मांसाहार की तुलना में शाकाहार के प्रभाव एवं लाभ

सारांश : शाकाहारी अन्न पदार्थों के लाभ और मांसाहार न करने सम्बन्धी अनेक तुलनात्मक अभ्यास उपलब्ध हैं । मांसाहार तथा शाकाहार करने से होने वाले लाभ एवं प्रभावों पर यह लेख प्रकाश डालता है । इस लेख में हमने डीडीएफएओ (DDFAO) नामक बायोफिडबैक मशीन की सहायता से मांसाहारी तथा शाकाहारी अन्न पदार्थों से अनिष्ट शक्तियों के कष्ट से पीडित और पीडाविहिन साधकों के कुण्डलीनी चक्रों पर होने वाले प्रभावों का इलैक्ट्रोसोमैटिक पद्धति द्वारा किया शोध प्रस्तुत किया है ।

प्रमुख अन्वेषक : डॉ. नन्दिनी सामन्त, एमबीबीएस, डीपीएम.

इस लेख को अच्छे ढंग से समझने के लिए, यह लेख पढने के पहले कृपया यह लेख पढें – “इलैक्ट्रोसोमैटिक स्कैनिंग तकनीक का उपयोग कर किया आध्यात्मिक शोध का प्रस्तावनात्मक विवेचन”

१. प्रस्तावना

आध्यात्मिक साधना के लिए सहायक होने से, अतिप्राचीन काल से ही शाकाहार का समर्थन किया जा रहा है । शाकाहार एवं मांसाहार करने पर अनिष्ट शक्तियों के कष्टक से पीडित और पीडाविहिन साधकों की कुण्डलीनी चक्रों पर दिखाई देने वाले प्रभावों और लाभों का अभ्यास हमने इस प्रयोग में किया है । स्थूल-देह के विविध अवयवों के तथा मन एवं बुद्धि के कार्य के लिए आवश्यक ऊर्जा प्रदान करने का कार्य कुण्डलीनी चक्रों द्वारा किया जाता है, जो कि सूक्ष्म-शक्ति के केन्द्र होते हैं ।

२. प्रयोग के कुछ विवरण

२.१ प्रयोग का कालखण्ड

४ जनवरी २००९ से २२ फरवरी २००९

२.२ प्रयुक्तों का आयुवर्ग

२१ से ५६ वर्ष

२.३ पद्धति

पद्धति के विवरण के लिए कृपया हमारे इस लेख का सन्दर्भ लें – “इलैक्ट्रोसामैटिक स्कैनिंग तकनीक का उपयोग कर किया आध्यात्मिक शोध का प्रस्तावनात्मक विवेचन”

इस प्रयोग में, मूल स्थिति के निरीक्षण प्रविष्ट करने के उपरान्त हमने प्रयुक्तों को मांसाहार करने के लिए कहा । निरीक्षण जब तक मूलभूत स्तर तक नहीं आते, तब तक १ से ४ घंटे के अंतर से निरीक्षण लिए गए और पश्‍चात प्रयोग समाप्त किया गया ।

मूल स्थिति का नया निरीक्षण लेने के उपरान्त, प्रयुक्तों को शाकाहारी अन्न पदार्थ दिए गए और उपर्युक्त प्रक्रिया प्रयुक्तों के मूल स्थिति में आने तक पुनः की गई ।

३. मांसाहारी एवं शाकाहारी अन्न पदार्थ खाने पर होने वाले प्रभावों के निरिक्षण

शाकाहार एवं मांसाहार खाने पर हुआ  प्रभाव

ऊपरी चार चक्रों की कार्यरतता

निचले तीन चक्रों की कार्यरतता

मांसाहार
भोजन करने पर

शाकाहारी
भोजन करने पर

मांसाहार
भोजन करने पर

शाकाहारी
भोजन करने पर

अनिष्ट शक्तियों के कष्ट से
मुक्त साधक

श्री. ए.ऍम.

वृद्धि.

वृद्धि.

न्यूनता

न्यूनता

श्री. सी.वी.

वृद्धि

वृद्धि

न्यूनता

न्यूनता

श्री. ऍम. जी.

वृद्धि

न्यूनता

न्यूनता

वृद्धि

श्री. एम. के.

वृद्धि

वृद्धि

न्यूनता

न्यूनता

सुश्री. बी.पी.

न्यूनता

न्यूनता

न्यूनता

न्यूनता

कुल

वृद्धि

न्यूनता

-१

अनिष्ट शक्तियों के कष्ट से
पीडित साधक

श्री. ए.के.

वृद्धि

वृद्धि

न्यूनता

वृद्धि

सुश्री. ए.एम.

वृद्धि

न्यूनता

न्यूनता

न्यूनता

श्री. ऐन.के.

वृद्धि

न्यूनता

न्यूनता

न्यूनता

सुश्री. सी.जी.

वृद्धि

न्यूनता

वृद्धि

वृद्धि

श्री. डी.जी.

