अनिष्ट शक्तियों द्वारा प्रेरित गंभीर लक्षणों से युक्त मस्तिष्कीय धमनी स्फीति अथवा धमनी विस्फार (एन्यूरिज्म) का निराकरण

SSRF द्वारा प्रकाशित प्रकरण-अध्ययनों (केस स्टडीस) का मूल उद्देश्य है,  उन शारीरिक अथवा मानसिक समस्याओं के विषय में पाठकों का दिशादर्शन करना,  जिनका मूल कारण आध्यात्मिक हो सकता है । यदि समस्या का मूल कारण आध्यात्मिक हो,  तो यह ध्यान में आया है कि सामान्यतः आध्यात्मिक उपचारों का समावेश करने से सर्वोत्तम परिणाम मिलते हैं । SSRF शारीरिक एवं मानसिक समस्याओं के लिए इन आध्यात्मिक उपचारों के साथ ही अन्य परंपरागत उपचारों को जारी रखने का परामर्श देता है । पाठकों के लिए सुझाव है कि वे स्वविवेक से किसी भी आध्यात्मिक उपचारी पद्धति का पालन करें ।

HIN_1.-Cerebral-Aneurysmधमनी विस्फार(एन्यूरिज्म) की परिभाषा : यह धमनी के दुर्बल बिंदु पर होती है । एक बार दुर्बल हो जाने पर धमनी की भित्ति (wall) बाहर की ओर उभर आती है तथा रक्त से भर जाती है । यह उभार धमनी विस्फार कहलाता है । धमनी जिस अंग को रक्त की आपूर्ति करती है, उसी अंग में धमनी विस्फार का यह उभार फूट कर उसमें रक्त फैला सकता है । ऐसा होने पर, धमनी विस्फार के आकार और उसके स्थान के अनुरूप स्थाई क्षति, अपंगता अथवा मृत्यु हो सकती है ।

 

 

 

सारांश : प्रस्तुत लेख में श्रीमती अंजली मेहता ने मस्तिष्कीय धमनी विस्फार के कारण १२ वर्ष तक उन्हें हुए शारीरिक कष्टों का वर्णन किया है । नामजप की साधना प्रारंभ करने पर उनके कष्ट कुछ महीनों में धीरे-धीरे समाप्त हो गए । आज श्रीमती अंजली मेहता इन सभी लक्षणों से मुक्त हैं तथा सामान्य सक्रिय जीवन जी रही हैं ।

१. प्रस्तावना

HIN_2.-Anjali-Mehtaश्रीमती अंजली मेहता (जो अब ४९ वर्ष की हैं) भारत के महाराष्ट्र राज्य के पुणे शहर की हैं । विवाहित और ३ बच्चों की मां श्रीमती मेहता इस जीवन घातक रोग से ग्रसे जाने से पूर्व अपने परिवार का आधार थीं । इस प्रकरण अध्ययन में श्रीमती अंजली मेहता ने मस्तिष्कीय धमनी विस्फार के लक्षणों के कारण १२ वर्षों तक हुई अपनी तीव्र शारीरिक वेदना तथा उन्होंने आध्यात्मिक उपचार से इस पर कैसे विजय प्राप्त की, इसका वर्णन किया है ।

 

 

 

२. श्रीमती अंजली मेहता के मस्तिष्कीय धमनी विस्फार के लक्षण

अपनी तीसरी संतान के १९८६ में जन्म लेने के एक माह के उपरांत मैं गंभीर रूप से अस्वस्थ हो गयी । मेरी दाहिनी आंख उभरने (proptosis) लगी । मेरी आंख के उभरने के साथ-साथ मेरी दाहिनी पलक सतत नीचे रहने लगी जिससे आंख भी निरंतर बंद रहने लगी । (इसके कई वर्षों पूर्व मैं जब १४ वर्ष की थी तो मेरी आंखें भेंगी हो गयीं थीं । तीन बार शल्य चिकित्सा होने के उपरांत दोहरी दृष्टि से कुछ आराम हुआ परंतु शेष दोष, जो कि मेरे छायाचित्र में दिखाई देते हैं, रह गए ।)

रोग की इस नई पारी में मुझे तीव्र सिरदर्द होने लगता था, अत्यधिक चक्कर जैसा लगता और अपस्मारी (मिरगी) की मूर्च्छा (दौरा) आने लगती थी । न तो मैं अपनी आखें खोल पाती थी और न ही उपधान (तकिया) से सिर उठा पाती थी । मुझे ऐसा प्रतीत होता था कि जैसे किसी ने मुझे बलपूर्वक लिटाए रख रहा है । इसके साथ ही मेरी संपूर्ण देह में सूजन आती थी । इन सभी लक्षणों के कारण मैं अपनी गृहस्थी का कोई भी कार्य नहीं कर पाती थी ।

