1-HIN-Anxiety-Attacks-and-depression

हमारे पाठकों को उनकी शारीरिक अथवा मानसिक स्तर पर प्रकट होनेवाली परंतु जिनका मूल कारण आध्यात्मिक स्तर पर हो सकता है, ऐसी समस्याओं के विषय में दिशा मिले, इस हेतु SSRF ऐसे उदाहरण प्रस्तुत करता है । हमारा निरीक्षण है कि जब समस्या का मूल कारण आध्यात्मिक स्वरूप का होता है, तब आध्यात्मिक उपचारों से अच्छे परिणाम मिलते हैं । SSRF के कहेनुसार शारीरिक तथा मानसिक व्याधियों पर आध्यात्मिक उपचार पद्धतियों से उपाय करने के साथ पारंपारिक चिकित्सकीय उपचार चालू रखना आवश्यक है । पाठक अपने मतानुसार कोई भी उपचार पद्धति अपना सकते हैं ।

. चिंता पर मात करने संबंधी अध्ययन का एक उदाहरण

इस उदाहरण में एलीसन (पहचान को छिपाने के लिए नाम में परिवर्तन किया है) जहां तक उसे स्मरण है, वह चिंता, नकारात्मक विचार और निराशा से ग्रस्त थी । आध्यात्मिक साधना करने से उसे इस स्थिति से बाहर आना संभव हुआ । चिंता के प्रसंगों से बाहर आकर मानसिक स्वास्थ्य प्राप्त करने तक के अनुभवों को एलीसन ने यहां प्रस्तुत किया है ।

. पीडित बचपन

मैं SSRF के मार्गदर्शन में पिछले छः वर्षों से साधना कर रही हूं । कैथेलीक परिवार में मेरा जन्म हुआ और प्रौढावस्था में आने तक मैं ईसाई धर्मानुसार आचरण करती रही । आज मैं ३९ वर्ष की हूं और मेरे अधिकतर जीवन में मैं मध्यम से तीव्र चिंता के साथ निराशा से पीडित रही । मुझे स्पष्टरूप से स्मरण है कि जब मैं लगभग ५-६ वर्ष की बालिका थी, तब मेरे परिवार को अथवा मुझे प्रभावित करनेवाली किसी भी बात के कारण सतत मैं चिंता और अस्थिरता से पीडित रहती थी । मुझे इस बात का स्मरण है कि जब मेरी मां विलंब से घर लौटती थी, मैं खिडकी में खडी रहकर उसकी प्रतीक्षा करती थी । नकारात्मक विचारों से मेरा मन भर जाने के कारण अनिष्ट होने का भय उत्पन्न होता था; उदा. मुझसे दूर रहने से मां के साथ क्या हुआ होगा । इस भय के कारण मेरी चिंता (अकबकाहट) और भी बढती थी । अन्य कुछ प्रसंगों में मैं दृश्य देखा करती थी कि दुष्ट लोग मेरे घर में आए हैं और मुझे चोट पहुंचा रहे हैं अथवा मेरी हत्या कर रहे हैं । मैं यह भी देखा करती थी कि मेरी मां कार में हैं और वे गंभीर रूप से घायल हुई हैं अथवा उनकी मृत्यु हुई है ।

जब मेरे अभिभावक मुझे और मेरे भार्इ-बहन को आया के साथ छोडकर जाते, तब मैं घर के बाहर तक रोते हुए उनका पीछा करती और हमें छोडकर न जाने की विनती करती थी । वास्तव में वे बहुत दूर तक नहीं जाते थे, तब भी मैं रोती थी । कभी-कभी मैं अपने अभिभावकों की आर्थिक समस्याओं तथा उनमें होनेवाली अनबन संबंधी बातें सुना करती थी । उनके विवाद से मुझे घिन आकर मैं अस्वस्थ हुआ करती थी । इससे मुझे आश्चर्य लगता था कि आर्थिक समस्याओं के कारण हमारा जीवन किस प्रकार से यातनामय हो चुका था ।

