धर्मयुद्ध एवं तृतीय विश्व युद्ध - आध्यात्मिक युग को प्रशस्त करनेवाला मार्ग

धर्मयुद्ध एवं तृतीय विश्व युद्ध – आध्यात्मिक युग को प्रशस्त करनेवाला मार्ग

सारांश :

हममें से अधिकांश लोग इस तथ्य से अनभिज्ञ हैं कि विश्व अच्छाई एवं बुराई के बीच सूक्ष्म-स्तरपर होनेवाले महायुद्ध के निकट खडा हैं जिसे धर्मयुद्ध के नाम से भी जाना जाता है । मुख्यत: सूक्ष्म-आयाम में लडा जाने यह युद्ध, पृथ्वी (भूलोक) सहित, ब्रह्मांड के सभी क्षेत्रों में लडा जा रहा है । इस युद्ध का एक अंश जो स्थूल स्तरपर भी होगा, उसका हम पर भयंकर परिणाम होगा । यदि हम साधना के छ: मूलभूत सिद्धांतों के अनुसार साधना आरंभ करें तो इस युद्ध  से मानवजाति पर होनेवाले प्रभाव अल्प हो सकते हैं ।

टिप्पणी : इस लेख को समझने हेतु हम निम्नलिखित लेख पढने का सुझाव देते हैं :१. सत्व, रज और तम, ब्रह्मांड की रचना करनेवाले तीन सूक्ष्म मूलभूत घटक २. अच्छाई विरुद्ध बुराई का संग्राम यह लेख ३० जून २०१३ तक अद्यतन किया गया है ।

विषय सूची

१. धर्मयुद्ध एवं तृतीय विश्वयुद्ध की भविष्यवाणियों का परिचय

पिछले कुछ वर्षों से विश्व प्राकृतिक आपदाओं, आतंकवादी गतिविधियों और राजनीतिक उथल-पुथल की बढती हुई प्रवृत्ति का सामना कर रहा है इस प्रवृत्ति के घटने अथवा इसकी गति के धीमा होने के कोई लक्षण नहीं हैं । हममें से अधिकांश लाेग अपने इस विश्व को अनियंत्रित गति से और भी कठिन काल की ओर बढता देख असहाय अनुभव कर सकते हैं । अनेक द्रष्टाओं जैसे नॉस्त्रेदमस, एडगर केसि आदि. ने अशांत और दुखदायक काल में प्रलयंकारी वृद्धि की भविष्यवाणी की है । हमारे जीवन काल के आसपास होनेवाले अच्छार्इ और बुरार्इ  के बारे में भी अनगिनत चर्चाएं की जा रही हैं ।

हमने, इन भयावह प्रवृत्तियों के लिए कारणीभूत सूक्ष्म आयाम में घटनेवाली धर्मयुद्ध एवं तृतीय विश्वयुद्ध जैसी घटनाओं और भविष्य में हमारे लिए क्या है, इसका पता लगाने हेतु आध्यात्मिक शोध किए हैं

इस लेख का उद्देश्य, आध्यात्मिक शोध के माध्यम से प्राप्त जानकारी उपलब्ध कराना है –

जो विश्व पंचज्ञानेंद्रिय, मन और बुद्धि के परे है, उस विश्व को SSRF 'सूक्ष्म विश्व' अथवा 'आध्यात्मिक आयाम' कहता है । सूक्ष्म विश्व देवदूत, अनिष्ट शक्तियां, स्वर्ग आदि अदृश्य विश्व से संबंधित है जिसे केवल छ्ठवीं इंद्रिय के माध्यम से समझा जा सकता हैं | ।
  • आध्यात्मिक शक्तियां जो कि वैश्विक घटनाओं और भविष्य में आनेवाली घटनाओं एवं समय को क्रमबद्ध करने में कार्यरत हैं |
  •  विश्वयुद्ध जैसी इन घटनाओं के प्रभाव को अल्प करने के लिए मानवजाति द्वारा किए जा सकनेवाले उपाय |

आध्यात्मिक क्षेत्र की समझ न होने के कारण, हममें से कुछ लोगों काे यह लेख काल्पनिक अथवा लगभग एक कपाेल कल्पना समान लग सकता है । विकसित छठवीं इंद्रिय के माध्यम से जो हमने समझा है, उसे यथासंभव वस्तुनिष्ठ रूप में वर्णन करने का हमने प्रयत्न किया है । हमारा उद्देश्य समाज को भयभीत करना नहीं वरन् उसे वैश्विक घटनाओं से सचेत और सावधान करना है । समाज से हमारा यह अनुरोध है कि, वे इस लेख को समझने के लिए थोडा समय दें और अपनी साधना आरंभ करें

ये तथ्य, स्पिरिच्युअल साइन्स रिसर्च फाऊंडेशन (SSRF) की संत पूजनीय श्रीमती अंजली गाडगीळ, को प्रगत छ्ठवीं इंद्रिय के माध्यम से विश्व मन और विश्व बुद्धि द्वारा प्राप्त हुआ है । हमारा सुझाव है कि, इस लेख के साथ आप ‘अच्छार्इ विरुद्ध बुरार्इ’ , का धर्मयुद्ध लेख भी पढें ।

. सूक्ष्म धर्मयुद्ध क्या है ?

