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विषय सूची

१. प्रयोग की पृष्ठभूमि

लोग किस प्रकार एक दूसरे के साथ व्यवहार करते समय प्रभावित होते हैं, SSRF ने यह समझाने के लिए कई प्रयोग किए हैं । इन प्रयोगों का मुख्य उद्देश्य यह समझना है कि किस प्रकार आध्यात्मिक स्तर पर लोग एक दूसरे को प्रभावित कर सकते हैं, जिसके परिणामस्वरूप लोग शारीरिक एवं / अथवा मानसिक स्तर पर प्रभावित होते हैं । लोग आपस में व्यवहार करते समय किस प्रकार एक दूसरे को प्रभावित करते हैं, यह प्रायः व्यवहार में सम्मिलित लोगों के आध्यात्मिक स्तर पर एवं इस बात पर निर्भर करता है कि वे अनिष्ट शक्तियों से प्रभावित, आविष्ट अथवा अप्रभावित हैं। नीचे हमने विभिन्न लोगों के बीच हुए आपसी व्यवहारके प्रभाव के कुछ उदाहरण दिए हैं :

१. एक संत का अनिष्ट शक्तियों द्वारा आविष्ट अथवा प्रभावित व्यक्ति पर आध्यात्मिक उपचार के रूप में सकारात्मक प्रभाव पडता हैI ।

२. दो अनिष्ट शक्ति से आविष्ट लोग एक दूसरे के मध्य नकारात्मक शक्ति का हस्तांतरण कर सकते हैं एवं आविष्ट करनेवाली अनिष्ट शक्ति के प्रभाव में और वृद्धि कर सकते हैं ।

३. एक अनिष्ट शक्ति द्वारा आविष्ट गर्भवती स्त्री का गर्भस्थ शिशु यदि सात्विक एवं उच्च आध्यात्मिक स्तर का हो , तो इस प्रकार का सात्विक शिशु गर्भ में होने के कारण वह स्त्री उपचार का प्रभाव अनुभव करेगी ।

४. जो व्यक्ति अनिष्ट शक्तियों से प्रभावित नहीं है, यदि वह आविष्ट व्यक्ति के साथ संभोग करता है, तब अप्रभावित व्यक्ति को आध्यात्मिक स्तर पर हानि हो सकती है ।

उपर्युक्त उदाहरणों के समान, प्रतिदिन हम परिचित अथवा अपरिचित लोगों से संवाद करते हैं । अधिकतर लोगों के पास यह समझने की सूक्ष्म समझ नहीं होती कि जिसके साथ वह पारस्परिक व्यवहार करते हैं, वह अनिष्ट शक्तियों से प्रभावित है अथवा नहीं ।

किसी व्यक्ति के साथ ‘पारस्परिक व्यवहार’ (इंटरेक्शन) निम्न परिदृश्यों को सम्मिलित करता है :

  • व्यक्ति के आसपास रहना
  • अन्य व्यक्ति के कपडे पहनना
  • एक दूसरे की ओर देखना
  • एक दूसरे से वार्तालाप करना
  • एक दूसरे को स्पर्श करना जिसके अंतर्गत हाथ मिलाना, आलिंगन अथवा चुंबन आते हैं ।
  • इसके अंतर्गत व्यक्ति को दूरदर्शन पर देखना, चलचित्र में अथवा व्यक्ति के चित्र देखना भी सम्मिलित है ।

२. आविष्ट व्यक्ति पर संत के प्रभाव का परीक्षण करने के लिए प्रयोग का ढांचा

आध्यात्मिक स्तर : यदि हम र्इश्वर से साक्षात्कार हुए व्यक्ति का आध्यात्मिक स्तर १०० प्रतिशत मानें, तो वर्त्तमान समय में सामान्य व्यक्ति का औसत आध्यात्मिक स्तर २० प्रतिशत है । विश्व की ९० प्रतिशत जनसंख्या का आध्यात्मिक स्तर ३५ प्रतिशत से अल्प है । संतत्त्व की प्राप्ति हेतु न्यूनत्तम ७० प्रतिशत आध्यात्मिक स्तर होना अनिवार्य है ।