टीवी पर दिखाई जानेवाली प्राकृतिक आपदाओं अथवा अणुयुद्ध चित्रित चलचित्र जैसी दुर्घटनाओं को देखकर मैं निराशा की खाई में गिर जाती । उन दृश्यों से संबंधित कर्इ सप्ताह तक निरर्थक विचार कर तथा स्वयं को उस दुर्घटना का एक भाग समझकर मुझे मेरा जीवन सदा के लिए और भी यातनाओं से भरा हुआ लगता था । जब रेडियो पर किसी तूफान की चेतावनी दी जाती थी, तब मैं तलघर में जाकर छिप जाती थी और दृश्य देखा करती थी कि मैं अपने परिवार से अलग हुई हूं और उनके बिना घर में अकेली ही मर जाऊंगी । पाठशाला में यदि कोई मुझसे नकारात्मक बातें करता था, तब उस विवाद पर शीघ्र उपाय निकलना संभव होने पर भी मेरे मन में उस विवाद पर कर्इ सप्ताह तक विचार आते थे और मैं निराश हो जाया करती थी ।

. चिंता से भरे किशोरावस्था के दिन

१३ वर्ष की आयु में जब मैं ७ वीं कक्षा में थी, अभिभावकों ने मुझे एक निजी महाविद्यालय समान एक प्रारंभिक विद्यालय में स्थानांतरित किया । मेरे आसपास अनेक गतिविधियां होने लगी । मुझमें किशोरावस्था के परिवर्तन हुए और मैं खेलकूद में रूचि लेने लगी । मेरा पाठ्यक्रम उच्च स्तर का था, इसलिए पढाई संबंधी मेरा उत्तरदायित्व भी बढ गया । विद्यालय के साथ खेलकूद होने से मैं पूरे दिन व्यस्त हुआ करती थी और मेरे उच्च विद्यालयीन जीवन समाप्त होने तक ऐसा ही चलता रहा । निकट संबंधों में मैं उलझती गई । मैं सांसारिक उद्देश्योंकी ओर खींचती जा रही थी और अब महाविद्यायीन जीवन की ओर मेरा ध्यान आकर्षित होने लगा । इस समय मेरी चिंताग्रस्त होने और उसकी कालावधि में वृद्धि हुई थी और विद्यालयीन परीक्षा के पूर्व, सामाजिक प्रसंगों में और खेल खेलने के पहले यह सर्वाधिक मात्रा में हुआ करता था । परंतु इस समय मैं समझती थी कि यह एक सामान्य बात है और यही कारण है कि मुझे ऐसी चिंताग्रस्त परिस्थितियों संबंधी किसी का परामर्श आवश्यक नहीं लगा ।

. प्रौढ युवावस्था के दिन अपनेआप पर नियंत्रण न रख पाना

जब मैं १८ वर्ष की थी, परिवार से दूर होकर विश्वविद्यालय में पढने गई । परंतु मेरी चिंता में कोई अंतर नहीं आया । चिंताग्रस्त जीवन के कारण मुझमें जी मितलाना, भूख न लगना, तीव्र अस्वस्थता और निरंतर मानसिक तनाव में रहना आदि लक्षण दिखाई देते थे । चिंता के प्रसंगों के कारणों का विवेचन करने पर मैंने पाया कि मुझमें आत्मविश्वास अल्प होना और विशेषकर अपरिचित लोंगों के साथ रहने से अच्छा न लगना, इन कारणों से यह हो रहा है । मेरे जीवन के उद्देश्य को (career)ठीक प्रकार से न चुनने का यह भी एक कारण हो सकता है । अपनी रूचिनुसार विचारपूर्वक अपने जीवन के उद्देश्य के विषय में सोचने पर भी मैं नकारात्मक विचारों मे डूब जाती थी कि मैं इसे पूरा नहीं कर पाऊंगी । लगभग इसी समय सैम के साथ मेरे संबंध बढ गए । उसके साथ डेढ वर्ष रहने के उपरांत भी चिंता के प्रसंगों में वृद्धि ही होती गई और इसका कोई निश्चित कारण समझ में नहीं आता था । क्या ये संबंध मेरे लिए ठीक नहीं थे ? जो पढाई मैं कर रही थी, क्या उसका तनाव मुझ पर था ? क्या अपने परिवार से दूर रहने के कारण यह हो रहा था ?

