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परम पूज्य डॉ. आठवलेजी में हो रहे दैवी परिवर्तनों को साक्ष्य के रूप में देख पाने तथा इस अद्वितीय आध्यात्मिक घटना के संदर्भ में आध्यात्मिक शोध संपादित करने की सेवा में हमें सम्मिलित करने के लिए हम ईश्वर तथा गुरुतत्त्व के प्रति कृतज्ञ हैं ।

१. परम पूज्य डॉ. आठवलेजी के अवतारी कार्य के कारण हो रहे दैवीय परिवर्तन

ईश्वर का अवतार : जब ईश्वर अपना कार्य पूर्ण करने के लिए पृथ्वी पर जन्म लेते हैं तो इसे अवतार लेना कहते हैं । परमेश्वर किसी जानवर अथवा मनुष्य का भौतिक रूप धारण कर पृथ्वी पर कुछ काल अथवा पूर्ण जीवन उसी रूप में व्यतीत करते हैं । ईश्वर के अवतार के अनेक प्रकार हैं, जिनमें से सर्वोच्च है पूर्णावतार (उदाहरण के लिए भगवान श्रीकृष्ण) । परात्पर गुरु ईश्वर के अंशावतार होते हैं ।

हमारे पूर्व के लेख में, हमने बताया कि कैसे उच्च आध्यात्मिक स्तर के कारण परम पूज्य डॉ. आठवलेजी के स्थूल देह में दैवी परिवर्तन हो रहे हैं । इन दैवीय परिवर्तनों में उनकी देह से प्रक्षेपित होनेवाली सुगंध, नाखूनों, त्वचा तथा केश का रंग परिवर्तित होना तथा उनके शरीर पर ॐ का चिन्ह उभरना सम्मिलित है । इस लेख में, हम परम पूज्य डॉ. आठवलेजी के शरीर में ये दैवी परिवर्तन दृष्टिगत होने के कुछ विशेष कारण देखेंगे ।

जब हमें परम पूज्य डॉ. आठवलेजी के शरीर में हो रहे इन परिवर्तनों के संदर्भ में ईश्‍वरीय ज्ञान प्राप्त हुआ, तब ईश्‍वर द्वारा अपने कार्य हेतु परम पूज्य डॉ. आठवलेजी के रूप में अंशावतार लेने का संदर्भ हमें पुनः-पुनः मिला, और यही दैवीय परिवर्तनों का कारण है । इस लेख में हम इसे परम पूज्य डॉ. आठवलेजी का अवतारी कार्य से संबोधित करेंगे । हमने अपने अगले खंड में इस पर विस्तार से चर्चा की है ।

चूंकि दैवी परिवर्तन सूक्ष्म प्रकृति के हैं, इसलिए आधुनिक विज्ञान इन परिवर्तनों के संदर्भ में हमें आंशिक जानकारी ही दे सकता है । शरीर में हो रहे दैवी परिवर्तन के कुछ ही पहलू विज्ञान के एक आविष्कार कैमरे की सहायता से समझे जा सकते हैं । हमारे लिए समझने हेतु महत्वपूर्ण सूत्र यह है कि जब आध्यात्मिक घटना की बात आती है तो आधुनिक विज्ञान हमें मात्र जानकारी का एक दाना ही दे सकता है ।

२. परम पूज्य डॉ. आठवलेजी में हो रहे दैवी परिवर्तन के कुछ विशिष्ट कारण

२.१ परम पूज्य डॉ. आठवलेजी का कार्य

परम पूज्य डॉ. आठवलेजी के शरीर में हो रहे परिवर्तन काल की आवश्यकतानुसार है तथा उनके अवतारी कार्य की स्वीकृति का परिणाम है । साथ ही उनमें हुए शारीरिक दैवी परिवर्तन वर्तमान काल में उनके अवतार होने के स्थूल साक्ष्य बन गए हैं ।

