दमा तथा बचपन के अन्य विकारों पर आध्यात्मिक उपचारों द्वारा विजय प्राप्त करना

SSRF द्वारा प्रकाशित प्रकरण अध्ययनों का मूल उद्देश्य है, उन शारीरिक अथवा मानसिक समस्याओं के विषय में पाठकों का दिशादर्शन करना, जिनका मूल कारण आध्यात्मिक आयाम में हो सकता है । यदि समस्या का मूल कारण आध्यात्मिक हो,  तो यह ध्यान में आया है कि सामान्यतः आध्यात्मिक उपचारों का समावेश करने से सर्वोत्तम परिणाम मिलते हैं । SSRF शारीरिक एवं मानसिक समस्याओं के लिए इन आध्यात्मिक उपचारों के साथ ही अन्य परंपरागत उपचारों को चालू रखने का परामर्श देता है । पाठकों के लिए सुझाव है कि वे स्वविवेक से किसी भी आध्यात्मिक उपचारी पद्धति का पालन करें ।

विषय सूची

HIN_Kedar-Name१. परिचय

केदार के माता -पिता पिछले १५ वर्षों से स्पिरिच्युअल साइन्स रिसर्च फाऊंडेशन (SSRF) के मार्गदर्शन में साधना कर रहे हैं । केदार के बाल्यकाल में जो समस्याएं आयी, उनके निवारण करने के लिए किए गए विविध आध्यात्मिक उपचार तथा उनके परिणामों का विवरण केदार की माता श्रीमती मंगला मराठे के शब्दों में नीचे दिया गया है ।

२. गर्भावस्थाकाल की समस्याएं

मेरे गर्भ धारण के समय से ही केदार की समस्याएं आरंभ हो गईं । गर्भ धारण के पहले आरंभ के छठे माह में ही समय पूर्व गर्भ वेदना प्रारंभ होने के कारण चिकित्सकों ने मुझे पूर्ण विश्राम करने का परामर्श दिया । गर्भ के आठवें माह में परम पूज्य डॉ.आठवलेजी ने मेरे पिता को मृत पूर्वजों के सूक्ष्म-देहों के (पितृदोष)  कारण मैं जिन कष्टों का सामना कर रही थी, उनका निवारण हो, इसलिए गर्भ के आठवें माह में परम पूज्य डॉ.आठवलेजी ने मेरे पिताजी को  भगवान श्री गुरुदेव दत्त का नामजप करने का परामर्श दिया । चूंकि मेरे कष्ट के मूल आध्यात्मिक कारण की तीव्रता अत्यधिक थी, इसलिए परम पूज्य डॉ.आठवलेजी ने मेरे पिता को १०८ मणियोंवाली माला से प्रतिदिन ९ माला (१०८ x ९ =९७२ बार)  जप अगले छः माहतक करने का परामर्श दिया । इस आध्यात्मिक कष्ट से मुक्ति पाने हेतु मेरे लिए यह आध्यात्मिक औषधि थी । इसके लिए मेरे पिताजी तत्क्षण तैयार हो गए और परामर्शानुसार  उन्होंने जप करना प्रारंभ कर दिया ।

(संदर्भ हेतु खंड पितृदोष देखें)

३. नवजात शिशु के रूप में केदार

डेढ वर्ष का होने तक केदार प्रतिदिन रात्रि १२ बजे जगता और प्रात: ६ बजे सोता था ।

४. बाल्यावस्था – शारीरिक कठिनार्इयां

४.१ दमे का प्रकोप

केदार को जन्म के १५ दिवसोपरांत ही श्वसन संबंधी समस्याएं प्रारंभ हो गईं । पूरे बाल्यकाल में बार-बार दमे का प्रकोप होता रहा । उसको दमे की समस्या सर्दी-जुकाम के कारण अधिक होती थी ।

यद्यपि उसके पिता एक चिकित्सक थे, तथापि उनके द्वारा दी गई औषधियां निष्प्रभ सिद्ध होती थीं । जब हम केदार को बालरोग विशेषज्ञ के पास ले जाते, तो वे भी उसे वही औषधियां देते जो केदार के पिता ने उसे दी थीं; किंतु उन औषधियों से लाभ होता । इस पर भी उसके दमे की समस्या का कोई भी निश्चित कारण अथवा कारक हमें ज्ञात नहीं हो पाया था । बाल्यावस्था की दृष्टि से केदार अत्यंत क्रियाशील था । उसमें दमा होने का कोई कारण नहीं दिखाई दे रहा था ।