ब्रह्मांड के आरंभ से ही इष्ट एवं अनिष्ट शक्तियां अस्तित्व में हैं । ये शक्तियां मुख्यतः ब्रह्मांड के सूक्ष्म-क्षेत्र में विद्यमान हैं और पृथ्वी की सकारात्मक और नकारात्मक शक्तियों को लगभग पूरी तरह से प्रभावित करती हैं | समय-समय पर ये सूक्ष्म शक्तियां, ब्रह्मांड में आसुरी राज्य स्थापित करने के लिए पर्याप्त आध्यात्मिक बल प्राप्त कर लेती हैं । वर्तमान समय में अच्छी तथा बुरी शक्तियों के बीच शक्ति का संतुलन क्रमश: ७० प्रतिशत और ३० प्रतिशत हैं तथापि, ब्रह्मांड में विद्यमान अनिष्ट शक्तियों ने पुनः एक बार आसुरी राज्य स्थापित करने के प्रयास हेतु पर्याप्त आध्यात्मिक बल प्राप्त कर लिया है इसके परिणामस्वरूप जो युद्ध होता है, वह ‘सूक्ष्म-युद्ध’ कहलाता है और इसका प्रभाव ब्रह्मांड के सभी क्षेत्रों में अनुभव किया जा रहा है । वर्ष १९९९ में यह युद्ध सूक्ष्म स्तरपर आरंभ हुआ और इस  का एक अंश पृथ्वी लोक में, मानवजाति के लिए भयावह परिणामों के साथ उत्तराेत्तर जारी रहेगा ।

इस सूक्ष्म-युद्ध की गंभीरता और परिणाम मानवजाति के लिए अभूतपूर्व होंगे । यही कारण है कि, हमने इस लेख का नाम धर्मयुद्ध रखा है, जिसका अर्थ है इष्ट एवं अनिष्ट के मध्य होनेवाला भयावह संघर्ष । इसका परिणाम यह होगा कि अनिष्ट शक्तियां पराजित होंगी और ब्रह्मांड में तथा पृथ्वी पर मानवजाति में पुनः अध्यात्म जागृत होगा । इससे एक नए युग, जिसे ईश्वरीय राज्य भी कहा जाता है, की स्थापना होगी । पृथ्वी पर मानवता में अध्यात्म के पुनःजागृत होनेका यह युग लगभग एक सहस्त्र वर्षोंतक रहेगा । मानवता में पुनः जागृत अध्यात्म के इस युग की मुख्य विशेषताओं का वर्णन हमने इस लेख में आगे किया है।

३. सूक्ष्म-युद्ध (धर्मयुद्ध) का सिद्धांत

हममें से अधिकांश लोग इस तथ्य से अनभिज्ञ हैं कि पृथ्वी पर घटनेवाली अनेक घटनाएं, जो कि हमें व्यक्तिगत अथवा सामूहिक स्तरपर प्रभावित करती हैं, उनके मूल कारण आध्यात्मिक आयाम में होते हैं ।धर्मयुद्ध का प्रभाव ब्रह्मांड के सभी क्षेत्रों में अनुभव किया जा रहा है । आइए, वर्तमान समय में बढती हुई प्राकृतिक आपदाओं का उदाहरण लेते हैं ।

बढती प्राकृतिक आपदाओं का मुख्य सहभागी घटक, आध्यात्मिक स्वरूप का है । भौतिक घटकों जैसे हरित गृह गैस (ग्रीन हाऊस गैस) का इस समस्या में योगदान केवल ३० प्रतिशत है । अन्य शब्दों में, अंतरराष्ट्रीय समुदाय द्वारा क्योटो प्रोटोकाल के अनुपालन की व्यवस्था करनेवाले विश्व के शासकीय एवं अशासकीय संगठनों के कार्य यद्यपि अति प्रशंसनीय हैं; तथापि यह समस्या का, अधिक से अधिक, आंशिक समाधान ही कर सकते हैं । आध्यात्मिक आयाम का विचार किए बिना मात्र भौतिक और मानसिक स्तरपर समस्या के समाधान के अधिकांश प्रयास जटिल और अप्रभावी ही रहेंगे ।

प्राकृतिक आपदाओं, आतंकवाद एवं राजनैतिक उथल-पुथल का एकमात्र मुख्य कारण रज एवं तम गुण के सूक्ष्म घटकों में हो रही वृद्धि है । यह वृद्धि निम्नलिखित कारणों से है :-

  • वर्तमान काल में उच्च स्तर की अनिष्ट शक्तियों की क्रियाशीलता में वृद्धि होना
  • समाज का अत्यधिक भौतिकवादी होना और कदाचित् ही साधना करना

यह समस्त विश्व सूक्ष्म जगत की सकारात्मक एवं नकारात्मक शक्तियों के हाथ में एक कठपुतली की भांति है । सज्जन लोग र्इश्वर की इच्छा के अनुसार कार्य करते हैं जबकि दुर्जन लोग अनिष्ट शक्तियों (भूत, राक्षस, पिशाच आदि) के हाथों की कठपुतलियां हैं । जब तक नकारात्मक शक्तियों को नियंत्रित नहीं किया जाएगा, तब तक सज्जन लोग शांतिपूर्ण जीवन व्यतीत नहीं कर सकेंगे । कनिष्ठ आध्यात्मिक क्षमता के लोग, जो आवश्यक नहीं कि अच्छे अथवा बुरे हों, बडी सुगमता से भूतों के प्रभाव में आकर, उनके नियंत्रण में आ जाते हैं । परिणामस्वरूप वे भी अनिष्ट शक्तियों के नियंत्रण में आ जाते हैं और रज एवं तम गुणों की ें वृद्धि में सहायक होते हैं । जो भी हो वे अच्छी एवं बुरी शक्तियों के आपसी संघर्ष में फंस जाते हैं ।

रज एवं तम में वृद्धि का अन्य मुख्य कारण ‘समाज में धर्म की स्थिति’ है।  भारत में एक उच्च स्तरके संत आदि शंकराचार्य (८-९वीं शताब्दी ईसापूर्व) के अनुसार धर्म वह है जो :

१. सामाजिक व्यवस्था को उत्कृष्ट स्थिति में रखे

२. प्रत्येक व्यक्ति की भौतिक उन्नति में सहायक हो, और

३. आध्यात्मिक क्षेत्र में प्रगति में भा सहायक हो ।

जब साधना के छ: मूलभूत सिद्धांतों के अनुसार साधना की जाती है तो ही आध्यात्मिक उन्नति होती है । विश्व के अधिकांश समाज उपरोक्त तीन प्रतिबंधों(शर्तों) को पूर्ण करने में असफल होते दिखाई देते हैं । नकारात्मक तत्व समाज के नैतिक पतन को उल्लेखनीय ढंग से बढा कर समाज के ताने-बाने को ही खोखला कर देते हैं । इसका एक अंश पृथ्वी लोक में, मानवजाति के लिए भयावह परिणामों के साथ उत्तराेत्तर जारी रहेगा ।

