संक्षिप्त सार: क्या आप जानते हैं कि आप अपने दिवंगत पूर्वजों की मृत्यु के पश्चात उनकी सहायता हेतु कुछ कर सकते हैं ? इस लेख में बताया गया है कि क्यों श्राद्ध विधि के समय दिवंगत पूर्वजों के लिए बनाए गए विधिवत भोजन के चढावे को कौवे द्वारा चुगना यह सूचित कर सकता है कि उन्हें सहायता प्राप्त हो रही है ।
विषय सूची
- १. पितृपक्ष में विशेष रूप से अपने मृत पूर्वजों की आध्यात्मिक रूप से सहायता करने का महत्व
- २. अपने मृत पूर्वजों की सहायता के लिए आप ये कर सकते हैं
- ३. श्राद्ध विधि के समय कौवे द्वारा पिंड छूना – यह जानने का मार्ग है कि हमारे मृत पूर्वजों को सहायता प्राप्त हुई है
- ३.१ श्राद्ध विधि के समय नैवेद्य अर्पण करने का क्या महत्व है ?
- ३.२ श्राद्ध विधि के लिए पिंड कैसे बनाएं ?
- ३.३ श्राद्ध विधि के लिए नैवेद्य कैसे बनाएं ?
- ३.४ श्राद्ध विधि के लिए तर्पण कैसे करें ?
- ३.५ नैवेद्य से हमारे मृत पूर्वजों को आध्यात्मिक रूप से लाभ प्राप्त होने का अध्यात्मशास्त्र क्या है ?
- ३.६ श्राद्ध विधि के समय कौवे को भोजन खिलाने का आध्यात्मिक शास्त्र क्या है ?
- ३.७ यदि कौवा श्राद्ध विधि के उपरांत रखा गया नैवेद्य नहीं चुगता है तो इसका क्या अर्थ है ?
- ३.८ मृत पूर्वजों को अर्पित किए गए नैवेद्य का प्रभाव कितने समय तक रहता है ?
- ३.९ यदि आपके क्षेत्र में एक भी कौवा नहीं है, तो ऐसी स्थिति में क्या करें ?
- ३.१० यदि भोजन (कौवे के लिए रखा गया नैवेद्य) नहीं खाया गया हो, तब क्या करना चाहिए ?
- ३.११ यदि मैं पुरोहितों अथवा योग्य मंत्रों की सहायता से श्राद्ध न कर पाऊं, तब मुझे क्या करना चाहिए ?
- ५. निष्कर्ष
१. पितृपक्ष में विशेष रूप से अपने मृत पूर्वजों की आध्यात्मिक रूप से सहायता करने का महत्व
बहुत से लोग यह नहीं जानतेकि वो वास्तव में अपने पूर्वजों की, उनकी मृत्यु के पश्चात सहायता कर सकते हैं ।
वो ऐसा विशेष रूप से पितृपक्ष के समय कर सकते हैं । यह अवधि उत्तरी गोलार्ध की शरद ऋतु में पडती है तथा इस समय हमारे मृत पूर्वज भूलोक अथवा अस्तित्त्व के स्थूल लोक के सबसे निकट आते हैं । अपने मृत पूर्वजों की सहायता करने का दायित्व पूर्ण रूप से हम वंशजों का होता है ।
ऐसा कहा जाता है कि मृत पूर्वज की सूक्ष्म देह के लिए, मृत्यु और अगले जन्म के बीच की अवधि, उसी समान होती है जैसे कि गर्भ में अजन्मे एक शिशु की स्थिति होती है । जिस प्रकार, गर्भ में स्थित भ्रूण के उत्तम विकास के लिए उसकी देखभाल की जाती है, ठीक उसी प्रकार श्राद्ध विधि जैसे विविध आध्यात्मिक अनुष्ठानों के माध्यम से मृत पूर्वजों का ध्यान रखना भी आवश्यक होता है ।
आपमें से कुछ लोग हैरान हो सकते हैं कि – ‘मृत्योपरांत मेरे पूर्वजों को सहायता की आवश्यकता क्यों होगी ?’