वर्ष २००९ के प्रारंभ में  दो लोग SSRF के आध्यात्मिक शोध केंद्र में विदेश से आए थे । केंद्र में आने के ४८ घंटो के भीतर, हमने उनमें से एक को एक प्रयोग में भाग लेने के लिए कहा जिसमें संत के किसी अन्य व्यक्ति के साथ वार्तालाप करने पर क्या प्रभाव होता है, इसका परीक्षण करना था । प्रयोग से पूर्व व्यक्ति को प्रयोग के स्वरूप के विषय में नहीं पता था ।

प्रयोग में भाग लेने वाले व्यक्ति के विषय में कुछ मुख्य बिंदु निम्नानुसार हैं । वह व्यक्ति :

१. उत्तरी अमरीका में रहता था ।

२. आश्रम में मित्र द्वारा आमंत्रित किए जाने से पूर्व SSRF के विषय में नहीं जानता था ।

३. किसी भी प्रकार की नियमित साधना नहीं कर रहा थाI ।

४. आध्यात्मिक शोध केंद्र में उसने ४८ घंटो से भी अल्प समय व्यतीत किया था एवं परिसर में रहनेवाले संतों से अनभिज्ञ थाI । सत्सेवा एवं आश्रम में किए जा रहे आध्यात्मिक शोध की समझ न्यून थी ।

५. सूक्ष्म की कुछ समझ थी ।

६. एक रेकी उपचारक था ।

७. उच्च स्तर की अनिष्ट शक्ति से आविष्ट था परंतु उस समय इससे अनभिज्ञ थाI । आविष्ट करनेवाली शक्ति ने व्यक्ति के नीचे के तीन चक्रों को अर्थात मणिपुर चक्र, स्वाधिष्ठान चक्र एवं मूलाधार चक्र को अपने नियंत्रण में कर लिया था । यह ज्ञान उच्च स्तरीय सूक्ष्म सामर्थ्य युक्त साधक की छठवीं ज्ञानेंद्रिय के माध्यम से आध्यात्मिक शोध द्वारा प्राप्त हुआ ।

संक्षेप में, SSRF के साथ कोई पूर्व संबंध न होने के कारण, प्रयोग के लिए वह व्यक्ति एक उपयुक्त प्रयोज्य (subject) था क्योंकि संत की उपस्थिति से (जैसे सामनेवाले व्यक्ति संत हैं, इसकी जानकारी हो ने के कारण प्रसन्नता अनुभव करना) उस पर पडने वाले किसी भी मनोवैज्ञानिक प्रभाव की संभावना को टाला जा सके। 

प्रयोग का ढांचा 

इस प्रयोग के लिए, हमने प्रयोज्य (व्यक्ति) के कुंडलिनी चक्र पर संत के प्रभाव का अध्ययन करने के लिए बायोफीडबैक यंत्र का प्रयोग कियाI । हमने जिनका अध्ययन किया वे पहलू थे :

  • संत के सान्निध्य में रहना
  • संत को देखना एवं
  • संत से बातचीत करना

३. इस प्रकार के प्रयोग का महत्त्व एवं प्रासंगिकता

आध्यात्मिक शोध द्वारा हमें यह ज्ञात हुआ कि विश्व की ३० प्रतिशत जनसंख्या अनिष्ट शक्तियों से आविष्ट है एवं अन्य ५० प्रतिशत उनसे प्रभावित है । अनिष्ट शक्तियों द्वारा प्रभावित लोगों को विशेष रूप से आध्यात्मिक उपचार अथवा कुछ आध्यात्मिक रूप से सकारात्मक ऊर्जा की आवश्यकता होती है जो साधना से प्राप्त हो सकती है । पृथ्वी पर संत र्इश्वरीय चैतन्य का दीपस्तंभ हैं । संतों के सकारात्मक प्रभाव को समझकर व्यक्ति यह निर्णय लेने में भली प्रकार से सक्षम होंगे कि किस प्रकार के पारस्परिक व्यवहारों को उन्हें प्रधानता देनी चाहिएI ।

४. आविष्ट व्यक्ति पर हुए प्रभाव के परीक्षण का प्रयोग

४.१ चरण १: दिन ९:४४ पर मूलभूत निरीक्षण (बेसलार्इन रीडिंग) प्रविष्ट किया गया

प्रयोज्य (subject) का मूलभूत निरीक्षण (बेसलार्इन रीडिंग) लिया गया I नीचे दिए गए दंडालेख (graph) में, परिणाम दर्शाए गए हैं I बाएं से दाएं तक मस्तिष्क के शीर्ष स्थित सहस्रार चक्र से लेकर रीढ के मूल में स्थित मूलाधार चक्र तक जो पाठ्यांक प्राप्त हुए उन्हें दर्शाता है । जैसा कि आप देख सकते हैं पाठ्यांक लक्षणीय रूप से नकारात्मक हैं ।

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सूक्ष्म स्तर पर क्या हुआ ?