४. धर्मयुद्ध एवं तृतीय विश्वयुद्ध की तीव्रता की भविष्यवाणी :

इस समय विश्व अत्यंत व्यापक स्तरपर हो रहे सूक्ष्म युद्ध के बीच खडा है, जिससे अधिकांश लोग अनभिज्ञ हैं । युद्ध का अधिकांश भाग सूक्ष्म आयाम में लडा जा रहा है और भविष्य में भी लडा जाएगा । इस युद्ध का भौतिक आयाम अर्थात पृथ्वी पर यह युद्ध अधिकांशत: सूक्ष्म आयाम के कारण होगा । अत: इस युद्ध के होने की जानकारी पृथ्वी पर केवल आध्यात्मिक रूप से उन्नत कुछ व्यक्तियों को ही है ।

पृथ्वी पर इस युद्ध का एक बहुत छोटा-सा अंश ही अनुभव होगा; परंतु यह आंशिक रूप भी महाप्रलयकारी होगा और व्यापक विनाश का कारण बनेगा । धमर्युद्ध के इस आंशिक रूप में हम प्रकृति की विनाशकारी शक्तियों के तांडव और तृतीय विश्वयुद्ध, जिसमें सामूहिक विनाश के हथियार उपयोग किए जाएंगें, के साक्षी बनेंगे । प्राकृतिक आपदाएं, जैसे- बाढ, भूकंप और ज्वालामुखी इत्यादि रजोगुण एवं तमोगुण के बढने के कारण बढेंगी और पृथ्वी पर बढता अधर्म इसमें आग में घी का कार्य करेगा । वे लोग जो तृतीय विश्वयुद्ध का प्रारंभ करेंगे, वे अत्यंत उच्च स्तरकी नकारात्मक शक्तियों, जिन्हें सूक्ष्म-मांत्रिक कहा जाता है, के नियंत्रण में होंगे ।

सूक्ष्म एवं स्थूल संयुक्त्त आयामों मे धर्मयुद्ध की तीव्रता

निम्नांकित सारणी विभिन्न विश्व युद्धों में सूक्ष्म और स्थूल दोंनों स्तरों की तुलनात्मक तीव्रता को प्रदर्शित करती है –

युद्ध का नाम

वर्ष

स्थूल एवं सूक्ष्म युद्ध  की तीव्रता

प्रथम विश्वयुद्ध

१९१४-१९१८

३०

द्वितीय विश्वयुद्ध

१९३९-१९४५

५०

तृतीय विश्वयुद्ध

२०१५-२०२३

७०

ब्रह्मांड का लय

कलियुग का अंत

१००

उपरोक्त आलेख और सारणी से हमें युद्ध के परिमाण का बोध होता है । तथ्यों के एक योग्य परिप्रेक्ष्य में आकलन के लिए जब प्रथम  विश्वयुद्ध और द्वितीय  विश्वयुद्ध अपने शिखर पर थे तब स्थूल एवं सूक्ष्म तत्वों की संयुक्त मात्रा की तीव्रता क्रमश: ३० से ५० ईकाई थी । पिछले कुछ वर्षों में हुई आतंकवादी गतिविधियां और बडी आपदाएं, सूक्ष्म युद्ध से सीधे संबंधित होने का संकेत करती हैं । उच्च स्तरकी अनिष्ट शक्तियां जैसे मांत्रिक उन व्यक्तियों को अपने प्रभाव में ले लेते हैं जो समाज को हानि पहुंचाने की मानसिकता रखते हैं और उनके माध्यम से मानवजाति पर आतंकी आक्रमण करवाते हैं । ऐसे में यह तथ्य कि धर्मयुद्ध एवं तृतीय विश्व युद्ध की तीव्रता २०१७ में ७० ईकाई तक बढ जाएगी, हमें विश्वयुद्ध की उग्रता बताता है । तदुपरांत वर्ष २०२३ तक यह उग्रता तीव्र गति से से न्यून होगत और शून्यतक पहुंच जाएगी । ब्रह्मांड के लय के समय सूक्ष्म युद्ध  की तीव्रता १०० ईकाई होती है ।

५. इस धर्मयुद्ध में कौन कौन सी इष्ट शक्तियां सहभागी हैं ?

१९९३ : इस युद्ध परिणामी काल में पृथ्वी पर इष्ट शक्तियों का नेतृत्व पृथ्वी पर निवास कर रहे एक परात्पर गुरु (९०% से अधिक आध्यात्मिक स्तर के आध्यात्मिक मार्गदर्शक द्वारा किया जा रहा है । १९९३ में युद्ध के प्रारंभिक काल में परात्पर गुरु एवं कुछ साधक ही युद्ध कर रहे थे । उनकी सहभागिता संपूर्णतया सूक्ष्म स्तरपर थी । इसका अर्थ यह है कि, इस युद्ध में सम्मिलित सभी लोग स्वत: ही र्इश्वर की इच्छानुसार कार्य कर रहे थे और इस बात से अनभिज्ञ थे कि उनका कार्य वास्तव में इस युद्ध का एक भाग है । अत: सभी सहभागी, स्थूल स्तरपर इस युद्ध में अपनी सहभागिता से अनभिज्ञ थे । युद्ध  के समय घटित हुए विभिन्न कृत्य, जैसे – अध्यात्म प्रसार के लिए प्रयास, सूक्ष्म स्तरपर अधिकांशत: और स्थूल में कुछ सीमा तक, उनके द्वारा स्वत: ही ईश्‍वरेच्छा अनुसार किए गए ।

