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SSRF द्वारा प्रकाशित प्रकरण-अध्ययनों (केस स्टडीस) का मूल उद्देश्य है, उन शारीरिक अथवा मानसिक समस्याओं के विषय में पाठकों का दिशादर्शन करना, जिनका मूल कारण आध्यात्मिक हो सकता है । यदि समस्या का मूल कारण आध्यात्मिक हो, तो यह ध्यान में आया है कि सामान्यतः आध्यात्मिक उपचारों का समावेश करने से सर्वोत्तम परिणाम मिलते हैं । SSRF शारीरिक एवं मानसिक समस्याओं के लिए इन आध्यात्मिक उपचारों के साथ ही अन्य परंपरागत उपचारों को जारी रखने का परामर्श देता है । पाठकों के लिए सुझाव है कि वे स्वविवेक से किसी भी आध्यात्मिक उपचारी पद्धति का पालन करें ।

१. क्षुधातिशयता के प्रकरण अध्ययन की प्रस्तावना

यह अध्ययन वृत्त एक किशोर के संबंध में है जो क्षुधातिशयता से ग्रस्त था । क्षुधातिशयता से ग्रस्त लोग भूख न लगने पर भी अनियंत्रित रूप से भोजन करने लगते हैं । वे अपना अधिक समय प्राय: भोजन के संबंध में विचार करने एवं भोजन करने में ही व्यतीत करते हैं । प्राय: क्षुधातिशयता की बाध्यता से मोटापा तथा भार वृद्धि होती है; किंतु ऐसा देखा गया है कि सभी अधिक भोजन करनेवाले मोटापे से ग्रस्त नहीं होते ।

२. प्रतीक की क्षुधातिशयता की प्रवृत्ति

2-HIN_Pratikजुलाई २००३ में १३ वर्ष की आयु में प्रतीक के भोजन क्रम (खाने की आदतों) में एक मास में उल्लेखनीय परिवर्तन आया । उसके भोजन करने की मात्रा में नाटकीय ढंग से वृद्धि हुई तथा वह दिनभर खाता ही रहता । भरपूर भोजन करने के उपरांत भी वह पुन: कुछ खाने के लिए मांगता । आरंभ में वह अपनी आयु के अनुसार उचित मात्रा में भोजन करता; किंतु अब उसके भोजन की मात्रा सामान्य से दोगुनी हो गई थी । कभी-कभी तो वह रात्रि में उठकर खाता । यद्यपि प्रारंभ में उसकी मां एवं दादी ने उसके भोजन करने की वृत्ति में परिवर्तन देख चिंता व्यक्त की किंतु परिवार के अन्य सदस्यों ने यह कहते हुए इसकी अनदेखी की, कि बढती आयु में ऐसा होता है ।

प्रतीक की दादी उसे कभी प्रेम से अथवा कभी कठोरता से उसके अधिक खाने की प्रवृत्ति के संदर्भ में समझाती । अनेक बार दादी ने प्रतीक को उसकी आयु के अनुसार भोजन करने हेतु संयम रखने के लिए कहा । यद्यपि वह शांतिपूर्वक सुनता किंतु अंतत: अपनी इच्छानुसार भोजन करने लगता । एकबार उसने कहा ‘‘यद्यपि मुझे पता है कि अधिक खाना उचित नहीं है; मैं स्वयं को नियंत्रित नहीं कर सकता । जैसे ही मैं भोजन को देखता अथवा उसके विषय में सोचता हूं, मैं स्वयं को नियंत्रित नहीं कर सकता ।’’ उसकी मां ने उसकी क्षुधातिशयता की प्रवृत्ति को दूर करने हेतु उसे समझाने का भरसक प्रयत्न किया; किंतु जब सभी प्रयत्न असफल हो गए तो उसने खाद्य सामग्री प्रतीक से छुपा कर रखना प्रारंभ कर दिया ।

समय बीतने के साथ परिवार के सभी सदस्यों को यह स्पष्ट हो गया कि उसकी भोजन की प्रवृत्ति असामान्य है । उसकी क्षुधातिशयता की वृत्ति के संबंध में जब सभी बातें करते तो प्रतीक अप्रसन्न हो जाता; किंतु इतना होने पर भी वह अपनी प्रवृत्ति को नियंत्रित न कर सका । इसके उपरांत वह छिपकर भोजने करने लगा । इससे उसकी मां एवं दादी अधिक चिंतित हो गईं एवं अपने आप को प्रतीक की समस्या का समाधान करने में असहाय समझने लगीं । एक वर्ष में प्रतीक का वजन १२ किलो बढ गया ।

