साधनाद्वारा धूम्रपान, मद्यपान एवं गांजा के व्यसन से मुक्त हो पाना

SSRF द्वारा प्रकाशित प्रकरण-अध्ययनों (केस स्टडीस) का मूल उद्देश्य है, उन शारीरिक अथवा मानसिक समस्याओं के विषय में पाठकों का दिशादर्शन करना, जिनका मूल कारण आध्यात्मिक हो सकता है । यदि समस्या का मूल कारण आध्यात्मिक हो, तो यह ध्यान में आया है कि सामान्यतः आध्यात्मिक उपचारों का समावेश करने से सर्वोत्तम परिणाम मिलते हैं । SSRF शारीरिक एवं मानसिक समस्याओं के लिए इन आध्यात्मिक उपचारों के साथ ही अन्य परंपरागत उपचारों को जारी रखने का परामर्श देता है । पाठकों के लिए सुझाव है कि वे स्वविवेक से किसी भी आध्यात्मिक उपचारी पद्धति का पालन कर सकते हैं ।

सारांश : पेरिस निवासी सिरियाक धूम्रपान (सिगरेट पीना), गांजा (marijuana(pot)) एवं मद्यपान के व्यसन के आदी हो चुके थे । गांजे के व्यसन से वे दृढ इच्छा शक्ति के बल पर मुक्त हो पाए । परंतु धूम्रपान एवं मद्यपान के व्यसन से मुक्त होने के लिए उनकी इच्छा शक्ति पर्याप्त नहीं थी । उनके ही शब्दों में इस प्रकरण अध्ययन (केस स्टडी) में उन्होंने बताया है कि कैसे साधना के मूलभूत छः सिद्धांतों के अनुसार साधना करने से वे धूम्रपान एवं मद्यपान करना छोड पाए ।

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१. सिरियाक के व्यसन

मैं धूम्रपान, गांजा ((चिलम)(marijuana(pot)) एवं मद्यपान के व्यसन का आदी था ।

 . मद्यपान का व्यसन

मैंने पहली बार मद्यपान जूडो प्रशिक्षण क्लब के अपने कुछ मित्रों के साथ किया था, तब मैं लगभग १८ वर्ष का था । मैं शर्मीला तथा अंतर्मुख स्वभाव का था और मद्यपान ने मुझे खुले मन से लोगों तथा लडकियों से बात करने में सहायता की । उस समय केवल सप्ताह के अंत में जब मैं बाहर जाता था, तब औसतन १ लिटर बीयर अथवा लगभग ५ गिलास व्हिसकी पीता था । मैं अधिकतम २-३ लिटर बीयर अथवा १ बोतल वाईन अथवा आधी बोतल व्हिसकी पी सकता था । मैं सामान्य ढंग से मद्यपान आरंभ करता लेकिन कुछ समयोपरांत मैं नियंत्रण खो देता, अत्यधिक पीता और उसके उपरांत कई दिनोंतक अस्वस्थता अनुभव करता । स्वभाव से, मैं अच्छा तथा शांत रहने का प्रयास करता; किंतु अनेक बार मेरे मित्रों ने अत्यधिक मद्यपान करने पर मेरे व्यवहार में परिवर्तन अनुभव किया । एक बार मेरे मित्र ने व्यंग्य किया, कल रात तो तुम बिलकुल अलग ही व्यक्ति थे, किसी शैतान के समान ।

. सिगरेट का व्यसन

वर्ष १९९४ में जब मैं २३-२४ वर्ष का था, तब मैंने मॉडलिंग करना आरंभ किया और उसी समय मैंने सिगरेट पीना आरंभ किया । मैं एक दिन में लगभग आधे से एक पूरा पैकेट सिगरेट पी जाता था । एक अथवा दो वर्ष के उपरांत, जब भी मैं बाहर जाता, एक दिन में दो पैकेट सिगरेट पीता ।

धूम्रपान करते समय मैं धीमी गति से सेवन नहीं करता था । ४ से ५ कश में मैं चिमनी के समान सिगरेट को पी जाता था । ४ वर्षोंतक मैंने अत्यधिक धूम्रपान किया । इसे रोकने की मेरी अत्यधिक इच्छा होती क्योंकि यह मुझे अच्छा नहीं लगता था । इसके कारण हो रही स्वास्थ्य की हानि का मुझे भान था । यद्यपि इसकी कीमत अत्यधिक थी, तब भी मैं इसे रोक नहीं पा रहा था ।

१.३ गांजे का व्यसन (चिलम)