वृद्धि

वृद्धि

न्यूनता

न्यूनता

कुल

वृद्धि

-५

न्यूनता

मांसाहार तथा शाकाहार करने पर
होने वाले प्रभावों की कालावधि

मांसाहार के प्रभाव

शाकाहार के प्रभाव

अनिष्ट
शक्तियों के
कष्ट से
मुक्त साधक

श्री. ए.ऍम.

१८ घण्टे १८ मिनट

२५  घण्टे १३ मिनट

श्री. सी.वी.

२६ घण्टे ५६ मिनट

४४ घण्टे ३१ मिनट

श्री. ऍम. जी.

६ घण्टे २२ मिनट

३ घण्टे २४ मिनट

श्री. एम. के.

६ घण्टे ४५ मिनट

२ घण्टे ४५ मिनट

सुश्री. बी.पी.

४ घण्टे १५ मिनट

२० घण्टे १३ मिनट

अनिष्ट
शक्तियों के
कष्ट से
पीडित साधक

सुश्री. बी.पी.

४ घण्टे १५ मिनट

२१ घण्टे २० मिनट

सुश्री. ए.एम.

२ घण्टे २० मिनट

३१ घण्टे १० मिनट

श्री. ऐन.के.

५ घण्टे १० मिनट

३ घण्टे १६ मिनट

सुश्री. सी.जी.

४ घण्टे ३५ मिनट

२० घण्टे १५ मिनट

श्री. डी.जी.

२२ घण्टे ४५ मिनट

२ घण्टे ४१ मिनट

    मांसाहार  तथा शाकाहार करने पर होने वाले प्रभावों की  कालावधि
 समय  मांसाहार करना  शाकाहारी भोजन करना
अनिष्ट शक्तियों के कष्ट से
मुक्त साधक
 न्यूनतम कालवधि  ४ घण्टे १५ मिनट  २ घण्टे ४५ मिनट
 अधिकतम कालावधि  २६ घण्टे ५६ मिनट  ४ घण्टे३१ मिनट
अनिष्ट शक्तियों के कष्ट से
पीडित साधक
 न्यूनतम कालवधि  २घण्टे २०मिनट  २ घण्टे ४१ मिनट
 अधिकतम कालावधि  २२ घण्टे ४५ मिनट  ३१ घण्टे  १०मिनट

निरीक्षणों का सारांश निम्न प्रकार से है ।

३.१ मांसाहार करने पर कुण्डलीनी चक्रों पर दिखने वाला प्रभाव

३.१.१ ऊपरी चार चक्रों की कार्यरतता पर दिखने वाला प्रभाव

  • अनिष्ट शक्तियों के कष्ट से मुक्त ८०% साधकों में सुधार दिखाई दिया ।
  • अनिष्ट शक्तियों के कष्ट से पीडित १००% साधकों में सुधार दिखाई दिया ।

३.१.२ निचले तीन चक्रों की कार्यरतता पर हुआ प्रभाव

  • अनिष्ट शक्तियों के कष्ट से मुक्त ०% साधकों में सुधार दिखाई दिया ।
  • अनिष्ट शक्तियों के कष्ट से पीडित २०% साधकों में सुधार दिखाई दिया ।

३.२ शाकाहारी अन्न पदार्थ खाने से कुण्डलीनी चक्रों की कार्यरतता पर हुआ प्रभाव

३.२.१ ऊपरी चार चक्रों की कार्यरतता पर दिखने वाला प्रभाव

  • अनिष्ट शक्तियों के कष्ट से मुक्त ६०% साधकों में सुधार दिखाई दिया ।
  • अनिष्ट शक्तियों के कष्ट से पीडित ४०% साधकों में सुधार दिखाई दिया ।

३.२.२ निचले तीन चक्रों की कार्यरतता पर हुआ प्रभाव

  • अनिष्ट शक्तियों के कष्ट से मुक्त २०% साधकों में सुधार दिखाई दिया ।
  • अनिष्ट शक्तियों के कष्ट से पीडित ४०% साधकों में सुधार दिखाई दिया ।

३.३ मांसाहार करने पर कुण्डलीनी चक्रों की कार्यरतता पर हुए प्रभाव की कालवधि

३.३.१ न्यूनतम कालवधि

  • अनिष्ट शक्तियों के कष्ट से मुक्त साधकों में ४ घंटे और १५ मिनट
  • अनिष्ट शक्तियों के कष्ट से पीडित साधकों में २ घंटे और २० मिनट

..२ अधिकतम कालावधि

  • अनिष्ट शक्तियों के कष्ट से मुक्त साधकों में २६ घंटे और ५६ मिनट
  • अनिष्ट शक्तियों के कष्ट से पीडित साधकों में २२ घंटे और ४५ मिनट

३.४ शाकाहारी अन्न पदार्थ खाने पर कुण्डलीनी चक्रों की कार्यरतता पर हुए प्रभाव की कालवधि

३.४.१ न्यूनतम कालवधि

  • अनिष्ट शक्तियों के कष्ट से मुक्त साधकों में २ घंटे और ४५ मिनट
  • अनिष्ट शक्तियों के कष्ट से पीडित साधकों में २ घंटे और ४१ मिनट

