पिप – पॉलीकाँट्रास्ट इंटरफेरेंस फोटोग्राफी तकनीक का आध्यात्मिक शोध में उपयोग की प्रस्तावना

. प्रस्तावना

गत अनेक वर्षों से व्यक्तियों अथवा वस्तुओं के चारों ओर विद्यमान ऊर्जाक्षेत्र (प्रभामंडल) को यंत्रों तथा विशिष्ट तकनीकों की सहायता से समझने के प्रयत्न हो रहे हैं । एक रूसी आविष्कारक सेम्योन किरलियन द्वारा वर्ष १९३९ में एक सुप्रसिद्ध शोधकार्य किया गया, उनके द्वारा किए गए आविष्कार को अब ‘किरलियन फोटोग्राफी’ के नाम से जाना जाता है । इस तकनीक में एक फोटोग्राफी प्लेट पर रखी लक्षित वस्तु के मध्य से होकर विद्युत धारा फोटोग्राफी प्लेट तक पहुंचाई जाती है जिससे फोटोग्राफी प्लेट पर एक चित्र तैयार होता है, जैसा कि नीचे दिये गए चित्र में दर्शाया गया है ।

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कालांतर में हैनेरी ओल्डफील्ड नामक वैज्ञानिक एवं आविष्कारक ने इसी तकनीक पर शोध कर इसे एक नवीन एवं सहजता से उपयोग किए जा सकनेवाले प्रारूप में प्रस्तुत किया । इसे ही पी.आर्इ.पी. अर्थात पॉलीकाँट्रास्ट इंटरफेरेंस फोटोग्राफी तकनीक के नाम से जाना जाता है । ऊर्जाक्षेत्र परीक्षण की विभिन्न प्रणालियों में पी.आर्इ.पी. – पॉलीकाँट्रास्ट इंटरफेरेंस फोटोग्राफी तकनीक को बहुत प्रभावी माना जाता है

.१ आभारपूर्ति

सेंटर फॉर बायोफील्ड साइंसेस के संस्थापक डॉ.थॉर्नटन स्ट्रीटर, वहां के पी.आर्इ.पी विशेषज्ञ डॉ. अनिरुद्ध गांधी तथा उनके सहकर्मियों की सहायता से हमने पी.आर्इ.पी. तकनीक का उपयोग कर कुछ प्रयोग किए । इस शोध कार्य में अमूल्य सहायता के लिए हम उनके प्रति आभार प्रकट करते हैं ।

. पी.आर्इ.पी. तकनीक की जानकारी

.  पी.आर्इ.पी. तकनीक का वास्तविक उपयोग

पी.आर्इ.पी. तकनीक में जिस वस्तु का अध्ययन किया जाना है उसे सात रंगों के वर्णक्रमवाले (इंद्रधनुषी वर्णक्रम) श्वेत प्रकाश के समक्ष लाया जाता है । एक विशिष्ट वीडियो कैमरा विभिन्न फिल्टरों का उपयोग कर वस्तु का छायाचित्र लेता है जिनका एक विशिष्ट पीआर्इपी सॉफ्टवेयर द्वारा विश्लेषण किया जाता है । यह सॉफ्टवेयर वस्तु एवं उसके आसपास विद्यमान ऊर्जाक्षेत्र का विवरण विविध रंगों एवं छटाओं (शेड्स) के चित्रों द्वारा दर्शाता है ।