२००३ : वर्ष २००३ तक परात्पर गुरु के साथ इस धर्मयुद्ध में सहभागी साधकों की संख्या बढकर २५ हो गई । उनका कार्य मुख्य रूप से र्इश्वर की इच्छा को स्थूल स्तरपर कार्यान्वित करना था । जैसे-जैसे सूक्ष्म युद्ध की तीव्रता बढी, अच्छी शक्तियों की संख्या एवं गुणवत्ता निरंतर बढती गई । यह सूक्ष्म युद्ध पूर्णत: आध्यात्मिक शक्ति द्वारा लडा गया और इसमें कोई स्थूल तत्व नहीं था ।

२००४ : वर्ष २००४ से अनिष्ट शक्तियों की तीव्रता में और उसके फलस्वरूप युद्ध की उग्रता में अत्यधिक वृद्धि हुई । अत: स्वर्गलोक की अच्छी शक्तियां इस युद्ध में सम्मिलित हो गईं । उन्होंने विभिन्न माध्यमों यथा पीले ईश्‍वरीय कणों से लेकर चैतन्य कणों, देवताओं के प्रकाश एवं रंगों की तरंगों द्वारा अनिष्ट शक्तियों का सामना करने में सहायता की । सकारात्मक इष्ट शक्तियों के स्वरूप में बढते परिवर्तन, यह सूचित करते हैं कि, युद्ध में स्वर्ग से सम्मिलित हुई शक्तियों के सूक्ष्मतर होते जाने के कारण वे अधिक शक्तिशाली हो रही हैं ।

२००८ : वर्ष २००८ से युद्ध की तीव्रता अधिक हो जाने के कारण स्वर्गलोक की शक्तियां अप्रभावी हो गईं । अत: उनका सहभाग बंद हो गया ।

२००९ – २०१३ : वर्ष २००९ में सूक्ष्मलोक महर्लोक (ब्रह्मांड का एक उच्चतर लोक)से दो आध्यात्मिक रूप से उन्नत जीव भी इस युद्ध में सम्मिलित हो गए । इस समय परात्पर गुरु के साथ लगभग ४०० साधक युद्ध लड रहे थे । वर्ष २०१० में महर्लोक से आया तृतीय उन्नत जीव भी इस युद्ध में सम्मिलित हो गया । उन्नत जीवों का बढता सहभाग २०१३ में दैवी कणों से लेकर सूक्ष्म तरंगों (frequencies), सूक्ष्म किरणों, दैवी तरंगों और सूक्ष्म दैदीप्यमान नक्षत्रों के रूप में था । इसका तात्पर्य था कि ईश्‍वरीय सहायता निरंतर सूक्ष्मतर और शक्तिशाली हो रही थी ।

२०१४ – २०१८ : वर्ष २०१४ में सूक्ष्म युद्ध की तीव्रता ६१ ईकाई हो जाने के कारण इस युद्ध में लडनेवाले साधक आगे इस युद्ध में भाग नहीं ले पाएंगे; क्योंकि अब यह उनकी आध्यात्मिक क्षमता के बाहर हो जाएगा । वे र्इश्वर द्वारा उस स्तर के युद्ध के लिए उपलब्ध कराई जा रही अत्यधिक आध्यात्मिक ऊर्जा को प्राप्त और सहन करने में सक्षम नहीं होंगे ।

वर्ष २०१४ में अगले उच्चलोक अर्थात जनलोक  से दो और दैवी जीव इस धर्मयुद्ध में सहभागी होंगे । २०१८ तक उनका सहभाग ईश्‍वरीय कणों के स्वरूप से बढते हुए सूक्ष्म तरंगों, सूक्ष्म ज्वाला, प्रकाश लय से प्रकाश तरंगों तक होगा ।

२०१९ : आनेवाले कुछ वर्षों में तपलोक (ब्रह्मांड के उच्च लोकों में से एक) से २५ और दैवी जीव सातवें पाताल की अनिष्ट शक्तियों के विरूद्ध इस युद्ध में सम्मिलित होंगे । इसके पश्‍चात यह संख्या धीरे-धीरे घटती जाएगी; क्योंकि उस समयतक पृथ्वी पर ही अनेक साधक संतत्त्व प्राप्त कर चुके होंगे ।

वर्ष २०१७ में इस युद्ध की तीव्रता ७० ईकाई से २०१९ में ४८ इकाई होने के उपरांत भी इसमें सहभागी होनेवाले ईश्‍वरीय जीवों की संख्या २०१७ में मात्र १० की तुलना में २०१९ में २५ होगी । ऐसा इसलिए होगा, क्योंकि वर्ष २०१९ में नकारात्मक एवं अनिष्ट शक्तियों के विनाश कार्य के अतिरिक्त मानवजाति में अध्यात्मिकता के पुर्नजागरण के युग के अधिष्ठान का इष्ट कार्य करना भी आवश्यक होगा ।

२०२१-२०२३ : वर्ष २०२१ में मानव जाति में अध्यात्मिकता के पुर्नजागरण के युग के अधिष्ठान का आरंभ होगा । वर्ष २०२३ में १४ सूक्ष्म-लोकों में से सर्वाधिक सूक्ष्म और पवित्र सत्यलोक से कणों का आगमन होगा, जो ईश्‍वरीय राज्य के लिए चल रहे इष्ट कार्यों में सहायक होगा ।

२०२४ : वर्ष २०२४ में सूक्ष्म इष्ट लोकों की सहभागिता बंद हो जाएगी; क्योंकि अब इसकी कोई आवश्यकता नहीं रहेगी ।

६. धर्मयुद्ध एवं तृतीय विश्व युद्ध के मुख्य चरण

यह विश्व युद्ध मुख्यत: सूक्ष्म आयाम में लडा जा रहा है । इसके साथ ही यह विश्व पर अधिकांशत: सूक्ष्म स्तरके प्रतिकूल प्रभाव छोड रहा है । इस सूक्ष्म युद्ध के परिणाम मुख्यत: विभिन्न स्तरों पर तीव्र गति से बढ रहे विश्व के अध:पतन के बीजों के रूप में है । ये बीज दो प्रकार से कार्य करते हैं :