आध्यात्मिक शोध से हमें ज्ञात हुआ कि प्रयोज्य (subject) को आविष्ट करनेवाली अनिष्ट शक्ति ने अपना स्थान नीचे के तीन चक्रों से ऊपर के चार चक्रों में बदल लिया और अत्यधिक मात्रा में अनिष्ट शक्ति एकत्रित कर दी । व्यक्ति में विद्यमान अनिष्ट शक्ति ने संत की सात्विक शक्ति का सामना करने की तैयारी में ये सब किया था । अपनी सिद्धियों के कारण आविष्ट करनेवाली अनिष्ट शक्ति को प्रयोग के विषय में पहले से पता था । परिणामस्वरूप, मूलभूत पाठ्यांक लेते समय, नीचे के ३ चक्रों की तुलना में ऊपर के चार चक्रों में अधिक नकारात्मक पाठ्यांक देखा गया I

४.२ चरण २: संत के कक्ष में प्रवेश करने के पश्चात दिन ९:४४ पर पाठ्यांक प्रविष्ट किया गया

मूलभूत पाठ्यांक प्रविष्ट करने के पश्चात, हमने उन संत को कक्ष में प्रवेश करने के लिए कहा । प्रयोज्य (व्यक्ति) संत की उपस्थिति से अनभिज्ञ था एवं इस बात से भी अनभिज्ञ था की प्रवेश करने वाले व्यक्ति संत हैं I तब भी, डी.डी.एफ.ए.ओ. के पाठ्यांक में तत्काल सकारात्मक परिवर्तन देखे गए तथा ऊपर के ४ चक्रों में अधिक सकारात्मकता दिखी । (ऊपर के चार चक्र दंडालेख के बाईं ओर ४ स्तंभों द्वारा दर्शाए गए हैं ।)

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 सूक्ष्म स्तर पर क्या हुआ ?

काली शक्ति : अनिष्ट शक्तियों द्वारा उपयोग किया जाने वाला प्राथमिक अस्त्र है काली शक्ति । काली शक्ति, एक आध्यात्मिक शक्ति है, जिसमें पृथ्वी पर होनेवाली किसी भी घटना को बडी धूर्तता से प्रभावित करने की क्षमता होती है । आक्रमण करनेवाली अनिष्ट शक्ति कितनी बलिष्ट है, उस पर इसका विस्तार निर्भर करता है ।

संत का प्रभामंडल आस पास उपस्थित लोगों को सकारात्मक रूप से स्वतः प्रभावित करता है । इस प्रकरण में, सकारात्मकता ने चैतन्य के रूप में प्रयोज्य (व्यक्ति) के भीतर मस्तिष्क पर स्थित ब्रह्म-रंध्र से प्रवेश किया जो व्यक्ति के आध्यात्मिक तंत्र में एक सूक्ष्म छिद्र होता है एवं यह सूक्ष्म देह का एक भाग है । वहां से चैतन्य सहस्रार चक्र में प्रवेश कर सुषुम्ना नाडी में प्रवाहित हुआ । सुषुम्ना नाडी रीढ के मूल से लेकर मस्तक के ऊपर तक फैली होती है । सकारात्मक शक्ति ने मार्ग में ऊपर के ४ चक्रों को शुद्ध करना प्रारंभ किया एवं वहां एकत्र काली शक्ति दूर की । यहां सकारात्मक एवं नकारात्मक शक्ति में सूक्ष्म युद्ध प्रारंभ हुआ ।

४.३ चरण ३: संत द्वारा प्रयोज्य (व्यक्ति) को ५ मिनट देखे जाने के पश्चात दिन १०:०३ पर लिया गया पाठ्यांक

संत से प्रयोज्य (व्यक्ति) की ओर देखने की विनती की गई एवं व्यक्ति को भी संत की ओर देखने के लिए कहा गया । ५ मिनट पश्चात एक और पाठ्यांक लिया गया एवं ऊपर के चार चक्रों ने सकारात्मकता में वृद्धि दर्शायी । ऐसा संत से निरंतर निकलनेवाले चैतन्य के प्रवाह के कारण हुआ । जिसके परिणामस्वरूप ऊपर के चार चक्रों में से काली शक्ति और अधिक घटी ।

