पामा (एक्जीमा) होने के कारण एवं उपचार

SSRF द्वारा प्रकाशित प्रकरण-अध्ययनों (केस स्टडीस) का मूल उद्देश्य है, उन शारीरिक अथवा मानसिक समस्याओं के विषय में पाठकों का दिशादर्शन करना, जिनका मूल कारण आध्यात्मिक हो सकता है । यदि समस्या का मूल कारण आध्यात्मिक हो, तो यह ध्यान में आया है कि सामान्यतः आध्यात्मिक उपचारों का समावेश करने से सर्वोत्तम परिणाम मिलते हैं । SSRF शारीरिक एवं मानसिक समस्याओं के लिए इन आध्यात्मिक उपचारों के साथ ही अन्य परंपरागत उपचारों को जारी रखने का परामर्श देता है । पाठकों के लिए सुझाव है कि वे स्वविवेक से किसी भी आध्यात्मिक उपचारी पद्धति का पालन करें ।

सारांश :

  • पामा एक चर्मरोग है जिससे प्रत्येक पांच में से एक व्यक्ति जीवन में पीडित होता है । वर्तमान में औषधि विज्ञान के पास इस रोग से मुक्त होने का कोई उपचार नहीं है ।
  • आध्यात्मिक शोध से यह पता चलता है कि पामा जैसे चर्मरोगों का मूल कारण आध्यात्मिक है तथा उनसे पूर्ण मुक्ति पाना आध्यत्मिक उपचार से ही संभव है ।
  • शोध से पता चला है कि पामा के आध्यत्मिक कारणों मे से एक कारण अनिष्ट शक्ति (भूत, प्रेत, पिशाच आदि) से आविष्ट होना है ।
  • पामा से मुक्ति हेतु विशिष्ट आध्यात्मिक उपचारों पर चर्चा की गई है ।

पाठकों के लिए टिप्पणी : इस लेख में पामा तथा फफोलों से ग्रस्त त्वचा के चित्र प्रदर्शित किए गए हैं जो कुछ पाठकों को विचलित करनेवाले हो सकते हैं ।

१. त्वचा रोग पामा (एक्जीमा) का संक्षिप्त विवरण

१.१ पामा क्या है ?

पामा, आयुर्विज्ञान की भाषा में त्वचा-शोथ (त्वचा का प्रदाह) के नाम से जाना जाता है । सामान्यत: पामा में त्वचा में लाली आने के साथ ही सूजन एवं खुजली होती है । इस सबसे मिलकर जो स्थिति बनती है उसे पामा कहते हैं। यह जीवन के लिए घातक अथवा संक्रामक नहीं है किंतु इससे रोगी अत्यंत अस्वस्थ एवं संकोचग्रस्त अनुभव कर सकता है ।

१.२ त्वचा रोग पामा के विभिन्न रूप तथा लक्षण 

  • व्याप्ति : पामा से प्रत्येक पांच में से एक व्यक्ति अपने जीवन में कभी न कभी ग्रस्त होता है । पामा जैसे त्वचा रोग जनसंख्या के लगभग १० प्रतिशत से अधिक लोगों की अनुमानित व्यापकता में होना बहुत सामान्य है । आकडों के अनुसार १५-२५ प्रतिशत त्वचा रोगी पामा से ग्रस्त होते हैं । सर्वेक्षण में देखा गया है कि पामा का विस्तार बढ रहा है । ( संदर्भ: Dermis.net, March 2006)
  • पामा के प्रकार : पामा के विभिन्न प्रकार हैं और विभिन्न कारणों की विविधता से होनेवाले विकार भी भिन्न हैं । पामा के अनेक स्वरूप होते हैं ।
  • चिन्ह एवं लक्षण : पामा के सामान्य चिन्ह एवं लक्षण हैं; त्वचा लाल होना, सूजन, खुजली और त्वचा पर घाव होना ।
  • तीव्रता : रोग की तीव्रता में अंतर हो सकता है । सौम्यावस्था में त्वचा शुष्क एवं गरम होती है तथा उसमें खुजली होती है, जबकि तीव्रावस्था में त्वचा खुरदुरी और फटी हुई होती है तथा उसमें रक्तस्राव भी हो सकता है ।
  • कारण : अनेक स्वास्थ्य परिस्थितियों से इसका संबंध है, जैसे प्रत्युर्जता (एलर्जी), अनुवांशिकता, शारीरिक एवं मानासिक तनाव और उत्तेजक पदार्थ (irritants) के कारण पामा हो सकता हैं । विशिष्ट प्रकार के पामा के कारण अभी बताएं जाने शेष हैं, यद्यपि इसे पर्यावरणीय घटकों तथा तनाव से जोडा जा रहा है मानसिक तनाव सामान्य प्रतिरक्षा तंत्र को दबाकर पामा को उत्पन्न अथवा उत्तेजित कर सकते हैं ।
  • जटिलता : कभी-कभी पामा के कारण होनेवाले खुले घावों तथा त्वचा की दरारों में संक्रमण हो सकता है । त्वचा के प्रदाह से त्वचा पर चकत्ते पडने की भी संभावना होती है ।

