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1. प्रस्तावना

जब हमारे दादा अथवा पिता का जन्म हुआ था, उस समय के विश्व से वर्तमान विश्व का स्वरूप अत्यधिक भिन्न है । संभवतः सभी परिवर्तनों में से सर्वाधिक मुख्य परिवर्तन है पूरे विश्व में बढता प्रदूषण, जिसके परिणामस्वरूप हरितगृह गैसों (ग्रीन हाऊस गैस) के उत्सर्जन में तथा अन्य हानिकारक प्रभावों में वृद्धि हो गई है । जब भी हम प्रदूषण की बात करते हैं, तो सामान्यतः हम वायु प्रदूषण, जल प्रदूषण, ध्वनि प्रदूषण, भोजन प्रदूषण और भूमि प्रदूषण के विषय में विचार करते हैं । हमने अपने लेख प्राकृतिक आपदाएं एवं जलवायु परिवर्तन में बताया है कि मौसम के अस्वाभाविक स्वरूप का कारण, मानवजाति का प्रकृति पर प्रभाव है । तथापि यह मानव द्वारा की गई भौतिक स्तर की उपेक्षा तक ही सीमित नहीं है; अपितु उनके द्वारा वायुमंडल में उत्सर्जित मानसिक तथा आध्यात्मिक प्रदूषण भी इसका कारण है । मानसिक प्रदूषण लोगों के नकारात्मक विचार जैसे – लालच, धोखा, घृणा, विनाश हेतु योजना बनाना इत्यादि के कारण होता है । यह मानसिक प्रदूषण वातावरण में प्रसारित होता है, इसिलए यह हमारे हमारे मन के नकारात्मक विचारों को बढानेवाला वातावरण बना देता है । इससे नकारात्मकता का चक्र चल पडता है जिसके मूल में मानवजाति में बढा रज-तम का आध्यात्मिक प्रदूषण होता है । तकनीकों के नवीनतम विकास से सामूहिक विनाश करनेवाले जैविक तथा नाभिकीय शस्त्रों और साथ में मानवजाति तथा मानसिक प्रदूषण में बढे रज-तम की चुनौती हमारी ओर मुंह बाए खडी है । जैविक तथा नाभिकीय आक्रमण का परिणाम मानवजीवन तथा विश्व की स्थिरता के लिए विध्वंसकारी होगा ।

2. अग्निहोत्र क्या है ?

वर्तमान में सम्पूर्ण विश्व इस प्रकार के भौतिक प्रदूषण पर शीघ्रता पूर्वक रोक लगाने हेतु उपाय ढूंढने हेतु प्रयत्नशील है । पवित्र अथर्ववेद (११:७:९) में एक सरल धार्मिक विधि का उल्लेख है । जिसका विस्तृत वर्णन यजुर्वेद संहिता और शतपथ ब्राह्मण (१२:४:१) में है । इससे प्रदूषण में कमी आएगी तथा वातावरण भी आध्यात्मिक रूप से शुद्ध होगा । जो व्यक्ति इस पवित्र अग्निहोत्र विधि करते हैं वे बताते हैं कि इससे तनाव कम होता है, शक्ति बढती है, तथा मानव को अधिक स्नेही बनाती है । इसे मद्यपान तथा मादक पदार्थों के व्यसन से मुक्त करवाने का एक अच्छा साधन माना जाता है । ऐसा माना जाता है कि अग्निहोत्र पौधों में जीवना शक्ति का पोषण करता है तथा हानिकारक विकिरण और रोगजनक जीवाणुओं को उदासीन बनाता है । जल संसाधनों की शुद्धि हेतु भी इसका उपयोग किया जा सकता है । ऐसा माना जाता है कि यह नाभिकीय विकिरण के दुष्प्रभावों को भी न्यून कर सकता है ।

3. अग्निहोत्र संस्कार पर आध्यात्मिक शोध

स्पिरिच्युअल साइन्स रिसर्च फाऊंडेशन द्वारा अग्निहोत्र संस्कार पर आध्यात्मिक शोध किया गया । इस शोध से प्राप्त जानकारी इंटरनेट पर पूर्व से ही उपलब्ध अग्निहोत्र के लाभ एवं व्याप्ति की जानकारी के पूरक है । संदर्भ हेतु नीचे दिए गए लेख में आध्यात्मिक शोध संबंधी और जानकारी उपलब्ध है ।

क्या अग्निहोत्र नाभिकीय विकिरण को रोक सकता है ?