अर्थात अनिष्ट शक्तियों (भूत, प्रेत, राक्षस इत्यादि) से होनेवाली शारीरिक व्याधियों तथा उनसे संबंधित आध्यात्मिक उपचारों पर किया गया आध्यात्मिक शोध प्रस्तुत किया है ।

यह किसी भी प्रकार से सभी रोगों पर लागू होनेवाला सर्वसमावेशी शोधपत्र नहीं है । इसका उद्देश्य यह जानने के लिए एक दृष्टि प्रदान करना है कि कैसे अनिष्ट शक्तियों द्वारा विविध रोग-लक्षण उत्पन्न किए जाते हैं तथा कैसे आध्यात्मिक शोध से प्राप्त जानकारी का उपयोग कर आध्यात्मिक उपचारों द्वारा उन्हें ठीक किया जा सकता है

SSRF शारीरिक एवं मानसिक समस्याओं के लिए इन आध्यात्मिक उपचारों के साथ ही अन्य परंपरागत उपचारों को जारी रखने का परामर्श देता है ।

पाठकों के लिए सुझाव है कि वे स्वविवेक से किसी भी आध्यात्मिक उपचारी पद्धति का पालन करें ।

१. प्रस्तावना

हम सभी ने किसी न किसी रूप में शारीरिक रोगों का अनुभव किया ही है । ये सर्दी-जुकाम जैसे हलके लक्षण अथवा वृक्क में हुर्इ पथरी, कैंसर अथवा एड्स जैसे गंभीर लक्षण हो सकते हैं । ‘जीवन के कष्टों के आध्यात्मिक कारण’ से सम्बंधित हमारे लेख में, हमने बताया है कि जीवन की समस्याओं (स्वास्थ्य समस्याओं सहित) का मूल कारण शारीरिक, मानसिक तथा/अथवा आध्यात्मिक हो सकता है । आधुनिक चिकित्सा विज्ञान, जिसे एलोपैथी भी कहा जाता है, ने शारीरिक व्याधियों के केवल शारीरिक तथा मानसिक कारणों को ढूंढा है ।

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उपरोक्त पाई चार्ट में हमारे जीवन की समस्याओं तथा कष्टों का औसत रूप से विभाजन दर्शाया गया है । आध्यात्मिक शोध दर्शाते हैं कि हमारी ८० प्रतिशत समस्याओं का मूल कारण आध्यात्मिक जगत से सम्बंधित है । यहां यह उल्लेखनीय है कि किसी विशिष्ट शारीरिक रोग-लक्षण के मूल कारण का एक अंश शारीरिक, मानसिक अथवा आध्यात्मिक आयाम में हो सकता है और ये तीनों आयाम पारस्परिक रूप से विशिष्ट नहीं होते ।

उदाहरण के लिए, निम्नलिखित चित्र में दर्शाया गया है कि किस प्रकार एक व्यक्ति पेट में अत्यधिक वेदना अनुभव कर रहा है और इसका मूल कारण तीनों आयामों में है ।

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२. शारीरिक व्याधियों के गहन सूक्ष्म कारण तथा आध्यात्मिक उपचार क्या हैं ?

हमारे जीवन की शारीरिक समस्याओं के विशिष्ट आध्यात्मिक मूल कारणों का पूर्ण विभाजन हमारे लेख ‘समस्याओं के आध्यात्मिक कारणों के विविध प्रकार’ में दिया गया है ।

विविध आध्यात्मिक कारणों में से कोर्इ भी एक कारण व्यक्ति को शारीरिक रोग से ग्रस्त कर सकता है । उदाहरण के लिए, छाती में हो रहा दर्द अनाहत चक्र की आध्यात्मिक शक्ति में आए अवरोध के कारण अथवा किसी अनिष्ट शक्ति के कारण हो सकता है । इन आध्यात्मिक मूल कारणों से उत्पन्न रोग केवल विशिष्ट आध्यात्मिक उपचारों के द्वारा ही ठीक किए जा सकते हैं । आध्यात्मिक हेतुविज्ञान से पृथक, अध्यात्म के छः मूलभूत सिद्धांतों वाली साधना का आधार भी विशिष्ट आध्यात्मिक उपचारों के शीघ्र प्रभाव होने में सहायता करता है ।