३.४.२ अधिकतम कालावधि

  • अनिष्ट शक्तियों के कष्ट से मुक्त साधकों में ४४ घंटे और ३१ मिनट
  • अनिष्ट शक्तियों के कष्ट से पीडित साधकों में ३१ घंटे और १० मिनट

४.१ शाकाहारी अन्न पदार्थों में विद्यमान सत्त्वगुण ग्रहण करने से ऊपरी चार चक्रों की कार्यरतता में वृद्धि होने से व्यक्ति का सात्त्विक होना

प्रश्‍न : शाकाहारी भोजन के उपरान्त, डीडीएफएओ के कुण्डलीनी चक्रों से सम्बन्धित निरीक्षण ५ साधकों में से ३ साधकों के अर्थात अनिष्ट शक्तियों के कष्ट से मुक्त ६०% साधकों के, तो ५ साधकों में से २ साधक, अर्थात अनिष्ट शक्तियों के कष्ट से पीडित ४०% साधकों के ऊपरी चार चक्रों की कार्यरतता में वृद्धि दर्शाते हैं । निरीक्षणों में वृद्धि होने का प्रत्यक्ष में सूक्ष्म स्तर पर क्या कारण हैं ?

सूक्ष्म-ज्ञान विभाग :

१. शाकाहारी अन्न पदार्थ सात्त्विक होते हैं ।

(पू.) श्रीमती योया वाले द्वारा सूक्ष्म-ज्ञान पर आधारित बनाए इस चित्रांकन का सन्दर्भ लें ।

01_HIN_banana-subtle-new

शाकाहारी अन्न पदार्थ से प्रक्षेपित सात्त्विक स्पंदनों के सम्पर्क से देह में विद्यमान पंचप्राण कार्यरत हुए और चेतना के (ईश्‍वरीय चैतन्य का मन और देह के कार्य को नियंत्रित करने वाला अंग) कार्य में वृद्धि हुई । परिणामस्वरूप इन साधकों की सम्पूर्ण देह में सत्त्वगुण तेजी से फैल जाता है ।

२. सत्त्व गुण को प्रतिसाद देने में ऊपरी चक्र निचले चक्रों की तुलना में अधिक संवेदनशील होने से, वे इसे अल्पावधि में ग्रहण करते हैं । अनिष्ट शक्तियों की पीडा से मुक्त साधकों में सत्त्वगुण को ग्रहण करने के लिए कोई विरोध न होने से सत्त्वगुण की मात्रा में तुरन्त वृद्धि हुई । इससे ऊपरी चक्र जागृत हुए, जो कि निरीक्षणों में वृद्धिंगत कार्यरतता के रूप में प्रतिबिम्बित हुआ । इससे सात्त्विक अन्न पदार्थ खाने का महत्त्व ध्यान में आता है ।

३. अनिष्ट शक्तियों के कष्ट से पीडित साधकों में, शाकाहारी अन्न पदार्थ खाने से पहले की चक्रों की न्यून हुई कार्यरतता काली शक्ति के संग्रहित होने के कारण है । शाकाहारी अन्न पदार्थों के सत्त्व गुण से चक्रों में विद्यमान रज-तमयुक्त काली शक्ति न्यून हुई । परिणामस्वरूप उनकी कार्यरतता में वृद्धि हुई ।

४.२ शाकाहारी अन्न पदार्थ ग्रहण करने से कर्मयोग का पालन करने वाले व्यक्ति के  निचले तीन चक्रों की कार्यरतता में वृद्धि होना

प्रश्‍न : शाकाहारी अन्न पदार्थ ग्रहण करने पर, अनिष्ट शक्तियों के कष्ट से मुक्त ५ में से १, अर्थात २०% साधकों में और अनिष्ट शक्तियों के कष्ट से पीडित ५ में से २, अर्थात ४०% साधकों में वृद्धिंगत कार्यरतता दर्शाने वाले निरीक्षण पाए गए । निचले तीन चक्रों की कार्यरतता में वृद्धि क्यों हुई ?

सूक्ष्म-ज्ञान विभाग : व्यक्ति के स्वाभाविक वृत्ति के अनुसार उसके साधनामार्ग के अनुरूप विविध चक्र कार्यरत रहते हैं । जिन व्यक्तियों का झुकाव हठयोग, कर्मयोग तथा शक्तिपातयोग की ओर अधिक होता है, उनके निचले चक्र अधिक कार्यरत होते हैं । उपर्युक्त प्रश्‍न में उल्लेखित साधक इस वर्ग में आते हैं । इसलिए शाकाहारी अन्न पदार्थ ग्रहण करने पर उसके द्वारा सात्त्विक तरंगें ग्रहण करने से चक्रों में महत्त्वपूर्ण परिवर्तन पाए गए ।

४.३ अनिष्ट शक्तियों के कष्ट से मुक्त साधक द्वारा शाकाहारी अन्न पदार्थ खाने पर पांचवे निरीक्षण के अनुसार ऊपरी चार चक्रों की कार्यरतता में न्यूनता आने का आध्यात्मिक कारण

प्रश्‍न : श्री. सीवी नामक एक साधक में, जो अनिष्ट शक्तियों के कष्ट से मुक्त है; शाकाहारी अन्न पदार्थ खाने के उपरान्त तथा मूल स्थिति में आने तक के कुल नौ निरीक्षण प्राप्त किए गए । इन सभी निरीक्षणों में ऊपरी चार चक्रों की कार्यरतता में वृद्धि दिखाई दी, जबकि केवल पांचवे निरीक्षण में कार्यरतता न्यून हुई दिखाई दी । इसका क्या कारण है ?

