Better Artsense

१. सात्त्विक कला के उदाहरण और सामान्य कला से इसकी तुलना

टिप्पणी : इस लेख को भलीभांति समझने के लिए, हमारा सुझाव है कि सर्वप्रथम आप सत्त्व, रज और तम पर हमारे लेख को पढें ।

यदि कोई एक सूत्र है, जो कलाकारों को एकजुट करता है, तो वह है अच्छी कलाकृति बनाने के लिए अपनी कला की समझ को सुधारना । प्रत्येक कलाकार अपनी चुनी हुई शैली और क्षेत्र में विकास करना चाहता है तथा अपनी कला के माध्यम से अपना सर्वश्रेष्ठ देना चाहता है । ऐसा करने के लिए कलाकार अनेक तरह की तकनीकों का प्रयोग करते हैं, जैसे अपने आसपास की स्थितियों का निरीक्षण करना, अन्य कलाकारों के साथ कार्य करना, सामान्य अभ्यास इत्यादि । तथापि कला का एक संपूर्ण आयाम है जिस पर अधिकांश कलाकार ध्यान नहीं देते, वह है अपनी कला की आध्यात्मिक शुद्धता (सात्त्विकता) को बढाना । इस लेख के माध्यम से हम कला जगत की वर्तमान स्थिति और कला का मूल्यांकन करने के लिए उपयोग किए जानेवाले मापदंडों पर प्रश्न उठाएंगे ।

जैसा कि इस खंड के प्रास्ताविक लेख में उल्लेख किया गया है, किसी भी कलाकृति का विषय सात्त्विक होने के साथ उसका कुछ आध्यात्मिक उद्देश्य होना चाहिए । अर्थात एक तो वे चित्र वातावरण में सात्त्विकता बढाएं अथवा देखनेवाले व्यक्ति की आध्यात्मिक उन्नति में सहायता करें । तदनुसार, कला के इन विषयों में देवता का चित्र, संत का चित्र, आध्यात्मिक/धार्मिक ग्रंथ के आच्छादन पृष्ठ की रचना, वस्त्रों की ऐसी रचना जो सात्त्विक हो आदि हो सकते हैं । एक सुंदर दृश्य अथवा किसी औसत आध्यात्मिक स्तर के प्रसिद्ध व्यक्ति का चित्र बनाना, सुंदरता की दृष्टि से मनभावन हो सकता है; तथापि, आध्यात्मिक दृष्टिकोण से इसका कोई महत्त्व नहीं होता । किंतु, चित्र यदि किसी पूजास्थल का हो, जो देखनेवाले में भक्तिभाव जागृत करे, तो ऐसी कलाकृति को सात्त्विक माना जाता है और यह जीवन के आध्यात्मिक उद्देश्य के अनुरूप होती है । इसलिए, यह उन विषयों को सीमित करता है, जिन पर कलाकारों को चित्र बनाने का विचार करना चाहिए । निम्नलिखित खंड में, कुछ मापदण्ड सूचीबद्ध किए गए हैं, जिन पर कलाकार किसी कला परियोजना को आरंभ करने से पूर्व यह सुनिश्चित करने के लिए विचार कर सके कि यह सात्त्विक  और जीवन के आध्यात्मिक उद्देश्य के अनुसार है । ये मापदण्ड दर्शाते हैं कि किसी भी कलाकृति को बनाने से पूर्व एक कलाकार की विचार प्रक्रिया कैसी होनी चाहिए ।

२. सात्त्विक कला के लिए मानदंड

किसी कलाकृति को बनाते समय, ध्यान रखने का पहला मापदंड है कलाकार का उद्देश्य!  किसी कलाकृति को बनाते समय कलाकारों के विविध उद्देश्य हो सकते हैं, किंतु प्राय: ये उद्देश्य, स्वयं को व्यक्त करने, किसी परिकल्पना का समर्थन करने, प्रशंसा की चाह अथवा कोई भौतिक लाभ प्राप्त करने तक सीमित रह जाते हैं । आध्यात्मिक दृष्टिकोण से यह सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण है कि कलाकर अपनी कला के माध्यम से आध्यात्मिक उन्नति करने तथा अहं घटाने का उद्देश्य रखे ।

कलाकृति साधना के रूप में बनाई जाती है, तब कलाकृति कैसे बनाएं, कलाकार को इस पर किसी आध्यात्मिक रूप से उन्नत मार्गदर्शक से मार्गदर्शन प्राप्त होता है । जब इस प्रकार से कलाकृति बनाई जाती है, तो इससे आध्यात्मिक पवित्रता(सात्त्विकता) प्रक्षेपित होती है तथा कलाकार को यह अनुभव होता है कि केवल आध्यत्मिक रूप से उन्नत मार्गदर्शक के मार्गदर्शन के कारण ही यह कलाकृति बनाना संभव हुआ है । फलस्वरूप कलाकार में कृतज्ञता भाव जागृत होता है, जिससे कर्तापन अथवा यह भावना कि कलाकार ने कलाकृति बनाई है, जैसे अहं के पहलू घटने में सहयता होती है ।  इस तरह कला को अपनी साधना के रूप में अपनाने से अहं घटता है । आगे के चरणों में, कलाकार को प्रत्यक्ष रूप से ईश्वर से मार्गदर्शन प्राप्त होता है, तदुपरांत कलाकार को अनुभव होता है कि केवल ईश्वर ही कलाकृति बनवाते हैं, उससे भी कर्तापन अल्प होता है ।

