टिप्पणी: इस प्रकरण अध्ययन की पृष्ठभूमि समझने के लिए और ऐसी घटनाएं विशेष रूप से SSRF के संबंध में क्यों हो रही हैं, कृपया पढें – भयभीत करनेवाली असाधारण घटनाओं का परिचय
१. प्रस्तावना
यह प्रकरण अध्ययन पूजनीया (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी द्वारा प्रयुक्त संगणकीय माऊस में उभरे विशिष्ट खरोंच के चिन्हों का वर्णन करता है । पूजनीया (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी र्इश्वरीय ज्ञान प्राप्त करनेवाली एक साधिका हैं ।
२. र्इश्वरीय ज्ञान प्राप्त करने की प्रकिया तथा महत्त्व
आध्यात्मिक शोध का तात्पर्य है र्इश्वर से ज्ञान प्राप्त करना । SSRF के अनेक साधक र्इश्वर से ज्ञान प्राप्त करने में सक्षम हैं और इसलिए वे आध्यात्मिक शोध संपादित कर पाने में सक्षम हैं । ये सभी साधक परम पूजनीय डॉ. आठवलेजी के मार्गदर्शन में साधना कर रहे हैं ।
वर्ष २००३ से, ए ४ आकार की सहस्रों पृष्ठ के र्इश्वरीय ज्ञान इन साधकों के माध्यम से विविध विषयों पर प्राप्त हुआ हैं । र्इश्वरीय ज्ञान प्राप्त करने की उनकी सत्सेवा ने शोध में सहायता की है तथा वर्तमान में अनेक विषय SSRF के सूचना जालस्थल (वेबसार्इट) पर प्रकाशित हो चुके हैं ।
र्इश्वरीय ज्ञान प्राप्त करनेवाले साधकों में से पूजनीया (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी एक हैं । यह प्रक्रिया इस प्रकार होती है । वे भ्रमणसंगणक (लेपटॉप) चालू कर उसके निकट बैठती हैं, प्रार्थना करती हैं तथा इसके उपरांत र्इश्वरीय ज्ञान का प्रवाह आरंभ हो जाता है और वे उस ज्ञान को संगणक में टंकलिखित करना आरंभ करती हैं । इस प्रकार उनका भ्रमणसंगणक तथा माऊस सत्सेवा के महत्वपूर्ण साधन बन गए हैं ।
३. अनुभूति
वर्ष २००६ में एक दोपहर, जब वे र्इश्वरीय ज्ञान ग्रहण कर रही थीं, तब उन्होंने देखा कि उनके संगणकीय माऊस में खरोंचें उभरी हैं । इसके उभरने का कोर्इ स्पष्ट कारण नहीं था । उन्हें पूर्ण विश्वास था कि उन्होंने उसे अच्छे से रखा था । माऊस ऐसी किसी भी वस्तु के संपर्क में नहीं आया था, जिससे कि उसमें खरोंचे आ सके । और ना ही अन्य किसी ने उसका प्रयोग किया था; तब भी वह सभी ओर से खरोंचा हुआ था ।
पूजनीया (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी को उस समय कुछ अनुभव नहीं हुआ, किंतु कुछ समय उपरांत उन्हें स्मरण आया कि कुछ दिन पूर्व वे सत्सेवा में इतनी मग्न हो गर्इ थीं कि उस समय शारीरिक स्तर पर जो उन्हें भारीपन तथा अकडन का अनुभव हो रहा था, उस पर उन्होंने तनिक भी ध्यान नहीं दिया । उनकी आंखों में भी वेदना हो रही थी और सिर भी भारी लग रहा था; किंतु उस समय वे प्राप्त हो रहे र्इश्वरीय ज्ञान का टंकन करती रहीं ।
आध्यात्मिक शोध दल की टिप्पणी: अनिष्ट शक्तियां र्इश्वरीय ज्ञान की प्राप्ति में सर्वाधिक बाधाएं निर्मित करने का प्रयास करती हैं । इन बाधाओं के कारण सेवा में संलग्न साधकों को सतत विविध प्रकार के कष्ट अल्प अथवा अधिक मात्रा में अनुभव होते हैं । अपनी साधना के एक भाग के रूप में तथा समाज की भलार्इ के लिए वे इन कष्टों को सहते हैं तथा र्इश्वरीय ज्ञान प्राप्ति की सेवा में लगे रहते हैं ।
४. सूक्ष्म विश्लेषण
पूजनीया (श्रीमती) गाडगीळजी विकसित छठवीं इंद्रिय से संपन्न हैं, इसलिए उन्हें समझ में आया कि अनिष्ट शक्ति के कारण उनके संगणकीय माऊस पर खरोंच के चिन्ह उभरे थे । उसका उद्देश्य था र्इश्वरीय ज्ञान प्राप्ति की प्रक्रिया में बाधा निर्माण करना तथा उन्हें कष्ट पहुंचाना ।
आध्यात्मिक शोध दल की टिप्पणी: जब अनिष्ट शक्तियां किसी व्यक्ति पर आक्रमण करती हैं, तब वे प्रायः व्यक्ति के मन तथा बुद्धि के सर्व ओर काली शक्ति का एक आवरण बना देती हैं । इस काले आवरण के कारण व्यक्ति उसे हो रहे कष्ट (जैसे शरीर में वेदना होना, विचारों का अवरुद्ध होना, संभ्रम होना इत्यादि) का मूल कारण समझने में असमर्थ रहता है । इससे व तत्परता से आवश्यक आध्यात्मिक उपचार नहीं करते और कष्ट के प्रभाव की कालावधि में वृद्धि हो जाती है । इस प्रकार उसकी दैनिक गतिविधियों की तथा साधना की गति, तीव्रता अथवा क्षमता घट सकती है तथा व्यक्ति को हानि होती है ।