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अध्यात्मशास्त्र के अनुसार, र्इश्वर का नामजप करने के लिए विशेष काल और स्थान की आवश्यकता नहीं है ।

इसके निम्नलिखित कारण हैं :

जब र्इश्वर ने विश्व की निर्मिति की तो उन्होंने स्वयं को प्रत्येक अंश में समाहित किया । दूसरी ओर अन्य निर्माताओं की निर्मिति में उनका कोई अस्तित्व नहीं होता है । उदाहरण के लिए जब एक कुम्हार एक बर्तन बनाता है तो उसकेद्वारा निर्मित बर्तन में उसका कोई अस्तित्त्व नहीं होता ।
  • ब्रह्मांड और काल दोनों की निर्मिति र्इश्वर ने की है इसलिए इन दोनों में ईश्‍वरीय तत्त्व सदा विद्यमान होता है । अतः हम नामजप कभी भी और कहीं भी कर सकते हैं और र्इश्वर के अस्तित्त्व को अनुभव कर सकते हैं ।
  • हम किसी भी समय नामजप करें, हमें ईश्‍वरीय शक्ति प्राप्त होती है ।
  • दैनिक कृत्य करते हुए नामजप करना एक स्थान पर बैठकर नामजप करने से श्रेष्ठ है । ऐसा करने का कारण यह है कि जब हम सांसारिक कार्य करते हुए नामजप करते है तो साधना की निरंतरता बनी रहती है । फलस्वरूप, निरंतर नाम साधना के साथ ही व्यक्ति प्रत्येक परिस्थिति में र्इश्वर के आंतरिक सान्निध्य में रह पाता है ।

कुछ लोग कहते हैं कि हमें सुबह तडके उठ जाना चाहिए और नामजप करना चाहिए । इसका कारण यह है कि, सुबह के समय वातावरण में सत्त्वगुण  दिन के अन्य समय की तुलना में अधिक होता है और इसलिए नामजप करना सरल होता है ।

अध्यात्मशास्त्र के अनुसार यह सत्य है, यद्यपि ऐसा करने से हमारे सत्वगुण में केवल .०००१ प्रतिशत ही वृद्धि होती है । अतः एक साधक के लिए यह अधिक उचित है कि वह नामजप का समय अपनी प्रकृति के अनुसार इस प्रकार चुनें कि जप भली प्रकार से हो । अतः यदि कोई सुबह शीघ्र नहीं उठ पाता तो यह आवश्यक नहीं कि वह स्वयं को नामजप करने हेतु सुबह उठने के लिए विवश करे ।