* यह विश्व की कुल सात्त्विकता घटाते हैं ।

* यह मानवजाति पर अनिष्ट शक्तियों के नियंत्रण एवं प्रभाव को बढाते हैं ।

धर्मयुद्ध के मुख्य चरणों का विवरण इस प्रकार है :

वर्ष घटना
१९९९ -२०१२ सूक्ष्म-युद्ध 

१. सूक्ष्म-जगत में इष्ट के अनिष्ट से युद्ध के कुछ प्रसंग स्थूलरूप में घटते हैं जो कि उसके प्रारंभ होने की सूचना देते हैं ।

२. स्थूल स्तर पर – इस युद्ध में अनिष्ट शक्तियां साधकों को साधना करने से रोकती हैं और साधना में बाधाएं उत्पन्न करती हैं ।

२०१३ -२०१५ स्थूल में युद्ध का प्रारंभ

  • सूक्ष्म स्तरपर इष्ट द्वारा अनिष्ट के विरुद्ध हो रहे युद्ध की धारा में परिवर्तन प्रारंभ होता है और इष्ट शक्तियां विजयी होने लगती हैं ।
  • छोटे-मोटे झगडों अथवा टकराव के रूप में आतंरिक झगडे; विभिन्न देशों में दंगों का आरंभ, लोगों का राष्ट्रीय स्तरपर शासन के विरुद्ध विद्रोह; यद्यपि प्रत्येक प्रसंग ऊपरी तौर पर अलग-अलग दिख सकता है; तथापि उनका मूल कारण सूक्ष्म जगत की उच्च स्तरकी अनिष्ट शक्तियां हैं ।

प्राकृतिक आपदाएं

  • प्राकृतिक आपदाओं में वृद्धि

स्थूल स्तरपर लडाई 

दुर्जनों और असामाजिक तत्वों द्वारा शारीरिक, मानसिक एवं आध्यात्मिक स्तरपर धर्मयुद्ध का प्रारंभ

२०१६ -२०१८ स्थूल स्तरपर मुख्य युद्ध

  • तृतीय विश्वयुद्ध प्रारंभ होगा
  • बडी मात्रा में मानव-जीवन की क्षति

प्राकृतिक आपदाएं

  • व्यापक स्तरपर प्राकृतिक आपदाएं

असामाजिक तत्त्वों के साथ युद्ध

समाज से दुर्जनों तथा असामाजिक तत्त्वों का भौतिक, मानसिक तथा आध्यात्मिक स्तरपर उन्मूलन

२०१९ -२०२२ ईश्‍वरीय राज्य के लिए तैयारी

  • धर्मयुद्ध की दिशा में परिवर्तन और स्थूल स्तरपर हो रहे इष्ट एवं अनिष्ट के युद्ध में इष्ट शक्तियों की विजय का प्रारंभ
  • सत्त्वप्रधान (ईश्‍वरीय) राज्य के शासन को चलाना सीखना
२०२३ सत्त्वप्रधान (ईश्‍वरीय) राज्य की स्थापना

वर्ष १९९३ से मांत्रिकों ने समाज के अध:पतन एवं अधर्म की गति बढाने हेतु बीज बोने आरंभ कर दिए । विश्व में पहले से ही पतन की यह प्रक्रिया चल रही है । ऐसा मनुष्य की भौतिकवादी प्रकृति और धर्माचरण के अभाव के कारण हुआ । उच्च स्तरकी अनिष्ट शक्तियों की सहायता के कारण पतन की तीव्रता एवं गति में वृद्धि हुई । समय बीतने के साथ-साथ यह बीज अंकुरित हो कर समाज का और अधिक पतन करेंगे । जैसे-जैसे समाज और अधिक अधर्मी बनता है, वह अनिष्ट शक्तियों के हाथों का खिलौना बनकर वातावरण के रज-तम गुणों में वृद्धि करेगा । विश्व में रज-तम गुणों की वृद्धि आस्थरता का कारण बनेगी और जैसा कि हम जानते हैं, यह प्राकृतिक आपदाओं और तृतीय विश्व युद्ध का रूप ले लेगी । उच्च स्तरकी अनिष्ट शक्तियों द्वारा पहले से ही स्थापित किए कुछ तंत्रों के उदाहरण नीचे दिए हैं । यह सारणी उन घटनाओं का भी वर्णन करती है जो मानवजाति में अध्यात्म के पुर्नजागरण के युग की स्थापना की प्रक्रिया में महत्त्वपूर्ण होंगी ।

वर्ष

घटना – प्राकृतिक आपदाओं और तृतीय विश्व युद्ध का रूप

२०००

समाज में प्रबल घरेलू झगडों का बीज बोया गया

२००१

समाज में असामाजिक तत्त्व बढाने का बीज बोया गया

२००२

धार्मिक स्थलों में अनाचार की वृद्धि के बीज बोए गए, जिससे रज तम बढे । धार्मिक स्थल समाज का सत्त्वगुण बढाने में सहायक होते हैं । जब वहां अधर्माचरण होता है तो सात्त्विकता घटती है और उसके कारण रज तम बढने में सहायता होती है ।

२००६

धार्मिक स्थलों के विनाश प्रारंभ होने के बीज बोए गए

२०११

अनिष्ट शक्तियों द्वारा नियंत्रित आतंकवादियों के माध्यम से आध्यात्मिक संस्थाओं को नष्ट करने का बीज बोया गया

२०१४

प्राकृतिक आपदाओं का बढना

२०१५

बाढ और ज्वालामुखी से प्रलयंकारी विनाश

२०१६

पाकिस्तान में भयंकर भूकंप

२०१७

मध्यपूर्व के देशों का बम धमाकों के कारण विनाश

२०१८

अमरीका, चीन और जापान द्वारा युद्ध का सामना और असंख्य मानवों की अभूतपूर्व जनहानि

२०१९

राजनीतिज्ञों के प्रभुत्व का लोप होना और मानवजाति का अपनी रक्षा हेतु संतों के पास दौडना