मेरा स्वयं पर नियंत्रण छूटता जा रहा था, इसलिए मैंने समुपदेशकों (counsellor) और मनोवैज्ञानिकों से सहायता ली । समुपदेशकों से बातचीत करने पर मेरी चिंताएं कम हो जातीं और मुझे हल्का लगता था, परंतु यह शांति कुछ दिनों तक ही रहती थी । सैम के ऐसे कहने पर कि, हमें कुछ समय के लिए एक-दूसरे से दूर होना चाहिए, स्थिति और बिगड गई । एक-दूसरे से दूर होने से मेरा स्वयं पर नियंत्रण शीघ्रता से छूटता गया और मैं गर्त में चली गई । मेरा आत्म सम्मान पूर्णतः टूट गया । जी मितलाने के कारण मैं कुछ खा नहीं पा रही थी और इससे मेरा भार १० पौण्ड घट गया । प्रतिदिन बिस्तर से उठकर विद्यालय जाने के लिए संघर्ष करती । मुझे अपने ही बारे में नकारात्मक विचार आते थे और मेरा जीवन बार-बार मुझ से पूछता था कि मैं क्यों जी रही हूं ।

इन संवेदनाओं से मुक्ति और छुटकारा पाने के लिए तथा मेरे प्रश्नों के उत्तर पाने के लिए मैं बार-बार चर्च में जाकर बैठती थी और प्रार्थना करती थी । मेरी चिंता और निराशा दूर होने के लिए और पुनः मेरा जीवन सामान्य हो जाने के लिए मैं ईश्वर से गिडगिडाकर प्रार्थना करती थी । परंतु मेरी कोई सहायता नहीं हो रही थी । मैंने अपने आपको समझाया कि मैं तथा मेरा संसार परिपूर्ण होना ही चाहिए, मैं अपनी भावनाओंको समेटकर और अपनी चिंताओं के साथ, जो मुझे खींचती रहती थी, कष्टपूर्वक मार्गक्रमण करती रही ।

स्नातक पूर्व पढाई पूर्ण होने पर, जब मैं स्नातकीय पढाई के लिए नहीं जा पाई; मुझे लगा कि मुझे मेरी गहरी चिंताओं पर समाधान मिल गया है । इससे मुझे लगा कि मुझे अब इस भागदौड भरे जीवन से हट जाना चाहिए और अच्छे ध्येय एवं नौकरी के पीछे नहीं पडना चाहिए । मैंने निश्चय किया कि मैं किसी पर्वत पर जाकर बैंठू, जहां मुझे कोई दायित्व नहीं रहेगा, सांसारिक बाधाएं नहीं रहेंगी और न ही इस विश्व में कुछ बनने का सामाजिक दबाव । मेरे आसपास प्राकृति की शांति होगी, जहां मैं तनाव से मुक्त रह पाऊंगी । २४ वर्ष परिपक्व आयु में सब समेटकर मैं पहाडों में चल पडी । मुझे एक तनावमुक्त काम मिला और मेरा रिक्त समय स्कीईंग और आसपास के पर्वतों में घूमने में व्यतीत होने लगा, जो कि एक आनन्दमय अनुभव था । मुझे अधिक धन की आवश्यकता नहीं थी, अत्यल्प वस्तुएं साथ थीं और मेरे पास स्वयं के लिए अधिक समय था । इन ८ महिनों में मुझे जीवन बहुत ही अच्छा लगा ।