सूक्ष्म-ज्ञान विभाग :

साधक में विद्यमान अच्छे स्पन्दनों के कारण, शाकाहारी अन्न पदार्थों द्वारा प्राप्त विपुल सत्त्वगुण देह में आत्मसात किया गया । यह बात स्थायी रूप से वृद्धिंगत हुई ऊपरी चार चक्रों की कार्यरतता से प्रतिबिम्बित हुई । पहले से ही सात्त्विक चक्र में अधिक सत्त्वगुण लगातार वृद्धिंगत होने से उसके द्वारा सत्त्वगुण प्रक्षेपित किया जाता है । इस साधक के सन्दर्भ में ऐसा ही हुआ है । शाकाहारी भोजन से प्राप्त अधिक सत्त्वगुण से उसके ऊपरी चार चक्र कार्यरतता में वृद्धि दिखाते हैं ।

पांचवे निरीक्षण में कार्यरतता न्यून हुई है – यदि सत्त्वगुण चक्र में तेजी से ग्रहण किया जाता है, तो चक्र त्रिगुणों से परे (त्रिगुणातीत) हो जाता है । अतः वे स्थूलरूप से (सगुण) सूक्ष्मातीत (निर्गुण) रूप में, अर्थात निष्क्रिय स्थिति में चला जाता है । साधक के सन्दर्भ में ऐसा ही हुआ है । शाकाहारी भोजन से ग्रहण किया विपुल सत्त्वगुण और इसलिए ऊपरी चार चक्रों द्वारा त्रिगुणातीत होना, डीडीएफएओ ने न्यून हुई कार्यरतता के रूप में दर्शाया है ।

शाकाहारी अन्न पदार्थ खाने पर प्राप्त हुए सत्त्वगुण के प्रभाव के न्यून होते ही ऊपरी चार चक्र निर्गुण स्थिति से सगुण स्थिति में आए । उपकरण द्वारा यह प्रक्रिया ऊपरी चार चक्रों की कार्यरतता में हुई वृद्धि द्वारा दर्शाई गई ।

 ४.४ शाकाहारी भोजन आध्यात्मिक उपचार पद्धति के रूप में प्रयुक्त किए जाने का आध्यात्मिक कारण

प्रश्‍न : शाकाहारी भोजन करने के उपरान्त अनिष्ट शक्तियों के कष्ट से पीडित साधक में ऊपरी चार चक्रों की कार्यरतता में अत्यधिक न्यूनता दिखाई दी तथा निचले तीन चक्रों के ९ घंटे और ३५ मिनटों के उपरान्त लिए गए निरीक्षणों में कुछ विशेष परिवर्तन नहीं दिखाई दिया । इसका कारण क्या है ?

सूक्ष्म-ज्ञान विभाग :

मांत्रिकों द्वारा इस साधक के ऊपरी चार चक्रों में काली शक्ति के केन्द्र बनाए गए हैं । शाकाहारी भोजन सात्त्विक होने से साधक की देह में सत्त्वगुण बढ गया है । इससे ऊपरी चार चक्रों में विद्यमान काली शक्ति के केन्द्रों की क्षमता न्यून हुई । यह घटना चक्रों की कार्यरतता न्यून होने में प्रतिबिम्बित हुई और डीडीएफएओ द्वारा दर्शाई गई । अन्य शब्दों में कहना हो, तो शाकाहारी भोजन ने आध्यात्मिक उपचार करने वाली औषधिसमान कार्य किया, जिसके द्वारा ऊपरी चार चक्रों में मांत्रिकों द्वारा कष्टप्रद शक्ति प्रक्षेपित करने हेतु स्थापित केन्द्रों की क्षमता न्यून हुई ।

ऊपरी चार चक्रों में विद्यमान केन्द्रों में मांत्रिकों ने कष्टप्रद शक्ति संग्रहित करने से, शाकाहारी भोजन का सत्त्वगुण ऊपरी चार चक्रों के कष्टप्रद स्पन्दनों से लडने के लिए प्रयोग में लाया गया और इसलिए निचले तीन चक्रों ने कोई परिवर्तन नहीं दिखाया ।

४.५ अनिष्ट शक्तियों के कष्ट से पीडित एवं मुक्त साधकों द्वारा मांसाहार करने पर ऊपरी चार चक्रों में वृद्धिंगत कार्यरतता का अध्यात्मशास्त्रीय आधार

प्रश्‍न : मांसाहार करने के उपरान्त अनिष्ट शक्तियों के कष्ट से मुक्त ५ में से ४, अर्थात ८०% तथा कष्ट से पीडित सभी ५, अर्थात १००% साधकों में ऊपरी चार चक्रों की कार्यरतता में वृद्धि दिखाई दी । इसका कारण क्या है ?