परम पूज्य डॉ. आठवलेजी के अवतारी कार्य का प्रारंभ वर्ष १९९० में हुआ, जब उनके द्वारा संकलित पहला ग्रंथ प्रकाशित हुआ था । जब उनके गुरु परम पूज्य भक्तराज महाराजजी ने उन्हें मानवजाति के लिए समझने में सरल ऐसी शैली में अध्यात्म पर ग्रंथ प्रकाशित करने को कहा, तब उन्होंने ग्रंथ प्रकाशित करना प्रारंभ किया । परम पूज्य डॉ. आठवलेजी का अवतारी कार्य ग्रंथों के लेखन से संबंधित है, जो ईश्‍वरीय ज्ञान है । परम पूज्य डॉ. आठवलेजी का विशिष्ट गुण है, तीव्र जिज्ञासा तथा मानवता की भलाई के लिए उन्हें प्राप्त ईश्‍वरीय ज्ञान संपूर्ण विश्‍व को देने की उत्कट इच्छा ।

पीला रंग ब्रह्मांड में ज्ञान का सर्वोच्च स्रोत है और परम पूज्य डॉ. आठवलेजी का कार्य इससे एकरूप हो गया है । इसका अर्थ है कि उनका कार्य है ज्ञान ग्रहण करना, समझना तथा इसे पूरे संसार में बांटना । इस कारण ही उनकी त्वचा, केश तथा नाखूनों में पीला रंग सामान्य रूप से पाया जाता है ।

२.२ साधकों की रक्षा के संदर्भ में दैवी परिवर्तन

हममें से अधिकतर को यह जानकारी नहीं होगी कि संसार में अच्छाई तथा बुराई के मध्य भयावह सूक्ष्म-युद्ध हो रहा है । यह युद्ध जो अभी तक अधिकांश मात्रा में सूक्ष्म-स्तर में हो रहा था, अब स्थूल आयाम में भी हम जिस पृथ्वी पर रहते हैं उसमें दृष्टिगत होनेवाला है । मानवजाति असाधारण विनाश तथा जीवनहानि सहित प्राकृतिक आपदाओं तथा युद्ध की साक्षी बनेगी ।

सर्वोच्च आध्यात्मिक स्तर के संत तथा परात्पर गुरु  जैसे कि परम पूज्य डॉ. आठवलेजी आध्यात्मिक शुद्धता के आकाशदीप हैं, वे पृथ्वी तथा अस्तित्व के अन्य सूक्ष्म लोकों में इष्ट विरुद्ध अनिष्ट के मध्य संतुलन की रक्षा करते हैं । उनसे प्रवाहित होनेवाली सकारात्मक आध्यात्मिक शक्ति आपातकाल में अभी तथा भविष्य में साधकों की रक्षा करेगी । चूंकि परम पूज्य डॉ. आठवलेजी ब्रह्मांड से एकरूप हो गए हैं, इसलिए उनका शरीर भी ब्रह्मांड में हो रहे परिवर्तनों के प्रति अति संवेदनशील हो गया है और यह उनके शरीर में हो रहे स्थूल परिवर्तनों से झलकता है । ब्रह्मांड में वर्तमान में हो रहे इष्ट विरुद्ध अनिष्ट के युद्ध का प्रतिबिंब उनके शरीर पर दिखता है । वास्तव में उनका शरीर एक युद्धभूमि बन गया है, जो अनिष्ट आक्रमणों तथा ईश्‍वरीय हस्तक्षेप दोनों को दर्शाता है । जब भी उनके शरीर में परिवर्तन होते हैं जैसे उनकी देह से सुगंध प्रक्षेपित होना, यह ब्रह्मांड में हो रहे परिवर्तनों के प्रति अपनेआप उत्पन्न हुए प्रतिसाद के कारण होता है ।

यहां एक उदाहरण दिया गया है कि कैसे परम पूज्य डॉ. आठवलेजी का शरीर ब्रह्मांड में हो रहे परिवर्तन से संबंधित सुगंध का प्रतिसाद देता है । इष्ट विरुद्ध अनिष्ट के मध्य युद्ध में यदि ब्रह्मांड में अनिष्ट शक्तियां अतिक्रमण कर लेती हैं, तब परम पूज्य डॉ. आठवलेजी का अवतारी तत्त्व अपनी उंगलियों से मारक दैवी सुगंध का प्रक्षेपण कर प्रतिसाद देता है । उस समय हमने उनकी उंगलियों से बडी मात्रा में मारक सुगंध की अनुभूति ली है, जो ब्रह्मांड में बढती अनिष्ट शक्तियों की शक्ति घटा देती है ।                                                                                                                                                                                             उनकी उंगलियों से निकलनेवाली तारक सुगंध साधकों को आशीर्वाद देते रहती है तथा उनकी रक्षा करती रहती है । परम पूज्य डॉ. आठवलेजी की उंगलियों से प्रक्षेपित होनेवाली मीठी सुगंध के कारण, साधक शक्तिशाली अनिष्ट शक्तियों द्वारा आक्रमण किए जाने पर भी जीवित रहने तथा साधना करने में सक्षम होते हैं ।

