अत्यधिक अम्लता एवं क्षुधापीडितता हेतु आध्यात्मिक उपचार

१. अत्यधिक अम्लता (acidity) एवं क्षुधापीडितता (hunger pangs) के प्राथमिक लक्षण

वर्ष २००० में, यह आरंभ हुआ जब ठंडा दूध पीने की तीव्र इच्छा से मैं रात को जाग जाती । मुझे आश्चर्य होता क्योंकि मेरे लिए लैक्टोस पीडादायी था तथा कई वर्षों से मैं दूध पीना टाल रही थी । यह एक सप्ताह तक चलता रहा । इसके पश्चात पेट की स्थिति वैसे ही बिगड गर्इ, जिस प्रकार पहले दूध पीने से अथवा दूध के पदार्थ खाने से बिगडती थी । इस स्थिति में मैं केवल घर का बना मीठा ताजा दही खा पाती । रात में खाना एक नियमित कर्म बन गया और क्षुधा तृप्ति हेतु कुछ अधिक खाने की इच्छा होने लगी । मैं दूध के साथ रोटी एवं फल का सेवन करने लगी । धीरे-धीरे मेरी भूख बढती गई और भूख की तीव्रता के कारण मैं रात में असमय जाग जाती । यह बहुत ही आश्चर्यजनक था क्योंकि मैंने कभी ऐसा अनुभव नहीं किया था । अब तो ऐसी स्थिति थी कि मुझे मांसाहार करने की भी तीव्र इच्छा होने लगी थी । वास्तव में मैंने वर्ष १९८० से मासांहार करना पूर्णतः छोड दिया था । परिणामस्वरूप मैं उन पदार्थों को खाने लगी जो मेरे लिए पीडादायक थे और उन पदार्थों को खा नहीं पाती जिन्हे मैं सामान्यत: खाया करती थी ।

मेरे ध्यान में आया कि पेट में अम्लता बढने के साथ ही मेरा वजन भी बढ रहा था । मेरी त्वचा इतनी संवेदनशील बन गई थी कि बिना छाते के मैं धूप में नहीं निकल सकती थी । एक और असामान्य लक्षण जिसका मैं सामना कर रही थी वह यह था कि हर बार पानी पीने पर मुझे पानी कडवा लगता । कई पदार्थ ग्रहण करने से मुझे होनेवाली पीडा निरंतर बढ रही थी जिससे मैं नियमित भोजन भी नहीं कर पा रही थी । गेहूं का कोई भी पदार्थ ग्रहण करने से पेट में तीव्र वेदनाएं होती थी । इन दिनों  मुझे तीव्र खांसी भी होने लगी जिस पर किसी औषधि का कोई प्रभाव नहीं होता था ।

२. अम्लता और भूख की मेरी समस्या पर डॉक्टरों का दृष्टिकोण

डॉक्टरों के दृष्टिकोण के अनुसार समस्या इन कारणों से हो सकती थी :

 १. रजोनिवृत्ति प्रारंभ होना

 २. अत्यधिक तनाव

 ३. अल्सर अथवा कोलायटिस होना

पिछले १३ वर्षों में मैंने १७ डाक्टरों से परामर्श किया था प्रत्येक बार मैं उनके समक्ष अपना पूरा स्वास्थ्यसंबंधी इतिहास दोहराती । एलोपैथी, होम्योपैथी, आयुर्वेद और नेचरोपैथी से मुझे सहायता नहीं मिली और डॉक्टरों ने भी हर बार अपनी असमर्थता जताई । इसलिए मुझे और चिकित्सकीय जांच करवाने के लिए कहा गया । अलग अलग पैथोलॉजी लैब में वही जांच दोहराने पडते । किसी ने बताया कि ऑरा इमेजिंग से समस्या सुलझाई जा सकती है, किंतु ऑरा इमेजिंग का विशेषज्ञ भी समस्या का मूल कारण समझने में असमर्थ रहा । मुझे बैरीयाट्रिक सर्जरी का परामर्श भी दिया गया था किंतु मुझे पता था कि यह मेरी समस्या का समाधान नहीं है । वास्तव में मुझे डॉक्टरों द्वारा दी गई औषधियां सहन नहीं होती थी । कोई भी औषधि लेने से पेट में पीडा होती एवं १५ मिनटों में अत्यधिक भूख लगती जिसके पश्चात् अम्लता बढती । अम्लता बढने से भूख भी बढती जिसके कारण अधिक मात्रा में भोजन ग्रहण किया जाता और इससे अम्लता और बढती । यह दुश्चक्र चलता रहता । जिन औषधियों से अम्लता में राहत मिलना अपेक्षित था वे किसी प्रकार से सहायक सिद्ध नहीं हुईं ।

मेरी रजोनिवृत्ति के आरंभ में मेरी स्त्रीरोग विशेषज्ञ ने मनोवैज्ञानिक द्वारा किए विश्लेषण देखकर अपनी असमर्थता व्यक्त की । इन कष्टदायी वर्षों में मैं जिस चिकित्सक से बातचीत करती, उन्होंने निराशा की संभावना को अस्वीकार कर दिया किंतु मेरी किसी प्रकार सहायता नहीं कर पाए ।

३. वजन बढने से समस्या अधिक जटिल होना

अब मेरा वजन ८४ किलो हो गया था । जीवन की इस प्रतिकूल स्थिति के पूर्व मेरा वजन केवल ४८-५० किलो रहता था । वजन घटाने के लिए मैं प्रतिदिन एक घंटा संतुलित गति से चलती । भौतिक चिकित्सक एवं व्यायाम प्रशिक्षक के सूचनानुसार प्रत्येक व्यायाम करती । इसके अतिरिक्त मैं गृहकार्य भी स्वयं करती और बढती पीडा के होते हुए भी कार्यरत रहती ।