वास्तव में, हमारे लगभग सभी पूर्वजों को उनके मृत्योपरांत जीवन में सहायता की आवश्यकता होती ही है ।
वर्तमान युग में, अधिकांश पूर्वजों के मन में उनकी मृत्यु के समय अनेक इच्छाएं रह जाती है तथा उनमें आध्यात्मिक ऊर्जा का अभाव होता है । ऐसा मुख्य रूप से अपने जीवन काल में उचित साधना अथवा नियमित साधना के अभाव के कारण होता है । मृत्योपरांत जीवन में धन, सफलता, शैक्षिक योग्यताओं इत्यादि का कोई मूल्य नहीं होता । मृत्योपरांत जीवन में जिस वस्तु का महत्व होता है, वह है सूक्ष्म देह की अध्यात्मिक ऊर्जा, जिसका संबंध प्रत्यक्ष रूप से उसके आध्यात्मिक स्तर और धरती पर व्यक्ति द्वारा अपने जीवनकाल में किए गए कर्म से होता है । हमारे अधिकांश मृत पूर्वजों का आध्यात्मिक स्तर न्यून होता है । परिणामस्वरूप, उनकी सूक्ष्म देहों में उनके अंतिम गंतव्य तक (भूलोक को पार करने तथा मर्त्यलोक से आगे बढने के उपरांत सामान्यतः भुवर्लोकतक) पहुंचने हेतु पर्याप्त आध्यात्मिक बल नहीं होता ।
इस यात्रा में, उन्हें अपनी सांसारिक इच्छाओं के कारण प्रायः अत्यधिक कष्ट अनुभव होता है तथा उन पर अनिष्ट शक्तियों द्वारा आक्रमण किए जाने की संभावना होती है । इसलिए, उनके मृत्योपरांत जीवन में उनकी आगे की यात्रा में पर्याप्त गति प्रदान करने के लिए वो हम वंशजों से आध्यात्मिक सहायता चाहते हैं ।
महत्वपूर्ण लेख : अपने मृत पूर्वजों की सहायता करने से अंततः हमें लाभ ही होता है, क्योंकि यदि हम उनके मृत्योपरांत जीवन में आगे जाने के लिए उन्हें आध्यात्मिक बल प्रदान करने हेतु विधियां करते हैं, तब उनके द्वारा हमारे जीवन में कष्ट उत्पन्न करने की संभावनाएं न्यून हो जाती है । यह सहायता की आवश्यकता होने एवं वंशजों के माध्यम से उनकी सांसारिक इच्छाओं को संतुष्ट करने, दोनों के कारण होता है ।
२. अपने मृत पूर्वजों की सहायता के लिए आप ये कर सकते हैं
अपने पूर्वजों के लिए, उनके मृत्योपरांत जीवन में सहायता करने हेतु, आप दो कार्य कर सकते हैं
- श्री गुरुदेव दत्त का नामजप : यह एक आध्यात्मिक सुरक्षा का नामजप है जो दो उद्देश्यों को पूर्ण करता है । यह हमें (वंशजों को) पितृदोष के कष्ट से आध्यात्मिक सुरक्षा प्रदान करता है तथा हमारे पूर्वजों को उनके मृत्योपरांत जीवन में गति प्रदान करने के लिए आध्यात्मिक शक्ति भी प्रदान करता है ।
- श्राद्ध विधि करना :यह सलाह दी जाती है कि आप श्राद्ध विधि भी करें । ये विधियां, मृत पूर्वजों की सांसारिक इच्छाओं को न्यून करने एवं मृत्योपरांत जीवन में उनकी यात्रा हेतु उन्हें आध्यात्मिक शक्ति प्रदान करने के लिए की जानेवाली विशिष्ट विधियां होती हैं । अधिक जानकारी के लिए, कृपया श्राद्ध पर हमारा लेख देखें ।
यहां ध्यान देने की बात यह है कि पितृपक्ष के समय ‘श्री गुरुदेव दत्त’ के नामजप से ५० % आध्यात्मिक लाभ होता है और शेष ५० % आध्यात्मिक लाभ श्राद्ध विधि करने से प्राप्त होता है ।
३. श्राद्ध विधि के समय कौवे द्वारा पिंड छूना – यह जानने का मार्ग है कि हमारे मृत पूर्वजों को सहायता प्राप्त हुई है
किसी को आश्चर्य हो सकता है, कि क्या इन विधियों से हमारे पूर्वजों को उनकी मृत्यु के पश्चात सहायता प्राप्त हो रही है । इसे जानने का एकमात्र मार्ग है, व्यक्ति के पास यह देखने की छठी इंद्रिय की क्षमता होना कि सूक्ष्म में क्या हो रहा है । किंतु, कुछ ऐसे भौतिक संकेत भी होते हैं, जिससे पता चलता है कि हमारे मृत पूर्वजों को सहायता प्राप्त हुई है ।
श्राद्ध विधि में, ३ बातें की जाती है-
- नैवेद्य चढाना
- पिंड दान करना तथा,
- तर्पण करना
हालांकि, श्राद्ध विधि के समाप्त होने के उपरांत, नैवेद्य को घर के बाहर, भूमि पर, कौवों के लिए रखा जाता है । यदि कौवे आकर उस भोजन को चुग लेते हैं, तो यह माना जाता है कि मृत पूर्वजों को सहायता प्राप्त हुई है ।
यदि आप सोच रहे है कि यह असाधारण बात है – तो हां, यह है, किंतु, चलिए हम आपको इस घटना के मूल में क्या अध्यात्म शास्त्र है तथा ऐसी घटना क्यों होती है, यह समझाते हैं । प्रमुख रूप से, भारत में सदियों से यह परंपरा चली आ रही है तथा जिनके पास सूक्ष्म आयाम को देखने की क्षमता है, वे लोग वास्तव में मृत पूर्वजों को आध्यात्मिक लाभ प्राप्त होते हुए देख सकते हैं ।
३.१ श्राद्ध विधि के समय नैवेद्य अर्पण करने का क्या महत्व है ?