.२ पी.आर्इ.पी. तकनीक का आधारभूत सिद्धांत

पी.आर्इ.पी. प्रणाली में एक विशिष्ट सॉफ्टवेयर के माध्यम से फोटॉन (प्रकाश) के हस्तक्षेप एवं इस कारण वस्तु में तथा उसके आसपास होनेवाले परिवर्तनों का आकलन किया जाता है । जब १०० प्रतिशत श्वेत (सभी सात रंगों के तरंगदैर्ध्यवाला) प्रकाश, वस्तु अथवा व्यक्ति के ऊर्जा क्षेत्र पर पडता है तब यह हस्तक्षेप उत्पन्न होता है । जब उपरोक्त प्रकार की प्रकाश किरणें व्यक्ति अथवा वस्तु पर पडती हैं तब ऊर्जाक्षेत्र की विशिष्टता के अनुसार विभिन्न प्रकार की रंगीन छटाएं (शेड्स) निर्मित होती हैं जो ऊर्जाक्षेत्र में विद्यमान ऊर्जा के घनत्व पर निर्भर करती हैं । इन रंगों की छटा (शेड्स) की जांच संगणकीय प्रोग्राम से की जाती है । हस्तक्षेप के परिणामस्वरूप निर्मित होनेवाली रंगों की यह छटा मानवीय नेत्रों से नहीं देखी जा सकती  । प्रकाश की प्रत्येक विशिष्ट श्रेणी अथवा आवृत्ति को संगणक एक सांकेतिक अंक प्रदान करता है तथा पश्चात प्रत्येक अंक को दिखाई दे सकनेवाले प्रकाश के रूप में पुनः परिवर्तित करता है । पी.आर्इ.पी तकनीक में संगणक पर एक दृश्य (वीडियो फीड) के साथ सॉफ्टवेयर का उपयोग करके ऊर्जा एवं प्रकाश के हस्तक्षेप का सूक्ष्म विश्लेषण (स्कैन) किया जाता है । वीडियो कैमरे से आ रहे संकेत (सिग्नल) स्पष्ट रूप से दिखाई देनेवाले रंगों में परिवर्तित हो जाते हैं जिसके कारण यह चित्र संगणक के पटल पर सजीव प्रदर्शित होता है । इसप्रकार, ऊर्जा की तीव्रता में होनेवाले अंतर से परिचित हुआ जा सकता है, अन्यथा मानवीय नेत्रों से यह देख पाना असंभव ही होता ।

.  प्रयुक्त किए जानेवाले विभिन्न फिल्टर

कुछ विशिष्ट रंगों की छटा चित्र में प्रदर्शित न हो इस हेतु आवश्यकतानुसार विभिन्न फिल्टरों का प्रयोग किया जाता है । इससे शेष रंग अधिक स्पष्टता से दिखाई देते हैं । इसके कारण हमें किसी विशिष्ट रंग की छटा के रूप में किसी विशिष्ट ऊर्जा-क्षेत्र से संबंधित अधिक जानकारी मिल सकती है । एक ही छायाचित्र पर सामान्यतया उपयोग में लाए जानेवाले विविध फिल्टरों का प्रयोग कर तैयार चित्र का एक-एक उदाहरण नीचे दिया गया है ।

श्वेत-श्याम (ब्लैक/वार्इट) फिल्टर

परम पूजनीय डॉ. आठवलेजी का निम्नांकित चित्र पी.आर्इ.पी. तकनीक के श्वेत-श्याम फिल्टर के प्रयोग से निर्मित है ।

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पी.आर्इ.पी. फिल्टर

परम पूजनीय डॉ. आठवलेजी का निम्नांकित चित्र पी.आर्इ.पी. तकनीक के पी.आर्इ.पी. फिल्टर के प्रयोग से निर्मित हुआ है ।

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मॉनेट  फिल्टर

परम पूजनीय डॉ. आठवलेजी का निम्नांकित चित्र पी.आर्इ.पी. तकनीक के मॉनेट  फिल्टर के प्रयोग से निर्मित हुआ है ।

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लैंडस्केप फिल्टर

परम पूजनीय  डॉ. आठवलेजी का निम्नांकित चित्र पी.आर्इ.पी. तकनीक के लैंडस्केप फिल्टर के प्रयोग से निर्मित हुआ है ।

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. पी.आर्इ.पी. तकनीक से निर्मित चित्रों से प्राप्त जानकारी का स्वरूप