नए अवसर आने लगे । मेरे काम में मुझे आगे का पद मिला और मेरा दायित्व बढ गया । जेसन के साथ मेरे अच्छे संबंध जुड गए । परिणामस्वरूप जीवन में सांसारिक आवश्यकताएं बढने लगी । इस नए काम के और मेरे नए संबंध के विषय में यह सोचकर चिंताग्रस्त रहती कि ये मेरे लिए योग्य है अथवा नहीं । मैंने अपनेआप से पूछा कि मैं इस पहाडी में छिपकर क्यों बैठी हूं और जीवन में और कुछ क्यों नहीं कर रही हूं । पुनः एक बार मैं चिंताग्रस्त और निराशाग्रस्त होने लगी । इस पर मात करने के लिए स्कीईंग की लम्बी यात्रा पर जाती थी और वृक्ष, आकाश एवं हिम आदि से मेरे प्रश्नों का उत्तर पाने का प्रयत्न करती थी । सांसारिक विश्व से इतने दूर, इतने सुंदर और शांत स्थान पर होने पर भी मैं चिंताग्रस्त और निराशाग्रस्त क्यों हूं ? कब और कहां मुझे आनंद और सं तोष मिलेगा ? इस स्थिति में परिवर्तन लाने के लिए मुझे लगा कि मुझे पुनः इससे हटकर संसार में जाकर कुछ अर्थपूर्ण काम करना होगा । अंत में मैंने डॉक्टरेट के लिए आवेदन दिया और अपनी शिक्षा पूर्ण करने और नया ध्येय आरंभ करने के लिए पुनः संसार में लौट आई ।

. विवाह तथा विवाहोत्तर जीवनसंबंधी समस्याएं

२५ वर्ष की आयु में मैंने डॉक्टरेट की पढाई गंभीरता से आरंभ की । समय आने पर जेसन, जिससे मैं पहाडों के वास्तव्य के समय मिला करती थी, उसके साथ मेरा विवाह भी निश्चित हुआ । शीघ्र ही हमने विवाह किया, घर खरीदा और भूमि खरीदी और मिलकर कृषि-उत्पाद का छोटा व्यवसाय भी आरंभ किया । उस वर्ष चिंता की संवेदनाएं और उसके शारीरिक परिणाम तीव्र ही रहे । चिंतायुक्त विचार आते ही रहे । मेरा भार बहुत घट गया। प्रतिदिन हैजा जैसा होता और मुझे बहुत प्रयत्नपूर्वक भोजन करना पडता था । जब मैं पढाई नहीं करती थी, तब पढाई नहीं हो रही है, इस कारण से मेरी चिंता बढती थी । परीक्षा में अच्छी श्रेणी मिले और अपने सहयोगियों के साथ स्पर्धा कर सकूं, इसकी मुझे चिंता होती थी । योग्य व्यक्ति से मैंने विवाह किया है अथवा नहीं, गृहस्थी के साथ पढाई करना क्या संभव होगा, इस चिंता से मेरी चिडचिडाहट होती थी । इस प्रकार के विचारों से मेरा मन पूरा दिन घिरा रहता था । इन विचारों का कोई उत्तर अथवा समाधान न होने से मैं धीरे-धीरे निराशाग्रस्त होने लगी । इसी के साथ मैं यह भी सोचने लगी कि मुझे कैंसर जैसी अथवा अन्य कुछ असाध्य शारीरिक व्याधि हुई है । प्रत्यक्ष में मैं अपना ही समर्थन करने लगी कि पढाई पूर्ण करने के साथ वैवाहिक जीवन, गृहस्थी और व्यवसाय इत्यादि की तुलना में कोई असाध्य व्याधि होना ही उचित होगा । इन विचारों के कारण मैं नकारात्मकता की और भी गहरी खार्इ में जाकर भयंकर निराशा में चली जाती थी ।