अपने मृत पूर्वजों को नैवेद्य अर्पित करने, पिंड दान एवं तर्पण करने की विधि करना, श्राद्ध विधि का एक महत्वपूर्ण भाग है । इन विधियों का उद्देश्य हमारे मृत पूर्वजों को आध्यात्मिक शक्ति प्रदान करना तथा उनकी इच्छाओं को न्यून करना होता है । यह अनुष्ठान, भोजन एवं जल अर्पण करने से होता है, जो कि विशिष्ट मन्त्रों से आध्यात्मिक रूप से भारित होते हैं । इन विधियों की प्रभावकारिता अनुष्ठान करवाने वाले पुजारी, विधि करने वाले मुख्य वंशज, विधि करने का स्थान तथा उन मृत पूर्वजों के कर्म एवं आध्यात्मिक स्तर, जिनके लिए यह विधि की जा रही, से संबंधित अनेक कारकों से प्रभावित होता है । इसमें निम्नलिखित कारक हैं :
- विधि में सम्मिलित सभी प्रतिभागियों का आध्यात्मिक स्तर और भाव : व्यक्ति के जीवन में ‘मैं’ के स्थान पर उसी एकरूपता से ईश्वर अथवा गुरु के अस्तित्त्व की जागरूकता होने को भाव कहते हैं । अर्थात् ईश्वर का निरंतर भान रहना । विधि करने वाले पुजारी एवं मुख्य वंशज का आध्यात्मिक स्तर जितना अधिक होगा, उतना ही अधिक आध्यात्मिक लाभ प्राप्त होगा । कोई भी विधि तब अधिक प्रभावी होती है, जब उसे भाव से किया जाता है । आध्यात्मिक स्तर एवं भाव व्यक्ति के उस संकल्प को भी प्रभावित करते हैं, जो मुख्य वंशज द्वारा विधि के समय लिया जाता है । यह संकल्प मृत पूर्वजों को विधि के माध्यम से उत्पन्न आध्यात्मिक शक्ति निर्देशित करने के रूप में किया जाता है ।
- शास्त्रों के अनुसार श्राद्ध विधि कैसे की जा रही है, इसकी यथार्थता : जिस प्रकार भौतिक विज्ञान में सिद्धांत एवं सटीक कार्यप्रणालियां होती हैं, ठीक उसी प्रकार ऐसी विधियों को करने का भी सटीक अध्यात्म शास्त्र एवं पद्धतियां हैं ।
- स्थान की आध्यात्मिक पवित्रता :यदि स्थान आध्यात्मिक रूप से अपवित्र है, तो विधि की प्रभावकारिता न्यून हो जाती है तथा उससे प्राप्त होने वाला आध्यात्मिक लाभ भी न्यून होता है ।
- अनिष्ट शक्तियों द्वारा आक्रमण होना : प्रायः, अनिष्ट शक्तियां हमारे मृत पूर्वजों को नियंत्रित करने के लिए उनकी अत्यधिक भौतिकवादी इच्छाओं का लाभ उठाती हैं । मृत पूर्वजों में आध्यात्मिक शक्ति का अभाव होने के कारण, वो स्वयं की रक्षा नहीं कर पाते । ऐसी अनिष्ट शक्तियां, श्राद्ध विधि में बाधा निर्माण कर सकती हैं ताकि मृत पूर्वजों को विधि से आध्यात्मिक लाभ प्राप्त न हो सके । क्योंकि, अनिष्ट शक्तियां उन पर अपना नियंत्रण खोना नहीं चाहती ।
३.२ श्राद्ध विधि के लिए पिंड कैसे बनाएं ?
श्राद्ध विधि हेतु पिंड बनाने के चरण इस प्रकार हैं ।
- उबले हुए चावल तैयार करें । यह किसी भी प्रकार के श्वेत चावल हो सकते हैं । भूरे चावल का प्रयोग नहीं करना चाहिए ।
- दही, घी (भारतीय गाय के दूध से निर्मित), मधु एवं उबले हुए चावल के साथ कुछ मात्रा में काले तिल एक साथ मिला लें तथा उस मिश्रण से नींबू के आकार के पिंड बनाएं । पिंड उचित रूप से ठोस और अच्छी प्रकार से जुडे होने चाहिए ।
- यदि श्राद्ध विधि के लिए कोई विशिष्ट भोजन बना रहा है, तो वह भोजन शुद्ध शाकाहारी होना अत्यंत आवश्यक है । इसमें से प्रत्येक पदार्थ कुछ मात्रा में लिया जा सकता है तथा उसे चावल के उस मिश्रण के साथ मिश्रित कर सकते हैं, जिसे पिंड बनाने से पूर्व बनाया जा रहा है ।
- आदर्श रूप से, इन पिंडों को दर्भ (वानस्पतिक नाम: Desmotachya bipinnata) पर रखा जाना चाहिए । दर्भ एक प्रकार की लम्बी सूखी घास होती है (जो आध्यात्मिक रूप से पवित्र होती है) तथा मृत पूर्वजों की सूक्ष्म देहों के लिए, श्राद्ध जैसी विधियों और अनुष्ठानों में, इसका उपयोग किया जाता है । दर्भ को उत्तर-दक्षिण दिशा में रखना चाहिए । यदि आपके पास दर्भ नहीं है, तो आप इसे केले के पत्ते पर भी रख सकते हैं । यदि वह भी उपलब्ध न हो, तो पिंड को स्वच्छ श्वेत पृष्ठ पर रख सकते हैं ।
३.३ श्राद्ध विधि के लिए नैवेद्य कैसे बनाएं ?
