१. रंग हमें आध्यात्मिक दृष्टि से कैसे प्रभावित करते हैं – प्रस्तावना
प्रतिदिन हम रंगों के संदर्भ में चयन करते हैं । उदाहरण के लिए यह चयन करना कि दिन में कौन से रंग के वस्त्र पहनें । समय-समय पर हमें यह चयन करना कि अगली बार कौन से रंग की चादरें क्रय करें । कभी-कभी हमें घर की भीतों के रंग का चयन करना पडता है ।
आध्यात्मिक शोध द्वारा हमें ज्ञात हुआ है कि अपनी रुचि के रंग के अनुसार (चाहे वह वस्त्र हों अथवा आसपास की वस्तुएं) हम आध्यात्मिक स्तर पर प्रभावित होते हैं । इस लेख में रंग हमें अनेक प्रकार से कैसे प्रभावित करते हैं, इस विषय में हमने अपना आध्यात्मिक शोध प्रस्तुत किया है । जिससे हमारे पाठक अपने जीवन-स्तर को बढाने का निर्णय लेने हेतु अधिक सुसज्जित हों ।
२. रंग हमें आध्यात्मिक दृष्टि से कैसे प्रभावित करते हैं ?
सूक्ष्म तथा अदृश्य स्तर पर संपूर्ण ब्रह्मांड सत्त्व, रज और तम इन तीन सूक्ष्म गुणों से बना है । हमारे जालस्थल पर हमने इसका विस्तृत विवरण दिया है । आप से विनती है कि इस लेख को भलीभांति समझने हेतु कृपया आप इस विषय से परिचित हो जाएं ।
तीन सूक्ष्म-गुणों के आधार पर रंगों का वर्गीकरण भी सात्त्विक, राजसिक अथवा तमासिक; इस प्रकार किया गया है । सत्त्व का अर्थ है, आध्यात्मिक शुद्धता और रज तथा तम का क्रमशः अर्थ है, क्रिया और आध्यात्मिक अज्ञान । सात्त्विक रंग के वस्त्र पहनना साधना के लिए सहायक होता है, जबकि रज-तम प्रधान रंग आध्यात्मिक प्रगति के लिए हानिकारक है। रज-तमप्रधान वस्त्र पहनने से हमारे आसपास नकारात्मक स्पंदन बढ जाते हैं । इससे हमारी ओर अनिष्ट शक्तियों के आकर्षित होने की संभावना अधिक होती है; क्योंकि वे भी रज-तम प्रधान होती हैं ।
निम्नलिखित सूची में रंग और हमारी आध्यात्मिक स्थिति पर उनके परिणाम दर्शाए हैं । जहां रंग को सहायक दर्शाया गया है, उसका अर्थ यह है कि संबंधित रंग सकारात्मक स्पंदनों को आकर्षित करता है और नकारात्मक स्पंदनों को दूर हटाता है । हानिकारक का अर्थ है, नकारात्मक स्पंदनों को आकर्षित करने की क्षमता के साथ ही आध्यात्मिक दृष्टि से सकारात्मक स्पंदनों को हमसे दूर करने की क्षमता ।
रंग हमें आध्यात्मिक दृष्टि से कैसे प्रभावित करते हैं
रंग | प्रधान सूक्ष्म गुण | हम पर प्रभाव | |||
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श्वेत | सत्त्व के परे | सर्वाधिक सहायक | |||
पीला | सत्त्व | अधिक सहायक | |||
आसमानी | सत्त्व | अधिक सहायक | |||
नीला | सत्त्व | अधिक सहायक | |||
गुलाबी | सत्त्व | सहायक | |||
भगवा | सत्त्व-रज | सहायक | |||
हरा | सत्त्व-रज | सहायक | |||
लाल | रज | मध्यम सहायक / हानिकारक १ | |||
गहरा हरा | रज-तम | मध्यम हानिकारक | |||
बैंगनी | रज-तम | मध्यम हानिकारक | |||
जामुनी | तम-रज | मध्यम हानिकारक | |||
भूरा | तम | मध्यम हानिकारक | |||
धूसर (ग्रे) | तम | मध्यम हानिकारक | |||
काला | तम | सर्वाधिक हानिकारक |
टिप्पणी : १ सात्त्विक अथवा तामसिक, जो भी मूल स्वभाव होता है, लाल रंग उसे गतिमान करता है ।
उपरोक्त सारणी से यह ध्यान में आता है कि श्वेत, पीले तथा नीले जैसे रंग हमारे सर्व ओर की पवित्रता (शुद्धता) में वृद्धि करने में सहायक होते हैं । दूसरी ओर काले रंग में हानिकारक स्पंदन होते हैं, जो न केवल अनिष्ट शक्तियों को आकर्षित करते हैं; अपितु अच्छी शक्तियों को दूर भी करते हैं ।