सूक्ष्म-ज्ञान विभाग : मांस तमगुणप्रधान है ।
कृपया सूक्ष्म-ज्ञान पर आधारित (पू.) श्रीमती योया वाले द्वारा बनाया निम्न चित्रांकन देखें ।

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ऊपरी चार चक्र अतितामसिक घटकों को अच्छे अथवा कष्टप्रद प्रकार से तुरन्त प्रतिसाद देते हैं ।

१. अनिष्ट शक्तियों के कष्ट से मुक्त साधकों में मांसाहार करने पर ऊपरी चार चक्रों की कार्यरतता में वृद्धि हुई । मांस से प्रक्षेपित कष्टप्रद स्पन्दनों का सामना करने के लिए वे कार्यरत होने से ऐसा हुआ । उपकरण पर यह वृद्धिंगत कार्यरतता के रूप में प्रतिबिम्बित हुआ ।

२. अनिष्ट शक्तियों के कष्ट से पीडित साधकों में ऐसा ही प्रभाव दिखाई दिया, परन्तु इसका कारण सम्पूर्णतः विपरीत था । अनिष्ट शक्तियों के कष्ट से पीडित साधकों के देह के ऊपरी चार चक्रों में बलवान मांत्रिकों द्वारा निर्मित काली शक्ति के केन्द्र मांस का तमोगुण ग्रहण करने के लिए कार्यरत हुए । यह भी उपकरण द्वारा वृद्धिंगत कार्यरतता के रूप में दर्शाया गया ।

४.६ सात्त्विक और तामसिक पदार्थों का चक्रों पर होने वाला प्रभाव अनिष्ट शक्तियों के कष्ट के अनुपात पर निर्भर होता है

प्रश्‍न : अनिष्ट शक्तियों के कष्ट से पीडित श्री. एएम को मांसाहार करने के उपरान्त पुनः मूल स्थिति में आने के लिए २ घंटे और २० मिनट लगे और शाकाहारी भोजन करने के उपरान्त मूल स्थिति में आने के लिए ३१ घंटे और १० मिनट लगे । श्री. डीजी भी अनिष्ट शक्तियों के कष्ट से पीडित हैं; परन्तु मांसाहार करने के उपरान्त मूल स्थिति में आने के लिए उन्हें २२ घंटे लगे और शाकाहारी भोजन के उपरान्त मूल स्थिति में आने के लिए २ घंटे और ४१ मिनट लगे । अनिष्ट शक्तियों के कष्ट से पीडित इन दो साधकों में दिखाई दिए इस अन्तर का कारण क्या है ?

सूक्ष्म-ज्ञान विभाग : 

यदि कष्ट की मात्रा अल्प होगी, तो तामसिक घटकों का प्रभाव अल्प कालावधि के लिए बना रहता है और सात्त्विक पदार्थों का प्रभाव दीर्घकाल तक बना रहता है । ऐसा व्यक्ति तामसिक घटकों में विद्यमान तमोगुण से लड सकता है और सत्त्वगुण बनाए रख सकता है ।

यदि कष्ट की मात्रा अधिक होगी, तो तामसिक पदार्थों में विद्यमान तमोगुण देह में संग्रहित किया जाता है और सात्त्विक घटकों में विद्यमान सत्त्वगुण कष्टप्रद शक्ति का सामना करने के लिए प्रयुक्त किया जाता है । अतः सात्त्विक घटकों का अच्छा प्रभाव अल्प काल के लिए बना रहता है । अतः श्री डीजी के सन्दर्भ में शाकाहारी भोजन का प्रभाव अल्पकाल तक बना रहा (२ घंटे ४१ मिनट) । तामसिक घटकों में विद्यमान तमोगुण अधिक मात्रा में संग्रहित किया जाने से इस साधक को कष्ट अधिक मात्रा में हैं, इसलिए मांसाहार का प्रतिकूल प्रभाव दीर्घकाल तक बना रहा (२२ घंटे) ।

श्री. एएम को श्री. डीजी की तुलना में अल्प कष्ट हैं । इसलिए मांसाहार का प्रतिकूल प्रभाव अल्प काल के लिए बना रहा । मांसाहार की तुलना में शाकाहारी भोजन का प्रभाव दीर्घकाल तक बना रहा ।

४.७ सात्त्विक और तामसिक घटकों का प्रभाव अनिष्ट शक्तियों के कष्ट होने अथवा न होने पर तथा व्यक्ति के आध्यात्मिक स्तर पर भी निर्भर होता है

प्रश्‍न : इस प्रयोग में श्री. सीवी को मांसाहार करने के उपरान्त मूल स्थिति में आने के लिए २६ घंटे और ५६ मिनट लगे । इसी साधक को शाकाहारी भोजन करने के उपरान्त मूल स्थिति में आने के लिए ४४ घंटे और ३१ मिनट लगे । श्री. एमके को मांसाहार करने के उपरान्त मूलस्थिति में आने को ६ घंटे और ४५ मिनट लगे और शाकाहारी भोजन के उपरान्त मूलस्थिति में आने को २ घंटे और २५ मिनट लगे । अनिष्ट शक्तियों के कष्ट से मुक्त इन दो साधकों की उत्तेजना में अन्तर होने का कारण क्या है ?