२. पामा की चिकित्सा एवं उपचार

२.१ पामा के उपचार दर पर किए गए शोध

पामा के उपचार दरों पर किए गए शोध से हमारे निष्कर्ष निम्नानुसार थे :

  • पामा का कोई उपचार अभी तक ज्ञात नहीं है तथा यह जीवनभर का रोहो सकता है (Eczema Association of Australia)
  • वर्तमान में एटोपिक/एजर्जिक पामा (पामा का एक प्रकार) के लिए ऐसा कोई उपचार नहीं है जो इसे पूरी तरह से ठीक कर सके ।(Medical News Today)
  • एटोपिक/एजर्जिक पामा को समूल ठीक करने का कोई उपचार नहीं है । चिकित्सा से मात्र लक्षणों को कम किया जा सकता है । (National Health Service, UK)

संक्षेप में, उपर्युक्त अध्ययन से हमें यह ज्ञात होता है कि चिकित्सा विज्ञान पामा का उपचार नहीं कर सकता

२.२ पामा का पूर्ण उपचार : मूल कारण समझना और उसका उपचार करना

इसके मुख्य कारणों में से एक यह है कि आधुनिक चिकित्साशास्त्र अब भी इस रोग के मूल कारण से अनभिज्ञ है । जब तक हम उन मूल कारणों को नहीं समझ लेते, तब तक इस रोग के लिए विशेषरूप से परिणामकारक उपचार पद्धति नहीं बनाई जा सकती तथा इसलिए कोई भी उपचार प्रभावी नहीं हो सकता ।

अध्यात्म विज्ञान के अनुसार प्राय: जीवन की ८० प्रतिशत समस्याएं आध्यात्मिक कारणों से ही होती हैं । इसका अर्थ है कि हमारे जीवन की दो तिहाई से अधिक समस्याओं के अध्यात्मिक कारण होते हैं । यदि हम अपनी समस्याओं को पहचाने एवं उनके आध्यात्मिक कारणों का उपचार करें, तभी हम जीवन में आनेवाली समस्याओं से मुक्त होने में पूर्ण रूप से सफल होंगे । समस्याएं अनेक प्रकार की हो सकती हैं जैसे आर्थिक, वैवाहिक असंतोष, मानसिक तनाव अथवा शारीरिक कष्ट जैसे पामा ।

३. अध्यात्मिक उपचारों को चिकित्सा में अपनाने से रोगमुक्ति के बढे हुए परिणाम :

आइए हम भारत निवासी श्री. माधव गाडगीळ जी के प्रकरण का अध्ययन करते है, जिनका दो बार पामा से सामना हुआ एवं दोनों बार बिना आधुनिक उपचारों एवं औषधियों की सहायता के वे पूर्णरूप से रोगमुक्त हुए ।

श्री माधव गाडगीळजी ने मैकेनिकल और इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग में डिप्लोमा किया है । वे भारतीय रेल विभाग में पिछले ३४ वर्ष से कार्यरत हैं । वे SSRF के मार्गदर्शन में साधना कर रहे हैं । नीचे श्री. माधव गाडगीळ अपने ही शब्दों में उनका वृत्तांत सुना रहे हैं ।