मृत पूर्वजों के लिए, एक प्रतीकात्मक चढावे के रूप में, एक सरल शुद्ध शाकाहारी भोजन बनाया जा सकता है । उदाहरण के लिए, भारत में भोजन में – चावल, सब्जी, पूरी, दही, दाल, अचार एवं मिठाई होती है ।
३.४ श्राद्ध विधि के लिए तर्पण कैसे करें ?
मृत पूर्वजों को तर्पण देने के लिए, जल के साथ काले तिल अर्पण करने चाहिए । अधिक जानकारी के लिए श्राद्ध पर हमारा लेख देखें ।
३.५ नैवेद्य से हमारे मृत पूर्वजों को आध्यात्मिक रूप से लाभ प्राप्त होने का अध्यात्मशास्त्र क्या है ?
समस्या : अधिकांश मृत पूर्वजों का आध्यात्मिक स्तर, साधना के अभाव के कारण, न्यून होता है तथा उनमें अनेक अतृप्त सांसारिक इच्छाएं एवं आसक्तियां होती हैं । न्यून आध्यात्मिक स्तर के साथ इन अतृप्त इच्छाओं एवं आसक्तियों से उनकी सूक्ष्म देह भारी हो जाती है तथा भुवर्लोक जैसे दूसरे सूक्ष्म लोकों की ओर उनकी आगे की यात्रा के लिए भूलोक को छोड पाने में वे असमर्थ होते हैं । उनकी सांसारिक इच्छाओं एवं आसक्तियों के कारण, अनिष्ट शक्तियां भी उन पर आक्रमण करती हैं, जो अपने (अनिष्ट शक्तियों के) स्वयं के बुरे उद्देश्यों, जैसे कि विविध व्यसनों को अनुभव करना, संभोग, दूसरों को हानि पहुंचाना, रज तम का प्रसार करना इत्यादि के लिए उनके वंशजों की देह का उपयोग करने के लिए, उन्हें वश में करती हैं ।
समाधान: नैवेद्य, पिंड-दान और तर्पण ऐसी विधियां हैं जो कि इस आध्यात्मिक कष्ट को दूर करने हेतु बनाई गई है तथा ये मृत पूर्वजों को उनकी आगे की यात्रा में आध्यात्मिक शक्ति प्रदान करने के साथ उनकी इच्छाओं को न्यून करने में सहायक होती हैं । ये विधियां अनिष्ट शक्तियों के आक्रमण से भी सुरक्षा प्रदान करती हैं ।
समाधान का मूलभूत अध्यात्मशास्त्र :
मृत पूर्वजों के प्रमुख देवता मृत्यु के देवता हैं, जिन्हें यमदेव कहा जाता है । श्राद्ध करने का अर्थ है, मृत पूर्वजों की सूक्ष्म देहों को गति प्रदान करने हेतु ब्रह्मांड में व्याप्त यम तरंगों की शक्ति का आह्वान करना । यह भगवान दत्तात्रेय के नामजप करने से सुगम हो जाता है, जो कि – II श्री गुरुदेव दत्त II है ।
दत्तात्रेय भगवान से प्रार्थना कर, श्री गुरुदेव दत्त के नामजप करने से उत्पन्न शक्ति मृत पूर्वजों की सूक्ष्म देह से संबंधित, ब्रह्मांड में व्याप्त यम तरंगों को बाहर खींचती है । यह शक्ति श्राद्ध विधि से आध्यात्मिक लाभ प्राप्त होने हेतु उन्हें पृथ्वी की ग्रहपथ में आकर्षित करने में, सहायता करती है । इससे मृत पूर्वजों की अनेक सूक्ष्म देह, जो मर्त्यलोक में अटकी होती हैं, वे पृथ्वी की ग्रहपथ में प्रवेश करने में सक्षम बन जाती हैं । इसके कारण, वे पृथ्वी पर अपने वंशजों द्वारा की जानेवाली उस श्राद्ध विधि से लाभ प्राप्त करने में सक्षम हो जाती हैं, जो उन्हें उनकी आगे की यात्रा में गति प्राप्त करने हेतु यम तरंगें प्रदान करती है ।
जब श्राद्ध विधि में इन सक्रिय यम तरंगों का आह्वान किया जाता है, तब मृत पूर्वजों की सूक्ष्म देहों के चारों ओर का वातावरण सक्रिय हो जाता है । तब, इन यम तरंगों के बल से, वह सूक्ष्म देह मृत्योपरांत जीवन की अपनी यात्रा में अगले चरण में भेज दी जाती हैं । इसी को मृत पूर्वजों को सद्गति (अर्थात् ईश्वर की ओर उसकी यात्रा में गति) प्राप्त होना कहते हैं । मृत पूर्वजों की सूक्ष्म देह के लिए व्यावहारिक रूप से इसके अर्थ निम्न में से कोई एक अथवा अधिक, हो सकते हैं :
