पूजनीया योया वालेजी की अनुभूतियां

१. क्षमता एवं ऊर्जा में वृद्धि अनुभव होना

मेरे पति (परम पूज्य सिरियाक वाले) और मैं अगले दिन आश्रम से फ्रांस जानेवाले थे । हमें निकलने से पूर्व कुछ अति आवश्यक सत्सेवा को पूर्ण करना था तथा हम देर रात्रि तक सेवा कर रहे थे । परात्पर गुरु डॉ.  आठवलेजी ने हमें सेवा करते हुए देखा तथा हमसे कहा कि जब हम थक जाएं तो उनसे मिलने उनके कक्ष में आएं । लगभग प्रातः ४ बजे के आसपास जब हमें थकान होने लगी तब हम उनके कक्ष में गए । परात्पर गुरु डॉ.  आठवलेजी अभी तक जग रहे थे तथा कुछ धार्मिक ग्रंथसंबंधी लेख लिख रहे थे । उन्होंने अपना कार्य रोककर अपना पूरा ध्यान हम पर दिया । उन्होंने हमसे अध्यात्मसंबंधी विषय पर बात की तथा हमसे कुछ सूक्ष्मस्तरीय प्रयोग करने को कहा । हमें समय का पता ही नही लगा तथा उनके साथ बिताए गए दो घंटे, मात्र ३० मिनट की तरह लगे । प्रातः ६ बजने के उपरांत भी मैं और मेरे पति सोए नहीं थे । हम तरोताजा एवं ऊर्जावान अनुभव कर रहे थे ।

इस समय, हमें क्या अनुभव होता है यह देखने के लिए परात्पर गुरु डॉ.  आठवलेजी ने हमें आश्रम में चारों ओर घुमने के लिए कहा । जब हम चल रहे थे तब अचानक हमने अनुभव किया कि हमारी उंगलियों में ऊर्जा प्रवेश कर रही है । हमें प्रबल चुभन जैसी संवेदना अनुभव हुर्इ । हमने यह भी अनुभव किया कि जैसे-जैसे हम चल रहे थे तो मानो हम हवा में तैर रहे हो तथा हमारे आसपास की सभी वस्तुएं भी हवा में तैरती हुई लग रही थीं । मैंने हमारे चारों ओर तथा सभी वस्तुओं में दैवीय शक्ति को अनुभव किया । मुझे यह अद्भुत एवं सुखद अनुभव हुआ कि ईश्वर सभी सजीव एवं निर्जीव रचनाओं में व्याप्त हैं ।

प्रातः ७ बजे हम आश्रम से जाने के लिए कार में बैठ गए । कुछ ही समय पश्चात हम दोनों को शीघ्र नींद आ गई तथा पश्चात हमें यह समझ आया कि कैसे ईश्वर ने पिछली रात हमें हमारी सत्सेवा पूर्ण करने तथा वहां से जाने से पूर्व परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के अनमोल सत्संग से लाभांवित होने हेतु आवश्यक ऊर्जा प्रदान की थी ।

संपादक की टिप्पणी : जब साधक तडप से सत्सेवा करने का प्रयास करते हैं तब उन्हें प्रायः ईश्वर द्वारा दी गई क्षमता का अनुभव होता है जो कि उनकी स्वाभाविक क्षमता से बहुत अधिक होती है । उसी प्रकार गुरुतत्व साधक की श्रद्धा में वृद्धि करने हेतु उन्हें उच्च स्तर का चैतन्य प्रदान करता है तथा आध्यात्मिक रूप से उन्नत होना क्या होता है उसकी अनुभूति देता है ।

२. ईश्वर द्वारा परात्पर गुरु डॉ.  आठवलेजी के माध्यम से साधक का समर्पण भाव उन तक पहुंचने की प्रचीति देना

गोवा स्थित आश्रम में, सूक्ष्म चित्र बनाने की सत्सेवा करते समय, मैं प्रार्थना करने के लिए रुकी । मैं प्रार्थना के माध्यम से अपने मन एवं बुद्धि को ईश्वर को समर्पित करने का प्रयास कर रही थी जिससे कि सत्सेवा एकाग्रता से तथा ईश्वरेच्छानुसार हो । प्रार्थना करते समय मैं भावावस्था में चली गई और मुझे लगा कि मेरा अस्तित्त्व ही नहीं है । प्रार्थना के उपरांत जब मैंने आंखें खोली तो मैं अपने सामने मेज पर रखे काजू के प्याले को देखकर आश्चर्यचकित हो गई । मेरे पास बैठे मेरे पति (पूज्य सिरियाक वाले) एवं एक अन्य साधक मेरे चकित होने के भाव को देखकर हंसने लगे । उन्होंने मुझे बताया कि मेरे सामने काजू कैसे आए । उन्होंने कहा कि जब मैं प्रार्थना कर रही थी तब उसी समय परात्पर गुरु डॉ.  आठवलेजी आए और मेज पर काजू का प्याला रख दिया । मैं दंग रह गई क्योंकि मैंने किसी को भी अपने निकट आने अथवा मेरे सामने प्याला रखे जाने पर अनुभव नहीं किया था । तब मुझे समझ आया कि प्रार्थना से मैं भावावस्था तथा समर्पण में इतनी मग्न हो गई थी कि मुझे अपने आसपास की वस्तुओं की सुध ही नहीं रही । मुझे ऐसा लगा कि ईश्वर मुझसे प्रसन्न थे कि मैं सत्सेवा का कर्तापन उन्हें सम्पर्पित करने का प्रयास कर रही हूं, इसलिए उन्होंने परात्पर गुरु डॉ.  आठवलेजी के माध्यम से मेरे सामने काजू का प्याला रख दिया ।

संपादक की टिप्पणी : एक कहावत है कि ‘जहां भाव है वही ईश्वर है’ । जब साधक भाव अनुभव करने लगता है तब उसकी आध्यात्मिक उन्नति शीघ्र संभव होती है ।