३.१ पामा का प्रथम प्रादुर्भाव

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मैं पनवेल में रहता हूं । यह भारत स्थित मुंबई के बाह्य क्षेत्र में स्थित है । ६ अगस्त, २००३ को, मैं अपनी पत्नी के साथ SSRF के मीरज केंद्र में गया था, जो पनवेल से रेलवे द्वारा एक रात्रि की दूरी पर है । अगले दिन इस केंद्र में साधकों से सीखने एवं सत्सेवा में रत था; पर मेरा ध्यान मेरे गर्दन में एकाएक हो रही एक विचित्र सी खुजली के कारण विचलित हुआ । जैसे-जैसे दिन ढलता गया, खुजली भी बढती गई और सामान्य लगनेवाली खुजली मेरी शर्ट के कॉलर से घिसने के कारण और भी तीव्र होने लगी । मुझे बहुत कष्ट होने लगा । अब तक के मेरे जीवन में जहां तक मुझे स्मरण है, मुझे कभी कोई त्वचारोग नहीं हुआ था । अतः यह मेरे लिए बिल्कुल नया था समस्या और अधिक बढने वाली थी अगले दिन मेरी पूरी गर्दन पर लाल और काले चकत्ते पड गए और पामा बढ गया । कृपया नीचे दिया चित्र देखें ।

 

 

 

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मेरी गर्दन की खुजली एवं चकत्ते पीठ तक फैल गए । मैंने डॉ.कामत से विचार-विमर्श किया, जो SSRF के एक साधक हैं । उन्होंने मुझे प्रभावित स्थान पर लगाने के लिए एक क्रीम बताई, किंतु अनेक बार प्रयास करने पर भी एवं अन्य कई कारणों से मुझे वह नहीं मिल सकी ।

तीसरे दिन तक मेरी गर्दन पर आए चकत्ते पर होनेवाली खुजली असहनीय हो गई और साथ ही वहां तीव्र जलन होने लगी ।

जलन चूंकि मेरी सहन शक्ति से परे थी, अत: मैने एक अन्य चिकित्सक डॉ. माया पाटिल से संपर्क किया, एक चिकित्सक होने के साथ ही उनकी छठवीं सूक्ष्म ज्ञानेंद्रिय (सूक्ष्म को देखने की क्षमता) भी अति विकसित है, जिसके कारण वे एएइ में सूक्ष्म बोध/ज्ञान विभाग की प्रमुख है । उनको ज्ञात हुआ कि मेरे रोग का मूल कारण आध्यात्मिक है और मेरे रोग की तीव्रता देखते हुए, उन्होंने मुझे त्वरित परम पूजनीय डॉ. आठवलेजा से संपर्क करने के लिए कहा ।

जब परम पूजनीय डॉ. आठवलेजी ने प्रभावित अंग देखा तो वे मुझसे बोले कि यह कष्ट मुझे अनिष्ट शक्ति (भूत, प्रेत, पिशाच आदि) दे रही है । उन्होंने मुझे परामर्श दिया कि मैं श्री गणेश एवं श्री कृष्ण का नामजप एक के उपरांत दूसरा, इस क्रम से करूं । परम पूजनीय डॉ. आठवलेजी में मेरी अनन्य आस्था है । अत: मैंने उनके परामर्श एवं मार्गदर्शनानुसार त्वरित नामजप प्रारंभ किया । अगले दिन ही खुजली आश्‍चर्यजनक रूप से घट गई और कुछ ही समय में खुजली एवं चकत्तों का पता भी नहीं चलता था । मैं बिना किसी औषधि के पामा से पूर्णरूप से रोगमुक्त हो चुका था । मेरा पामा का कष्ट परम पूजनीय डॉ. आठवलेजी के मार्गदर्शनानुसार किए गए नामजप की साधना से ही ठीक हुआ । मेरी ऐसी मान्यता है कि योग्य आध्यात्मिक उपचार के साथ-साथ डॉ. आठवलेजी के संकल्प के परिणामस्वरूप ही ऐसे आश्‍चर्यजनक तथा प्रभावी रूप से रोग ठीक हुआ । मैं हदय की गहराई से परम पूजनीय डॉ. आठवलेजी के प्रति अपनी कृतज्ञता व्यक्त करता हूं ।
– श्री माधव गाडगीळ, SSRF आश्रम, पनवेल, भारत.