सूक्ष्म-ज्ञान विभाग :

१. सात्त्विक और तामसिक घटकों का चक्रों पर होने वाला प्रभाव साधक को अनिष्ट शक्तियों के कष्ट होने अथवा न होने पर निर्भर होता है : श्री. सीवी को अनिष्ट शक्तियों के कष्ट नहीं हैं । अतः इनमें सत्त्वगुण अधिक है । इसलिए सात्त्विक शाकाहारी भोजन के उपरान्त वृद्धिंगत सात्त्विकता दीर्घकाल तक बनी रही । तामसिक मांसाहार से इनकी सात्त्विकता कुछ मात्रा में न्यून हुई । तथापि इनकी मूल सात्त्विकता के कारण शाकाहारी भोजन की तुलना में ये शीघ्र इनकी मूल स्थिति में आए । अर्थात सात्त्विक घटकों का प्रभाव तामसिक घटकों के प्रभाव से अधिक काल तक बना रहा ।

२. सात्त्विक और तामसिक घटकों का चक्रों पर होने वाला प्रभाव आध्यात्मिक स्तर पर निर्भर होता है : श्री. सीवी के सन्दर्भ में शाकाहारी तथा मांसाहारी भोजन के प्रभावों में बहुत भिन्नता दिखाई दी; जबकि श्री. एमके पर हुए प्रभाव अल्पकालीन रहें । यह इसलिए कि श्री. एमके का आध्यात्मिक स्तर ६२% है और श्री. सीवी का आध्यात्मिक स्तर ५१% है । एक बार साधक का आध्यात्मिक स्तर ६०% से अधिक हो जाता है, तो उसका मनोलय हो जाता है । परिणामस्वरूप खान-पान, वस्त्र इत्यादि जैसे सांसारिक कृत्यों का मन पर सीमित प्रभाव होता है । अतः उसकी कालावधि भी अल्प हो जाती है ।

४.८ ऊपरी चक्र मुख्यतः बुद्धि के स्तर पर कार्य करने वाले लोगों में प्रतिसाद देते हैं

प्रश्‍न : मांसाहार के ३ घंटे और ४५ मिनट के उपरान्त लिए अनिष्ट शक्तियों के कष्ट से पीडित श्री. एएनके के तीन निरीक्षणों ने ऊपरी चार चक्रों की कार्यरतता में लक्षणीय वृद्धि दर्शायी । ५ घंटे और १० मिनट के उपरान्त लिए अन्तिम निरीक्षण में लक्षणीय न्यूनता दिखाई दी । तथापि, इनके निचले तीन चक्रों ने कार्यरतता में लगातार न्यूनता दिखाई । ऐसे निरीक्षणों को कारण क्या है ?

सूक्ष्म-ज्ञान विभाग :

इस साधक को अनिष्ट शक्तियों का सौम्य कष्ट है । ऊपरी चार चक्र बुद्धि के स्तर पर कार्य करते हैं । निचले तीन चक्र सामान्यतः स्थूल-देह से सम्बन्धित कार्य का समन्वय करते हैं । अतः वे मन के स्तर पर कार्य करते हैं । यदि व्यक्ति का झुकाव बुद्धिके स्तर पर कार्य करने का होगा, तो मुख्यतः ऊपरी चार चक्र किसी भी संवेदना को प्रतिसाद देते हैं । इस साधक के सन्दर्भ में ठीक यही हुआ है । मांसाहार के तमोगुण का सामना करने पर इसके ऊपरी चार चक्रों ने तमोगुण से प्रखरता से संघर्ष किया । उपकरण द्वारा यह वृद्धिंगत कार्यरतता के रूप में दर्शाया गया । युद्ध की कालावधि जैसे ही बढती गई, युद्ध के प्रभाव पूरे शरीर में दिखाई दिए और ऊपरी चार चक्रों के साथ निचले तीन चक्र भी अकार्यरत हुए ।

४.९ अनिष्ट शक्तियों के कष्ट से मुक्त साधकों के चक्रों द्वारा अच्छे अथवा कष्टप्रद स्पन्दनों को तुरन्त प्रतिसाद देना और इसके अनुपात में चक्रों पर प्रभाव होना

प्रश्‍न : मांसाहार करने के उपरान्त, साधक के पहले पांच निरीक्षणों से पता चला कि ऊपरी चार चक्रों की कार्यरतता में लक्षणीय वृद्धि हुई । अगले तीन निरीक्षणों में कार्यरतता न्यून होती हुई दिखाई दी और अन्तिम दो निरीक्षणों में कार्यरतता में पुनः वृद्धि हुई । साधक के ऊपरी चार चक्रों की कार्यरतता में उतार-चढाव होने का कारण क्या है ?