इस लेख में हमने अपना ध्यान उन रोग-लक्षणों को ठीक करने में सहायता कर सकने वाले आध्यात्मिक उपचारों पर केन्द्रित किया है जहां कि मूलभूत आध्यात्मिक कारण अनिष्ट शक्तियां (भूत, प्रेत, राक्षस इत्यादि) हैं ।

चलिए हम पुनः उसी व्यक्ति के उदाहरण की ओर चलते हैं जिसके पेट में वेदना हो रही थी । यदि उसकी वेदना में ७० प्रतिशत योगदान अनिष्ट शक्ति का हो, तो इस लेख में बताए उपचारों को करने से उसे इसी सीमा (७० प्रतिशत) तक राहत मिलेगी ।

३. अनिष्ट शक्तियों द्वारा जनित शारीरिक व्याधियां

वर्तमान में इस संसार में लगभग सभी लोग अनिष्ट शक्तियों (भूत, प्रेत, राक्षस इत्यादि) से प्रभावित हैं । अधिक जानकारी के लिए, हमारे अनिष्ट शक्तियों से सम्बंधित खंड का संदर्भ लें । अनिष्ट शक्तियां अपनी काली शक्ति द्वारा हमारे शरीर के विविध अंगों तथा तंत्रों की क्रिया में विविध स्तरों पर विकार उत्पन्न कर किसी भी शारीरिक रोग-लक्षण का कारण बन सकती हैं । ये जीवाणु अथवा कवक से होनेवाले संक्रामक रोग भी उत्पन्न कर सकती हैं, क्योंकि ये उनसे भी अधिक सूक्ष्म हैं । हमारे मृत पूर्वजों की सूक्ष्म-देहें भी इस श्रेणी में आती हैं ।

३.१ हम कैसे जान सकते हैं कि हमें हुए रोग के लक्षण अनिष्ट शक्तियों द्वारा जनित है ?

कोर्इ विशिष्ट लक्षण अनिष्ट शक्तियों द्वारा जनित है अथवा नहीं इसका अचूक निदान केवल संत अपनी उच्चस्तरीय विकसित छठवीं इंद्रिय के माध्यम से कर सकते हैं । वे आक्रमण करने वाली अनिष्ट शक्ति का विवरण, आक्रमण का कारण, योग्य उपाय इत्यादि भी बता सकते हैं । अधिक जानकारी के लिए, ‘असाधारण गतिविधियों को समझने की हमारी छठवीं इंद्रिय की गहन क्षमता’ लेख पढें ।

विकसित छठवीं इंद्रिय वाले भी, कोर्इ समस्या अनिष्ट शक्तियों द्वारा उत्पन्न है अथवा नहीं, यह कुछ ही मात्रा में समझ सकते हैं । तथापि वे १०० प्रतिशत निश्चित नहीं होते तथा आक्रमण की प्रकृति के संदर्भ में अनेक जानकारियों से वे अनभिज्ञ होते हैं ।

अनिष्ट शक्ति द्वारा उत्पन्न रोग के लक्षण को समझने के लिए हममें से जिनके पास छठवीं इंद्रिय नहीं है, उनका क्या ? एक सामान्य नियम जो हम अपना सकते हैं, वह है निर्णय लेने हेतु अपनी बुद्धि का प्रयोग करें । रोग यदि निम्नलिखित लक्षण दर्शाए तब हम मान सकते हैं कि इसके अनिष्ट शक्ति द्वारा उत्पन्न होने की संभावना तीव्र है :

  • नियमित, पारंपरिक औषधियों से ठीक न होना,
  • अस्थायी,
  • अकारण
  • पूर्णिमा अथवा अमावस्या के दिन कष्ट की तीव्रता और बढ जाना,
  • आध्यात्मिक उपचारों से राहत मिलना ।

उदाहरण के लिए, यदि त्वचा पर हुआ सामान्य चकत्ता बहुत हठी हो और पारंपरिक औषधि से ठीक न हो रहा हो, तो संभव है कि यह अनिष्ट शक्तियों द्वारा उत्पन्न किया गया हो ।