प्रतीक की वृत्ति में अन्य परिर्वतन यह हुआ कि पहले वह बैठकर नामस्मरण किया करता था; किंतु जैस-जैसे उसकी क्षुधातिशयता बढती गई, उसने नामस्मरण करना बंद कर दिया ।

३. SSRF के सूक्ष्म-विभाग द्वारा प्रतीक के क्षुधातिशयता का निदान

जब प्रतीक की क्षुधातिशयता को लगभग एक वर्ष हो गया तब उसकी मौसी उसके परिवार से मिलने आई । उसकी मौसी कु.माया पाटिल SSRF सूक्ष्म विभाग की एक साधिका हैं । जब उन्हें प्रतीक की कभी न शांत होनेवाली क्षुधा को देखा तो उन्हें इसमें कुछ विचित्र लगा । सूक्ष्म निरीक्षण के उपरांत उन्होंने प्रतीक की मां को बतलाया कि इसका मूल कारण आध्यात्मिक है । यह समस्या उनके किसी मृत पूर्वज के कारण हो रही है, ऐसा उन्होंने इंगित किया ।

जब प्रतीक की क्षुधातिशयता को लगभग एक वर्ष हो गया तब उसकी मौसी उसके परिवार से मिलने आई । उसकी मौसी कु.माया पाटिल SSRF सूक्ष्म विभाग की एक साधिका हैं । जब उन्हें प्रतीक की कभी न शांत होनेवाली क्षुधा को देखा तो उन्हें इसमें कुछ विचित्र लगा । सूक्ष्म निरीक्षण के उपरांत उन्होंने प्रतीक की मां को बतलाया कि इसका मूल कारण आध्यात्मिक है । यह समस्या उनके किसी मृत पूर्वज के कारण हो रही है, ऐसा उन्होंने इंगित किया ।

संदर्भ हेतु कृपया खंड ५ का अभ्यास करें जिसमें इस आध्यात्मिक कारण की विस्तृत व्याख्या की गई है । आध्यात्मिक शोध क्या है ?’ इस खंड को भी देखें ।

४. प्रतीक की चिकित्सा के लिए SSRF द्वारा अनुशंसित उपचार  

सूक्ष्म निरीक्षण के उपरांत यह तथ्य स्पष्ट हो गया कि जो अन्न प्रतीक ग्रहण कर रहा था वह उसके शरीरद्वारा उपयोग में नहीं लाया जा रहा था । उसे निम्नलिखित प्रार्थना करने का परामर्श दिया गया ।

‘‘हे प्रभु ! मैं केवल प्रतीक की इच्छा तथा उसकी आवश्यकतानुसार ही भोजन ग्रहण करूं । कोई अनिष्ट शक्ति अपनी भोजन ग्रहण करने की इच्छा को पूर्ण करने के लिए मुझे माध्यम न बना सके ।’’

इसके साथ-साथ उन्होंने प्रतीक को नामजप की साधना भी करने के लिए कहा । प्रतीक ने त्वरित निष्ठपूर्वक इसका पालन किया । उसी मध्याह्न उसके भोजन ग्रहण की प्रवृत्ति में ५० प्रतिशत घट गई । अगले दो दिनों में ३० प्रतिशत और घट गई । अनेक मास के उपरांत प्रतीक को पहली बार भोजन से संतोष प्राप्त हुआ तथा भोजन के लिए उसकी तीव्र इच्छा न्यून हुई । चार दिनों के भीतर उसकी असामान्य भोजन करने की प्रवृत्ति पूर्णतः समाप्त हो गई ।

५. क्षुधातिशयता का मूल आध्यात्मिक कारण क्या है ? बुद्धि से हम कैसे समझ सकते हैं कि क्षुधातिशयता का कारण आध्यात्मिक है ?