अपने धर्म पर से मेरा विश्वास उठ गया, मैंने चर्च में जाना बंद किया और अपनेआप को कभी प्रार्थना करते हुए अथवा भगवान से बातें करते हुए बहुत कम ही पाया । मैंने दैनिक जीवन ऐसा रखा, मानो परिस्थिति पूर्णतः मेरे नियंत्रण में हो । आगे के वर्ष मेरी पढाई और वैवाहिक जीवन की दृष्टि से अत्यन्त संघर्षमय रहे । जीवन की प्रत्येक बात पर मैं और मेरे पति दोनों सदैव लडते ही रहे । लडाई करना मेरा स्वभाव ही नहीं था । मैं सदैव ही एक बच्चे समान शर्मिली और शांत स्वभाव की थी । मेरा बचपन भी ऐसे परिवार में बीता था, जहां केवल प्रेम ही था और लडाई करने और प्रतिवाद करने का किसी पर संस्कार ही नहीं था । मुझे लगता कि लडार्इ का कारण मेरे पति ही हैं और ऐसा भी लगता था कि मेरे क्रोधित होने में वह और उसकी अपनी समस्याएं ही कारणीभूत हैं । मैं विवाह का बलि चढ गर्इ हूं, ऐसा मुझे लगने लगा । हम एक-दूसरे से अलग हुए, हमें पता ही नहीं था कि हम एक-दूसरे से एक व्यक्ति के रूप में क्या अपेक्षा रखते हैं; परंतु एक बात सत्य थी कि यह अन्यों की भांति नहीं था । ४ वर्ष उपरान्त डॉक्टरेट की पदवी प्राप्त होने पर, मेरी महत्त्वाकांक्षा बढने लगी और मेरा वैवाहिक जीवन टूट गया । हम एक-दूसरे से अलग हो गए और जीवन में पहली बार मैंने मनोविकार विशेषज्ञ से परामर्श लिया । मैं उनके पास प्रत्येक सप्ताह जाती थी और बताती रहती थी मेरा पति किस प्रकार की चूकें करता था और मैं उससे निराश हो जाती थी । मैं अपनी चिंता और निराशा संबंधी बाते करने लगी । समुपदेशक ने मुझसे अपने पारिवारिक जीवन संबंधी पूछताछ की । मेरे दादाजी, पिताजी और चाचा तीनों चिंता और निराशा की व्याधि से ग्रस्त थे । इससे मुझे लगा कि मेरी चिंता और निराशा का कारण अंशतः अनुवांशिकता के कारण से है । भूतकाल के विषय में अधिक विवेचन करने पर पता चला कि मेरे मस्तिष्क में संभवतः कुछ स्थूल समस्या थी । मनोविकार विशेषज्ञ का मत था कि आवश्यक रासायनिक घटक न होने से मेरा मस्तिष्क ठीक प्रकार से कार्य नहीं कर रहा है । मुझे निराशा न्यून करनेवाली औषधियां दी गई । परंतु उन पर निर्भरता उत्पन्न होने की आशंका होने के कारण मैंने त्वरित अस्वीकार कर दिया ।

एक-दूसरे से अलग होने पर मेरे पति ने मेरे साथ वैवाहिक समुपदेशक के पास मेरे साथ जाना स्वीकार किया । सत्र में उपस्थित रहने के उपरांत किसी दूसरे की उपस्थिति में हम दोनों की समस्याओं पर चर्चा करने से मुझे कुछ हल्का-सा लगने लगा । मेरे पति को भी निराशा न्यून करनेवाली औषधियां लेने के लिए बताया गया और जिसके लिए उसने स्वीकृति दी । अगले एक वर्ष तक उसने औषधियां ली । कभी-कभी वह अचानक से अपनी इच्छानुसार औषधियां बंद करता था और पुनः आरंभ करता था । इससे हमारे वैवाहिक जीवन में संघर्ष अधिक बढ गया और हम सदा के लिए एक-दूसरे से अलग हो गए ।

५ वर्षों के इस वैवाहिक जीवन का अंत होने से ३० वर्ष की आयु में ही मैं सदा के लिए निराशा में चली गई । मैं एक नए जीवनक्रम में स्वयं को लगाकर इस पर मात कर सकती थी । मैंने अपना समुपदेशन प्रति सप्ताह चालू रखा । इसके परिणामस्वरूप चिंता और निराशा न्यून करनेवाली औषधियां लेना मैंने आंरभ किया । जब मेरी समझ में आता कि जीवन की चुनौतियों का मैं ठीक से सामना नहीं कर पाती हूं, तब मुझे मेरी औषधियों की मात्रा बढाने के लिए कहा गया । परिणामस्वरूप तीसरे वर्ष के अंत में मेरी औषधियों की मात्रा तीन गुनी हो गई ।

