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घटना का सारांश : परम पूज्य डॉ. आठवलेजी के कक्ष में रखी एक कटोरी में एक सुगंधित द्रव अपनेआप निर्मित हुआ । यह निरीक्षण में आया कि इससे साधकों पर विशेषकर अनिष्ट शक्तियों के कष्ट से पीडित साधकों पर आध्यात्मिक उपचार होते हैं । दैवीय इत्र के अति विकसित छठवीं इंद्रिय द्वारा किए परीक्षण के निरीक्षण दर्शाते हैं कि यह इत्र इस पृथ्वी का नहीं है और यह ब्रह्मांड के उच्च स्तरीय लोकों में विद्यमान सुगंधों का मिश्रण है । बायोफीडबैक प्रणाली का प्रयोग कर प्राप्त हुए स्पंदनों का विश्लेषण छठवीं इंद्रिय द्वारा प्राप्त निरीक्षण को सत्यापित करता है, जो यह इंगित करता है कि यह दैवीय सुगंध अत्यधिक सकारात्मक है ।

१. सुगंधित इत्र के स्वतः घनीकरण की पार्श्वभूमि

अगस्त २००७ में स्पिरिच्युअल साइन्स रिसर्च फाउंडेशन (SSRF) के भारत स्थित गोवा के आध्यात्मिक शोध केंद्र में हमें एक अद्वितीय आध्यात्मिक घटना ध्यान में आर्इ । एक रिक्त कांसे की कटोरी में सुगंधित इत्र अपनेआप निर्मित हुआ । यही कांसे की कटोरी वर्ष २००४ में परम पूज्य डॉ.आठवलेजी के पैरों के मर्दन (मालिश) हेतु तेल रखने के लिए प्रयुक्त होती थी । उस समय भी उस तेल से यही सुगंध प्रक्षेपित होती थी, यह ध्यान में आया था, जबकि मर्दन हेतु प्रयुक्त होनेवाले तेल की यह विशेषता नहीं होती ।

इत्र के घनीकरण का उद्देश्य है, आनेवाले आपातकाल में साधकों को शक्ति प्रदान करना । सुगंधित इत्र से निकलनेवाली सुगंध अनोखी है तथाऐसा भी ध्यान में आया कि इसे सूंघने से साधकोंपर आध्यात्मिक उपचार होते हैं। हमने दैवीय सुगंध से संबंधित आध्यात्मिक उपचार प्रयोग के समय के दो छायाचित्र दर्शाए हैं । जिस कपडे से कांस्य की कटोरी को पोंछा जाता था, उससे भी सुगंध आने लगी है । अनिष्ट शक्ति के कष्ट से पीडित साधकों को कांच की बोतल में रखे उस कपडे के संपर्क में लाया गया । उन्हें आविष्ट करनेवाली अनिष्ट शक्ति प्रकट हो गई तथा सुगंध से युद्ध करने का प्रयास करती देखी गई । प्रयोग के समय हमें यह ज्ञात हुआ कि दैवीय सुगंध की उपचारी क्षमता के कारण अनिष्ट शक्ति (जो साधक में प्रकट हुई थी) की क्षमता विशेष रूप से घट गई ।

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साधक में विद्यमान अनिष्ट शक्ति आरंभ में दैवीय सुगंध के साथ सूक्ष्म युद्ध करने का प्रयास कर रही है

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साधक में विद्यमान अनिष्ट शक्ति आरंभ में दैवीय सुगंध के सकारात्मक स्पंदनों को सहन नही कर पाती