इस तकनीक में हम वस्तु एवं उसके आसपास के ऊर्जा-क्षेत्र का अध्ययन करते हैं जो कि विशिष्ट रंगों की छटाओं के रूप में प्रतिबिंबित होता है । निर्मित चित्र में प्रतिबिंबित रंगों की छटाएं प्रयुक्त फिल्टर के अनुसार परिवर्तित हो जाती हैं । रंगों की छटाओं द्वारा सकारात्मकता (सकारात्मक स्पंदन) अथवा नकारात्मकता (नकारात्मक स्पंदन) को दर्शाना, प्रयोग में लाए गए फिल्टर पर निर्भर करता है । अपने प्रयोगों में हमने हमने प्रयोगात्मक (एक्सपेरिमेंटल) वस्तु तथा नियंत्रित वस्तु (कंट्रोल) वस्तु एवं उसके आसपास के ऊर्जा-क्षेत्र की सकारात्मकता एवं नकारात्मकता में होनेवाले तुलनात्मक महत्वपूर्ण परिवर्तन पर ध्यान दिया । प्रयुक्त किए गए फिल्टर के अनुसार चित्रों में उत्पन्न वर्ण-छटाओं की व्याख्या में परिवर्तन होता है ।

तथापि प्रयोग में प्रयुक्त हुए प्रथम तीन फिल्टरों (पी.आर्इ.पी, श्वेत-श्याम अथवा मॉनेट) द्वारा निर्मित चित्रों में वर्ण-छटाओं की व्याख्या में परिवर्तन लगभग समान ही होता है । उदाहरण के लिए; नारंगी एवं लाल रंग नकारात्मकता को इंगित करते हैं, जबकि पीला, गुलाबी, हरा एवं नीला रंग सकारात्मकता को दर्शाता है । लैंडस्केप फिल्टर से निर्मित हुए चित्रों का विश्लेषण करते समय उनमें ब्राइटनेस, काँट्रास्ट तथा काले धब्बों की उपस्थिति अथवा अनुपस्थिति जैसे विशिष्ट लक्षणों पर ध्यान दिया जाता है ।

. पी.आर्इ.पी प्रणाली की प्रतिष्ठापना एवं कार्यशैली

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प्रकाश के संपूर्ण वर्णक्रम (स्पेक्ट्रम), छवि का छायाचित्र खींचने के लिए वीडियो कैमरा, पी.आर्इ.पी. सॉफ्टवेयर चलाने योग्य एक संगणक (कंप्यूटर) और अंतिम दोनों उपकरणों को जोडने के लिए संपर्क-सूत्र (लीड) के साथ समूची पी.आर्इ.पी. प्रणाली एक सूक्ष्म-विश्लेषण (स्कैनिंग) की स्थिति को बनाती है ।
प्रयोग के कक्ष की सामान्य व्यवस्था निम्न प्रकार की होनी चाहिए

  • संपूर्ण कक्ष को अपरावर्ती (मैट्ट फिनिश) श्वेत रंग से रंगा जाता है तथा वहां पर एफ.एस.एल. (पूर्ण इंद्रधनुषीय वर्णक्रमवाले प्रकाशस्रोत) को प्रयोज्य-वस्तु (सब्जेक्ट) के समक्ष निकटतम दूरी पर ऐसे कोण पर लगाया जाता है कि उसका ऊपरी छोर फर्श से लगभग २.६५ मीटर की उंचार्इ पर रहे तथा निचला छोर फर्श से ३५ डिग्री के कोण पर लगभग १.९ मीटर की उंचार्इ पर रहे ।
  • प्रयोज्य-व्यक्ति/वस्तु को खडे करने/रखने के लिए एक समरूप (युनिफॉर्म) श्वेत अपरावर्ती पटल जिसका आयाम लगभग १० सें.मी. x ५२ सें.मी. x ५२ सें.मी. होता है । मानक लाक्षणिक मापदंडों को बनाए रखने के लिए चबूतरे / मंच पर एक मध्यरेखा एवं व्यक्ति-वस्तु के पैरों के लिए स्थिति अंकित की जाती है (पोसिशिन इस मार्क्ड) ।
  • विषय-वस्तु को कैमरे से लगभग २.२५ मीटर की दूरी पर रखा जाता है।

