आध्यात्मिक उपचारों के परिणामों की व्याख्या हम कैसे करेंगे ?

SSRF का सुझाव है कि शारीरिक और मानसिक व्याधियों के लिए आध्यात्मिक उपचारों के साथ-साथ चिकित्सकीय उपचार भी जारी रखे जाएं ।

पाठकों से अनुरोध है कि अपने विवेक से वह कोई भी आध्यात्मिक उपचार कर सकते हैं ।

. आध्यात्मिक उपचारों के परिणामों की व्याख्या करने में छठवीं इंद्रिय का महत्त्व

जब तक किसी के पास प्रगत छठवीं इंद्रिय न हो तब तक उसके लिए आध्यात्मिक उपचारों के विशिष्ट परिणाम की व्याख्या कर पाना कठिन है । प्रगत छठवीं इंद्रिय के अभाव में, हमें आध्यात्मिक उपचारों से जो अनुभव आते हैं उनके पीछे का सही कारण समझ पाना कठिन होता है । उदा. दो व्यक्तियों को विभूति के उपचार करने से लाभ हुआ है परंतु दोनों के अनुभव पूर्णत: अलग हो सकते हैं ।

  • अनिष्ट शक्तियों से पीडित व्यक्ति कष्ट अनुभव करता है । वास्तव में वह कष्ट अनिष्ट शक्ति को हो रहा होता है क्योंकि विभूति से प्रक्षेपित चैतन्य अनिष्ट शक्ति की नकारात्मकता से युद्ध करता है । पीडित व्यक्ति की चेतना अनिष्ट शक्ति से एक रूप हो जाती है इसलिए अनिष्ट शक्ति को होनेवाला कष्ट पीडित व्यक्ति को अपना कष्ट अनुभव होता हैं ।
  • जो व्यक्ति अनिष्ट शक्ति से पीडित नहीं होता, उसे विभूति के चैतन्य से निकलनेवाले सकारात्मक स्पंदनों से हल्कापन लगता है ।

एक अन्य पहलू यह है कि उच्च स्तर की अनिष्ट शक्तियां लंबे समय तक विभूति के चैतन्य का सामना कर पाती हैं, इस कारण ऐसा प्रतीत होता है कि उन पर उपचार का असर नहीं हो रहा । वे व्यक्ति को उपचारों का भ्रामक प्रभाव दिखाकर, उपचार कार्य कर रहे हैं अथवा नहीं, इसका झूठा आभास दिलाती हैं ।

निम्नांकित सारिणी में दिखाया गया है कि सूक्ष्म दृष्टि से प्राप्त ज्ञान के अनुसार, आध्यात्मिक उपचार के समय अनिष्ट शक्तियों से पीडित व्यक्ति जो अनुभव करता है उसके दो पहलू रहते हैं । दो प्रकार की चेतनाएं कार्यरत रहती हैं, एक साधक की और दूसरी अनिष्ट शक्ति से पीडित व्यक्ति की । प्रकटीकरण के समय अर्थात जब पीडित व्यक्ति प्रकट अथवा विक्षिप्त होना आरंभ करता है, तब अनिष्ट शक्ति की चेतना सामने आती है । तथापि किसकी चेतना अधिक प्रभावी है, इस आधार पर भिन्न-भिन्न प्रकटीकरण में यह भिन्न-भिन्न हो सकता है। जिनकी छठवीं इंद्रिय अतिजाग्रत् है, केवल वे ही बता सकते हैं कि सामने जो चेतना है वह साधक की है अथवा अनिष्ट शक्ति की ।

सकारात्मक और नकारात्मक उत्प्रेरकों का साधक और अनिष्ट शक्तियों पर होनेवाले प्रभाव में अंतर

(प्रगत छठवीं इंद्रिय युक्त व्यक्ति की सूक्ष्म दृष्टि द्वारा देखा गया )

उत्प्रेरक का प्रकार

सकारात्मक उत्प्रेरक

नकारात्मक उत्प्रेरक

उदाहरण

देवताओं के चित्र, विभूति इत्यादि

रजतम प्रेरक जैसे तांत्रिक यंत्र, मायावी संगीत

प्रभाव अनुभव

साधक

अनिष्ट शक्ति

साधक

अनिष्ट शक्ति

शक्ति मिलना

हां

नहीं

नहीं

हां

कष्ट

नहीं

हां

हां

नहीं

चेहरे के हावभाव सामान्य कष्ट कष्ट प्रसन्न व्यंगात्मकमुस्कान

अप्रकट अवस्था में

अच्छा लगना

अच्छा नहीं लगना

सामान्य

उदा. यदि व्यक्ति का प्रकटीकरण ७०% है, तो इसका अर्थ यह हुआ कि सामने अनिष्ट शक्ति की चेतना ७०%  तथा साधक की केवल ३०% है और वह गौण हो जाती है । ऐसी अवस्था में, व्यक्ति के चेहरे में आमूल परिवर्तन हो जाता है और वह असामान्य ढंग से व्यवहार करने लगता है । ऐसे में, यदि हम अनिष्ट शक्ति के हाव भाव की ओर उस समय देखें (जो साधक के ही चेहरे पर दिखता है ) जब उसे कोर्इ सात्त्विक उत्प्रेरक जैसे कि देवता का चित्र दिखाएं तो वह घूरकर देखेगा, क्रोधित होगा अथवा चिल्लाएगा । ऐसा इसलिए होता है क्योंकि चित्र से प्रक्षेपित होनेवाले चैतन्य से अनिष्ट शक्ति, जो कि रजतम प्रधान है, को कष्ट होता है । कभी कभी वह अपने काली शक्तिके संचय अथवा उच्च स्तर की अनिष्ट शक्तियों से काली शक्ति लेती हैं और ऐसे दिखावा करती हैं जैसे उनपर आध्यात्मिक उपचारों का काेइर् प्रभाव नहीं हो रहा । ऐसे में मैं उपचार नहीं कर पा रहा यह विचार कर उपचार करनेवाला साधक निरुत्साही हो सकता है । परंतु यह प्रतिरोध तब तक ही रहता है जब तक अनिष्ट शक्ति के पास काली शक्ति का संग्रह है ।