दूसरा मानदंड जिस पर विचार किया जाना चाहिए, वह है कलाकृति के निर्माण का उद्देश्य! सामान्यतया कलाकार कला का निर्माण विचारों को बताने अथवा आत्म-अभिव्यक्ति के एक रूप में करता है । यह एक राजनीतिक, आध्यात्मिक अथवा दार्शनिक संदेश भेजने (व्यक्त करने), सौंदर्य (सौंदर्यशास्त्र सौंदर्य संबंधी) की भावना उत्पन्न करने अथवा दर्शक में प्रबल भावनाएं उत्पन्न करने के रूप में हो सकता है ।

कलाकृति को आध्यात्मिक उद्देश्य के साथ जोडने के लिए, कलाकृति का उद्देश्य समाज में आध्यात्मिक पवित्रता (सात्त्विकता) में वृद्धि करना, भक्तों में भक्ति बढाना तथा दूसरों की आध्यात्मिक उन्नति होने हेतु प्रयास करने के लिए प्रेरित करना होना चाहिए ।

तीसरा महत्त्वपूर्ण मापदंड यह है कि क्या कला को कला के अध्यात्मशास्त्र के अनुसार बनाया गया है? इसके लिए एक अध्यात्मशास्त्र है जो यह निर्धारित करता है आध्यात्मिक रूप से शुद्ध, सात्त्विक रूप में कलाकृति के विषय को कैसे चित्रित किया जाए । उदाहरण के लिए, कपडे के टुकडे पर एक कलाकृति का चयन करते समय एक सात्त्विक रचना का चयन किया जा सकता है । एक अन्य उदाहरण किसी देवता के चित्र का हो सकता है, उसे इस तरह से चित्रित करने के प्रयास किए जाएं कि वह देवता के वास्तविक रूप से मिलता जुलता हो । आध्यात्मिक रूप से उन्नत व्यक्ति के मार्गदर्शन में कलाकृति बनाना, यह सुनिश्चित करने में सहायता करता है कि कला को कला के अध्यात्मशास्त्र के अनुसार बनाया गया है अथवा नहीं । इसके अतिरिक्त, इससे एक कलाकार के रूप में उनकी साधना में वृद्धि होती है,  कलाकार की छठी इंद्रिय विकसित होती है और यह कलाकार को उसके द्वारा बनाई जानेवाली कलाकृति से प्रक्षेपित आध्यात्मिक स्पंदनों को अनुभव करने में सक्षम बनाता है । इससे कलाकार को कला के अध्यात्मशास्त्र के अनुसार कला साकार करने का महत्त्व समझने में प्रत्यक्ष सहायता मिलती है ।

अध्यात्मशास्त्र के अनुसार भगवान एक हैं और वे ज्ञात और अज्ञात ब्रह्मांड में विभिन्न कार्यों को करने के लिए अनेक रूपों में प्रकट होते हैं । उदाहरण के लिए, ज्ञान, सुरक्षा, स्वास्थ्य आदि प्रत्येक के लिए भगवान का एक रूप होता है । अध्यात्मशास्त्र के अनुसार, भगवान के प्रत्येक रूप की अद्वितीय विशेषताएं होती हैं और उन्हें एक देवता के रूप में जाना जाता है । इसलिए, सभी देवता एक विशिष्ट ईश्वरीय तत्त्व होते हैं ।

कला के सबसे कठिन प्रकार में से एक है देवता का चित्र बनाना । ऐसा इसलिए क्योंकि देवता प्रकृति में बहुत सूक्ष्म होते हैं और एक देवता के रूप को देख पाना कठिन होता है । देवता का चित्र बनाना उसी के लिए सहज होता है, जो साक्षात ईश्वर के दर्शन कर सकता है । देवता के रूप को देखने एवं उसे यथार्थ रूप से चित्रित करने के लिए अति जागृत छठी इंद्रिय एवं आध्यात्मिक रूप से उन्नत व्यक्ति के मार्गदर्शन की निरंतर आवश्यकता होती है ।

महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय (MAV) में साधक कलाकारों ने उपरोक्त मापदंडों को ध्यान में रखते हुए आध्यात्मिक रूप से पवित्र (सात्त्विक) देवी-देवताओं के विभिन्न पवित्र (सात्त्विक) चित्रों को हाथों से और डिजिटल रूप, इन दोनों प्रकार से बनाया है । जब आध्यात्मिक रूप से शुद्ध (सात्त्विक) चित्र बनाए जाते हैं, तो इनसे अनेक आध्यात्मिक लाभ प्राप्त होते हैं, जिन्हें नीचे सूचीबद्ध किया गया है ।