२०२०

विनाश प्रक्रिया में कमी और वातावरण में ईश्‍वरीय चैतन्य के कणों की प्रधानता

२०२१

मानवजाति में अध्यात्म के पुर्नजागरण की स्थापना के लिए सहायक तथा पूरक वातावरण

२०२२

वातावरण में सुख एवं उत्साह अनुभव होना

२०२३

वातावरण स्थिर होना

२०२४

आंतरिक एवं बाह्य जीवन में स्थिरता आना

२०२५

उन्नत साधना का बीज और साधकों की मोक्ष की ओर आध्यात्मिक यात्रा । मानव जाति में अध्यात्मिक पुर्नजागरण के युग का आरंभ

टिप्पणी : वर्तमान में विश्व जिस गति से जा रहा रहा है इसमें :

  • इस प्रलय के टने की संभावना १%
  • तीव्रता में +/- १०% का अंतर हो सकता है
  • घटना के समयक्रम में +/- १०% का अंतर पूरे २५ वर्षों के काल में हो सकता है ।

६.१ धर्मयुद्ध एवं तृतीय विश्वयुद्ध भविष्यवाणी

तृतीय विश्वयुद्ध का प्रारंभ २०१५ में होगा और यह वर्ष २०२३ तक अर्थात लगभग ९ वर्षों तक चलेगा । इस समय में लडे जानेवाले सभी युद्ध आपस में संबद्ध होंगे । यद्यपि विश्व को सरलता से प्रत्यक्ष रूप से यह ज्ञात नहीं होगा । इस समय के अंत तक सामूहिक विनाश के अस्त्र-शस्त्रों का उपयोग होगा । जनजीवन की अप्रत्याशित हानि होगी और लगभग एक तिहाई जनसंख्या नष्ट हो जाएगी और एक तिहाई अत्यधिक कष्ट भोगेगी । कुछ देश अन्य देशों की अपेक्षा अधिक प्रभावित होंगे । यहां यह कहने कि आवश्यकता नहीं कि उच्च स्तरपर परस्पर (संचार माध्यमों से) संबंद्ध इस विश्व में सभा देश इससे प्रभावित होंगे । तृतीय विश्वयुद्ध मुख्यत: धार्मिक कट्टरपंथी उन्माद से प्रेरित होगा । उच्च स्तरकी अनिष्ट शक्तियां मनुष्यों को कगार तक धकेलने में उनकी इस अतिसंवेदनशीलता का उपयोग करेंगी और राष्ट्रों को एक दूसरे के विरुद्ध युद्ध छेडने हेतु उकसाएंगी ।

सभी तीन विश्व युद्धों में (प्रथम विश्वयुद्ध से तृतीय विश्वयुद्ध तक) पाताल के उत्तरोत्तर उच्चतर लोकों की शक्तिशाली अनिष्ट शक्तियां ही देशों को एक दूसरे से युद्ध करने के लिए भडकाने का वास्तविक मूल कारण रही हैं । पाताल के किन लोकों की कौन सी शक्तियां विश्व युद्ध उकसाने के लिए उत्तरदायी थीं, इसका विस्तृत विवरण निम्नांकित बिंदुओं में किया गया है –

  • प्रथम विश्वयुद्ध : दूसरे पाताल के सूक्ष्मरूपी मांत्रिक
  • द्वितीय विश्वयुद्ध : दूसरे युद्ध की रचना में मुख्यत: तीसरे पाताल मांत्रिकों ने भाग लिया था । उदाहरण के लिए हिटलर अपने कार्यकाल में पांचवें पाताल के सूक्ष्म-मांत्रिक से प्रभावित था । उसका नाटकीय रूप से सत्ता में आने का यही कारण था । उसके शासनकाल में सूक्ष्मरूपी मांत्रिक पूर्ण रूप से प्रकट था ।
  • तृतीय  विश्वयुद्ध : तृतीय विश्वयुद्ध में जो युद्ध स्थूल स्तरपर लडा जाएगा उसके नेपथ्य में चौथे पाताल के सूक्ष्मस्तरीय मांत्रिक होंगे; तथापि सूक्ष्म युद्ध में सातवें पाताल के सूक्ष्म-मांत्रिकों का सहभाग होगा

तृतीय विश्वयुद्ध तथा ईश्‍वरीय राज्य की स्थापना की समय सारणी –

वर्ष

तृतीय विश्वयुद्ध के चरण

२०१५

प्रारंभ

२०१६-२०१८

दुर्जन शक्तियों के प्रभाव में अधर्मी लोगों की विजय होना

२०१९-२०२१

धर्म और अधर्म की शक्तियों का बल बराबर होना

२०२२-२०२३

अच्छी शक्तियों के नेतृत्व में धर्म पक्ष की विजय होना

२०२३ से आगे

ईश्‍वरीय राज्य की स्थापना

साधकों की श्रद्धा एवं भाव के अनुसार साधक (धर्म) और अनिष्ट शक्तियों (अधर्म) के इस युद्ध की समय सारणी में परिवर्तन आ सकता है – परम पूजनीय डॉ. आठवले

६. २ तृतीय विश्वयुद्ध तथा धर्मयुद्ध में भारत की भूमिका

आदिकाल से ही भारत विश्व में अध्यात्म का केंद्र रहा है । आध्यात्मिक शोध से ज्ञात हुआ है कि यह युद्ध जो प्रारंभ हो रहा है इसमें आध्यात्मिक परिप्रेक्ष्य से भारत की केंद्रीय भूमिका होगी । इस युद्ध के प्रबलता के समय में अनिष्ट शक्ति पडोसी देशों को भारत पर आक्रमण करने के लिए उकसाएगी जिससे, भारत जो केंद्रीय भूमिका निभानेवाला है उससे विमुख हो जाए । इसके परिणामस्वरूप भारत की लगभग ५० प्रतिशत जनसंख्या नष्ट हो जाएगी ।

७. धर्मयुद्ध में होनेवाली उथल-पुथल के उपरांत क्या इस प्रलय को रोका जा सकता है ?

