मछली की दुर्गंध की सूक्ष्म-अनुभूति

आध्यात्मिक आयाम से अच्छी अनुभूति भी हो सकती है बुरी भी । इस खंड में अब तक हमने अधिकतर सकारात्मक अनुभूतियां दी हैं । इस विशेष प्रसंग में, स्पिरिच्युअल साइन्स रिसर्च फाउंडेशन(SSRF) की एक साधिका की अनुभूति दी है, जिन्हें मछली के दुर्गंध के रूप में नकारात्मक सूक्ष्म-अनुभूति हुई ।

HIN-Manishaमैं स्पिरिच्युअल साइन्स रिसर्च फाऊंडेशन(SSRF) के भारत स्थित गोवा आश्रम में रहती हूं तथा अपना समय अध्यात्मप्रसार हेतु देती हूं । मैं यह ईश्‍वर की सेवा हेतु साधना के रूप में निःशुल्क करती हूं । SSRF के ग्रंथ विभाग में सेवा करते समय मैं प्रायः अपने साथ पानी की एक बोतल रखती हूं । जिसमें मैं प्रतिदिन स्वच्छ (फिल्टर्ड) जल  भरती हूं । १४ जनवरी २००६ की संध्या के समय  अपने दिनभर का काम समाप्त कर  जैसे ही मैंने पानी पीने के लिए बोतल का ढक्कन  खोला, मुझे बोतल से मछली की तीव्र दुर्गंध आई । मैं एकदम से चकित रह गई क्योंकि न तो आश्रम में मछली बनती है और ना ही मेरी बोतल मछली के बगल में रखी थी । मुझे स्वयं मछली की दुर्गंध बहुत बुरी लगती है । मुझे यह बहुत विस्मयकारी लगा और मैं वह बोतल SSRF के सूक्ष्म-विभाग के साधकों के पास ले गई । इस विभाग के साधक विकसित छठवीं इंद्रिय (सूक्ष्म-दृष्टि) क्षमता से युक्त हैं । अपनी छठवीं इंद्रिय से उन्होंने त्वरित समस्या के मूल कारण का निदान कर बताया कि यह अनिष्ट शक्तियों (भूत, प्रेत, राक्षस, इत्यादि) के आक्रमण के कारण हुआ । वे आपकी साधना में विघ्न डालना चाहती हैं । उन्होंने मुझे बोतल को नमक-पानी से उसके उपरांत पवित्र जल (तीर्थ) से धोने को कहा । नमक-पानी और  पवित्र जल (तीर्थ) कष्टदायी शक्तियों के विरुद्ध उपचार का काम करते हैं और उसे नष्ट करते हैं । ऐसा करने के उपरांत बोतल की दुर्गंध समाप्त हो गई । तत्पश्‍चात मैं पुनः उस बोतल का उपयोग बिना किसी दुर्गंध के कर सकी ।

– श्रीमती मनीषा पानसरे, गोवा, भारत.

अनुभूति का अध्यात्मशास्त्र

जैसे दैवी शक्ति तथा सर्वव्यापी ईश्‍वर सुखदायी सुगंध से संबंधित हैं, वैसे ही अनिष्ट शक्तियां(भूत, प्रेत, राक्षस, इत्यादि) दुर्गंध से संबंधित होती हैं । अनिष्ट शक्ति ने पृथ्वीतत्व का प्रयोग दुर्गंध की निर्मिति के लिए किया था ।

अनिष्ट शक्तियां(भूत, प्रेत, राक्षस, इत्यादि) साधकों की साधना में अडचनें निर्माण करने के लिए प्रयास करती रहती हैं, विशेष रूप से तब, जब साधक ईश्‍वर की सेवा कर रहा होता है । इस प्रसंग में, अनिष्ट शक्तियों(भूत, प्रेत, राक्षस, इत्यादि) ने मनीषा के पीनेवाले जल में कष्टदायी शक्ति एकत्रित कर दी थी ।  मनुष्यों को हानि पहुंचाने के लिए अनिष्ट शक्तियां कष्टदायी शक्ति को अपने प्राथमिक अस्त्र के रूप में प्रयोग करती हैं । कष्टदायी शक्ति के माध्यम से अनिष्ट शक्तियां किसी भी प्रक्रिया अथवा कार्यविधि पर दुष्प्रभाव डाल सकती हैं । इस प्रसंग में जो गंध मनीषा को अच्छी नहीं लगती थी उसे सूंघकर शारीरिक अस्वस्थता निर्माण कर उन्होंने मनीषा की साधना में अवरोध उत्पन्न करने के लिए उसका प्रयोग किया था । इसके अतिरिक्त उन्होंने विचारों की स्पष्टता में कमी तथा थकान इत्यादि भी लाए ।