३.२ श्री. माधव गाडगीळ द्वारा किए गए विशिष्ट आध्यात्मिक उपचार तथा वे कैसे क्रियान्वित हुए

श्री. माधव गाडगीळ द्वारा किए गए आध्यात्मिक उपचारों के दो पक्ष हैं :

पक्ष-१: विशिष्ट देवता का नामस्मरण

श्री. माधव गाडगीळ को श्री गणेश एवं श्री कृष्ण का नामजप करने का परामर्श दिया गया था । वह जप इस प्रकार है; ’’ॐ गँ गणपतये नम: ’’ तथा ‘’ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय‘’ । जप सुनने के लिए यहां दबाएं

जब हम किसी देवता का नामस्मरण करते हैं, तब विशिष्ट कार्य करने हेतु उस देवता से संबंधित ईश्वरीय तत्व शरीर में ग्रहण किया जाता है । जब दो देवताओं के नाम एक के उपरांत एक इस क्रम में लिए जाते हैं, तब नाम में ऐसा विशिष्ट ईश्वरीय तत्व जो उन दोनों तत्वों दें से भिन्न है समावेश कर जाता है ।

इन देवताओं का नामजप करने से एक विशिष्ट प्रकार का ईश्वरीय तत्व व्यक्ति द्वारा ग्रहण किया जाता है । वह ईश्वरीय तत्व कष्ट देनवाली अनिष्ट शक्ति से युद्ध करता है और उसके द्वारा दिए जाने वाले कष्ट को रोकने के लिए बाध्य करता है । ईश्वर का नामजप करने से व्यक्ति के आस-पास ईश्वरीय शक्ति का सुरक्षा कवच भी निर्माण होता है जो उसे भविष्य में होने वाले अनिष्ट शक्ति के आक्रमणों से बचाता है ।

नामजप की पूर्ण प्रकिया जानने के लिए यहां दबाएं

पक्ष-२ परम पूजनीय डॉ. आठवलेजी का संकल्प

जो व्यक्ति आध्यात्मिक दृष्टि से उन्नत होते हैं उनमें मात्र इच्छा कर किसी भी योजना को रूप देने की क्षमता होती है । उनकी इच्छा सदैव ईश्वरेच्छा से जुडी होती है ।

३.३ पामा का दूसरा प्रकरण

मैं अपने बाएं हाथ का दर्द दूर करने के लिए एक दर्द निवारक औषधि लगभग पिछले डेढ माह से ले रहा था । दिनांक १४ सितंबर २००५ को मेरी बांईं अग्रबाहु में कोहनी से कलाई तक त्वचा पर एक चकत्ता उभर आया । मैंने विचार किया कि यह दर्द निवारक औषधि का प्रतिकूल प्रभाव होगा । इसलिए मैंने दर्द निवारक औषधि लेना बंद कर दिया, किंतु उससे मेरे लक्षणों में कोई परिवर्तन नहीं हुआ । तत्पश्चात चकत्ता बडा हो गया और उसमें से रक्त मिश्रित स्राव होने लगा ।spiritual-cause-of-eczema

 

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पूजनीया श्रीमती अंजली गाडगीळजी को अक्टूबर वर्ष २००३ से ईश्वरीय ज्ञान प्राप्त हो रहा है ।

अंतत: १८ सितंबर २००५ को मैंने अपनी पुत्र-वधु अंजली गाडगीळ को अपनी स्थिति के बारे में बताया । सूक्ष्म विभाग की साधिका होने के कारण वे मुझे इस रोग का सूक्ष्म-निदान बता सकीं ।

३.४ आध्यात्मिक निदान एवं उपचार

उन्होंने इसका निदान एक उच्च अनिष्ट शक्ति (अनिष्ट शक्ति, प्रेत, पिशाच आदि) से होनेवाले कष्ट के रूप में किया जो मेरे पूर्वजों के सूक्ष्म देहों का उपयोग कर मुझे कष्ट पहुंचा रहा था । उन्होंने मुझे निम्नलिखित सूक्ष्म-उपचार करने का परामर्श दिया :