औषधियों के कारण मुझे असहाय करनेवाली चिंता कुछ मात्रा में न्यून होने पर भी मुझे कुछ न्यूनता की भावना आती थी । इस पूरी कालावधि में मेरी श्रद्धा न्यून हो चुकी थी और मैं ईश्वर के साथ अपना सान्निध्य पुनः प्रस्थापित करना चाहती थी । मैं दूरभाष सूची (टेलीफोन डिरेक्टरी) के पीले पृष्ठ पलटने लगी और चर्च का खंड सामने आया । मैं किसी भी चर्च के नाम पर उंगली रखती और अगले रविवार को उस चर्च में जाने के लिए अपनेआप को प्रयत्नपूर्वक सिद्ध करती थी । कुछ ही दिनों में पीले पृष्ठ लाल रंग की रेखाओं से भर गए । जो चर्च मुझे योग्य नहीं लगते थे, उनके नाम मैं लाल रंग से काट देती थी । ईश्वर को पुनः कैसे प्राप्त किया जाए, इस विषय में मेरे अनेक प्रश्न थे; परंतु किसी भी चर्च द्वारा मुझे उनका उत्तर नहीं मिल पाया । मेरी अलमारी स्वयं की सहायता के मार्गदर्शन करनेवाली पुस्तकों से भर गई । जब मैं उन्हें पढती तो कुछ पुस्तकें मुझे सप्ताहभर के लिए प्रोत्साहित और कार्यरत रखती थीं ।

अन्त में मैं इवान्जेलीकल चर्च में नियमितरूप से जाने लगी और बाईबल का अध्ययन करनेवाले एक गुट के साथ रहने लगी । ३३ वर्ष की आयु में एक व्यक्ति के साथ मेरे संबंध जुड गए । वह व्यक्ति भी उस चर्च में आता था । इस नए चर्च की कुछ श्रद्धाओं संबंधी मेरे मन में कुछ प्रश्न थे, क्योंकि मुझे वे कुछ विचित्र लगती थी । परिणामस्वरूप इस गुट के साथ मेरे विचारों का आदान-प्रदान करने में मुझे अडचन आने लगी । मुझे जो चाहिए उस पर बल देने के कारण मेरे नए संबंध में भी उतार-चढाव आने लगे । यह बात और गंभीर होने पर मेरे ध्यान में आया कि मेरे भूतकालीन वैवाहिक जीवन की भांति मैं उन्हीं प्रश्नों में उलझती जा रही हूं । इस समय मुझे भान हुआ कि यह बार-बार न हो, इसलिए मुझे अपने में ही परिवर्तन लाना चाहिए ।

६. परिवर्तन की घडीचिंता और निराशा पर मात

१६ से २० वर्ष की आयु में अपनेआप को सुरक्षित रखने के लिए मैं योगाभ्यास करती थी । शारीरिक लाभों के लिए मैंने योगाभ्यास किया था; परंतु मेरे ध्यान में आया था कि वह कुछ मात्रा में मेरी चिंता भी न्यून करता था । यद्यपि मैंने इसका अभ्यास प्रतिदिन नहीं किया था, तबसे मैंने वैसा निश्चय किया । इस नए अभ्यासवर्ग और उसके प्रशिक्षक के माध्यम से मेरा परिचय SSRF से हुआ । एक दिन जब मैं अकेली ही विद्यार्थी थी, तब मैंने इस नए प्रशिक्षक से, जो कि SSRF के मार्गदर्शनानुसार साधना करते थे; अपने मन की बात कही । मैंने उन्हें बताया कि कई वर्षों से मैं अपनेआप को ईश्वर से दूर अनुभव कर रही हूं । मेरे प्रशिक्षक ने शांति से कहा, क्या तुम्हें ऐसा लगता है कि ईश्वर तुमसे पुनः कोई संबंध नहीं रखना चाहते हैं ? उसी दिन से मैंने SSRF के मार्गदर्शनानुसार अपनी साधना आरंभ की । मेरे प्रशिक्षक ने मुझे उनकी पत्नी से मिलनेका अनुरोध किया, क्योंकि उन्हें लगता था कि उनकी पत्नी आध्यात्मिक प्रश्नों का समाधान उनकी तुलना में अच्छे से कर पाएगीं । धर्म और अध्यात्म संबंधी मुझे जो शंकाएं थी तथा वर्षों तक मैं जो चिंता और निराशा से ग्रस्त थी इसका समाधान प्राप्त करने के लिए हम बार-बार मिलने लगे और चर्चाएं होती रही । हमने साप्ताहिक सत्संग आरंभ किया और मैं SSRF के जालस्थल पर रखी सभी जानकारी का अध्ययन करने लगी ।