- इच्छाएं न्यून होना, फलस्वरूप आगे की यात्रा के लिए उसका हल्का बनना
- आध्यात्मिक कष्ट न्यून होना
- उसके वंशजों के साथ उसके कर्मों के लेन देन कम होना
- अस्तित्त्व के अच्छे लोक में जाने हेतु आध्यात्मिक शक्ति प्राप्त होना
श्राद्ध विधि के समय नैवेद्य अर्पित करने, पिंड दान करने के साथ तर्पण किया जाता है तथा मंत्रों एवं प्रार्थनाओं के माध्यम से मृत पूर्वजों का आह्वान किया जाता है । (कृपया ध्यान दें कि नैवेद्य श्राद्ध विधि के प्रमुख देवता को चढाया जाता है तथा उनकी कृपा के कारण हमारे मृत पूर्वजों को आध्यात्मिक लाभ प्राप्त होता है) । जिन मृत पूर्वजों का आह्वान किया जाता है तथा जिन्हें सहायता की आवश्यकता होती हैं, वें रज तम प्रधान होते हैं, अर्थात् उनसे आध्यात्मिक रूप से अपवित्र स्पंदन प्रक्षेपित होते हैं । यह प्रमुख रूप से उनके न्यून आध्यात्मिक स्तर एवं उनमें अनेक सांसारिक इच्छाएं होने के कारण होता है । परिणामस्वरूप, जब वे उस स्थान पर आते हैं जहां श्राद्ध किया जा रहा है, तब सम्पूर्ण वातावरण रज तम अथवा आध्यात्मिक रूप से कष्टदायक स्पंदनों से भारित हो जाता है । फलस्वरूप, नैवेद्य, पिंड एवं तर्पण भी रज तम स्पंदनों से भारित हो जाते हैं ।
अब, किसी को यह आश्चर्य हो सकता है कि मात्र भोजन एवं जल अर्पण करने से हमारे मृत पूर्वजों कीविविध इच्छाएंन्यून होने में कैसे सहायता हो सकती है । ऐसा इसलिए है क्योंकि, यद्यपि वह साधारण भोजन एवं जल होता है, किंतु वह मंत्रों की शक्ति, श्री गुरुदेव दत्त के नामजप एवं श्राद्ध विधि करने वाले वंशज के भाव से भारित हो जाता है । श्राद्ध के समय चढाया गया नैवेद्य सूक्ष्म देहों द्वारा वायु तत्त्व के रूप में ग्रहण किया जाता है और इस प्रकार वेतृप्त होते हैं । इसके साथ ही, सामग्रियों का विशिष्ट संयोजन, उदाहरण के लिए चावल, काले तिल इत्यादि मृत पूर्वजों को आकर्षित करने तथा उन तक आध्यात्मिक शक्ति पहुंचाने में सहायक होते हैं । पितृपक्ष के समय किए जाने वाले महालय श्राद्ध में पिंडदान करने का उद्देश्य विशेष रूप से वंशावली से विशिष्ट मृत पूर्वज को सहायता करना होता है (जैसा की शास्त्रों में वर्णित है) । इसलिए, पिंडदान की विधि में दान हेतु, विशिष्ट संख्या में पिंड होते हैं ।
पिंड में काले तिल का क्या महत्व है ?
काले तिल रज तम (आध्यात्मिक रूप से अपवित्र) प्रधान तरंगें प्रक्षेपित करते हैं । श्राद्ध के समय उच्चारण किए जाने वाले मंत्रों से काले तिल में व्याप्त रज तम (आध्यात्मिक रूप से अपवित्र) प्रधान शक्ति जागृत होती है तथा वह रज तम प्रधान मृत पूर्वजों की सूक्ष्म देहों को पृथ्वी की कक्षा में आकर्षित करने में सहायता करती हैं । इस प्रक्रिया से, सूक्ष्म देहों के लिए काले तिल द्वारा प्रक्षेपित रज तम तरंगों पर सवारी करके श्राद्ध के स्थान पर पहुंचना सुगम हो जाता हैं । कौवे भी इन रज तम प्रधान (आध्यात्मिक रूपसे अपवित्र) तरंगों की ओर आकर्षित होते हैं । फलस्वरूप, कौवे उस नैवेद्य में व्याप्त उन तरंगों की ओर भी आकर्षित होते हैं । काले तिल से प्रक्षेपित होने वाली तरंगों के कारण, मृत पूर्वजों की सूक्ष्म देह के चारों ओर इच्छा प्रधान कवच कार्यरत होता है, तथा श्राद्ध में अपना भाग खाने के उपरांत वे तृप्त हो जाते हैं ।
अतः इस स्थिति में कौवे की क्या भूमिका रहती है ?