वैसी समस्याएं जिनका मूल कारण शारीरिक अथवा मानसिक अथवा आध्यात्मिक (अनिष्ट शक्तियों के अतिरिक्त) हो, तो हमारा परामर्श है कि चिकित्सीय उपचारों के साथ आगे दिए गए आध्यात्मिक उपचारों को भी जारी रखें । इसका कारण यह है कि रोग के कारण उत्पन्न किसी भी प्रकार की दुर्बलता का लाभ अनिष्ट शक्तियां व्यक्ति पर आक्रमण करने, तथा समस्या को और बढाने के लिए उठाती हैं । इसलिए यद्यपि कोर्इ रोग पूर्णतः शारीरिक रोग की भांति आरंभ हुआ हो, तथापि अधिकांश प्रसंगों में वह अनिष्ट शक्तियों के आक्रमण से और भी जटिल हो जाता है ।

४. सारणी (चार्ट) का विवरण तथा इसके उपयोग की विधि

आध्यात्मिक उपचारी नामजप के खंड में पांच मापदंड दिए गए हैं :

लक्षण : इसका अर्थ उस लक्षण से है, जिससे व्यक्ति पीडित हो तथा जो अनिष्ट शक्ति के कारण उत्पन्न हुआ हो, उदाहरण के लिए मुंह के छाले, अदृश्य रूप से यौन शोषण का अनुभव होना इत्यादि । पाठकों को संदर्भ तथा अध्ययन में सरलता हो इसलिए हमने रोग के स्थान पर लक्षण दिए हैं ।

यह किसी भी प्रकार से सभी रोगों पर लागू होनेवाला सर्वसमावेशी शोध लेख नहीं है । इसका उद्देश्य यह जानने के लिए एक दृष्टि प्रदान करना है कि कैसे रोग के विविध लक्षण अनिष्ट शक्तियों द्वारा उत्पन्न किए जाते हैं तथा आध्यात्मिक शोध से प्राप्त जानकारी का प्रयोग कर आध्यात्मिक उपचारों से ठीक किए जा सकते हैं ।

पंचतत्त्वों का स्तर : यह स्तंभ प्रभावित पंचतत्त्वों के स्तर के कारण उत्पन्न विशिष्ट लक्षण की जानकारी देता है ।

चिकित्सा-विज्ञान की व्यापक रूप से प्रचलित प्रणाली (एलोपेथी) जिसे हम सभी जानते हैं, इसके अनुसार किया गया निदान केवल यह जानने तक ही सीमित है कि किसी संक्रामक रोग के प्रसंग में वह रोग किस कीटाणु के कारण हुआ होगा अथवा किसी विकारसंबंधी रोग जैसे अंतःस्रावी विकार इत्यादि होने पर किसी विशिष्ट अंग की कौन-सी क्रिया प्रभावित हुई होगी । यहां विज्ञान केवल कोशिका के जैविक अथवा शारीरिक–जैव रासायनिक स्तर तक ही पंहुच सका है ।

भारत का प्राचीन चिकित्सा विज्ञान, आयुर्वेद, रोग अथवा विकार का निदान तुलनात्मक रूप से अधिक गहनता से करता है । यह प्रोटॉन, न्यूट्रॉन, मेसॉन, ग्लूकॉन तथा क्वार्क्स के स्तर से भी अधिक गहरार्इ में जाता है । यह पंचतत्त्वों के स्तर पर निदान करता है, जिससे हमारे शरीर की निर्मिति हुर्इ है । कृपया संदर्भ हेतु पंचतत्त्व पर लेख देखें ।

प्रभावित पंचतत्त्व के स्तर को जानने का महत्त्व यह है कि इससे यह ज्ञात होगा कि रोग को ठीक करने हेतु आवश्यक उपचार उसी स्तर का होना चाहिए अथवा उससे उच्चस्तरीय पंचतत्त्व का ।

आगे कुछ आध्यात्मिक उपचारों के उदाहरण उससे संबंधित पंचतत्त्वों के साथ दिए हैं, जिनका क्रम निम्न स्तरीय पंचतत्त्व से उच्च स्तरीय पंचतत्त्व का है । पृथ्वीतत्त्व सबसे कनिष्ठ स्तर का तथा सभी पंचतत्त्वों में से सर्वाधिक स्थूल है । इस पदक्रम में आकाशतत्त्व सर्वाधिक सूक्ष्म तथा सर्वोच्च स्तर पर है ।