नामस्मरण : मुझे भगवान श्री गुरुदेव दत्त एवं श्री दुर्गादेवी (‘श्री गुरुदेव दत्त’ तथा ‘श्री दुर्गादेव्यै नम:’) के नाम का जप एक के उपरांत एक इस क्रम में करना था । ऐसा मुझे प्रतिदिन तीन घंटे, पूरे एक सप्ताह तक करना था । ‘श्री गुरुदेव दत्त’ का जप मुझे पूर्वजों की सूक्ष्म देहों द्वारा दिए कष्ट से युद्ध करने के लिए था एवं श्री दुर्गादेवी का जप मुझे उच्च स्तर की अनिष्ट शक्ति अथवा सूक्ष्म स्तरीय मांत्रिक का सामना करने के लिए था ।

विभूति एवं तीर्थ : नामस्मरण करते समय मुझे अपने प्रभावित हाथ अर्थात बांए हाथ की पांचों उंगलियां विभूति मिले जल में डुबो कर रखनी थीं । मुझे विभूति मिले जल में इस प्रभावित हाथ को डालने के लिए इसलिए कहा गया ताकि अनिष्ट शक्ति की काली शक्ति प्रभावित हाथ से खिंचकर पवित्र तीर्थ में उतर आए । नामस्मरण के उपरांत मुझे अपने हाथ से निकली काली शक्ति से भारित पानी को फेंक देना था ।

३.५ दूसरे प्रकरण में आध्यात्मिक उपचारों का प्रभाव

जब मैंने तीर्थ से भरा प्याला अपनी गोद में रख उसमें अपना बांया हाथ डालकर, नामस्मरण करना प्रारंभ किया तब मुझे ऐसा प्रतीत हुआ कि मेरी जंघांओं से बडी मात्रा में उष्मा निकल रही है । दो दिनों में ही फफोंलों में से होनेवाला स्राव बंद हो गया और फफोले सूख गए । तदुपरांत मैंने नामस्मरण करना बंद कर दिया । ऐसा करने पर २३ सितंबर २००५ को फफोले पुन: उभर आए क्योंकि मैंने मुझे बताए गए तीन घंटे नामस्मरण नहीं किया था । जब मुझे मेरी त्रुटि ध्यान में आई और मैंने संकल्प किया कि मैं एक दिन भी नहीं चूकुंगा । तब मैंने तीन घंटे प्रतिदिन का निर्धारित जप पूर्ण किया और पूर्णरूप से रोगमुक्त हो गया ।

मैं परम पूजनीय डॉ. आठवलेजी के प्रति अनन्य कृतज्ञ हूं, जिन्होंने उच्चस्तर प्राप्त पूजनीया अंजली गाडगीळ जैसे साधकों का मार्गदर्शन किया, अब ये साधक उनकी कृपा से, अन्य साधकों का मार्गदर्शन करते हैं जिससे अनेक लोग वास्तविक कष्ट से मुक्त हो सके ।

– श्री. माधव गाडगीळ, SSRF आश्रम पनवेल, भारत.

४. पामा का आध्यात्मिक परिपेक्ष

माधव गाडगीळ जी के प्रकरण मे उनकी खुजली का मूल कारण अनिष्ट शक्ति (भूत, प्रेत, पिशाच आदि) द्वारा कष्ट देना था ।

४.१अनिष्ट शक्ति (भूत, प्रेत, पिशाच आदि) किस प्रकार से खुजली एवं पामा जैसे त्वचा रोगों के कारक बनते हैं? 