. नियमित साधना और सकारात्मक परिवर्तन

जीवन में प्रथम बार मैं SSRF के मार्गदर्शनानुसार प्रतिदिन साधना करने लगी । मैंने भगवान का नामजप आरंभ किया और भाव वृद्धि के लिए दिनभर प्रार्थना करती । साधना के रूप में अहं निर्मूलन और स्वभावदोष निर्मूलन के प्रयत्न मैंने आरंभ किए । दिनभर में हुई चूकें मैं लिखने लगी । इन चूकों पर उचित कृत्य कौनसा करना अपेक्षित है यह समझकर स्वयंसूचनाएं भी बनाने लगी जिसके परिणामस्वरूप वहीं चूकें होने बंद हुए । इसी के साथ मैं SSRF द्वारा बताए नमक पानी के उपायों समान आध्यात्मिक उपाय भी करने लगी ।

मेरी चिंता और निराशा आध्यात्मिक कारणवश है, मस्तिष्क को चोट आने से नहीं; ऐसी अन्तर्दृष्टि मुझे प्राप्त हुई ।

SSRF के मार्गदर्शनानुसार साधना आरंभ करने पर एक वर्ष में ही संजोगवश मेरे जीवन में अच्छा परिवर्तन आने लगा । मैंने पुनर्विवाह किया, अर्धकालीन नौकरी आरंभ की । मुझे एक बच्चा हुआ और प्रतिदिन की साधना मेरे जीवन का एक आधार-सी बन गई । जीवन संघर्षमय होने पर भी चिंता के प्रसंग न्यून होने लगे । निराशा के प्रसंग भी न्यून हुए और उनकी बारंबारता भी न्यून हुई । निरर्थक विचार और चिंता पहले सप्ताहभर रहते थे, अब कुछ दिनों से लेकर कुछ घंटे तक रहने लगे ।

उदा. पहले मैं जब कोई बडी चूक करती थी, तब पूरी तरह टूट जाती थी । इस चूक पर मैं मन में बार-बार सोचती रहती थी और परिणामों के विषय में अनावश्यक और निरर्थक विचार करती रहती थी । अपने बारे में नकारात्मक विचार कर निराशा की स्थिति में जाती थी । परंतु SSRF के मार्गदर्शनानुसार नियमित साधना आरंभ करने पर जीवन की समस्याओं पर मात करने की मेरी पद्धति में अच्छे सुधार हुए । कार्यालय में हुई बडी चूकें स्वीकार करने की वृत्ति में बहुत सुधार हुआ है और ऐसा न हो इसलिए अगली बार बडी लगन से प्रयत्न भी करती हूं । अभी भी कुछ मात्रा में मैं चूकों के विषय में निरर्थक विचार करती हूं, परंतु पूर्व के जैसे कुछ दिनों तक अथवा सप्ताहों तक नहीं । इस चूक पर मानसिक तथा आध्यात्मिक स्तर पर मात करने के लिए और वह पुनः न हो, इसलिए क्या करना होगा, इसका ज्ञान अब मुझे हुआ है; जिससे कि हडबडा जाने की अपेक्षा मेरी आशाएं बढकर इस स्थिति में भी शांत रहना संभव होने लगा है । परिस्थिति के विषय में नकारात्मक और निरर्थक विचार करने की अपेक्षा परिस्थिति को स्वीकार कर ईश्वर मुझे इससे क्या सिखाना चाहते हैं; यह दृष्टिकोण रखना मुझे संभव होने लगा है । मेरी पूर्व की नकारात्मक स्थिति से मुक्त होने के लिए मैं यही चाहती थी ।