प्रलय जिसके होने की भविष्यवाणी की गई है, उसका मुख्य कारण यह है कि विश्व का मूलभूत रज-तम ऐसे अभूतपूर्व स्तरतक बढ गया है कि ईश्वरीय हस्तक्षेप अविलम्ब आवश्यक हो गया है जिससे विश्व का पवित्रीकरण हो और यहां शांतिपूर्ण ढंग से रहा जा सके । इसका अर्थ यह हुआ कि यदि मानवजाति अपनी जीवनशैली को सत्त्वप्रधान बनाने के अत्यधिक प्रयास करे तो पवित्रीकरण की प्रक्रिया आंशिक रूप में होगी । अधिकांश मनुष्य अपनी जीवनशैली में प्रचंड मात्रा में सुधार करे और रज तम बढाने में अपना योगदान घटाए, तो इस महाप्रलय को रोका जा सकता है । यदि मनुष्य अपना ध्यान सत्त्वगुण बढाने पर केंद्रित करे, तो यह और भी अच्छा तथा पहले ही हो सकता है । इस प्रकार इस महाप्रलय को होने से तभी रोका जा सकता है, यदि लोग दृढतापूर्वक साधना प्रारंभ करें । परिवर्तन लाने के लिए यह अपरिहार्य है कि साधना का स्वरूप सांप्रदायिक होने की अपेक्षा सर्वव्यापी (समष्टि स्वरूप की) हो । साधना के छ: मूल सिद्धांतों के अनुसार साधना  करना वर्तमानकाल में उन्नति का सबसे सरल साधन है । जो पंथ यह सीख देते हैं कि मात्र उनके पंथानुसार आचरण करने से ही र्इश्वरतक पहुंच सकते हैं, उनकी इस सीख से साधना के छ: मूलभूत सिद्धांतों के उल्लंघन होने का संकट होता है ।

हमारी समष्टि साधना एवं यदि कोई अति उच्च स्तरके संत हस्तक्षेप करते हैं तो ही इंगित वर्ष तथा घटनाओं की तीव्रता में कुछ सीमा तक परिवर्तन हो सकता है । उच्चतर स्तर के संतों में संपूर्ण मानवजाति के प्रारब्ध को बदलने की क्षमता होती है । यदि वे साधकों की साधना के प्रति खरे प्रयासों से प्रसन्न हो जाएं, तो वे संकट के समय की कालावधि घटा सकते हैं तथा घटनाओं की दिशा भी बदल सकते हैं । जिन साधकों ने अपनी साधना से ६० प्रतिशत अथवा उससे अधिक आध्यात्मिक स्तरप्राप्त कर लिया है उनको उनके स्तरानुरूप घटते-बढते परिमाण में संरक्षण प्राप्त होगा ।

८. धर्मयुद्ध के उपरांत मानवजाति में अध्यात्म के पुर्नस्थापना की विशषताएं

युद्ध में होनेवाली उथल-पुथल के उपरांत अंतत: मानवजाति पृथ्वी पर लगभग १००० वर्षोंतक परम शांति का अनुभव करेगी एवं इस कालखंड को ‘ईश्वरीय राज्य’ कहा जाएगा । यह महायुद्ध विश्व की आध्यात्मिक शुद्धि कर मानव को एक विशेष प्रकार के सात्त्विक जगत् के लिए तैयार करेगा जो पुराने विश्व से बहुत अलग होगा । एक प्रकार से यह वर्तमान कलियुग में यह एक छोटे सत्ययुग का प्रारंभ होगा । यद्यपि वास्तविक सत्ययुग (जो ब्रह्मांड का प्रारंभ था) की सात्त्विकता से इसकी सात्त्विकता बहुत ही अल्प होगी, फिर भी यह मानवजाति के आध्यात्मिक पुनर्स्थापना का काल होगा ।

नया युग, जिसमें हममें से कुछ को जाने का सौभाग्य मिलेगा, उसकी कुछ विशेषताएं निम्नलिखित हैं :