सूक्ष्म-ज्ञान विभाग :

अनिष्ट शक्तियों के कष्ट से मुक्त साधकों में, वायुमण्डल की अनिष्ट शक्तियों द्वारा होने वाले आक्रमणों का विरोध करने के साथ ही अच्छे स्पन्दन ग्रहण करने की प्रक्रिया संवेदनशीलता तथा सतर्कता से अविरत रूप से जारी रहती है ।

इस साधक के सन्दर्भ में, मांसाहार करने पर, इस अन्न पदार्थ की तामसिकता का सामना करने के लिए ऊपरी चार चक्रों की कार्यरतता में पहले पांच निरीक्षणों में लक्षणीय वृद्धि हुई ।

तदुपरान्त चक्रों द्वारा निर्गुण में जाकर तमोगुण के अवशेषों को नष्ट करनेके प्रयत्न हुए; क्योंकि निर्गुण रूप अधिक शक्तिशाली होता है । यह घटना उपकरण द्वारा चक्रों की कार्यरतता में न्यूनता के रूप में दर्शायी गई । सगुण देवताआ की तुलना में निर्गुण ईश्‍वर अधिक शक्तिशाली होते हैं, इस उदाहरण से यह बात स्पष्ट होगी ।

तदुपरान्त जैसे ही देह में विद्यमान तमोगुण पूर्णतः नष्ट होने से ऊपरी चार चक्रों द्वारा युद्ध में न्यून हुआ उनका सत्त्वगुण पुनः प्रस्थापित करने के प्रयत्न किए गए, जो कि वृद्धिंगत कार्यरतता के रूप में प्रतिबिम्बित हुए ।

५. निष्कर्ष

५.१ कार्य सम्बन्धी चक्रों के दो गुट होना

ऊपरी चार चक्रों में (सहस्रार, आज्ञा, विशुद्ध और अनाहत) वायुतत्त्व प्रधानरूप में होता है और उनका कार्य निर्गुण-सगुण (सगुण की तुलना में निर्गुण स्तर पर अधिक) स्तर पर होता है; तो निचले तीन चक्रों में (मणिपुर, स्वाधिष्ठान और मूलाधार) तेजतत्त्व प्रधानरूप में होता है और उनका कार्य सगुण-निर्गुण (निर्गुण की तुलना में सगुण स्तर पर अधिक) स्तर पर होता है । ऊपरी चार चक्र बुद्धि के कार्य से सम्बन्धित होते हैं, तो निचले तीन चक्र मुख्यतः मन के कार्य से सम्बन्धित होते हैं । इस प्रकार सात चक्रों को (सप्तचक्र) दो गुटों में विभाजित किया गया है – ऊपरी चार चक्र और निचले तीन चक्र । इसलिए सामान्यतः मांसाहारी अथवा शाकाहारी भोजन से प्रत्येक गुट के चक्रों पर समान प्रभाव दिखाई देते हैं ।

५.२ शाकाहारी भोजन से प्राप्त सात्त्विकता का प्रभाव

५.२.१ कुण्डलीनी चक्रों का कार्यरत होना

  • ऊपरी चक्रों का कार्यरत होना : सत्त्वगुण को प्रतिसाद देने में ऊपरी चक्र निचले चक्रों की तुलना में अधिक संवेदनशील होते हैं । इसलिए शाकाहारी भोजन करने पर शाकाहारी अन्न पदार्थों के सात्त्विक स्पन्दनों के कारण, अनिष्ट शक्तियों के कष्ट से पीडित एवं मुक्त साधकों के ऊपरी चार चक्रों की कार्यरतता में वृद्धि हुई ।
  • कर्मयोग से साधना करने वाले साधकों के निचले चक्र कार्यरत होना : कर्मयोग से साधना करने वाले अनिष्ट शक्तियों के कष्ट से पीडित एवं मुक्त साधकों के निचले तीन चक्रों की कार्यरतता में शाकाहारी भोजन करने पर वृद्धि हुई ।

५.२.२ कुण्डलीनी चक्रों पर आध्यात्मिक उपचार

आध्यात्मिक कष्ट से पीडित साधकों के ऊपरी चार चक्रों में मांत्रिक कष्टप्रद शक्ति के केन्द्र बनाते हैं । अतः ये चक्र इनमें संग्रहित काली शक्ति के बल पर कार्य करते हैं । शाकाहारी भोजन करने पर, इससे ग्रहण की गई सात्त्विकता के कारण इन केन्द्रों में विद्यमान काली शक्ति न्यून होती है, जिसके परिणामस्वरूप उनकी कार्यरतता न्यून होती है । अन्य शब्दों में कहना हो, तो चार चक्रों पर आध्यात्मिक उपचार होते हैं और इसके परिणामस्वरूप इन चक्रों की कार्यरतता न्यून होती है ।