क्षुधातिशयता तथा अत्यधिक मात्रा में भोजन करने पर समय-समय पर किए गए आध्यात्मिक शोध में निम्नलिखित तथ्य सामने आए हैं :

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सूक्ष्मज्ञान के अभाव में नि:संशय हम यह निष्कर्ष निकाल सकते हैं कि यदि शारीरिक एवं मानसिक कारणों का निराकरण किया जा चुका है तब क्षुधातिशयता का कारण आध्यात्मिक ही है । जब कोई अनिष्ट शक्ति अथवा दिवंगत पूर्वज वह व्यक्ति जिसे उन्होंने आविष्ट किया है, के माध्यम से भोजन करने लगते हैं, तब वह व्यक्ति अतिभक्षक बन जाता है ।

इस संदर्भ में निम्नलिखित बिंदुओं का भी ध्यान रखना चाहिए :

  • यदि शारीरिक अथवा मानसिक कारणों से किसी की क्षुधातिशयता प्रवृत्ति आरंभ हो गई है तो इसका अनुचित लाभ अनिष्ट शक्ति अथवा पूर्वज उठा सकते हैं । और अंतत: यह कष्ट आध्यात्मिक स्वरूपवाला बन जाता है ।
  • यह भी ध्यान देना होगा कि यद्यपि कोई आध्यात्मिक कारणों से अत्यधिक भोजन करता होगा तदापि शारीरिक अथवा मानसिक कारण भी उपस्थित हो सकते हैं । उदाहरण के लिए अपने वंशज के साथ लेन-देन का हिसाब होने का लाभ उठाकर भोजन के प्रति अपनी तीव्र इच्छा को शांत करने के लिए मृत पूर्वज किसी व्यक्ति को आविष्ट कर सकते हैं । आविष्ट व्यक्ति ब्रेन ट्यूमर अथवा निराशा से भी ग्रस्त हो सकता है, जिसके कारण क्षुधातिशयता हो सकती है । निराशा क्षुधातिशयता के पहले भी हो सकती है अथवा क्षुधातिशयता की वृत्ति को नियंत्रित करने में असफल होने के कारण भी हो सकती है अथवा क्षुधातिशयता के कारण लोगोंद्वारा किए जा रहे कटाक्षों के कारण अथवा उसके परिणामस्वरूप होनेवाले मोटापे से भी निराशा आ सकती है ।
  • कभी-कभी मानसिक अथवा भौतिक कारण के माध्यम से मूल आध्यात्मिक कारण जैसे किसी मृत पूर्वजद्वारा किसी व्यक्ति को आविष्ट किया जा सकता है । उदाहरण के लिए, जो पूर्वज भूलोक में रहनेवाले अपने किसी वंशज के माध्यम से अपनी भोजन की तीव्र इच्छा पूरी करना चाहता है, आरंभ में वह उसे निराशाग्रस्त करता है, तदुेपरांत उसकी निराशा का उपयोग कर उसे क्षुधातिशयता के लिए उकसाता है । वह ऐसा भ्रमित करने के लिए करता है, जिससे किसी को यह संशय ही न हो कि कुछ असामान्य हो रहा है । जब कोई ऐसी चालाकियों से अवगत न हो, आध्यात्मिक आयाम का ज्ञान न हो एवं उसकी छठवीं इंद्रिय कार्यरत न हो  तो वह समस्या का त्रुटिपूर्ण निदान कर सकता है कि समस्या शारीरिक अथवा मानसिक है । प्राय: भोजन की प्रवृत्ति धीरे-धीरे बदलती है, क्योंकि अनिष्ट शक्ति यह नहीं चाहती कि किसी को इसका संशय हो । किंतु कभी-कभी इसके विपरीत एकाएक भी खाने की वृत्ति में बदलाव आ सकता है । यदि कोई व्यक्ति सामन्यतया सादा भोजन करता है किंतु एकाएक वह मसालेदार भोजन का आग्रह करने लगे तो कारण आध्यात्मिक हो सकता है । बहुत बार ऐसा भी होता है कि कभा-कभार पूर्वज अथवा अनिष्ट शक्ति लाभ उठाकर अलग भोजन मांग सकती है ।

जब कोई ऐसी चालाकियों से अवगत न हो, आध्यात्मिक आयाम का ज्ञान न हो एवं उसकी छठवीं इंद्रिय कार्यरत न हो तो वह समस्या का त्रुटिपूर्ण निदान कर सकता है कि समस्या शारीरिक अथवा मानसिक है ।

प्राय: भोजन की प्रवृत्ति धीरे-धीरे बदलती है, क्योंकि अनिष्ट शक्ति यह नहीं चाहती कि किसी को इसका संशय हो । किंतु कभी-कभी इसके विपरीत एकाएक भी खाने की वृत्ति में बदलाव आ सकता है । यदि कोई व्यक्ति सामन्यतया सादा भोजन करता है किंतु एकाएक वह मसालेदार भोजन का आग्रह करने लगे तो कारण आध्यात्मिक हो सकता है । बहुत बार ऐसा भी होता है कि कभी-कभार पूर्वज अथवा अनिष्ट शक्ति लाभ उठाकर अलग भोजन मांग सकती है ।

५.१ ऐसा क्यों होता है कि आविष्ट होते हुए भी कुछ व्यक्ति स्थूल (मोटे) नहीं होते ?