यद्यपि चिकित्सा विज्ञान के अनुसार दमा अतिपरिश्रम का परिणाम होता है; किंतु उसे कभी अतिपरिश्रम के कारण दमे की समस्या नहीं हुई । केदार एक शिशु था इसलिए किसी भी प्रकार की साधना करना उसके लिए संभव नहीं था, इसलिए परम पूज्य डॉ.आठवलेजी ने हमें उसके कष्ट निवारणार्थ भगवान श्री गणेशजी का नामजप एवं उपासना करने का परामर्श दिया ।

श्री गणेश एक ईश्वरीय तत्त्व है । उनके अनेक कार्यों में से एक कार्य अनिष्ट शक्तियों (भूत, प्रेत, पिशाच इत्यादि) का विनाश करना है ।

केदार की प्राणशक्ति में वृद्धि हो, इसलिए श्री गणेश की शास्त्रोक्त पूजा एवं उनका नामस्मरण करने को कहा गया था । प्राणशक्ति के न्यून होने से व्यक्ति के बार-बार रोगग्रस्त होने और पूर्ण स्वस्थ न होने की संभावना बनी रहती है ।

एक अन्य संत परम पूज्य काणे महाराजजी ने भी नारियल द्वारा बुरी नजर उतारने की विधि बताई । इसे प्रत्येक पूर्णिमा और अमावस्या के दिन करने को कहा । बुरी नजर को उतारने तथा अनिष्ट शक्तियों (भूत, प्रेत, पिशाच इ.) के अनिष्ट प्रभाव के निवारण हेतु कुदृष्टि अथवा नजर उतारना एक विशिष्ट आध्यात्मिक उपचार है ।

उपरोक्त आध्यात्मिक उपचार करने से दमे के आवृत्तियाें में ५० प्रतिशत की न्यूनता आई ।

४.२ अस्थिरता

केदार कभी एक स्थान पर शांति से खडा नहीं रह पाता था । सदैव किसी न किसी गतिविधि में व्यस्त रहता था । पूरी रात वह बिछौने में इधर-उधर करवटें बदलता रहता था, विशेषकर जब मैं उसके साथ सोती थी ।

४.३ बिछावन भिगोना

केदार ११ वर्ष की अवस्था तक रात में अपना बिछावन गीली कर देता था ।

अधोदर्शित सूक्ष्म ज्ञान के आधार पर निर्मित चित्र में केदार को नियंत्रित करने वाली अनिष्ट शक्ति दिखाई देती है । यह चित्र एस.एस.आर.एफ. के सूक्ष्म-ज्ञान विभाग की संत पूज्य (कु.) अनुराधा वाडेकरजी ने बनाया है । यही अनिष्ट शक्ति केदार के अयोग्य व्यवहार के लिए कारणभूत थी ।

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 ४.४ अविश्वसनीय शारीरिक शक्ति के प्रचंड आवेश

एक बार जब केदार अत्यंत क्रोधित था, तब उसने दो नारियल (जिनका कवच बहुत ही कठोर था) एक भित्ति (दीवार) पर पटक कर तोड दिए । उस समय वह मात्र १० वर्ष का था । उसी वर्ष की एक अन्य घटना में भोजन की मेज के समीप रखी छ: कुर्सियों को एक छोटी छडी से मात्र एक कुर्सी को धक्का देकर गिरा दिया । यह घटना उसके सामान्य स्वभाव से पूर्णतः अलग थी ।

४.५ अनियमित भोजन करने का स्वभाव

केदार कभी तो भूख से व्याकुल होकर तीव्र गति से भोजन करता एवं कभी लंबे समय तक कुछ भी नहीं खाता ।

४.६ प्रात: उठने में कठिनाई

यद्यपि केदार ७ – ८ घंटे सोता, तथापि प्रात: जगता नहीं था । जगने के उपरांत १५ मिनट बिछावन पर बैठा रहता ।

इस समस्या के निराकरण के लिए वह निद्रादेवी एवं परम पूजनीय डॉ.आठवलेजी से प्रार्थना करता कि वह प्रात: समय पर उठ सके तथा उठने के उपरांत शीघ्र ही अपनी प्रात: विधि एवं क्रियाकलाप कर सके

४.७ पीडा सहन करने की असामान्य क्षमता

केदार में पीडा सहन करने की सामान्य से अधिक क्षमता थी, जो एक बच्चे के लिए संभव नहीं । उसे प्राय: चोट लगती थी किंतु वह कभी रोता नहीं था । जब वह १२ वर्ष का था, उसे उंगली में फोडा हो गया, जिसकी शल्यक्रिया करना आवश्यक था । यद्यपि वह वेदनादायी था, केदार बिना भौं चढाए सबकुछ सहन कर गया ।