कौवा मृत्यु के पहलू एवं मृत पूर्वजों की सूक्ष्म देहों के संबंध में एक विशिष्ट पक्षी है । इसके कुछ निम्नलिखित कारण हैं :
- मृत पूर्वजों में यम स्पंदन विद्यमान होते हैं और वही यम स्पंदन कौवे में भी स्वाभाविक रूप से विद्यमान होते हैं ।
- कौवा भी उन मृत पूर्वजों के समान रज तम प्रधान होता है जिन्हें सहायता की आवश्यकता होती है । कौवे का काला रंग उसके रज तम स्वभाव का सूचक है ।
- कौवे में मृत पूर्वजों की सूक्ष्म देहों को देखने/अनुभव करने की सूक्ष्म क्षमता होती है ।
- उनके स्पंदन मेल खाने के कारण, मृत पूर्वज कौवे में प्रवेश कर सकते हैं और भोजन एवं जल को शारीरिक रूपसे ग्रहण करने हेतु उसकी देह का प्रयोग कर सकते हैं, और इस प्रकार, उससे आध्यात्मिक शक्ति प्राप्त करते हैं ।
- इसके साथ ही, चूंकि मृत्यु के पश्चात व्यक्ति की स्थूल देह नहीं रहती, इसलिए सूक्ष्म देह के चारों ओर विद्यमान कवच में पृथ्वी तत्त्व की मात्रा न्यून हो जाती है तथा जलतत्त्व की मात्रा में वृद्धि हो जाती है । इसलिए, जो कवच मृत पूर्वजों की सूक्ष्म देह को ढके रहता है, उसमें सूक्ष्म आर्द्रता की मात्रा उच्च होती है । कौवे के चारों ओर व्याप्त सूक्ष्म कवच में भी जल तत्त्व प्रधान रूप से होता है, जिसके कारण सूक्ष्म देह के लिए कौवे के देह में प्रवेश करना सरल हो जाता है ।
३.६ श्राद्ध विधि के समय कौवे को भोजन खिलाने का आध्यात्मिक शास्त्र क्या है ?
यह लेख, मृत पूर्वज कौवे के माध्यम से नैवेद्य का आध्यात्मिक लाभ कैसे प्राप्त करते हैं, इसकी क्रिया विधि समझाता है ।
पितृपक्ष के समय कौवे अधिक सक्रिय हो जाते हैं । प्रायः उन्हें अधिक से अधिक मात्रा में कांव-कांव करते सुना जा सकता है तथा वे अधिक संख्या में एकत्रित होते हैं । जब श्राद्ध विधि की जाती है, तब मृत पूर्वजों का आह्वान किया जाता है, वे उस स्थान पर आते हैं और वह नैवेद्य तथा पिंड यम तरंगों एवं रज-तम स्पंदनों से भारित हो जाते हैं । कौवा उन यम तरंगों एवं रज तम स्पंदनों से आकर्षित होता है और समान स्पंदन होने के कारण, उस स्थल पर आता है । श्राद्ध विधि के पश्चात, उस नैवेद्य को, जिसे देवताओं के माध्यम से मृत पूर्वजों को चढाया जाता है, तथा उस पिंड को बहते जल में विसर्जित कर दिया जाता है । किंतु, उसमें से थोडा नैवेद्य अलग करके वह केवल कौवों के लिए रखा जाता है । श्राद्ध विधि पूर्ण होने के उपरांत, उसे घर के बाहर कौवों को चुगने के लिए रख दिया जाता है ।
यहां पर कौवे द्वारा चुगे जाने के दो परिदृश्य हो सकते हैं :
- पहला यह, कि जब मृत पूर्वजों के पास अधिक आध्यात्मिक शक्ति नहीं होती, तब उन्हें नैवेद्यग्रहण करने हेतु कौवे की देह में प्रवेश करना पडता है ।
- दूसरा जब मृत पूर्वजों में कुछ आध्यात्मिक शक्ति होती है, तब वे सूक्ष्म आयाम के माध्यम से प्रत्यक्ष रूप से नैवेद्य के आध्यात्मिक लाभ को प्राप्त करने में समर्थ होते हैं । उन्हें कौवे के माध्यम की आवश्यकता नहीं होती क्योंकि वे आवश्यक आध्यात्मिक शक्ति को प्रत्यक्ष रूप से अवशोषित करने में सक्षम होते हैं ।
नैवेद्य की ओर आने वाले कौवे की गति, श्राद्ध विधि के समय किए गए आह्वान के अनुसार धरती के वातावरण की कक्षा में प्रवेश करने वाली सूक्ष्म देह की गति से मेल खाती है । कौवे द्वारा नैवेद्य चुगना यह दर्शाता है, कि मृत पूर्वजों की सूक्ष्म देह दोनों स्तरों पर तृप्त हुई है – पहला कौवे के माध्यम से नैवेद्य का भोजन खाने से शारीरिक स्तर पर तथा दूसरा नैवेद्य से प्रक्षेपित होने वाली सूक्ष्म गैसों को ग्रहण करके सूक्ष्म स्तर पर । इससे मृत पूर्वजों की सूक्ष्म देह को मृत्योपरांत उन्हें आगे की यात्रा करने के लिए आध्यात्मिक शक्ति प्राप्त होती है । इस प्रकार, कौवा, श्राद्ध विधि में मृत पूर्वजों की सूक्ष्म देह एवं मनुष्यों (वंशजों) के बीच में एक मध्यम होता है ।
३.७ यदि कौवा श्राद्ध विधि के उपरांत रखा गया नैवेद्य नहीं चुगता है तो इसका क्या अर्थ है ?