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४.४ चरण ४ : संत के प्रयोज्य (व्यक्ति) से ३० मिनट बात करने के पश्चात दिन १०:३५ पर लिया गया पाठ्यांक

 

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संत के प्रयोज्य (व्यक्ति) से ३० मिनट बात करने के पश्चात, हमने देखा की ऊपर के चार चक्रों का पाठ्यांक निरंतर अधिक सकारात्मक हो ता जा रहा था । वास्तव में, अनाहत चक्र का पाठ्यांक -३१ से ० तक बढ गया । ऊपर के सभी चार चक्रों के पाठ्यांक में औसत वृद्धि +२७ प्रतिशत थी । तथापि यह भी देखा गया कि नीचे के तीन चक्रों में जहां आविष्ट करनेवाली अनिष्ट शक्ति अपनी जडें जमा चुकी थी वह निरंतर नकारात्मक बनी रही एवं वहां कदाचित ही कोई परिवर्तन हुआ हो ।

सूक्ष्म स्तर पर क्या हुआ ?

इसका कारण यह था कि अब तक सूक्ष्म युद्ध की रणभूमि ऊपर के चार चक्रों के स्तर पर थी । सकारात्मक शक्ति प्रबल थी एवं उसने काली शक्ति को ऊपर के चार चक्रों में निष्प्रभ कर दिया । इस कारण उसका प्रवाह नीचे के तीन चक्रों में अभी तक आरंभ नहीं हुआ था ।

इस स्तर पर प्रयोग समाप्त किया गया एवं प्रयोज्य (व्यक्ति) को अपने दैनिक गतिविधियों के लिए निवृत्त कर दिया गयाI ।

निम्नलिखित दंडालेख में तीन रंगों की सांकेतिक पट्टियां प्रयोग के समय हुए पारस्परिक व्यवहार के विभिन्न स्तरों से पाठ्यांक में आए उतार-चढाव को दर्शाती हैं ।

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यह दर्शाता है कि कक्ष में संत की ‘उपस्थिति’ का प्रभाव (नीली पट्टी) ‘उपस्थिति + देखना’ (हलके गुलाबी रंग की पट्टी) एवं ‘उपस्थिति + देखना + बात करना’ (पीले रंग की पट्टी) की तुलना में अधिक सकारात्मक था ।

यह बात भी ध्यान देने योग्य है कि कक्ष में संत ने मात्र ५ मिनट ही व्यतीत किए थे, जब ‘उपस्थिति’ के लिए प्रारंभिक पाठ्यांक लिया गयाI । इसके विपरीत, उन्होंने प्रयोज्य (व्यक्ति) से ३० मिनट तक बात की तब भी सकारात्मक प्रभाव उतना नहीं था ।

इस प्रकार के विभिन्न प्रयोगों द्वारा, जहां संत एवं आविष्ट व्यक्ति सम्मिलित थे, हमने पाया कि विभिन्न प्रकार के पारस्परिक व्यवहारों के प्रभाव का परिणाम भिन्न हो सकता है । आध्यात्मिक शोध द्वारा, हमें ज्ञात हुआ कि मुख्य दो परिवर्तनशील घटक हैं जो संत एवं आविष्ट व्यक्ति के मध्य हुए किसी भी पारस्परिक व्यवहार के परिणाम को प्रभावित कर सकते हैं, वे हैं :

१. संत का आध्यात्मिक स्तर

२. आविष्ट करनेवाली अनिष्ट शक्ति की आध्यात्मिक शक्ति

४.५ चरण ५ : प्रयोग के पश्चात मध्यान्ह २:३६ पर (४ घंटे) पर लिया गया पाठ्यांक

उस मध्यान्ह प्रयोग के लगभग ४ घंटों के पश्चात, पुनः एक बार संत की अनुपस्थिति में चक्रों का पाठ्यांक लिया गया । हमने देखा कि ऊपर के चार चक्रों में प्रयोग के समय प्राप्त हुई सकारात्मकता में लक्षणीय विपरीत परिवर्तन था तथापि, नीचे के तीन चक्र जिनमें प्रयोग के प्रारंभ में न्यूनतम परिवर्तन देखा गया था वे वस्तुतः अधिक सकारात्मक बन गए थे ।

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सूक्ष्म स्तर पर क्या हुआ ?