मूलभूत तत्त्व आध्यात्मिक उपचार
पृथ्वीतत्त्व सुगंधित इत्र उपचार
आपतत्त्व तीर्थ प्राशन, नमकमिश्रित-जल का उपचार
तेजतत्त्व पवित्र विभूति लगाना
वायुतत्त्व पवित्र विभूति फूंकना
आकाशतत्त्व बक्से तथा आकाश के उपचार

इन सभी उपचारों के विवरण हमारे आध्यात्मिक उपचार खंड में दिए गए हैं । इस प्रकार यदि हमें प्रभावित करनेवाला लक्षण पृथ्वीतत्त्व के स्तर का हो तथा पदक्रम/शक्ति में निम्न स्तरीय अनिष्ट शक्ति द्वारा हो अथवा कष्ट सौम्य हो तब पृथ्वीतत्त्व से संबंधित आध्यात्मिक उपचार अर्थात सुगंधित इत्र का प्रयोग कर किए गए आध्यात्मिक उपचार से हमें लाभ हो सकता है । किंतु यदि प्रभावित करनेवाली अनिष्ट शक्ति पदक्रम में उच्च हो अथवा आक्रमण गंभीर स्वरूप का हो, तब हमें नमकमिश्रित-जल का उपचार करना होगा जो आपतत्त्व के स्तर पर कार्य करेगा । आकाशतत्त्व के स्तर पर होनेवाले लक्षणों का उपचार आकाशतत्त्व के स्तर का ही किया जाना चाहिए ।

आध्यात्मिक ऊर्जा केंद्र (चक्र) : यह बताता है कि व्यक्तिको अपनी आध्यात्मिक शक्ति को न्यास के माध्यम से कहां केंद्रित किए जाने की आवश्यकता है । न्यास करने की विधि जानने के लिए कृपया हमारा संदर्भित लेख पढें । हमारे शरीर में आध्यात्मिक शक्ति के अदृश्य अथवा सूक्ष्म सात केंद्र होते हैं, आगे दिया गया चित्र यह दर्शाता है कि हमारे स्थूल देह के सापेक्ष ये केंद्र कहां होते हैं ।

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प्रत्येक आध्यात्मिक शक्ति के केंद्र (चक्र) अपने आसपास के अंग तंत्रों को आध्यात्मिक शक्ति प्रदान करते हैं । उदाहरण के लिए, मूलाधार चक्र उत्सर्जन-तंत्र को, स्वाधिष्ठान चक्र प्रजनन-तंत्र को, मणिपूर चक्र पाचन-तंत्र को इत्यादि ।

न्यास की स्थिति, वह स्थिति होती है जहां नामजप के साथ हमें अपनी उंगलियों को जोडकर अपनी आध्यात्मिक शक्ति को केंद्रित करना है । उदाहरण के लिए यदि उपचार आज्ञाचक्र पर न्यास करने का है, तो वह इस प्रकार दिखेगा :

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न्यास करने की क्रियाविधि

न्यास सदैव नामजप के साथ करना चाहिए । नामजप से हमें नामजप के अधिष्ठाता देवता की दैवी शक्ति मिलती है । न्यास करने से, हम नामजप से प्राप्त उस दैवी शक्ति का प्रवाह विशिष्ट आध्यात्मिक शक्ति केंद्र की ओर मोडते हैं । ऐसा करने से शक्ति उस स्थान के अवयवों में फैल जाती है ।

किसी विशिष्ट लक्षण हेतु आवश्यक योग्य न्यास की जानकारी किसी को न हो, तो सामान्य नियम यह है कि

  • सभी शारीरिक रोगों के लिए एक हाथ की सारी उंगलियों को जोडकर अनाहतचक्र पर तथा दूसरी हाथ की उंगलियों को जोडकर मणिपूर चक्र के निकट रखकर न्यास करने से लाभ होता है ।
  • सभी मानसिक बाधाओं के लिए न्यास की सामान्य स्थिति है, एक हाथ आज्ञा चक्र तथा दूसरा हाथ अनाहत चक्र पर ।

यदि न्यास करते समय आपके हाथ में वेदना होने लगे, तो आप अपना हाथ नीचे ला सकते हैं । कुछ समय के लिए उसे विश्राम दें सकते हैं अथवा अपना हाथ भी बदल सकते हैं ।