  • आध्यात्मिक स्तर: युद्ध के कारण विश्व जनसंख्या अल्प हो जाने से विश्व का औसत आध्यात्मिक स्तर वर्तमान २० प्रतिशत से बढकर ३० प्रतिशत हो जाएगा । विश्व के आध्यात्मिक स्तरमें एकाएक १० प्रतिशत की वद्धि का कारण पृथ्वी पर कम आध्यात्मिक स्तरके व्यक्ति धर्मयुद्ध में अपने प्राण गंवा देंगे । आध्यात्मिक स्तरपर हमारा लेख जो विश्व की जनसंख्या के वर्तमान आध्यात्मिक स्तर का वर्गीकरण  प्रस्तुत करता है – पढें ।
  • युद्ध के उपरांत नया युग – जीवन में किसको महत्त्व : व्यक्ति की योग्यता का अनुमान लगाने के लिए आध्यात्मिक ज्ञान एवं आध्यात्मिक परिपक्वता को उच्चस्तरीय महत्त्व दिया जाएगा । लोगों के जीवन का उद्देश्य मोक्षप्राप्ति हेतु आध्यात्मिक प्रगति की ओर मुड जाएगा । शारीरिक एवं बौद्धिक बल की तुलना में आध्यात्मिक बल का अधिक महत्त्व होगा । तद्नुसार प्रगति का मापन धन-समृद्धि पर आधारित नहीं होगा । संपन्नता की मान्यताएं परिवर्तित हो जाएंगी । इसे पूर्ण रूप से केवल एक साधन माना जाएगा ना कि साध्य ।
  • युद्ध के उपरांत राज्य व्यवस्था : प्रजातंत्र सर्वश्रेष्ठ शासन व्यवस्था होने की प्रतिष्ठा खो देगा । उदाहरण के लिए भारत में हितकारी एवं परोपकारी नेतृत्व एक संत के मार्गदर्शन में सरकार बनाएगा । उस नेतृत्व की कार्य-प्रणाली धर्म पर आधारित होगी । इसके लिए चुनावों की कोई आवश्यकता नहीं होगी । राज्यसत्ता के मार्गदर्शक संत पारदर्शक रूप से यह बतांएगे कि नेता कौन होंगे । शेष विश्व साम्यवाद, निरंकुश तानाशाही, लोकतंत्र के असफल अनुभव से निराश होकर भारत की ओर एक आदर्श उदाहरण के रूप में देखेंगे और इस नई प्रकार की राज्य व्यवस्था को यथासंभव लागू करने का प्रयास करेंगे ।
  • युद्ध के उपरांत घनिष्ठता : सभी देशों में एकता होगी । लोग अन्य संस्कृतियों एवं राष्ट्रीयता के लोगों से सच्चे अर्थ में निकटता अनुभव करेंगे । यह विश्व जनसमुदाय की आध्यात्मिक परिपक्वता के कारण संभव होगा । यह घनिष्ठता आंतरिक आध्यात्मिक समझ के कारण होगी कि सारी मानवजाति एक ही है ।
  • युद्ध के उपरांत नया युग – शिक्षा पद्धति : शिक्षा पद्धति के पाठ्यक्रम में अध्यात्मशास्त्र तथा धर्म के नियम सम्मिलित होंगे । आधुनिक विज्ञान का विस्तार होकर इसमें आध्यात्मिक दृष्टिकोण भी सम्मिलित होगा ।
  • युद्ध के उपरांत चिकित्सा विज्ञान : चिकित्सा विज्ञान पुन: लिखा जाएगा । चिकित्सा विज्ञान में रोग के मूल कारण को जानने के लिए आध्यात्मिक दृष्टिकोण को भी सम्मिलित किया जाएगा । पश्‍चिमी जगत् में आयुर्वेद को सामान्य रूप से स्वीकारा जाएगा । औषधियों का अध्ययन करनेवाले लोगों की प्रवृत्ति एवं दृष्टिकोण में परिवर्तन आएगा । उदाहरण के लिए वे इस बात का विचार करेंगे कि क्या रोगी अंग प्रत्यारोपण अथवा हृदय प्रत्यारोपण की आध्यात्मिक पात्रता रखता है ? शल्यक्रिया सफल होने के उपरांत रोगी स्वस्थ होने पर क्या करेगा । क्या वह अपने अतिरिक्त वर्षों का प्रयोग टीवी देखने, अनावश्यक गपशप अथवा पार्टियों इत्यादि में जाकर व्यर्थ करेगा । राहत मिलने के पश्‍चात भी लोग जीवन का सदुपयोग र्इश्वरप्राप्ति (जीवन का मूलभूत उद्देश्य) के विषय में कम ही सोचते हैं । दूसरे शब्दों में, उन्हें पृथ्वी पर बोझ ही समझा जाएगा । यदि साधना के लिए किसी की आयु बढाने की आवश्यकता होगी तो र्इश्वर स्वत: ही उसे आयु प्रदान करेंगे ।
  • युद्ध के उपरांत न्यायपद्धति : न्यायपद्धतियों एवं प्रक्रियाओं में नाटकीय रूप से बडा परिवर्तन आएगा । अभी हमारे पास विधि आधारित न्यायालय हैं तब हमारे पास न्याय आधारित न्यायालय होंगे । अधिवक्ताओं की कोई आवश्यकता नहीं होगी क्योंकि न्यायाधीश आध्यात्मिक रूप से उन्नत व्यक्ति होंगे जो उनके पास आए प्रसंग की सत्यता को अपने सहज अंतर्ज्ञान से समझ जाएंगे । उनकी प्रगत छठवीं इंद्रिय उन्हें यह दिखाने में सहायक होगी कि कौन असत्य और कौन सत्य बोल रहा है । संक्षेप में, न्याय त्वरित और बिना मूल्य के होगा ।
  • कला : कलाकार अब कला को केवल कला के रूप में नहीं; अपितु साधना के रूप में स्वयं तथा अन्यों को भी र्इश्वर के और निकट ले जाने के लिए करेंगे ।
  • युद्ध के उपरांत सुरक्षा : देश र्इश्वर निर्मित धर्म पर आधारित होने के कारण, र्इश्वर ही इसकी सुरक्षा करेंगे अर्थात र्इश्वर स्वयं नेताओं का मार्गदर्शन करेंगे कि उन्हें क्या करना चाहिए ।
  • युद्ध के उपरांत नया युग – पर्यावरण : प्रकृति पर मनुष्य के कृत्यों का अत्यधिक प्रभाव पडता है । जैसे-जैसे लोग साधना द्वारा सात्त्विक बनेंगे, प्रकृति स्वयं ही मनुष्यता के लिए लाभकारी बनेगी । वर्तमान समय में अनुभव हो रहे मौसम के विचित्र परिवर्तन पूर्णत: समाप्त हो जाएंगे ।
  • युद्ध के उपरांत परिवार नियोजन : सरकारों को परिवार नियोजन की नीतियां बनाने की आवश्यकता नहीं होगी । समाज में स्वत: ही परिवार नियोजन का पालन होगा । हमारे पवित्र वेद शास्त्र भी एक ही संतान होने के पक्षधर हैं; परंतु यह भोजन इत्यादि सुविधाओं के अभाव के भयवश नहीं, अपितु कामवासनाओं पर नियंत्रण के उद्देश्य से है जिससे आध्यात्मिक प्रगति हो ।

८.१ मानवजाति में धर्मयुद्ध के उपरांत अध्यात्म के पुनर्जागरण के युग का महत्त्व

हम युग-परिवर्तन (संधिकाल) के अत्यंत महत्वपूर्ण समय में हैं । यह समय आध्यात्मिक उन्नति हेतु अत्यधिक अनुकूल है, जैसा कि इष्ट एवं अनिष्ट के लेख में विस्तार से बताया गया है । हमारी प्रार्थना है कि साधक इसका विचार करें । हमें यह ध्यान में रखना है कि अध्यात्म के छ: मूलभूत सिद्धांतों के अनुसार तीव्र साधना करते हुए हम इस धर्मयुद्ध की उग्रता को कम कर सकते हैं ।