आध्यात्मिक साधन अब मेरी चिंता न्यून करनेवाली औषधियां बन गए हैं । मेरी साधना और ईश्वर की कृपा के कारण मेरी औषधियों की मात्रा कुछ महिनों में धीरे-धीरे घट कर उन्हें पूर्णतः बंद करना संभव हो पाया । इससे मेरे पति के साथ मेरे संबंध में भी सुधार हुए । मेरे पति के साथ रहे मतभेदों को मैं स्वीकार कर पा रही हूं । हमारे मतभेंदों से मैं सीखने की स्थिति में रहती हूं और समझ पाती हूं कि किसी कारणवश संबंध परिपूर्ण नहीं होते । मेरी प्रतिक्रिया देने की वृत्ति, निष्कर्ष निकालने की वृत्ति और लोगों को स्वीकारने की वृत्ति में हुआ परिवर्तन मेरे पति के भी ध्यान में आया है । मेरी महत्त्वाकांक्षा, जिसके प्रति मुझे प्रेम था, अब वह मेरे लिए सबकुछ नहीं रही । इसका उपयोग मैं दूसरों की सहायता के लिए करती हूं क्योंकि मेरी भी किसी ने सहायता की है । यह मेरी साधना का एक अंग है, जिसमें होनेवाले प्रसंगों का उपयोग आध्यात्मिक प्रगति के लिए करती हूं ।

आरंभ में चिंता न्यून करनेवाली औषधियां बंद करने का मुझे तनाव आता था, क्योंकि वर्षों तक जिस चिंता और निराशा के साथ मैंने संघर्ष किया था, उसका ये आधार बन चुकी थी । साधना करने से मुझे उच्च स्तर का आनंद, मनःशांति और मानसिक स्वास्थ्य अनुभव करना संभव हुआ, जो मैंने औषधियां आरंभ करने से पूर्व कभी अनुभव नहीं किया था । क्या आज भी नकारात्मक विचार, चिंता के प्रसंग, निराशाजनक विचार और भ्रम मेरे मन को घेरते नहीं है ? हां, घेरते हैं । परंतु मुख्य अंतर यह है कि आज मैं SSRF द्वारा सिखाए विविध तकनीक त्वरित कृति में लाती हूं और उनकी तीव्रता अल्प समय में ही न्यून हो जाती है ।

. SSRF की टिप्पणियां

चिंतायुक्त प्रसंगों से भरा एलीसन का जीवन एक सामान्य घटना है । यद्यपि एलीसन जितना नहीं, किन्तु कुछ मात्रा में समाज के कई लोगों को चिंतायुक्त प्रसंगों का सामना करना पडता है ।

SSRF में हमने मानसिक व्याधियों के विषयमें अनेक प्रकरणों में आध्यात्मिक शोध किया है । कई प्रकरणों में मानसिक स्तर की समस्याओं का मूल कारण मानसिक स्तर पर नहीं किंतु आध्यात्मिक स्तर पर पाया गया है । आध्यात्मिक कारणों में भी अनेक लोगों में यह अधिकतर मृत पूर्वजों के कारण पाया गया है ।

इन समस्याओं पर मात करने के लिए SSRF के अनुरोध के अनुसार निम्न कृत्य आरंभ करें :

  • भगवान श्री दत्तात्रेय का नामजप करना
  • हमारे आप की आध्यात्मिक यात्रा आरंभ करें, इस खंड के अनुसार नियमित साधना करना
  • नमक पानी के उपाय, SSRF द्वारा निर्मित SSRF अगरबत्ती जलाने जैसे आध्यात्मिक उपाय करने से आध्यात्मिक समस्याएं न्यून होने में सहायता होती है और वायुमंडल भी आध्यात्मिक दृष्टि से शुद्ध हो जाता है ।

प्रतिदिन प्रामाणिकता से साधना करने और सात्त्विक जीवन पद्धति अपनाने से हमारा मन बलवान होता है और जिस प्रकार एलीसन को छुटकारा मिला उसकी भांति आध्यात्मिक विश्व के हानिप्रद घटकों से हमें सुरक्षा प्राप्त होती है ।