संक्षेप में, इस पूरी प्रक्रिया की व्याख्या जासूसी खेल जैसी है । कुत्ते और बिल्ली का खेल जो कि अनिष्ट शक्ति आध्यात्मिक उपचार करनेवाले व्यक्ति के साथ खेलती है । केवल साधक ही अपनी प्रगत छठवीं इंद्रिय के आधार पर अनिष्ट शक्ति की चालें समझ सकता है और उसे हरा सकता है ।

. कौन समझ सकता है कि आध्यात्मिक उपचार के समय प्रत्यक्ष में क्या हो रहा है ?

अब समझ लेते हैं कि व्यक्ति और प्रकट अनिष्ट शक्ति के मध्य का अंतर कौन समझ सकता है

. पीडित व्यक्ति

  • पीडित व्यक्ति का आध्यात्मिक स्तर ५० % से अधिक हो तो मनमें आनेवाले विचार उसके हैं अथवा अनिष्ट शक्ति के, इसमें वह अंतर कर पाता है ।
  • यदि अनिष्ट शक्ति का नियंत्रण पीडित व्यक्ति पर ३०% से अल्प है तो व्यक्ति यह समझने में सक्षम होता है कि विचार किसके हैं ।

आ. आध्यात्मिक  उपाचर विशेषज्ञ

  • सामान्य मानसोपचार विशेषज्ञ उच्च स्तर की अनिष्ट शक्तियों के बारे में कभी नहीं समझ सकते, न ही वह सूक्ष्म युद्ध की बारीकियों को समझ सकते हैं ।
  • यदि उपचार करनेवाला उच्च स्तर के मांत्रिक के अधीन हो तो न्यून आध्यात्मिक स्तर होने पर भी उपचार करनेवाले की सूक्ष्म क्षमता और छठवीं इंद्रिय की क्षमता बढ सकती है । उपाचार करनेवाले का बडा मांत्रिक पीडित व्यक्ति की अनिष्ट शक्ति को अपने दास की तरह नियंत्रित करता है । यहां वह अनिष्ट शक्ति को अस्थायी रूप से दूर करने का ढोंग भी करता है, कुछ समय के उपरांत वह शक्ति वापस आती है ।
  • वे व्यक्ति जो
    • ७०% से अधिक आध्यात्मिक स्तर के हैं,
    • अथवा जो प्रत्यक्ष संत के मार्गदर्शन में कार्य कर रहे हैं,

वे ही जो हो रहा है उसका सही निदान कर सकते हैं ।

३. व्यक्ति पर आए काले आवरण पर उपचार का प्रभाव आधारित होना

आध्यात्मिक उपचारों से होनेवाले कष्टों से बचने के लिए अनिष्ट शक्तियां अथवा पितरों की सूक्ष्म देह अपने तथा पीडित व्यक्ति के चारों ओर काली शक्ति का आवरण निर्माण करते हैं । यह काली शक्ति का आवरण उनके लिए सुरक्षा कवच की तरह कार्य करता है ।

आध्यात्मिक उपचारों के समय प्रकट होने के उपरांत, अनिष्ट शक्ति को कितने समय में कष्ट अनुभव होता है, यह आवरण के घनत्व और दृढता पर निर्भर करता है । जिसे अल्प कष्ट हो अथवा जो न्यून स्तर की अनिष्ट शक्ति के कष्ट से पीडित हो, उसपर काली शक्ति का आवरण हलका होता है । अत: इस अवरोध को तोडना और अनिष्ट शक्ति तक पहुंचना सरल होता है । इसलिए जो व्यक्ति न्यून स्तर के भूवर्लोक की अनिष्ट शक्ति से अल्प मात्रा मे पीडित हो, उसे आध्यात्मिक उपचारों के प्रभाव में आते ही कष्ट होने लगते हैं । ऐसे पीडित व्यक्ति के समस्त कष्टों को तीन- चार मास में ही नष्ट करना संभव होता है ।

पीडित व्यक्ति अथवा अनिष्ट शक्तियां जिनके आसपास काली शक्ति का घना आवरण रहता है उन्हें आध्यात्मिक उपचार करने के उपरांत भी कष्ट अनुभव नहीं होता । अनिष्ट शक्ति का आध्यात्मिक स्तर अधिक होने पर भी ऐसा होता है । ऐसी अनिष्ट शक्ति पर निरंतर आध्यात्मिक उपचार करने पर कुछ माह के पश्चात उस व्यक्ति को कष्ट अनुभव होने लगते हैं । आध्यात्मिक उपचारों के साथ-साथ साधना के छ: मूल तत्व तथा सात्त्विक जीवन पद्धति के अनुसार साधना करने पर व्यक्ति यह कालावधि घटा भी सकता है ।