  • सूक्ष्म विषैली वायु के कारण प्रचंड खुजली होती है, जिसका संबंध अग्नि तत्त्व (तेजतत्त्व) से होता है । यह वायु अनिष्ट शक्ति (भूत, प्रेत, पिशाच आदि) द्वारा बहुत अधिक मात्रा में उत्पन्न की जाती है । यह अनिष्ट शक्ति उच्च स्तर का सूक्ष्म स्तरीय मांत्रिक होता है (संदर्भ: अनिष्ट शक्तियों के प्रकार)। यह मांत्रिक विषैली वायु का निर्माण सूक्ष्म हवन की अग्नि से करते हैं । ऐसी विषैली वायु के संचार से, प्रथमत: प्रभावित व्यक्ति बेचैनी का अनुभव करता है तदुपरांत श्‍वास लेने में कठिनाई होने के कारण शक्तिविहीन अनुभव करता है ।
  • तदोपरांत अनिष्ट शक्ति (भूत, प्रेत, पिशाच आदि) जिनका संबंध अग्नितत्त्व(तेजतत्त्व) से होता है, की काली शक्ति की तरंगें प्रभावित व्यक्ति के शरीर में प्रक्षेपित की जाती है । इसके उपरांत अनिष्ट शक्ति प्रभावित व्यक्ति की नाभि में स्थित पंचप्राणों का नियंत्रण अपने हाथ में ले लेती है । पंचप्राण जो अब काली शक्ति की तरंगों से भर जाते हैं, उनके अतिवेग से प्रक्षेपित होने के कारण प्रभावित व्यक्ति के शरीर में उष्मा निर्माण होती है, क्योंकि यह अग्नि तत्व से संबंधित हैं । इसके फलस्वरूप त्वचा में जलन अनुभव होती है । इस उष्मा एवं जलन के फलस्वरूप त्वचा की कोशिकाएं विघटित होने लगती हैं और त्वचा में दरारें पड जाती हैं ।
  • ये निर्बल त्वचा प्रभावित व्यक्ति के शरीर में सूक्ष्म स्तरीय मांत्रिक द्वारा निर्मित काली सूक्ष्म विषैली वायु का संचरण सहजता से करने में सहायक होती है । इसके कारण त्वचा में फफोले उभर आते हैं । सूक्ष्म मांत्रिक इन फफोलों के माध्यम से पुनः-पुनः अपनी काली शक्ति एवं सूक्ष्म विषैली खुजली की वायु शरीर में प्रवाहित करता है, जिससे भयंकर खुजली होती है । इससे प्रभावित व्यक्ति अपने प्रतिदिन के कार्य अथवा साधना से विचलित हो जाता है, उदाहरणार्थ नामजप एवं सत्सेवा से ।
  • अत: खुजली होना, खुजली की काली वायु के कारण होनेवाले त्वचारोग का लक्षण है, जिसका संबंधतेज तत्व से है । निरंतर होनेवाली खुजली से त्वचा खुरदरी एवं लाल हो जाती है । निरंतर होनेवाली खुजली के कारण हुए सूक्ष्म घावों से विषैली वायु का संचरण भी निरंतर होता है जिसके फलस्वरूप चकत्ते पडने जैसे त्वचा रोग स्थूल रूप से प्रकट होते हैं । कालांतर से सूक्ष्म मांत्रिक त्वचा के बाहर सूजन अथवा उसके नीचे काली शक्ति के केंद्र स्थाफित कर देता है ।

इस प्रकार सूक्ष्म स्तरीय मांत्रिक पहले स्थूल शरीर में अपने स्थान निर्माण करता है, क्योंकि वहां पर आक्रमण करना सबसे सहज होता है । शरीर में जब कोई स्थान किसी प्रकार के कष्ट से प्रभावित होता है, जैसे – जोडों की सूजन, दमा आदि तब उस स्थान पर रज-तम की मात्रा बढ जाती है और वह अनिष्ट शक्तियों का ‘केंद्र’ बन जाता हैं । स्थूल देह में ऐसे केंद्रों का निर्माण करने के उपरांत सूक्ष्म स्तरीय मांत्रिक व्यक्ति के सूक्ष्म देह जैसे; मनोदेह, कारणदेह आदि पर तेजी से आक्रमण करता है ।

४.२ अनिष्ट शक्ति (भूत, प्रेत, पिशाच आदि) के कष्ट से होनवाले त्वचा रोगों के विकास की प्रक्रिया

  • जब सूक्ष्म स्तरीय मांत्रिक आक्रमण करता है, तब आक्रमण की प्रारंभिक अवस्था में प्रभावित त्वचा में विद्यमान जल की मात्रा न्यून हो जाती है एवं त्वचा शुष्क हो जाती है ।
  • तत्पश्चात त्वचा पपडीदार हो जाती है । पपडीदार त्वचा मांत्रिक की काली शक्ति के संचरण के लिए सहायक होती है ।
  • तदोपरांत सूक्ष्म मांत्रिक तेज तत्व से संबंधित काली शक्ति का संचरण सूक्ष्म यंत्रों के माध्यम से करता है, जो उसके चारों ओर के वातावरण में स्थापित होते हैं । इससे वह उस क्षेत्र की कोशिकाओं का विच्छेदन करता है ।
  • इससे आगे की प्रक्रिया में सूक्ष्म स्तरीय मांत्रिक त्वचा पर एक गढ्ढा निर्माण करता है, जो कोशिकाओं के विघटन से बनता है । सूक्ष्म स्तरीय मांत्रिक इन गढ्ढों को काली शक्ति के संचय हेतु प्रयोग में लाता है । इस प्रकार मांत्रिक प्रभावित व्यक्ति के शरीर में अनिष्ट शक्ति का केंद्र स्थापित करता है ।