५.बाल्यावस्था में मानसिक कठिनाइयां

५.१ चिडचिडापन

केदार का क्रोध दिन प्रतिदिन बढता जा रहा था । वह अपने चिडचिडेपन को नियंत्रित करने में सक्षम नहीं था, जिससे वह उपरोक्त प्रकार से आगबबूला हो जाता । जब वह इस प्रकार से क्रोधित होता तब उस पर पवित्र विभूति छिडकने से वह त्वरित ही शांत हो जाता था । जब वह प्रार्थना करता तो उसे बोध होता कि उसका व्यवहार योग्य नहीं है एवं वह समझता कि अपने क्रोध को नियंत्रित नहीं कर पाता । पूर्णिमा एवं अमावस्या से दो दिन पहले एवं उसके पश्‍चात वह आकुलता एवं चिडचिडेपन से ग्रस्त हो जाता । अब जब परिवार के सदस्यों ने उसे उसके स्वभाव के बारे में बताना प्रारंभ किया, तो वह अपनी उस अवस्था में आते ही प्रार्थना एवं नामस्मरण प्रारंभ कर देता ।

६. बाल्यावस्था में आध्यात्मिक स्तर की समस्याओं को अनुभव करना

६.१ वास्तव में अनिष्ट शक्तियों को देखना (भूत, प्रेत, पिशाच इ.)

केदार ने कई अनिष्ट शक्तियों को भयानक आकृतियों में देखा है । वह रात्रि में गहरी निद्रा से जग जाता था तथा उसे वे दिखाई देती थी । वह अकेला किसी भी अन्य कक्ष में नहीं जाता था, क्योंकि उसने अनुभव किया था कि जब वह अकेला किसी कक्ष में होता, तो कोई उसे डराता था ।

६.२ भयानक स्वप्न

केदार को कई बार रात्रि में डरावने स्वप्न दिखाई देते ।

६.३ आध्यात्मिक साधना पर प्रभाव

केदार के साथ एक समस्या थी कि जब भी आरती आदि पवित्र स्तुतियां होती, तो वह खडा नहीं रह सकता था । उसे प्रतीत होता कि उसकी टांगों में क्षमता नहीं है और बहुधा वह बैठ जाया करता था । जबकि वह खेल आदि में अत्यधिक क्रियाशील था । वह ईश्वर का नामस्मरण करता था, किंतु उस पर वह ध्यान केंद्रित नहीं कर पाता । नामस्मरण करते समय वह बेचैनी का अनुभव करता ।

७. बाल्यावस्था के दमा एवं शय्या गीली करने के विकारों के आध्यात्मिक परिप्रेक्ष्य का सार

इस पूरे काल में मैं और मेरे पति दोनों बहुत ही संयमित और शांत बने रहे; क्योंकि हम जानते थे कि आध्यात्मिक समस्याओं के कारण ही केदार कष्ट भोग रहा है । हमें जाे आध्यात्मिक उपचार बताए गए थे, वे हम कर रहे थे । ये आध्यात्मिक उपचार अत्यंत प्रभावशाली रहे, जिसके परिणामस्वरूप केदार की कठिनाइयों में धीरे-धीरे कमी आ रही थी ।

ये लेख लिखे जाने के समय तक केदार आंठवी कक्षा का १३ वर्षीय बालक था । अपनी कुलदेवी का नामजप एवं श्री गणेश की उपासना के कारण वह अपनी सभी प्रकार की समस्याओं पर लगभग ५० प्रतिशत तक विजय प्राप्त कर चुका है । यह सब परम पूजनीय डॉ.आठवलेजी की ही कृपा है ।

  • शारीरिक स्तर पर केदार को दमे जैसी समस्या थी, तो मानसिक स्तर पर व्याकुलता, चिडचिडापन एवं डरावने स्वप्न; जिनका मूल कारण आध्यात्मिक था ।
  • केदार के माता-पिता चूंकि अध्यात्मशास्त्र से परिचित थे एवं उन्हे आध्यात्मिक निदान एवं उपचार उपलब्ध थे, उसके विकारों का मूल कारण प्रारंभ में ही पहचाना जा सका एवं एस.एस.आर.एफ.के सूक्ष्म-ज्ञान विभाग की साधिका पूजनीया (कु.) अनुराधा वाडेकर द्वारा सूक्ष्म-ज्ञान पर आधारित चित्र बनाकर उसे सत्यापित किया जा सका ।
  • विभिन्न आध्यात्मिक उपचार जिनका उल्लेख ऊपर किया गया है, उनका परामर्श संतों द्वारा दिया गया था एवं जिसका पालन पहले केदार के माता-पिता ने किया तथा कालांतर में केदार भी उसका पालन करने लगा ।
  • ऐसा प्रतीत होता है कि आध्यात्मिक उपचारों के अतिरिक्त कोई अन्य उपचार नहीं किए जाने पर भी समस्याओं का उत्तरोत्तर समाधान होता रहा ।