निम्न दो सूक्ष्म-ज्ञान पर आधारित चित्र श्वेत और काले रंग के वस्त्र धारण करने पर उत्पन्न स्पंदनों में अंतर दर्शाते हैं । सूक्ष्म-ज्ञान पर आधारित चित्र रंगों द्वारा आकर्षित / विकर्षित शक्ति और ऐसे रंग धारण करने वाले व्यक्ति पर होने वाले उनके परिणामों पर विशेष रूप से केंद्रित हैं । सूक्ष्म-ज्ञान पर आधारित ये चित्र कु. प्रियंका लोटलीकर ने बनाए हैं, जिन्हें प्रगत छठवीं इंद्रिय प्राप्त है ।
सूक्ष्म-ज्ञान पर आधारित दोनों चित्र पृथक रूप से काले और श्वेत रंगों द्वारा आकर्षित तथा प्रक्षेपित स्पंदन दर्शाते हैं । अंतिम रूप से व्यक्ति द्वारा प्रक्षेपित अथवा आकर्षित स्पंदन अनेक घटकों पर निर्भर होते है, जैसे कि – व्यक्ति का आध्यात्मिक स्तर, स्वभावदोष, उस समय मन की स्थिति, अनिष्ट शक्तियों द्वारा प्रभावित होना अथवा न होना, वस्त्रों के रंग के प्रकार आदि ।
३. हमें विशिष्ट रंग प्रिय होने के विभिन्न कारण
शारीरिक स्तरपर : साधारणतः व्यक्ति को कोई विशिष्ट रंग इसलिए प्रिय होता है; क्योंकि वह उसकी त्वचा के रंग से मेल खाता है।
मानसिक स्तरपर : व्यक्ति की मानसिक स्थिति के अनुसार विशिष्ट रंग उसे प्रिय अथवा अप्रिय होता है । मानसिक स्थिति में होने वाले ये परिवर्तन सामान्यतः बाह्य परिस्थिति के अनुरूप होते हैं, उदा.
- प्रसंग के अनुसार : बाहर जाते समय लोग चटख रंग पहनने को प्राथमिकता देते हैं ।
- प्रसंग और संस्कृति के अनुसार : कुछ संस्कृतियों में अंतिम संस्कार के समय काले वस्त्र पहने जाते हैं, जबकि अन्यों में लोग श्वेत पहनते हैं । अंतिम संस्कार के समय कौन से रंग के वस्त्र पहनने चाहिए ? यह लेख देखें ।
- परंपराओं के अनुसार : कुछ देशों में अधिवक्ता काले कपडे पहनते हैं; क्योंकि वहां वैसी परंपरा होती है ।
- आयु के अनुसार : कुमार तथा युवावस्था में गुलाबी रंग से बहुत लगाव होता है । बढती आयु के साथ इस रंग में रुचि धीर-धीरे अल्प होती जाती है ।
- रंग का विशिष्ट महत्त्व होने के कारण :
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किसी प्रख्यात व्यक्ति द्वारा पहने वस्त्रों के रंग तथा शैली से प्रायः उसके अनुयायियों की रुचि प्रभावित होती है।
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वैसा चलन होने के कारण
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समाज के किसी अप्रिय घटक से उस रंग के जुडाव के कारण भी, लोगों को वह रंग अप्रिय लगता है ।
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आध्यात्मिक स्तरपर :
- मूल स्वभाव (प्रकृति) के अनुसार : किसी व्यक्ति को विशिष्ट रंग में रुचि होने का सबसे उपयुक्त कारण है – उस रंग का व्यक्ति के स्वभाव (प्रकृति) से मेल खाना । सात्त्विक व्यक्ति सात्त्विक रंगों में रुचि दिखाएगा, उदा. श्वेत अथवा हल्का नीला । यदि व्यक्ति का मूल स्वभाव (प्रकृति) तामसिक हो, तो वह अधिक तामसिक रंगों में रूचि दिखाएगा, उदा. काला ।