इन लक्षणों के प्रारंभ होते ही, यह पता करने कि मेरी समस्या क्या है, मैं भारत के मुंबई नगर के प्रतिष्ठित के.इ.एम. चिकित्सालय गई । डिजिटल सबट्रैक्शन ऐंजिओग्रैफी और सी.टी.स्कैनिंग सहित अनेक चिकित्सकीय परीक्षण कराने के उपरांत विशेषज्ञों ने निदान किया कि मेरे लक्षणों का कारणमस्तिष्कीय धमनी विस्फार है । उन्होंने मुझे ट्रांस-फेमोरल मेटल क्लिपिंग ऑफ दि एन्यूरिज्म नामक कोई उपचार कराने की सलाह दी । इसका तात्पर्य था कि धमनी विस्फार धातु की चुटकी (क्लिप)से नियंत्रित की जाएगी । चिकित्सकों ने आश्वासन दिया कि इस प्रक्रिया के उपरांत मुझे अपने लक्षणों से ६० प्रतिशत आराम मिल जाएगा । तथापि मुझे अपना शेष जीवन ४० प्रतिशत लक्षणों के साथ काटना पडेगा । मैंने अपना भाग्य स्वीकार कर लिया और शल्य-क्रिया करवा ली ।

इस प्रक्रिया के उपरांत, निश्चित रूप से कुछ सीमा तक मेरी शिरोवेदना (सिरदर्द) घट गई । एक महीने में मेरी दाहिनी आंख खुल गई । तथापि इस प्रक्रिया का सबसे दुखद भाग यह था कि औषधि (कारबामाजेपीन २०० मि.ग्रा.) प्रतिदिन दिन में ३ बार लेने से उत्पन्न बेसुध अवस्था (sedation) के कारण शल्य-क्रिया के उपरांत मैं ५ वर्षों तक लगभग शय्याग्रस्त ही रही । मुझे अपस्मार (मिर्गी) के दौरे पडते थे । उन्हें नियंत्रित करने हेतु मुझे यह औषधि दी जाती थी । परंतु मेरी अत्यधिक थकान वैसी ही रह गई । मेरे हाथों तथा पैरों में तनिक भी शक्ति नहीं रहती थी । यदि मैं खडे होने अथवा चलने का प्रयास करती थी तो मुझे चक्कर आते थे और मैं गिर पडती थी । इस कारण से मैं अपनी गृहस्थी नहीं संभाल पाती थी । यहां तक कि मेरे नए शिशु की देखभाल मेरी मां को करनी पडती थी ।

ये लक्षण मुझे शल्यक्रिया के १२ साल तक कष्ट देते रहे । प्रत्येक वर्ष के लगभग ६ माह मैं शय्याग्रस्त रहती थी और बार-बार चिकित्सालय में भर्ती होना पडता था । इन १२ वर्षों में चिकित्सालय जाने को छोड कर मैंने घर से बाहर पैर नहीं रखा । मैंने अपने भाग्य को स्वीकार कर लिया था और मान लिया था कि मुझे आजीवन पीडा, अपस्मारी (मिरगी) और निराशा हेतु सतत औषधियों का सेवन करना होगा ।

३. मस्तिष्कीय धमनी विस्फार के लक्षणों से स्वास्थ्यलाभ

ईश्वर की कृपा से मेरे एक मित्र ने अक्टूबर १९९७ में मुझे स्पिरिच्युअल साइन्स रिसर्च फाऊंडेशन (SSRF) से परिचित कराया । यहां मुझे अपने जन्म के धर्म के अनुसार देवता के नामजप की साधना के संदर्भ में ज्ञात हुआ । मैंने त्वरित ही नामजप करना आरंभ किया । जन्म से हिंदू होने के कारण मैंने अपने कुलदेवता के नामजप के साथ ही साथ आध्यात्मिक संरक्षक नामजप श्री गुरुदेव दत्त प्रारंभ किया ।

SSRF द्वारा सुझाई गयी साधना का संदर्भ कृपया अपनी आध्यात्मिक यात्रा प्रारंभ करें के अंतर्गत देखें ।

तीन-चार दिनों में मैंने पाया कि मेरे सिर में आया भारीपन क्रमश:घट रहा है । मैंने यह भी अनुभव किया कि किसी प्रकार की अनिष्ट शक्ति मेरी देह को छोड रही है । एक के उपरांत एक करके मेरे सभी लक्षण लुप्त होने लगे । मेरी शिरोवेदना लुप्त हो गयी, चक्कर आना घट गया, अपस्मारी (मिरगी) की बारंबारता घटने लगी और मेरे देह की सूजन ६ माह में धीरे-धीरे लुप्त हो गयी । यह सभी अविश्वसनीय सा लग रहा था ।