५. विभिन्न प्रकार के त्वचा रोगों के लिए आध्यात्मिक उपाय

५.१ मूल सिद्धांत जिनका हमें आकलन होना चाहिए

इस खंड में आगे जाने से पूर्व हमें कुछ मूल सिद्धांत समझने चाहिए । निम्नलिखित विषयों पर विस्तृत जानकारी के लिए कृपया अधोलिखित कडी (लिंक)पर क्लिक करें ।

५.२ त्वचा विकार के लक्षण के अनुसार उपचार की सारणी

त्वचा विकार के प्रकार

१. शुष्क त्वचा

२. खुजली

३. चकते पडना

४.पित्ती (कुछ कालावधि के लिए प्रत्यूर्जता (एलर्जी) के कारण होने वाली त्वचा की अवस्था)

जब एक से अधिक देवता का नामजप करना होता है, उसका क्रम इस प्रकार है :

१:१ – उदाहरण – ॐ नमः शिवाय : ॐ हं हनुमते नमः (एक के उपरांत एक का नामजप)

१:२ – उदाहरण – ॐ नमः शिवाय : ॐ हं हनुमते नमः : ॐ हं हनुमते नमः (अर्थात प्रथम देवता का नामजप एक बार तथा दूसरे देवता का नामजप दो बार)

१:१:१ – उदाहरण – ॐ श्री दुर्गादेव्यै नमः : ॐ नमः शिवाय : ॐ नमो भगवते वासुदेवाय (तीनों देवताओं का एक के उपरांत एक का नामजप)

जितना संभव हो पूरे दिन निरंतर नाम जप किया जा सकता है नाम जप किसी भी कार्य को करते हुए किया जा सकता है जैसे नहाते समय, चलते हुए, वाहन चलाते हुए इत्यादि इसे कहीं भी किया जा सकता है इसके लिए कोई बंधन नहीं है ।

६.सारांश

पामा के उपरोक्त दोनों प्रकरणों से यह स्पष्ट होता है कि :

१. ऐसी व्याधि जिसका मूल कारण ऊपरी तौर पर शारीरिक दिखाई देता है, परंतु उसका मूल कारण आध्यात्मिक हो सकता है और वह आध्यात्मिक उपचार के उपरांत पूर्णतः ठीक हो जाता है ।

२. एक ही प्रकार के प्रकटीकरण के – जैसे कि इस प्रकरण में पामा के रूप में – आध्यात्मिक मूल कारण अलग-अलग हो सकते हैं । प्रथम प्रकरण में अनिष्ट शक्तियां (भूत, प्रेत, पिशाच आदि) कारण थी एवं दूसरे प्रकरण में कष्ट का कारण पूर्वजों की सूक्ष्म देह था ।

३. जिनकी छठवीं ज्ञानेंद्रिय जागृत होती है अथवा जिसे सूक्ष्म दृष्टि प्राप्त होती है वही हमारी समस्याओं का आध्यात्मिक निदान कर सकते हैं ।

४. किसी रोग का मूल कारण यदि आध्यात्मिक हो तो एक विशिष्ट आध्यात्मिक उपचार करने से ही शीघ्र ही तथा पूर्ण रूप से रोगमुक्त हुआ जा सकता है ।

यदि हमें व्याधि का मूल आध्यात्मिक कारण ज्ञात न हो, तब भी हम निश्चित रूप से कह सकते हैं कि समस्या का मूल कारण आध्यात्मिक है यदि :

१. समस्या की प्रबलता एवं तीव्रता अलग – अलग दिखाई देती है ।

२. यदि समस्या निवारण हेतु किए जानेवाले उपचार का विशेष लाभ नहीं हो रहा है ।

३. यदि समस्या का निवारण आध्यात्मिक उपचार से होता है ।