सुगंधित इत्र के निर्माण की प्रक्रिया

आध्यात्मिक शोध के माध्यम से हमने पाया कि इत्र की निर्मिति की प्रक्रिया वर्ष २००५ में आरंभ हो गई थी;किंतु यह अगस्त २००७ में अचानक से अपनेआप ही घनीकृत हो गई । जब परम पूज्य डॉ. आठवलेजी के कक्ष की सुगंधित वायु आपतत्व के संपर्क में आई, कुछ मात्रा में इत्र की निर्मिति आरंभ हो गई थी । अगस्त २००७ में जब यह पृथ्वीतत्व के संपर्क में आई, यह शीघ्र ही कांस्य की कटोरी में अद्वितीय सुगंध सहित इत्र के रूप में घनीकृत हो गई । क्योंकि किसी भी पदार्थ को घनीकृत होने के लिए पृथ्वीतत्व की सहायता की आवश्यकता होती है ।

दैवीय सुगंध वास्तव में ब्रह्मांड में विविध सूक्ष्म सकारात्मक लोकों में विद्यमान वायुमंडल का संयोजन है । आगे दी गई सारणी में दैवीय इत्र की संरचना के विविध घटकों का ब्रह्मांड के प्रत्येक सूक्ष्म लोकों से ग्रहण किया गया गुण दर्शाया गया है । निम्न सारणी में दैवीय इत्र की संरचना तथा ब्रह्मांड के प्रत्येक सूक्ष्म लोक से ग्रहण की विशेषताओं का विश्लेषण दिया है ।

लोक

ब्रह्मांड के सकारात्मक सूक्ष्म लोकों का स्तर

प्रतिशत

स्वर्ग

तीसरा

२०

महर्लोक

चौथा

२०

 जनलोक

पांचवा

२०

तपलोक

छठवां

२०

ब्रह्मांड के चैतन्य तथा दिव्य शक्ति का संयोजन

लागू नहीं

२०

कुल

१००

निम्न सारणी में ब्रह्मांड के मूलभूत पंचतत्त्वों की दृष्टि से कृत्रिम इत्र तथा दैवीय इत्र में अंतर दर्शाया है ।

दैवीय इत्र

मात्रा (प्रतिशत)

कृत्रिम इत्र

मात्रा (प्रतिशत)

१.  पृथ्वीतत्व

  १०

३०

२. आपतत्व

३०

  ५०

३. अग्नितत्व

२०

१०

४. वायुतत्व

२०

  ८

५. आकाशतत्व

 २०

  २

कुल   १००   १००

उपरोक्त सारणी से हम देखते हैं, दैवीय सुगंध से क्यों उच्च स्तरीय आध्यात्मिक उपचार का अनुभव होता है । कृत्रिम इत्र की तुलना में, दैवीय इत्र में आकाशतत्व, वायुतत्व तथा तेजतत्व जैसे ब्रह्मांड के उच्चस्तरीय मूलभूत तत्त्व अधिक मात्रा में पाए जाते हैं । परिणामस्वरूप यह इत्र आपतत्व से प्रधानता से निर्मित होते हुए भी व्यक्ति को तेज, वायु तथा आकाश के स्तर पर विविध आध्यात्मिक अनुभूतियां होती हैं ।

२. रासायनिक विश्लेषण

प्रयोगशाला में इसकी रासायनिक संरचना का विश्लेषण करते समय, हमने दैवीय इत्र के द्रव में कार्बन (७६ प्रतिशत) तथा ऑक्सीजन (२३ प्रतिशत) की अत्यधिक मात्रा पाई । हम हाइड्रोजन की मात्रा को निश्चित करने हेतु जांच को आगे बढाने में असमर्थ रहे; क्योंकि ऐसा करने के लिए पर्याप्त द्रव नहीं था ।

३.बायोफीडबैक उपकरण के माध्यम से किया गया विश्लेषण

जिनकी छठवीं इंद्रिय क्षमता औसत से अधिक है, वे सरलता से इत्र की आध्यात्मिक शुद्धता तथा इससे प्रक्षेपित हानेवाले सकारात्मक स्पंदनों को समझ सकते हैं । कुछ बायोफीडबैक उपकरण जैसे आरएफआई (रेजोनेंट फील्ड इमेजिंग) तथा पीआईपी (पॉलीकाँट्रास्ट इंटरफेरेंस फोटोग्राफी :बायो इमेजिंग उपकरण का एक प्रकार) वस्तु के सर्व ओर के स्पंदनों को ग्रहण करने तथा दृश्य रूप में दर्शाने में सक्षम होते हैं । इससे सामान्य व्यक्ति को भी वस्तु के प्रभावलय (ऑरा) अथवा ऊर्जाक्षेत्र को देख पाने का अवसर मिलता है ।