- अनिष्ट शक्तियों के प्रभाव के अनुसार : अनिष्ट शक्ति द्वारा नियंत्रित व्यक्ति को सामान्यतः काले रंग में भी अच्छे स्पंदन अनुभव होते हैं । अनिष्ट शक्तियों द्वारा आवेशित व्यक्ति के चारों देह, उदा. शरीर, मन, बुद्धि और सूक्ष्म-अहं; आध्यात्मिक दृष्टि से प्रभावित हो सकते हैं । यदि यह कष्ट दीर्घकाल तक बने रहते हैं, तो व्यक्ति धीरे-धीरे अपना अस्तित्व खो देता है । आवेशित करने वाली शक्ति के लक्षण प्रकट होते हैं और व्यक्ति की रुचि-अरुचि को प्रभावित करते हैं, जो कि उसके आचरण से अभिव्यक्त होता है । इसका तात्पर्य यह है कि व्यक्ति की चेतना को पूर्णतः अनिष्ट शक्ति नियंत्रित कर लेती है । अनिष्ट शक्ति के तम प्रधान होने के कारण, व्यक्ति भी काले रंग की तम-प्रभावित वस्तुओं जैसे काले कपडों में रुचि लेने लगता है ।
विश्व की कितनी प्रतिशत जनसंख्या भूतावेशित है ? – यह लेख देखें ।
काले वस्त्र पहनने से निकटवर्ती लोग भी प्रभावित होते हैं । यदि अनिष्ट शक्तियों से पीडित दो व्यक्ति काले वस्त्र पहनें, तो यह दो अनिष्ट शक्तियों में सूक्ष्म काली शक्ति का आदान-प्रदान करने में सहायक होता है । तथापि यदि कोई व्यक्ति इसी परिसर में प्रामाणिक रूप से साधना करने के प्रयास कर रहा हो, तो उस व्यक्ति द्वारा काले वस्त्र पहनने से तमोगुण में वृद्धि होने के कारण उसपर भी विपरीत परिणाम होने की संभावना रहती है; क्योंकि अनिष्ट शक्तियां लोगों को तीव्रता और गंभीरता से साधना करने से परावृत्त करने पर अपना ध्यान केंद्रित करती हैं ।
- विगत जन्म के संस्कारों के अनुसार : पिछले जन्म में हरे रंग के वस्त्र पहने हुए व्यक्ति द्वारा आहत होने से व्यक्ति को अगले जन्म में इस सूक्ष्म-स्मृति के कारण हरे रंग से घृणा होने की संभावना अधिक होती है ।
- आध्यात्मिक साधना के स्तर में परिवर्तन होने के कारण : निरंतर भावावस्था में रहनेवाला साधक नीले रंग को प्रधानता देगा । आध्यात्मिक दृष्टि से भाव का सूक्ष्म-रंग नीला होने के कारण ऐसा होता है ।
४. वस्त्रों के रंग के चयन हेतु सामान्य आध्यात्मिक दृष्टिकोण
वस्त्रों का रंग सात्त्विक होना चाहिए : श्वेत, पीला, नीला और उनकी छटाओं का चयन करें । साधारण मनुष्य पर रंग का प्रभाव ०.००१ प्रतिशत होता है । देखने में छोटा सा यह प्रभाव अधिकतर व्यक्तियों में शारीरिक और मानसिक स्तर पर महत्त्वपूर्ण प्रभाव छोडता है । इतना छोटा-सा प्रभाव होते हुए भी सत्त्व-रज युक्त वस्त्र पहनने से व्यक्ति को निम्न लाभ होते हैं :
- उसके सत्त्व-रजयुक्त व्यक्तित्त्व के लिए सहायक होते हैं अथवा
- उसमें विद्यमान रज-तमप्रधानता न्यून होती है ।
यदि किसी व्यक्ति को काले वस्त्र प्रिय हैं, तो यह लेख पढने के उपरांत भी कोई न कोई कारण खोजकर काले कपडे पहनना जारी रखनेका प्रयत्न कर सकता है । यहां विशेष रूप से यह परामर्श देना आवश्यक है कि इस प्रसंग में किसी व्यक्ति द्वारा उसकी बुद्धि का उपयोग करना केवल हानिकारक ही है; क्योंकि आध्यात्मिक दृष्टि से काले वस्त्र पहननेकी पुष्टि करने जैसा कुछ भी नहीं है और यह किसी की अच्छी स्थिति पर विपरीत परिणाम कर सकता है ।
वस्त्रों का रंग गहरा नहीं होना चाहिए : गहरे रंगों पर सूक्ष्म तमोगुण की प्रधानता रहती है । कालांतर में गहरे रंग के वस्त्र पहनने वाला व्यक्ति तम प्रधान हो जाता है ।
