संत को पहचानने का मापदंड वे किस मार्ग का अनुसरण करते हैं उदाहरणस्वरूप ज्ञानयोग, कर्मयोग, भक्तियोग इत्यादि पर निर्भर करता है । आध्यात्मिक स्तर के अनुसार, मापदंड में भिन्नता हो सकती है ।
भौतिक स्तर पर, कुछ सूचक इस प्रकार के होते हैं, जैसे हम उनके मुख पर तेज देख सकते हैं, हथेली की रेखाएं धूमिल होनी प्रारंभ हो जाती हैं तथा हथेली एवं उंगलियां नरम और चिकनी हो जाती हैं ।
मानसिक स्तर पर व्यक्ति आनंद की अनुभूति कर पाने में सक्षम हो जाता है तथा उसके विचार एवं व्यवहार उसकी सात्त्विक वृत्ति की ओर संकेत करते हैं । संत के सान्निध्य में साधना करनेवाला साधक आनंद अथवा निर्विचार स्थिति का अनुभव करता है । एक सामान्य व्यक्ति के लिए ऐसा अनुभव कर पाना अत्यंत कठिन है ।
अध्यात्मशास्त्र के अनुसार, एक साधक को संत तभी माना जा सकता है, जब अन्य संत उन्हें संत के रूप में स्वीकारें । इसके अनुसार वास्तव में एक संत ही दूसरे संत को पहचान सकते हैं । जो व्यक्ति संत के स्तर का नहीं है, दूसरे व्यक्ति को संत घोषित नहीं कर सकता । संत को पहचानने का यह सर्वोत्तम मापदंड है ।