कुछ प्रकरणों में ऐसा देखा गया है कि आविष्ट व्यक्ति अत्यधिक भोजन करने पर भी स्थूल  (मोटे) नहीं होते । प्रतीक के प्रकरण में ऐसा ही हुआ क्षुधातिशयता होने पर भी उसका भार नहीं बढा । यदि अनिष्ट शक्ति पृथ्वी अथवा आप तत्त्व का उपयोग कर आविष्ट के माध्यम से भोजन ग्रहण करते हैं तब इससे प्राय: व्यक्ति का भार बढ जाता है । किंतु आविष्ट करनेवाली अनिष्ट शक्ति यदि उच्च स्तर की हो तब वह तेज तत्त्व की सहायता से आविष्ट व्यक्ति के माध्यम से भोजन ग्रहण करती है, ऐसी स्थिति में आविष्ट व्यक्ति की क्षुधातिशयता के उपरांत भी वह स्थूलता से ग्रसित नहीं होता । उच्च अनिष्ट शक्ति अपनी इच्छा के अनुसार आविष्ट करने के लिए पृथ्वी तत्त्व अथवा आप तत्त्वों का प्रयोग भी कर सकती है । किंतु यह इस बात पर निर्भर करता है कि आविष्ट करनेवाली शक्ति आविष्ट व्यक्ति को किस प्रकार से कष्ट देना चाहती है ।

६. यदि कारण आध्यात्मिक है तो क्षुधातिशयता को नियंत्रित करने के लिए क्या किया जा सकता है ?

यदि क्षुधातिशयता का कारण आध्यात्मिक है तो आध्यात्मिक उपचार पद्धतियों का प्रयोग करना ही मात्र एक उपचार है । यदि आध्यात्मिक कारण की संभावना हो तो निम्नलिखित उपचारों को अपनाना चाहिए :

  • पवित्र विभूति लगाना
  • तीर्थ का प्रोक्षण सभी खाद्य पदार्थों तथा स्वयं पर करना एवं तीर्थ प्राशन करना ।
  • क्षुधाशयितता नष्ट करने हेतु विशिष्ट प्रार्थना करना, जैसे प्रतीक ने किया ।
  • नामस्मरण त्वरित प्रारंभ करना । इसके साथ-साथ पूर्वजों के कष्ट से सुरक्षित रहने हेतु नामस्मरण करने का सुझाव दिया जाता है ।
  • यदि यह मान लिया जाए कि क्षुधातिशयता शारीरिक एवं मानसिक कारणों से है, तब भी यह मूल आध्यात्मिक कारण का प्रकटीकरण हो सकता है, ऐसे में यह सर्वोत्तम है कि शारीरिक एवं मानसिक स्तर पर उपचारों के साथ-साथ ऊपर बताए आध्यात्मिक उपचार भी किए जांए ।

उपरोक्त प्रकरण अध्ययन इस तथ्य का द्योतक है कि समस्या को अचूकता से जानना तथा त्वरित निदान की दृष्टि से सूक्ष्म-ज्ञान कितना महत्त्वपूर्ण है । प्रतीक के प्रकरण में यदि उसकी विकसित छठवीं इंद्रीय मौसी उसके घर न आई होतीं तो उसे कई वर्षों तक अत्यधिक भोजन करने के कष्ट से जूझना पडता साथ ही उसे अति सीमित लाभवाले औषधोपचार तथा मानसिक उपचार करवाते रहने पडते । इससे अतिसीमित लाभ के साथ समय, धन एवं शक्ति का अपव्यय ही होता । यह प्रकरण यह भी दर्शाता है कि नियमित साधना निम्नलिखित दृष्टि से कितनी महत्त्वपूर्ण है :

  • आध्यात्मिक कठिनाईयों से संरक्षण अथवा उसे सीमित करना ।
  • सूक्ष्मज्ञान ग्रहण कर पाना अथवा जिन्हें सूक्ष्मज्ञान प्राप्त है उनसे संपर्क कर पाना ।
  • यदि समस्या का निर्मूलन संभव है त्वरित पूर्ण उपचार प्रदान करना ।