वस्त्रों का रंग एक समान हो : एक ही सीधे और आध्यात्मिक रंग के कलाकृति विहीन वस्त्र पारदर्शिता के प्रतीक होते हैं और इसलिए आध्यात्मिक दृष्टि से सात्त्विक माने जाते हैं ।
वस्त्रों के रंग एक दूसरे के लिए पूरक होने चाहिए : यदि ऊपरी और निचला वस्त्र भिन्न रंग का पहनना हो, तो रंग एक दूसरे के पूरक होने चाहिए, अर्थात उन्हें न्यूनतम २० प्रतिशत मेल खाना चाहिए । उदा. दो सात्त्विक रंग एक साथ होना आध्यात्मिक दृष्टि से अत्यंत उचित है । नीचे सात्त्विक रंगों की जोडी के कुछ उदाहरण दिए हैं :
- श्वेत और हलका नीला
- हलका नीला और गहरा नीला
वस्त्रों के दो रंगों में अति भिन्नता नहीं होनी चाहिए : रंगों की दो भिन्न छटाओं को एक साथ रखा जाए, तो नकारात्मक (अनिष्ट) स्पंदन निर्मित होते हैं । इसलिए दो रंगों में अतिभिन्नता नहीं होनी चाहिए । उदा. पीला (सात्त्विक रंग) और हरा (राजसिक रंग) एक साथ नहीं होने चाहिए; तथापि हरे की जो छटा पीले के साथ मेल खाती हो, चल सकती है । यह इसलिए कि इसमें पीला रंग अधिक होने के कारण यह अधिक सात्त्विक हो जाता है ।
कई बार औपचारिक कार्यक्रमों में हम देखते हैं कि लोग टुक्सेडो जैसा काले और श्वेत रंगका परिधान पहनते हैं । लोग इस औपचारिक परिधान को सुंदरता और सामाजिक प्रतिष्ठा का प्रतीक मानते हैं; तथापि आध्यात्मिक दृष्टिकोण से चित्र अत्यंत विपरीत है । वास्तव में श्वेत जैसे अत्यंत सात्त्विक रंग से प्रक्षेपित सूक्ष्म-स्पंदन और अत्यंत तामसिक काले रंग से प्रक्षेपित स्पंदनों में युद्ध होता है । इस युद्ध से कष्टप्रद स्पंदन उत्पन्न होते हैं, जिससे अनिष्ट शक्तियों द्वारा प्रभावित होने की आशंका बढती है । अतः आध्यात्मिक दृष्टि से टुक्सेडो जैसे काले और श्वेत रंग के परिधान धारण करना अच्छा नहीं है ।
वस्त्र में सात्त्विक और राजसिक रंगों का अनुपात : वस्त्रों में सात्त्विक और राजसिक रंगों का अनुपात यदि ऐसा हो कि राजसिक रंग अत्यल्प मात्रा में हो, तो वस्त्र से प्रक्षेपित स्पंदन मध्यम होते हैं । यदि श्वेत वस्त्र पर लाल रंग के फूलों की कलाकृति हो, तो वस्त्र से अच्छे स्पंदन अनुभव होते हैं । अर्थात सात्त्विक रंग की मात्रा राजसिक रंग की मात्रा से अधिक होने पर राजसिक रंग का प्रभाव न्यून हो जाता है । संक्षेप में, रंगों से प्रक्षेपित होनेवाले स्पंदन वस्त्र में प्रयुक्त सात्त्विक और राजसिक रंगों के अनुपात पर निर्भर होते हैं ।
व्यक्ति की साधना के परिणामस्वरूप और ६० प्रतिशत आध्यात्मिक स्तर प्राप्त करने पर उसके मन और बुद्धि पर रंगों का न्यूनतम प्रभाव होता है । यह प्रभाव व्यक्ति के बढते आध्यात्मिक स्तर के साथ न्यून होता जाता है । तथापि शरीर स्थूल (दृश्य) होने से शारीरिक स्तर पर इसका प्रभाव पड सकता है और उच्च स्तर की अनिष्ट शक्तियां स्थूल वस्तुओं को सहजता से प्रभावित कर सकती हैं ।
५. सारांश
हमें आशा है कि इस लेख द्वारा रंग हमारे दैनिक जीवन को आध्यात्मिक दृष्टि से कैसे प्रभावित करते हैं, इस संदर्भ में ज्ञान प्राप्त हुआ होगा । ध्यान में रखने योग्य सामान्य नियम यह है कि जीवन में सत्त्व गुण बढाकर रज-तम गुण न्यून करने चाहिए । यह आध्यात्मिक सिद्धांत समझने के साथ प्रत्यक्ष जीवन में अमल में लाने से और किसी लोकप्रिय तामसिक चलन के प्रवाह में न बहकने से जीवन सुखी और संतोषजनक होगा ।