विशिष्ट देवता का नामजप करना : विशिष्ट अनिष्ट शक्ति द्वारा उत्पन्न विविध लक्षणों से युद्ध हेतु विशिष्ट र्इश्वरीय आध्यात्मिक शक्ति प्राप्त करने के लिए हमें र्इश्वर के विशिष्ट रूप का नामजप करना होगा । कभी-कभी र्इश्वर के दो अथवा दो से अधिक तत्त्वों (देवताओं) के संयुक्त नामजप को एक विशिष्ट क्रम में करने से आवश्यक विशिष्ट शक्ति प्राप्त होती है । हमें दिए गए क्रम के अनुसार देवता के नाम का जप करना चाहिए और क्रमानुसार नामजप पूरा होने पर पुनः प्रारंभ करना चाहिए ।

पाठकों की सुविधा हेतु, हमने शास्त्र के अनुसार नामजप का ध्वनिमुद्रण (ऑडियो) किया है । जिनके लिए यह भाषा नर्इ है, वे निम्नलिखित पद्धति से उपचार कर सकते हैं ।

प्रथम चरण : नामजप केवल सुनें और नामजप के छपे  हुए अक्षरों पर ध्यान दें ।

द्वितीय चरण : ऑडियो के साथ नामजप बोलने का प्रयास करें ।

तृतीय चरण : स्वयं से बोलें । इस स्तर पर, जब भी आपको समय मिले आप ऊंचे स्वर में अथवा मन में नामजप कर सकते हैं, चाहे आप जहां भी हों अथवा कुछ भी कर रहे हों । संभव हो तो न्यास करें । यदि न्यास करना संभव न हो, जैसे जब आप रेलगाडी से यात्रा कर रहे हों, तब आप न्यास न करते हुए मन में जप करते रहें ।

मात्र नामजप को सुनते समय छपे हुए उसके अक्षरों को देखने से भी कुछ मात्रा में लाभ होगा ।

नीचे सूचीबद्ध किए नामजप, रोग के लक्षणों के उपचार हेतु अनुशंसित नामजप समान हैं । इनके नामजप से आध्यात्मिक उन्नति नहीं होगी ।

विशिष्ट अंक जप : इस स्तंभ में, हमने एक वैकल्पिक उपचारक जप जिसे अंक जप कहते हैं, वह दिया है । यदि कोर्इ किसी कारण से भगवान का नामजप नहीं कर सकता (क्योंकि कोर्इ नास्तिक हो सकता है अथवा किसी को नामजप के शब्दों के उच्चारण में कठिनार्इ हो सकती है), तब वह न्यास के साथ दिए गए विशिष्ट अंक जप कर सकता है । यह कार्य कैसे करता है, यह जानने के लिए कृपया हमारा लेख अंक जप पढें ।

हमने कोष्ठक में भी अंक दिए हैं, जो प्रत्येक अंकों का योग है । यह तीसरे प्रकार का जप है, जो आप न्यास करते हुए कर सकते हैं ।

अंक जप जब संस्कृत भाषा में किया जाए तब यह सर्वाधिक प्रभावकारी होता है क्योंकि संस्कृत सर्वाधिक सात्त्विक भाषा है । यदि आपको अनेक अंक वाले संख्या के उच्चारण में कठिनार्इ हो, जैसे १३१, आप अंक ५ का जप कर सकते हैं, यह अंक ५, १३१ के सभी अंकों को जोडने से (१+३+१ = ५) प्राप्त हुआ है । किंतु यह भी निश्चित है कि मिलने वाले लाभ में भी कमी आएगी ।

यदि आपको अंक जप संस्कृत में उच्चारण करने में अत्यधिक कठिनार्इ हो रही हो, तो आप इसका जप अपनी भाषा में भी कर सकते हैं ।

४.१ नामजप कब तक करना चाहिए ?