२४ वर्ष की अवस्था में मैंने गांजे का सेवन भी आरंभ कर दिया, प्रायः अपने मित्रों के पूछे जाने पर मैं लेने लगा । आरंभ में मैं थोडा लेता था, दो वर्षोंतक एक महीने में (1 joint) एक बार । २६ वर्ष की अवस्था में ६ महीने तक प्रतिदिन संध्या समय लेने लगा । अगले ६ महीनेतक मैं पागलों के समान गांजे का सेवन करता, प्रतिदिन सुबह ८ से संध्याकाल तक १० बार (10 joints) गांजा पीने लगा । जब मैं नही पीता, तब मुझे चिडचिडाहट होती और इससे मुझे भय लगता । इसलिए एक दिन मैंने स्वयं ही सोचा, यह एक दिन मेरे प्राण ले लेगा, मुझे इसे रोकना ही होगा और दृढ इच्छा शक्ति के बल पर मैं इसे रोक सका । किंतु इसकी लत पूर्ण रूप से छूटी नहीं थी । मैं वर्ष १९९८ तक कभी-कभार गांजा का सेवन करता था ।

२. साधना आरंभ करने पर धूम्रपान तथा मद्यपान के व्यसन से मुक्ति पाना

फरवरी १९९९ में, मैं स्पिरिच्युअल साइन्स रिसर्च फाऊंडेशन (SSRF) के संपर्क में आया । यहां मुझे पितृदोषों (पूर्वजों के कारण होनेवाले कष्ट) के कारण व्यसन कैसे होता है, इसके सिद्धांत की जानकारी प्राप्त हुई । जिससे मुझे यह ज्ञात हुआ कि क्यों मेरी दृढ इच्छा शक्ति धूम्रपान तथा मद्यपान के व्यसन को छोडने में असफल रहा ।

मुझे पूर्वजों के कारण होनेवाले कष्ट से मुक्ति हेतु विशेष सुरक्षादायक नामजप श्री गुरुदेव दत्त करने का परामर्श दिया गया । जिस समय मुझे ये बताया गया, तत्क्षण ही मैंने नामजप प्रारंभ कर दिया ।

तीव्र नामजप करने के तीन दिनों के उपरांत, जैसे ही मैंने सिगरेट पीना आरंभ किया, एक ही कश के पश्चात, मैं उसे नहीं पी सका और उसे बुझा दिया ।

अगले ११ माहतक मैंने बिल्कुल ही धूम्रपान नहीं किया । जनवरी २००० में, मैंने पुनः धूम्रपान करना आरंभ किया; किंतु केवल तीन माह तक । तब मुझे भान हुआ कि ऐसा अवश्य ही किसी पूर्वज द्वारा मेरे माध्यम से अपने धूम्रपान करने की इच्छा को तृप्त करने के कारण हो रहा है । इस बार मैं सहजता से धूम्रपान को छोड पाया, क्योंकि मैं भगवान का नामजप कर रहा था, साथ ही मुझे अपने धूम्रपान करने का कारण भी ज्ञात था । अगले एक वर्षतक, मैं कभी-कभार २-३ सिगरेट पीता था ।

वर्ष २००१ से, मैंने पूर्णरूप से धूम्रपान छोड दिया और अभीतक मैंने उसे हाथ भी नहीं लगाया ।

साधना आरंभ करने के एक वर्षतक मेरी कभी-कभार गांजा लेने की लत जारी रही । तदुपरांत यह अपने आप ही चली गई । उसके उपरांत अभीतक मैंने पुनः गांजा नहीं लिया ।

इसी प्रकार, नामजप आरंभ करने के उपरांत शीघ्र ही मेरा मद्यपान करना अल्प हो गया । साधना आरंभ करने के पूर्व, मैं लगभग प्रत्येक सप्ताह के अंत में अत्यधिक मद्यपान करता । श्री गुरुदेव दत्त का नामजप आरंभ करने से मेरा पीना अल्प हो गया और कुछ ही समय पीता । वर्ष २००३ से, मैंने पूर्णरूप से मद्यपान करना छोड दिया । क्योंकि मैं फ्रेंच हूं, वाईन पीना राष्ट्रीय आदत है । अब मैं मात्र अति दुर्लभ अवसरों पर आधी गिलास वाईन पीता हूं ।

मैं अनेक लोगों को धूम्रपान रोकने के लिए संघर्ष करते हुए देखता हूं, जो दृढता होने पर भी, निकोटिन की पट्टियां लगाते हैं तथा औषधियां लेते रहते हैं,तब भी वे इससे मुक्त नहीं हो पाते I

आध्यात्मिक उपचार करने से मैं औषधियों तथा किसी भी प्रकार की उपचार पद्धति पर धन व्यय किए बिना शीघ्र गति से ठीक हो गया ।