नामजप प्रारंभ करने के एक सप्ताह के भीतर मैं अपने छमाही परीक्षण हेतु चिकित्सकों के पास गई । उन्होंने मेरी स्थिति में आश्चर्यजनक सुधार पाए ।

छ: माह के उपरांत अगले परीक्षण में मेरी स्थिति में सुधार की गति को देख कर चिकित्सक भौंचक्के और आश्चर्यचकित रह गए । उन्होंने १२ वर्षों में पहली बार मेरी आंतरिक आंख की जांच को सामान्य घोषित किया । वे मुझमें उन लक्षणों को नहीं देख पा रहे थे, जिनके वे पिछले १२ वर्षों से देखने के आदी हो चुके थे । सुनिश्चित होने हेतु उन्होंने मेरी सारी जांच पुन: करवायी । सभी जांच पूर्णतः सामान्य थे और मेरे मस्तिष्कीय धमनी विस्फार के लक्षण का कोई चिन्ह नहीं था । उन्होंने कहा कि मैं सभी औषधियों का सेवन बंद कर सकती हूं । चिकित्सक ने कहा किया यह किसी चमत्कार से कम नहीं था ।

मुझे साधना प्रारंभ किए अब ८ वर्ष हो गए हैं । अब मैं कोई औषधि नहीं ले रही हूं । शल्यकर्म के पश्चात बारह वर्षों तक सतत औषधि लेने के उपरांत भी मैं अपने गृहस्थी की देखभाल नहीं कर पाई थी । परंतु साधना प्रारंभ करने के उपरांत मैं न केवल अपने गृहस्थी के कर्तव्यों का पालन कर पा रही हूं वरन इसके साथ ही मैं घर में और समाज में अध्यात्म प्रसार की गतिविधियों में सक्रिय भाग भी ले रहीं हूं । मैं अब पूरे दिन अर्थात प्रात: ५ बजे से लेकर रात्रि १० बजे तक नियमित रूप से सक्रिय रह पाती हूं ।

मैं अपने स्वास्थ्यलाभ के लिए SSRF की आभारी हूं । जिसे सर्वोत्तम चिकित्सक और औषधियां १२ वर्षों तक ठीक नहीं कर पाईं, वह श्रद्धापूर्वक नामजप  करने से कुछ माह में और बिना आर्थिक व्यय के ठीक हुआ ।

४. मस्तिष्कीय धमनी विस्फार के मूल कारणों पर आध्यात्मिक शोध

SSRF में हम श्रीमती अंजली के जीवन में नामजप प्रारंभ करने के उपरांत हुए आश्चर्यकारी परिवर्तन से चकित थे । हमने प्रगत अतिसंवेदी ग्रहणक्षमता (ESP) अथवा छठवीं इंद्रिय के माध्यम सेमस्तिष्कीय धमनी विस्फार के मूल कारणों पर आध्यात्मिक शोध किया । हमने पाया कि ७० प्रतिशत मस्तिष्क विकारों के मूल कारण अनिष्ट शक्तियां (भूत,प्रेत,पिशाच इत्यादि) होती हैं,जबकि ३० प्रतिशत घटनाएं पूर्ण रूपेण दैहिक प्रकृति की अर्थात मस्तिष्क के संरचनात्मक परिवर्तनों के कारण होतीं हैं । हमने यह भी पाया कि अनिष्ट शक्तियां व्यक्ति को जिस परिमाण में प्रभावित करती हैं उसी के अनुरूप यह प्रक्रिया तथा लक्षण भिन्न होते हैं ।

१. ३० प्रतिशत स्तर के कष्ट : इस स्तर पर अनिष्ट शक्तियां व्यक्ति पर आक्रमण कर उसके सिर के पृष्ठ भाग में कष्टदायक शक्ति केंद्र निर्मित करती हैं । सिर के पृष्ठ भाग में एक सूक्ष्म रिक्ति होती है जिसमें हमारी देह के आध्यात्मिक ऊर्जा तंत्र की – सूर्य, चंद्र तथा सुषुम्ना – तीनों नाडियां  मिलती हैं ।

मस्तिष्क की इस सूक्ष्म (अमूर्त) रिक्ति का वर्णन हम अपने आध्यात्मिक शक्ति तंत्र के अनुभाग में करेंगे ।
किसी व्यक्ति की इस विशिष्ट रिक्ति में केंद्र बनाने से अनिष्ट शक्तियों के लिए उस व्यक्ति की देह के साथ-साथ सिर का भी नियंत्रण पाना सरल हो जाता है । वे तब इन केंद्रों से शक्ति तंतु मस्तिष्क की रक्त नलिकाओं में भेजते हैं । इन कष्टदायक तंतुओं से प्रवाहित होनेवाली कष्टदायक तरंगें रक्त नलिकाओं में दबाव को बढाती हैं । इससे शिरोवेदना होती है और चक्कर आते हैं ।