कभी कभी कौवों को नैवेद्य देने की विधि करते समय, वे उसे नहीं चुगते । ऐसा क्यों हो सकता है, इसके कुछ शास्त्र हैं तथा हमने उन्हें नीचे बताया है ।
- यदि मृत पूर्वज अपने वंशजों द्वारा उनकी इच्छा के अनुसार कार्य न किए जाने पर अथवा किसी दूसरे कारण से अप्रसन्न हो, तो मृत पूर्वजों की सूक्ष्म देह जिसका आह्वान किया जाता है, वह मारक तरंगें प्रक्षेपित करती हैं जिससे कौवे डरकर दूर हो जाते हैं । ऐसी स्थित में, कौवों के आस पास मंडराने पर भी, वे आकर नैवेद्य नहीं चुगेंगे ।
- अनिष्ट शक्तियां भी उन मृत पूर्वजों की सूक्ष्म देह को, जिन्हें उन्होंने नियंत्रित किया होता है, उन्हें कौवे के माध्यम से विधि के आध्यात्मिक लाभ प्राप्त करने से रोक सकती है ।
- कभी कभी, अत्यधिक मात्रा में अतृप्त इच्छाएं एवं आसक्तियां होने के कारण, मृत पूर्वज भूलोक को छोडने हेतु प्राप्त किसी भी सहायता का विरोध करते हैं । दुर्भाग्यवश, इन मृत पूर्वजों की इच्छाएं अथाह गड्डे के समान होती हैं तथा कभी तृप्त नहीं हो सकती । इसलिए, वे सदैव अप्रसन्न ही रहते हैं । ऐसे मृत पूर्वजों की सूक्ष्म देह उस नैवेद्य के चारों ओर मंडराती रहती है । वह नैवेद्य से आध्यात्मिक लाभ प्राप्त नहीं करती । जब तक वे नहीं जाते, तब तक मृत पूर्वजों को देखने की सूक्ष्म दृष्टि रखने वाले कौवे उन्हें मंडराते हुए देखते हैं और नैवेद्य चुगने नहीं आते ।
- जब नैवेद्य रखा जाता है, तब मृत पूर्वजों के साथ विविध सूक्ष्म देहें आ सकती हैं । यह सूक्ष्म देहें उन हित चिंतकों अथवा परिवार के शत्रुओं की हो सकती हैं, जो अभी अपने मृत्योपरांत जीवन में हैं । यदि शत्रुओं की सूक्ष्म देह अधिक संख्या में हो, तो वे कौवे को नैवेद्य चुगने के लिए नहीं आने देतेक्योंकि वे नहीं चाहते कि मृत पूर्वजों को आध्यात्मिक लाभ प्राप्त हो ।
- यदि अधिकांश मृत पूर्वज साधक हो, अर्थात् जिन्होंने जीवनकाल में नियमित रूप से साधना की थी तथा जिनका आध्यात्मिक स्तर उच्च है, तब उन्हें कौवे पर निर्भर रहने की आवश्यकता नहीं होती । वे सूक्ष्म आयाम के माध्यम से प्रत्यक्ष रूप से नैवेद्य के आध्यात्मिक लाभ प्राप्त करने में सक्षम होते हैं । ऐसे मृत पूर्वजों की सूक्ष्म देह को देवताओं, सकारात्मक शक्तियों एवं ईश्वर द्वारा सहायता प्रदान की जाती है । उस स्थल के आस पास सकारात्मक शक्ति निर्माण होने के कारण, रज तम प्रधान कौवे, दूर रहते हैं ।
३.८ मृत पूर्वजों को अर्पित किए गए नैवेद्य का प्रभाव कितने समय तक रहता है ?
पितृपक्ष के समय अर्पित किए गए नैवेद्य का प्रभाव एक वर्ष तक रहता है । इसलिए, यह सुझाव दिया जाता है कि प्रत्येक वर्ष अपने मृत पूर्वजों के लिए महालय श्राद्ध करें । श्राद्ध अनेक प्रकार के होते हैं । किंतु, महालय श्राद्ध, श्राद्ध का एक ऐसा प्रकार है जिसे प्रत्येक वर्ष पितृपक्ष के समय किया जाता है ।
३.९ यदि आपके क्षेत्र में एक भी कौवा नहीं है, तो ऐसी स्थिति में क्या करें ?
