SSRF के अनुसार व्यसन की परिभाषा क्या है ?

Definition-of-addictionSpiritual Science Research Foundation (SSRF) व्यसन की व्याख्या डाइग्नॅास्टिक एंड स्टैटिस्टिकल मैनुअल -IV(DSM-IV) (नैदानिक एवं सांख्यिकीय नियम पुस्तिका)में दिए अनुसार करता है । अमेरिकी मनोचिकित्सा संघ (American Psychiatric Association) द्वारा प्रकाशित डाइग्नॅास्टिक एंड स्टैटिस्टिकल मैनुअल ऑफ मेंटल डिस्आर्डर (DSM),  वह हस्तपुस्तिका है, जो अमेरिका में मानसिक विकारों का निदान करने में सर्वाधिक उपयोग की जाती है । हमने व्यसन की व्याख्या की प्रतिलिपि हवाई स्वास्थ्य विभाग से प्राप्त की है ।

नैदानिक एवं सांख्यिकीय नियम पुस्तिका – IV (DSM-IV) व्यसन को पदार्थ सेवन की एक विकृत/अप्राकृतिक पद्धति के रूप में परिभाषित करता है जिसके फलस्वरूप स्वास्थ्य की दृष्टि से महत्वपूर्ण हानि अथवा कष्ट होते हैं, जो कि एक वर्ष की कालावधि में कभी भी घटित होनेवाली निम्नांकित तीन (अथवा अधिक)घटनाओंद्वारा प्रदर्शित होते हैं ।

  •   पदार्थ का सेवन प्रायः इच्छित मात्रा से अथवा निश्‍चित समय अधिक करना ।
  •  निरंतर इच्छा अथवा पदार्थ सेवन को अल्प करने अथवा नियंत्रित करने के असफल प्रयास ।
  •  पदार्थ प्राप्त करने हेतु आवश्यक क्रियाकलापों में (उदा.विभिन्न चिकित्सकों से मिलना, लंबी दूरी तक गाडी       चलाकर जाना ), पदार्थ के उपयोग में (उदा. अनवरत धूम्रपान), अथवा उसके प्रभाव से निकलने में अधिक समय   लगना ।
  • पदार्थ के दुरूपयोग के कारण महत्वपूर्ण सामाजिक, व्यवसायिक अथवा मनोरंजनात्मक कार्यक्रमों को छोडना अथवा घटाना ।
  • पदार्थ के कारण उत्पन्न होनेवाली अथवा तीव्र होनेवाली, स्थायी अथवा पुनरावर्ती मनोवैज्ञानिक तथा शारीरिक समस्याओं से भलीभांति अवगत होने पर भी उसका निरंतर प्रयोग करना

सहनशक्ति (क्षमता) की परिभाषा :

  • उन्मत्तता अथवा मनोवांछित प्रभाव पाने के लिए पदार्थ की उल्लेखनीय रूप से बढी हुई मात्रा की आवश्यकता होना; अथवा
  • एक ही मात्रा में लगातार सेवन करने से पदार्थ का प्रभाव उल्लेखनीय रूप से घट जाना

प्रत्यावर्तन के प्रकट लक्षण :

  • पदार्थ से संबंधित विशिष्ट प्रत्यावर्तन संलक्षण दिखाई देना; अथवा
  • प्रत्यावर्तन संलक्षण को न्यून करने अथवा उसे टालने के लिए उसी पदार्थ (अथवा उसी समान अन्य पदार्थ) का सेवन करना

यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि व्यसन मात्र पारंपरिक पदार्थों, जैसे मद्यपान, धूम्रपान तथा मादक पदार्थों तक ही सीमित नहीं है । व्यक्ति को भोजन, चॉकलेट, यौन क्रिया, वीडियो गेम्स, जुआ इत्यादि का भी व्यसन हो सकता है । इन सभी व्यसनों के कारण व्यक्ति की आध्यात्मिक जीवन व्यतीत करने की अपनी क्षमता का हृास होता है ।