वजन बढने के कारण मेरे घुटनों में पीडा बढने लगी । धीरे धीरे घुटनों की पीडा इतनी तीव्र हुई कि डॉक्टर ने व्यायाम बंद कर केवल चलने का परामर्श दिया  । इस परिस्थिति का मानसिक, भावनिक एवं सामाजिक स्तर पर मुझ पर क्या परिणाम हुआ होगा इसका अनुमान लगा सकते हैं ।

. सूचीदाब (acupuncture) से तात्कालिक राहत मिलना उसके पश्चात अम्लता बढना

अंतत: वर्ष २०१२ में मैंने सूचीदाब विशेषज्ञ से परामर्श लेने का निश्चय किया । उपचार के समय एंडोक्राइन प्रणाली पर कोई भी दुष्प्रभाव न हो इस बात की सावधानी बरतने के मेरे स्त्री विशेषज्ञ के परामर्श के विषय में मैंने एक्यूप्रेशर चिकित्सक को बताया । कोई भी गंभीर समस्या निर्माण न हो इस हेतु उन्होंने भी सावधानी रखने का आश्वासन दिया ।

कुछ मास पश्चात परिणाम दिखने लगे । रात को भोजन करने की मेरी विवशता न्यून हुई जिससे मैं सप्ताह में लगातार पहले, दूसरे, तीसरे, अथवा चौथे दिन रात में बिना खाए रह पाती । अम्लता और खांसी की तीव्रता में कोर्इ अंतर नहीं था परंतु मैंने उनका सामना करना सीख लिया था । तकिए की ढलान बनाकर, मैं छाती के बल सोती जिससे अम्लता का गले में उतरना बंद हो जाए और गले की तीव्र वेदना रुक जाए । पानी के छोटे छोटे घूंट पीती जिससे अम्लता हल्की हो एवं दवाई का दुष्परिणाम भी न्यून हो । पानी मेरे सूखे गले और मुंह को गीला करता । कभी स्थिति इतनी बुरी होती कि मुझे ऐसे लगता जैसे आंतें चिपक गई हों और अंदर की ओर गिर रही हों । अधिक मात्रा में पानी पीने से मुझे कई बार प्रसाधनगृह जाना पडता । खाना खाने हेतु, पानी पीने हेतु अथवा सोने की अवस्था बदलने हेतु रात को कई बार उठना पडता जिसके कारण नींद अधूरी रहती । चेतावनी देने के पश्चात भी सूचीदाब विशेषज्ञ ने एंडोक्राईन प्रणाली पर काम किया था । इसके कारण तुरंत शल्य कर्म (सर्जरी) कराना पडा । शल्य कर्म के एक माह पश्चात भी मैं पहले के सभी लक्षण अनुभव कर रही थी  ।

. निराशा के कारण SSRF के संपर्क में आना एवं समस्याओं पर समाधान पाना

एक सायंकाल मैं पूरी तरह से असहाय और निराश हो अंतरजाल (Internet) पर इसका उपाय ढूंढने लगी । ईश्वर की कृपा से मुझे SSRF यह जालस्थल मिला और मैंने लगभग एकएक शब्द पढ लिया । मेरी समस्या पर मुझे श्री गुरुदेव दत्त के नामजप का समाधान मिला और मेरी समस्या पितरों के कष्ट के कारण है यह जानकर मैंने तुरंत ही यह नामजप करना आरंभ किया । कई वर्षों के पश्चात मैं उस रात शांति से सो पाई और रात को मैंने कुछ नहीं खाया । मैंने नामजप करना जारी रखा एवं अम्लता तथा हड्डियों की पीडा के लिए अन्य जप करना आरंभ किया ।

. अम्लता और क्षुधापीडितता की तीव्रता पर आध्यात्मिक उपचार के प्रति कृतज्ञता

श्री गुरुदेव दत्त यह नामजप आरंभ किए अब ११ मास हुए हैं और इन ११ महिनों में मुझे रात को भोजन करने की आवश्यकता नहीं लगी । अब अम्लता और जलन की समस्या में अत्यधिक राहत है । खांसी समाप्त हो गइर् है और मेरा वजन ७६ किलो तक घट गया है, मेरी त्वचा भी अब सामान्य हुर्इ है तथा खाद्य पदार्थ खा पाती हूं और पुन:पानी का प्राकृतिक स्वाद भी अनुभव कर पा रही हूं । यदि मुझे आध्यात्मिक उपचार करनेवाला यह नामजप पहले से ज्ञात होता तो इतने वर्ष मुझे इतनी पीडा सहन न करनी पडती और चिकित्सक, औषधि, शल्य कर्म, उपचार आदि पर अपनी परिश्रम से अर्जित आय अकारण व्यय न करनी पडती । क्या साधारण से नामजप में इतनी शक्ति हो सकती है ? क्या यह असंभव को संभव कर सकता है ? इसका उत्तर मेरे लिए पुन:-पुन: प्रतिध्वनित होता है – हां ! मैंने स्वानुभव लिखे हैं एवं पूरे समर्पण भाव से अपना मस्तक इस दैवी शक्ति के समक्ष नमन कर, अंत:करण से SSRF के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करती हूं कि उन्होंने सारे विश्व को यह ज्ञान निःशुल्क उपलब्ध कराया है । SSRF के पाठकों से मेरी यह विनती है कृपया नामजप प्रारंभ करने में तनिक भी न हिचकचाएं, क्योंकि इस नामजप से आपको केवल लाभ ही होगा ।

– एक जिज्ञासु (वे अपना नाम गुप्त रखना चाहती हैं ।)