अब तक ईश्‍वरीय कार्य अधिकांशतः निर्गुण स्तर पर हो रहा था । आपातकाल आनेवाला ही है, परम पूज्य डॉ. आठवलेजी के अवतारी कार्य को स्थूल स्तर पर प्रकट होने का समय आ गया है । इस प्रकटीकरण के परिणामस्वरूप उनका भौतिक शरीर भी कुछ परिवर्तनों को दर्शाने लगा है । जब एक शरीर (जैसे परम पूज्य डॉ. आठवलेजी का) कृपानिधान ईश्‍वर के नियंत्रण में हो, तो यह अपने सामान्य रंग आधारित संरचना को त्याग कर दैवी रंग पर आधारित संरचना को अपना लेता है । दैवी परिवर्तन पूर्णतः ईश्‍वर पर निर्भर करते हैं तथा ये पृथ्वी पर स्थल एवं काल से संबंधित ईश्‍वरीय कार्य की आवश्यकतानुसार प्रगत व्यक्ति में होते हैं । इस प्रकरण में काल का तात्पर्य आपातकाल से है जो शीघ्र ही आरंभ होगा और वर्ष २०२३ में विश्‍व में आध्यात्मिक पुनर्जागरण युग की स्थापना होगी । यह आध्यात्मिक युग लगभग १००० वर्षों तक रहेगा । परम पूज्य डॉ. आठवलेजी द्वारा प्रकाशित आध्यात्मिक ज्ञान ही भविष्य में आध्यात्मिक शिक्षा का आधार बनेगा ।

३. सारांश

परम पूज्य डॉ. आठवलेजी द्वारा अपना कार्य सगुण स्तर अथवा निर्गुण स्तर पर किए जाने के आधार पर उनके शारीरिक परिवर्तन भिन्न होते हैं । परम पूज्य डॉ. आठवलेजी का सगुण स्तर का कार्य है समाज को अध्यात्मशास्त्र बताना तथा साधना हेतु उनका मार्गदर्शन करना । उनका निर्गुण स्तर का कार्य है, सूक्ष्म स्तर पर पाताल की बलशाली अनिष्ट शक्तियों से युद्ध करना जिससे साधकों की साधना में उनके द्वारा लाई जा रही बाधाएं दूर हों, वातावरण में चैतन्य का प्रसारण करना तथा मानवता के आध्यात्मिक कुशलक्षेम हेतु संकल्प करना ।

जब परम पूज्य डॉ. आठवलेजी सूक्ष्म-स्तर पर साधकों की साधना में सहायता करते हैं, तब उनका यह कार्य सगुण-निर्गुण होता है । जब परम पूज्य डॉ. आठवलेजी निर्गुण स्तर पर रहकर मात्र संकल्प के द्वारा साधकों से साधना करवा कर लेते हैं, तब उनका कार्य निर्गुण-सगुण स्तर का होता है । वे किस अवस्था में है, उसके आधार पर उनके शरीर का रंग परिवर्तित हो सकता है ।

हमने यह ज्ञान समाज को अति उच्च प्रगत संतों के जीवन के संदर्भ में गहन जानकारी हो, इस हेतु साझा किया है । सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि वर्तमान काल साधना हेतु बहुत लाभदायक है । यद्यपि शीघ्र ही काल अति विकट होनेवाला है, तब भी साधक शीघ्र ही प्रगति कर सकते हैं क्योंकि ईश्‍वर की कृपा भी अत्यधिक है । हम आध्यात्मिक आयाम तथा अध्यात्म के प्रति जिज्ञासा रखनेवाले सभी लोगों से वर्तमान काल का तथा परम पूज्य डॉ. आठवलेजी के संकल्प का लाभ उठाने तथा नियमित साधना करने की विनती करते हैं ।