५.२.३  शाकाहारी भोजन द्वारा नियमित रूप से सत्त्वगुण मिलने से कुण्डलीनी चक्र निर्गुण अवस्था में जाते हैं

अनिष्ट शक्तियों के कष्ट से मुक्त साधकों द्वारा शाकाहारी भोजन करने पर इस आहार से ग्रहण की गई सात्त्विकता के कारण ऊपरी चार चक्रों की कार्यरतता में वृद्धि होती है । भोजन जैसे ही आगे बढता है, सत्त्वगुण नियमित रूप से (लगातार) मिलने लगता है, वैसे ही ऊपरी चार चक्र निर्गुण अवस्था में चले जाते हैं और परिणामस्वरूप अकार्यरत होते हैं ।

५.३ मांसाहार करने पर ग्रहण किए तमोगुण से होने वाले हानिप्रद प्रभाव

५.३.१ अनिष्ट शक्तियों के कष्ट से मुक्त साधकों के ऊपरी चार चक्र मांसाहार करने पर प्राप्त तमोगुण से लडने के लिए कार्यरत होना

अनिष्ट शक्तियों के कष्ट से मुक्त साधकों के ऊपरी चार चक्र निचले तीन चक्रों की तुलना में अधिक संवेदनशील होते हैं । इसलिए मांसाहार करने पर ग्रहण हुए तमोगुण से लडने के लिए वे कार्यरत हो जाते हैं । तदुपरान्त तमोगुण की जड से लडने के लिए उन्हें निर्गुण अवस्था में जाना आवश्यक होता है । अन्त में उन्हें युद्ध में नष्ट हुआ सत्त्वगुण पुनः प्राप्त करने के लिए कार्यरत होना पडता है । इस प्रकार ऊपरी चक्रों की शक्ति पूर्णतः समाप्त होती है ।

५.३.२ अनिष्ट शक्तियों के कष्ट से पीडित साधकों के ऊपरी चक्र मांसाहार द्वारा प्राप्त तमोगुण से कार्यरत होते हैं

अनिष्ट शक्तियों के कष्ट से पीडित साधकों में, ऊपरी चार चक्रों में बलवान मांत्रिकों द्वारा निर्मित काली शक्ति के केन्द्र मांस के तमोगुण को ग्रहण करने के लिए कार्यरत होते हैं । अतः ऊपरी चक्रों की कार्यरतता में वृद्धि होती है ।

५.४ शाकाहार एवं मांसाहार करने से होने वाले प्रभावों की समयमर्यादा को निश्‍चित करने वाले घटक

५.४.१ आध्यात्मिक स्तर

साधक का आध्यात्मिक स्तर ६०% से न्यून होने पर, सात्त्विक तथा तामसिक घटकों के प्रभावों की समयमर्यादा दीर्घ होती है । ६०% स्तर से अधिक स्तर के व्यक्तियों में मनोलय होने से, खान-पान, वस्त्र इत्यादि सांसारिक बातों का मन पर अत्यल्प प्रभाव पडता है । परिणामस्वरूप सात्त्विक और तामसिक घटकों का प्रभाव अल्पकाल तक टिकता है ।

५.४.२ अनिष्ट शक्तियों के कष्ट की तीव्रता

अनिष्ट शक्तियों के कष्ट जिन में सौम्य हैं, ऐसे साधकों में, मांसाहार जैसे तामसिक घटकों का प्रभाव अल्पकाल तक टिकता है; जबकि शाकाहार जैसे सात्त्विक घटकों का प्रभाव दीर्घकाल तक टिकता है । जिन्हें तीव्र कष्ट है, ऐसे साधकों में मांसाहार जैसे तामसिक घटकों का प्रभाव तमोगुण संग्रहित होने से दीर्घकाल तक बना रहता है; जबकि सात्त्विक घटकों में विद्यमान सत्त्वगुण अनिष्ट शक्तियों के साथ लडने के लिए प्रयुक्त किया जाने से, शाकाहारी भोजन जैसे सात्त्विक घटकों का प्रभाव अल्प काल तक बना रहता है ।.

६. सीखने योग्य कुछ सूत्र

  • शरीर, मन एवं बुद्धि का कार्य उत्तम पद्धति से चलने के लिए शाकाहार पूरक होता है । इस बात को ध्यान में रखते हुए हमें मांसाहार न्यून कर शाकाहार में वृद्धि करनी चाहिए ।
  • ६०% आध्यात्मिक स्तर प्राप्त करने के लिए आध्यात्मिक साधना करना बहुत ही आवश्यक होता है; क्योंकि एक बार यह स्तर प्राप्त करने पर सात्त्विक एवं तामसिक दोनों घटकों का व्यक्ति पर अल्प प्रभाव होता है ।
  • नियमित रूप से आध्यात्मिक साधना करने से अनिष्ट शक्तियों के कष्ट से सुरक्षा प्राप्त होती है । अनिष्ट शक्तियों के कष्ट के कारण तामसिक घटकों का प्रभाव दीर्घकाल तक रहता है और सात्त्विक घटकों का प्रभाव अल्पकाल तक रहता है ।