हमारे सभी परीक्षणों में, चित्रों को कैमरे की भौतिक अवस्था अथवा सेटिंग्स (व्यवस्था) (उदाहरणार्थ- स्थान, गति इत्यादि) में बिना कोई परिवर्तन किए लिया गया है ।

. कार्य पद्धति

सभी प्रयोग सेंटर फॉर बायोफील्ड साइंसेज, महाराष्ट्र इंस्टिट्यूट आफ टक्नोलॉजी, पुणे, भारत, के परिसर में संपादित किए गए ।

हमने पी.आर्इ.पी. तकनीक का प्रयोग एक संत (परम पूज्य डॉ. आठवलेजी) द्वारा उपयोग की गई वस्तुओं तथा बाजार से लाई गई उसी प्रकार की वस्तुओं पर; अनिष्ट शक्तिओं द्वारा प्रभावित (आक्रमण की गई) वस्तुओं तथा अनिष्ट शक्तियों से अप्रभावित समान वस्तुओं पर; परम पूज्य डॉ. आठवलेजी के मार्गदर्शन में साधकों द्वारा देवताओं संबंधी सूक्ष्म-ज्ञान के आधार पर निर्मित चित्रों तथा उन्हीं देवताओं के व्यावसायिक चित्रों पर; तथा उनके आसपास के ऊर्जा क्षेत्रों की तुलना करने के लिए किया । हमने आध्यात्मिक प्रगति के विभिन्न स्तरों पर पहुंचे साधकों पर तथा उनके शरीर के बाह्य भागों जैसे केश, नख, लिखावट, छायाचित्र आदि के ऊर्जा क्षेत्रों की तुलना करने के लिए भी तकनीक का प्रयोग किया ।

विभिन्न फिल्टरों के प्रयोग से प्राप्त हुए चित्रों का विश्लेषण करने के उपरांत हमने अपने सूक्ष्म-ज्ञान विभाग से यह समझने के लिए सहायता ली कि वस्तुतः प्रयोग की प्रक्रिया के समय आध्यात्मिक आयाम में क्या हो रहा था ! इस प्रकार के प्रश्न का एक उदाहरण आगे दिया गया है –

परम पूज्य डॉ. आठवलेजी के मार्गदर्शन में साधकोंद्वारा भगवान शिव संबंधी सूक्ष्म-ज्ञान के आधार पर निर्मित चित्र तथा भगवान शिव के व्यावसायिक चित्र के तुलनात्मक अध्ययन में पी.आर्इ.पी. तथा मॉनेट फिल्टरों के उपयोग से लिए गए छायाचित्रों में व्यावसायिक चित्र की तुलना में साधकों द्वारा निर्मित भगवान शिव के चित्र के आसपास की ऊर्जा ने सकारात्मकता में वृद्धि को दर्शाया । तथापि उसी चित्र के श्वेत-श्याम फिल्टर द्वारा लिए गए छायाचित्र ने व्यावसायिक चित्र की तुलना में प्रथम दो फिल्टरों के जैसे अधिक सकारात्मकता को न दर्शाते हुए, नकारात्मकता में कमी होना दर्शाया । इसका मूल कारण क्या है ?

सूक्ष्म-ज्ञान विभागद्वारा दिए गए उत्तरों ने अनेक विषयों पर हमारा ज्ञान बढाया । इन प्रयोगों की लेख श्रृंखला में हम इस जानकारी को आपसे साझा करेंगे ।