हमारा सुझाव है कि आपकी समस्याओं की तीव्रता के आधार पर आप नामजप उपचार को नियमित रूप से निश्चित कालावधि के लिए करें ।

सौम्य कष्ट की स्थिति में आप प्रतिदिन एक अथवा अनेक सत्रों में १-२ घंटे जप कर सकते हैं ।

यदि कष्ट मध्यम स्वरूप के हों, तब आप प्रतिदिन ३-४ घंटे अथवा उससे अधिक जप कर सकते हैं ।

यदि तीव्रता अत्यधिक हो, तो कृपया प्रतिदिन अधिक से अधिक उपचार करें ।

लक्षणों के लुप्त होने पर भी आपको २-४ माह तक उपचार करते रहना चाहिए । कष्ट दूर हो जाने के उपरांत, २-४ महीनों तक उपचार करते रहने चाहिए । ठीक वैसे ही जैसे संक्रामक कफ की खांसी (ब्रोंकाइटिस) के प्रसंग में कफ दूर हो जाने का अर्थ यह नहीं होता कि फेफडों से रोग समाप्त हो गया है । कफ की खांसी को जन्म देनेवाले तथा कफ निर्माण करने वाले कीटाणु अभी भी बचे हुए हो सकते हैं । इसलिए रोग को समाप्त करने के लिए जीवाणुनाशक (एंटीबायोटिक) औषधियों को बताए गए दिनों तक लेते रहना आवश्यक होता है । इसी प्रकार कष्टों के दूर हो जाने के उपरांत भी अनिष्ट शक्ति का प्रभाव रहता है, इसलिए पूर्ण उपचार हेतु आध्यात्मिक उपचारों को करते रहना आवश्यक है ।

४.२ कौन–से उपचार करने चाहिए ?

हमने सारणी में आपको उपचारों के तीन विकल्प बताए हैं, जिसका आप लाभ उठा सकते हैं । आगे दी गर्इ सारणी प्रत्येक उपचार की तुलनात्मक प्रभाव-क्षमता का विवरण देती है । पंचतत्त्वों से संबंधित उपचार अन्य उपचारों के लिए पूरक हैं तथा ये किसी भी उपचार के साथ शीघ्र तथा पूर्णरूप से ठीक होने के लिए किए जा सकते हैं । यदि कष्ट सौम्य हो अथवा उसका कारक भुवर्लोक की निम्नस्तरीय अनिष्ट शक्ति हो, ये स्वयं ही लाभकारी हैं । अन्यथा वे नामजप के द्वितीय स्तर के उपाय के लिए उत्तम हैं ।

उपचार प्रभावशीलता
देवताओं के नाम का जप १०० प्रतिशत
अंक जप ५० प्रतिशत*
अंक जप के योग से प्राप्त संख्या का जप ३० प्रतिशत*

*यह प्रभावशीलता तभी है, जब जप संस्कृत में किया जाए ।

४.३ क्या जन्म के धर्मानुसार भगवान के नाम का जप तथा दत्तात्रेय भगवान का जप करते रहना चाहिए ?

हां, यदि कोर्इ मूलभूत साधना करता रहता है, तब लाभ अधिक तथा शीघ्र होता है । यदि कोर्इ दोनों नहीं कर सकता है, तो अच्छा होगा कि वह विशिष्ट उपचारों में ही प्रधानता से ध्यान दे । ऐसा इसलिए क्योंकि, कष्टकारी शारीरिक रोग हो, तब साधना पर ध्यान देना कठिन है ।

४.४ क्या चिकित्सकीय उपचार भी करते रहना चाहिए ?

यदि लगे कि कष्ट के लक्षण अनिष्ट शक्तियों द्वारा प्रेरित है, तब भी चिकित्सकीय उपचार करते रहना चाहिए । क्योंकि इससे कष्ट पूर्णतः ठीक न भी हो, तब भी कम से कम लक्षणों से राहत तो मिलेगी । हमें अपने अल्प तथा अमूल्य आध्यात्मिक धन को उसके लिए व्यर्थ नहीं गंवाना चाहिए, जो हमें सरलता से शारीरिक औषधियों से उपलब्ध हो सकता है ।

४.५ क्या नामजप से लाभ होने हेतु श्रद्धा रखना आवश्यक है ?

श्रद्धा सहायक होती है; किंतु इस जालस्थल में बताए गए आध्यात्मिक उपचारों का लाभ इसके बिना भी हो सकता है । यह ठीक वैसे ही है जैसे औषधि से लाभान्वित होने के लिए, औषधि पर श्रद्धा नहीं रखनी होती । यह एक आध्यात्मिक औषधि है, इसलिए इसे उपयोग में लानेवाले को लाभ होगा, भले उसकी श्रद्धा हो अथवा नहीं ।

५. अनिष्ट शक्तियों द्वारा प्रेरित शारीरिक व्याधियों के उपचार की सारणी

शीघ्र ही प्रकाशित होगी ।