पीआईपी तथा उसके उपयोग के संदर्भ में अधिक जानकारी हेतु इस कडी (लिंक) पर क्लिक करें

१. दैवीय सुगंधित इत्र का आरएफआई निरीक्षण (रीडिंग)

मापन

पाठ्यांक

अर्थ

दैवीय सुगंधित इत्र रखने से पूर्व का वातावरण

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आरएफआर्इ आलेख में संबंधित रंग नारंगी है,  यह वातावरण में दबाव तथा नकारात्मकता दर्शाता है ।
दैवीय सुगंधित इत्र रखने के उपरांत का वातावरण

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इसका रंग पीला है,  जो सकारात्मक स्पंदनों को दर्शाता है । इसका अर्थ है कि इत्र ने अपने आसपास के नकारात्मक स्पंदनों को नष्ट किया तथा वातावरण में सकारात्मक स्पंदनों की निर्मिति की ।

२. दैवीय सुगंधित इत्र का पीआईपी निरीक्षण (रीडिंग)

इसके उपरांत हमने पीआईपी बायोफीडबैक यंत्र के द्वारा कांसे की कटोरी में रखे दैवीय सुगंधित इत्र का निरीक्षण किया ।

पूर्व :सर्वप्रथम हमने वातावरण का मूलभूत पाठ्यांक लिया । बैंगनी रंग एक निश्चित मात्रा में तनाव को दर्शाता है । जैसा कि आप देख सकते हैं, पीला (जो सकारात्मकता दर्शाता है) रंग चौखट (फ्रेम) के केंद्र में अल्प मात्रा में है और यह बैंगनी रंग से घिरा हुआ है ।

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उपरांत : तब हमने कटोरी में रखे सुगंधित इत्र को उसे रखे कांच के बोतल सहित रखा । इत्र से प्रक्षेपित होनेवाले पीले वलयों ने बैंगनी रंग के नकारात्मक स्पंदनों को दूर हटा दिया तथा बोतल के सर्व ओर एक पीला प्रभावलय निर्मित हुआ ।

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पीआईपीबायोफील्ड इमेजिंग प्रणाली भी इत्र के कारण वातावरण में अति सकारात्मक परिवर्तन दर्शाती है । मेज पर (जहां इत्र का पात्र रखा है) दिखनेवाला हल्का नीला रंग उच्च आध्यात्मिक स्तर से संबंधित है । साथ ही, बोतल जिसमें इत्र रखी कटोरी है, वह भी हरी हो गई । पीआईपी.में हरा रंग आध्यात्मिक उपचार से संबंधित सकारात्मक शक्ति का प्रतीक है । ऊपरोक्त निरीक्षणों से यह स्पष्ट है कि परम पूज्य डॉ. आठवलेजी द्वारा प्रयुक्त कांस्य कटोरी में बनी इत्र उच्च आध्यात्मिक स्तर की है तथा आध्यात्मिक रूप से लाभप्रद है । उपर्युक्त स्कैन और उसका विश्‍लेषण श्री.संतोष जोशी की सहायता से किया गया, जो कि भारत के मुंबई स्थित वैश्विक ऊर्जा शोधकर्ता हैं ।

SSRF इस प्रकार के विषयों के संदर्भ में वैज्ञानिक परिप्रेक्ष्य की दृष्टि से इस क्षेत्र के शोधकर्ता और विशेषज्ञों से सहायता करने का अनुरोध करता है ।