कभी कभी लोग ऐसे देश में रहते हैं जहां की जल वायु अतिविषम होती है तथा वहां कोई कौवा नहीं होता, जैसे कि रेगिस्तान, अथवा ऐसा क्षेत्र जो अत्यधिक ठंडा हो । ऐसी स्थिति में, श्राद्ध विधि तथा नैवेद्य अर्पित किए जा सकते हैं तथा यह प्रार्थना करें, कि मृत पूर्वज सूक्ष्म आयाम के माध्यम से आध्यात्मिक लाभ प्राप्त करने में सक्षम हो । यहां, नैवेद्य अर्पित करने वाले वंशज का भाव महत्वपूर्ण होता है ।
३.१० यदि भोजन (कौवे के लिए रखा गया नैवेद्य) नहीं खाया गया हो, तब क्या करना चाहिए ?
नैवेद्य रखने का आदर्श समय दोपहर में होता है । कौवे के लिए नैवेद्य रखे जाने के उपरांत भी यदि वह अछूता रह गया हो, तो संध्या समय तक प्रतीक्षा करनी चाहिए तथा उसके उपरांत आगे बताए अनुसार करना चाहिए :
- उसे बहतेजल में छोडें ।
- यदि यह संभव न हो, तो उसे भूमि में अथवा तुलसी के पौधे के निकट किसी बगीचे में गाड दें ।
- यदि ऐसे कोई विकल्प उपलब्ध न हो, तब कृतज्ञता की प्रार्थना करें और उसे एक स्वच्छ थैलेमें डालकर कचरे के डिब्बे में डाल दें ।
३.११ यदि मैं पुरोहितों अथवा योग्य मंत्रों की सहायता से श्राद्ध न कर पाऊं, तब मुझे क्या करना चाहिए ?
हममें से कुछ लोगों के लिए, जिन्होंने यह लेख पढा, हो सकता है ऐसा पुरोहित ध्यान में न हो जो श्राद्ध विधि कर सकें । ऐसी स्थिति में, हमने श्राद्ध के हमारे मुख्य लेख में कुछ सरल चरण बताए हैं । कृपया स्मरण रखें, कि श्राद्ध विधि के रूप में हम जो कुछ भी करते हैं उससे हमारे मृत पूर्वजों को सहायता प्राप्त हुई है, यह सुनिश्चित करने में हमारा भाव प्रमुख घटक होता है । इसके साथ, श्री गुरुदेव दत्त नामजप से हमारे मृत पूर्वजों को अत्यधिक सहायता प्राप्त होती है । इसलिए, यदि आपको विस्तार से श्राद्ध विधि करने हेतु पुरोहित न मिल सके, तो कृपया निराश ना हों ।
फिर भी, कृपया अपनी क्षमता के अनुसार श्राद्ध अवश्य करें क्योंकि यह आपके पूर्वजों को मृत्योपरांत जीवन में उनकी सहायता करने का एक मुख्य मार्ग है । श्राद्ध एक ऐसी विधि है, जो किसी भी संस्कृति से परे है तथा इसके मूल में अध्यात्म शास्त्र है । इसके विपरीत, पूर्वजों के स्मारक अथवा उनके चित्र पर माला पहनाने जैसे सामान्य कृतियों से कोई आध्यात्मिक लाभ नहीं होता अपितु यह उनकी मृत्योपरांत जीवन में आगे की यात्रा में हानिकारक होता है । पितृपक्ष वर्ष में एक बार आता है । कृपया अपने मृत पूर्वजों के आध्यात्मिक लाभ हेतु एवं स्वयं के लिए इसका लाभ उठाएं । कम से कम, पितृपक्ष की सम्पूर्ण कालावधि में श्री गुरुदेव दत्त का नामजप जितना संभव हो करें ।
५. निष्कर्ष
श्राद्ध न केवल हमारे मृत पूर्वजों के लिए, अपितु हम वंशजों के लिए भी एक महत्वपूर्ण विधि है, क्योंकि, इससे मृत पूर्वजों द्वारा उत्पन्न कष्टों से हमारी रक्षा होती है । श्राद्ध करने से मृत पूर्वजों के सूक्ष्म देह के चारों ओर व्याप्त इच्छा के कवच का सूक्ष्म आवरण न्यून होता है । मंत्रों की शक्ति से, इस विधि द्वारा मृत पूर्वजों की सूक्ष्म देहें हल्की बनती है तथा मृत्योपरांत उन्हें आगे जाने की गति प्राप्त होती है । कौवों का नैवेद्य चुगना इस बात का स्थूल प्रमाण होता है कि हमारे मृत पूर्वजों को सहायता प्राप्त हुई है तथा हमने उनके मृत्योपरांत जीवन में उनके हित में योगदान दिया है । नैवेद्य पर चोंच मारने के लिए आनेवाले कौवों के माध्यम से, हम अपने दिवंगत पूर्वजों के सबसे निकट होते हैं । कोई भी कौवा नैवेद्य चुगने के लिए आता है तो उसे हम अपना कोई प्रिय मृत पूर्वज मान सकते हैं तथा इस जानकारी से हमें यह संतोष रहता है कि उन्हें सहायता प्राप्त हो रही हैं । हमारे मृत पूर्वजों की सहायता के लिए हमें यह जानकारी एवं विधि बताने के लिए, हम प्राचीन काल के ऋषियों के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करते हैं ।