HIN_3.-Cerebrum-1

२. ३०-५० प्रतिशत स्तर के कष्ट : जैसे-जैसे कष्टदायक शक्ति रक्त नलिकाओं में एकत्रित होती है, रक्त नलिकाओं का आकार बढने लगता है । सिर के विवर (कपालीय विवर) में कष्टदायक शक्ति के बढने से तकिए से सिर उठा न पाना,  मूर्च्छा (दौरा) पडना अपस्मारी (मिरगी) जैसे कष्ट प्रारंभ होते हैं ।

HIN_4.-Cerebrum-2

३. ५० प्रतिशत से अधिक स्तर के कष्ट : जैसे-जैसे मस्तिष्क में कष्टदायक शक्तियों का प्रभाव बढता है, रक्त नलिकाओं में कष्टदायक शक्तियों का बहाव मूर्त रूप लेने लगता है और एक स्थाई केंद्र निर्मित हो जाता है । घनीकरण के कारण उन स्थानों पर रक्तनलिका फूलने लगती है । इन केंद्रों से कष्टदायक शक्ति की तरंगों के निरंतर प्रक्षेपित होने के कारण शरीर का संतुलन खो जाता है और पूरा मस्तिष्कतंत्र अस्त-व्यस्त हो जाता है । ऐसी स्थिति में मस्तिष्क से शरीर में जानेवाली संवेदनाएं बंद हो जाती हैं । परिणामस्वरूप व्यक्ति के हाथ-पांव ठंडे पड जाते हैं और दीर्घकाल तक निद्राधीन हो जाता है ।

सामान्यतः ऐसी व्याधियां डायन से प्रभावित अथवा आविष्ट होने से होती हैं ।

५. नामजप से प्रभाव से कष्ट के न्यून होने के संदर्भ में आध्यात्मिक शोध

नामजप से देह में सात्त्विक तरंगों का संचार होता है । इन तरंगों के सामर्थ्य के कारण कष्टदायक शक्ति के केंद्रों की क्षमता न्यून होने लगती है और कालंतर से वे नष्ट हो जाते हैं । इससे रोगी को स्वास्थ्य का लाभ होना आरंभ होता है ।

५.१ कष्टदायक केंद्रों से प्रक्षेपित होनेवाली कष्टदायक तरंगें न्यून होना

HIN_5.-Cerebrum-4

नामजप से प्रक्षेपित होनेवाली सात्त्विक तरंगों के कारण कष्टदायक शक्ति के केंद्रों से निर्मित कष्टदायक शक्ति तंतु टूटना आरंभ होता है । कष्टदायक शक्ति के केंद्रों से प्रक्षेपित होनेवाली कष्टदायक तरंगों की संचरणक्षमता, गति और निरंतरता में कमी होना आरंभ होता है । अंत में उपर्युक्त चित्र में दिखाएनुसार मुख्य कष्टदायक शक्ति केंद्र की क्षमता न्यून होने लगती है ।

५.२ कष्टदायक शक्ति केंद्रों कष्टदायक शक्ति केंद्रों की आंतरिक क्षमता का ह्रास

HIN_6.-Cerebrum-5

काली शक्ति के मुख्य केंद्र की क्षमता न्यून होना आरंभ होने से मस्तिष्क की रक्तनलिकाओं को कष्टदायक शक्ति की आपूर्ति न्यून हो जाती है । परिणामस्वरूप रक्तनलिकाओं में कष्टदायक शक्ति का प्रवाह न्यून होकर कष्टदायक शक्ति विरल हो जाती है । कष्टदायक शक्ति के केंद्रों की मूलभूत क्षमता भी न्यून हो जाती है और वे रिक्त हो जाते हैं । उपर्युक्त चित्र से यह स्पष्ट होगा ।

५.३ कष्टदायक शक्ति का नष्ट हो जाना

HIN_7.-Cerebrum-6

उपर्युक्त चित्र में दिखाएनुसार जैसे ही नामजप का प्रभाव देह पर बढता जाता है, कष्टदायक शक्ति के केंद्र नष्ट होना आरंभ होता है । परिणामस्वरूप रक्तनलिकाओं में प्रवाहित होने वाली कष्टदायक शक्ति की क्षमता भी न्यून होने लगती है । कालंतर से यह कष्टदायक शक्ति भी नष्ट हो जाती है । अंततः रक्तनलिका की सूजन (विस्फार) न्यून होने लगता है । यहीं से रोगी के स्वास्थ्य में सुधार आना आरंभ होता है ।

६. सारांश

जहां व्याधि का मूल कारण आध्यात्मिक आयाम में होता है, वहां चिकित्सकीय उपचारों के साथ साधना अथवा उचित आध्यात्मिक उपचार करना ही योग्य है; क्योंकि इससे व्याधि ठीक होने में सहायता मिलती है ।