जब हमने आध्यात्मिक शोध द्वारा इसका स्पष्टीकरण ढूंढा, तो हमारे सामने यह आया :

  • प्रयोग पूर्ण होने के पश्चात जब प्रयोज्य (व्यक्ति) संत के सान्निध्य से दूर गया, तब सहस्रार चक्र से आनेवाली शक्ति का प्रवाह अवरुद्ध हो गया था।
  • ऊपर के चारों चक्र प्रायः एक समूह के रूप में कार्य करते हैं, जबकि नीचे के तीन चक्र एक अन्य समूह के रूप में कार्य करते हैं । ऊपर के तीन चक्रों में विद्यमान काली शक्ति को निष्प्रभ करने के पश्चात, जो भी सकारात्मक शक्ति पहले से प्रवेश कर चुकी थी । उसने सुषुम्ना नाडी से अपने नीचे के प्रवाह को निरंतर जारी रखा । प्रबल सकारात्मक शक्ति अब नीचे के तीन चक्रों में प्रवेश करने के लिए मुक्त थी, परिणामस्वरूप, नीचे के तीनों चक्रों ने उपचार (परिवर्तन) विलंब से दर्शाए ।
  • ऊपर के तीन चक्रों पर पुनः अनिष्ट शक्ति ने आक्रमण कर दिया था । अतः ऊपर के चार चक्रों की नकारात्मकता में वृद्धि हो गई । यहां रोचक बात यह है कि यद्यपि अनिष्ट शक्ति ऊपर के चार चक्रों पर चली गई, परंतु चक्रों में अब भी मूलभूत पाठ्यांक की तुलना में अल्प नकारात्मकता प्रविष्ट हुर्इ । यह संत के साथ किसी भी पारस्परिक व्यवहार से हुए उपचार के प्रभाव के स्पष्ट संकेत देता है ।

५. आविष्ट व्यक्ति के साथ संत के संवाद के प्रयोग से सीखे गए महत्वपूर्ण सूत्र

  • जैसा कि आप उपर्युक्त प्रयोग से देख सकते हैं, संत से उच्च मात्रा में प्रक्षेपित हो ने वाले चैतन्य के कारण व्यक्ति पर संत की उपस्थिति से उपचार का प्रबल प्रभाव पडता है ।
  • दूसरे पहलू पर, यदि वह व्यक्ति जिससे संवाद किया जाता है, उच्च स्तर की अनिष्ट शक्ति से आविष्ट है, तो इसका किसी पर अत्यधिक नकारात्मक प्रभाव पड सकता है । ऐसे पारस्परिक व्यवहार से स्वयं की सुरक्षा के लिए एक मात्र निश्चित मार्ग निरंतर ईश्वर का नाम जप एवं साधना के अन्य चरणों को आरंभ करना है ।
  • जो व्यक्ति अनिष्ट शक्तियों द्वारा आविष्ट अथवा प्रभावित है, वह संत के पास जा कर अस्थायी आध्यात्मिक उपचार प्राप्त कर सकता है I यद्यपि, अनिष्ट शक्तियों से दीर्घकालीन राहत मात्र नियमित साधना करने के स्वयं के प्रयासों से एवं गुरुकृपा से मिल सकती है।
  • अध्यात्म के छः मूलभूत सिद्धांतों के अनुसार नियमित साधना करना साधक की तीव्र गति से उन्नति होने में सहायक है एवं अंत में साधक को गुरुकृपा प्राप्त हो ती है । एक बार गुरुकृपा प्राप्त हो जाने के पश्चात साधक उच्च आध्यात्मिक स्तर तक प्रगति कर सकता है एवं आनंदावस्था को प्राप्त करता है।
  • आश्रम आए दोनों ही आगंतुकों ने आश्रम में अपने निवासकाल में जो कुछ सीखा वे उसे कृति में ला रहे हैं एवं अपनी साधना को उन्नत करने हेतु निरंतर प्रयासरत हैं । २०१४ तक, उन्होंने साधना के ५ वर्ष पूर्ण कर लिए हैं जिसकेफलस्वरूप उनके जीवन में अनेक सकारात्मक परिवर्तन एवं रूपांतरण हुए ।