३. आध्यात्मिक दृष्टिकोण के साथ देवता का चित्र बनाना

आध्यात्मिक दृष्टिकोण से बनाए गए देवता के चित्र में देखनेवाले को और वातावरण को भी आध्यात्मिक रूप से लाभान्वित करने की क्षमता होती है । यदि अध्यात्मशास्त्र के अनुसार किसी देवता का चित्र आध्यात्मिक उन्नत व्यक्ति तथा संतों के मार्गदर्शन में बनाया जाता है, तो निम्नलिखित लाभ होते हैं ।

  • देवता का चित्र उस देवता का तत्त्व और शक्ति (ऊर्जा) आकर्षित तथा निर्मित करता है ।
  • देवता का चित्र वातावरण में आध्यात्मिक रूप से शुद्ध तरंगें भी उत्सर्जित करता है ।
  • इससे वातावरण आध्यात्मिक रूप से शुद्ध बनता है ।
  • चित्र की आध्यात्मिक शुद्धि भक्त में विश्वास और भक्ति बढाने में मदद करती है । भक्त की आस्था और भक्ति के कारण, उस चित्र में देवता का तत्त्व आकर्षित होता है ।
  • चित्र की सकारात्मक ऊर्जा के कारण वातावरण में उपस्थित कष्टप्रद शक्तियां समाप्त हो जाती हैं ।

आध्यात्म विश्वविद्यालय और आश्रम में देवताओं के अनेक डिजिटल चित्र बनाए गए हैं और ऊपर बताए गए सभी लाभ इन डिजिटल चित्रों में पाए गए हैं । इसके अतिरिक्त, इन चित्रों में विद्यमान देवता के तत्त्व के कारण, कुछ लोगों ने सजीवता की विशेषता को पा लिया है, जिन्हें नीचे सूचीबद्ध किया गया है ।

४. डिजिटल चित्र सजीव समान बनते जाना

जब कलायोग के अनुसार एक डिजिटल चित्र बनाया जाता है, तो वह अधिक सकारात्मक (सात्त्विक) हो जाता है । देवता के डिजिटल चित्र के संबंध में, उस चित्र में उस देवता का तत्त्व आकर्षित हो जाता है और उसमें सजीवता की विशेषता ग्रहण होना आरंभ हो जाती है । साधक-कलाकारों द्वारा निर्मित देवताओं के डिजिटल चित्रों में देखी गई कुछ विशेषताएं निम्नलिखित हैं ।

१. देवता की आंखें उसे देखनेवाले का अनुसरण करती हैं ।

२. जब देखनेवाला चित्र के चारों ओर घूमता है, तब ऐसा लगता है कि देवता भी उसके घूमने के साथ निरंतर उसे देख रहे हैं ।

३. प्रत्येक देखनेवाले को देवता से विभिन्न भाव अनुभव होते हैं । यह देखनेवाले के भाव और भक्ति पर निर्भर करता है ।

४. देवता के डिजिटल चित्रों (साधक-कलाकारों द्वारा निर्मित) को देखनेवाले व्यक्तियों ने चित्र में हलचल होते पाया है । उदाहरण के लिए, देवता के केश हिलना, आभूषण हिलना, श्वास लेना आदि प्रतीत होना ।

५. देखनेवालों को इन चित्रों से सकारात्मक ऊर्जा/शक्ति भी अनुभव हुई है । उदाहरण के लिए, ऐसा लगना कि चित्र उन्हें आकर्षित करते हैं, चित्रों के देखने पर आध्यात्मिक उपचार होने का अनुभव होना अथवा विभिन्न अनुभूतियां होना आदि

कुछ कलाकार वास्तविकता का भ्रम निर्माण करने हेतु प्रकाश और छाया में हेरफेर करके अपने चित्रों में स्वेच्छा से उपरोक्त में से कुछ प्रभाव निर्माण करने में सक्षम होते हैं । किंतु, महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय के साधक-कलाकारों ने स्वेच्छा से इस प्रकार के प्रभाव निर्माण करने के लिए कोई प्रयास नहीं किया है; तब भी, इन चित्रों में इन सजीवता की विशेषता उत्पन्न हुई है ।

जब कोई चित्र सजीव बनता है तो इससे अतिरिक्त आध्यात्मिक लाभ मिलता है । ऐसा इसलिए क्योंकि यह एक अद्वितीय आध्यात्मिक तथ्य है जिससे दर्शक का भाव जागृत होता है । चित्र को देवता के वास्तविक स्वरूप के समान बनाए जाने पर उससे उच्च मात्रा में देवता का तत्त्व प्रक्षेपित होता है जिससे उसे देखनेवाले व्यक्ति एवं वातावरण की अधिक शुद्धि होती है ।

सात्त्विक कला के लाभ केवल देवताओं के चित्रों तक ही सीमित नहीं हैं, वे सभी प्रकार की कलाओं पर लागू होते हैं । इसके अंतर्गत आनेवाली कलाकृतियों का एक उदाहरण नीचे दिया गया है ।

५.  वस्त्र की सात्त्विक कलाकृति विरुद्ध तामसिक कलाकृति

आध्यात्मिक रूप से पवित्र (सात्त्विक) रचना और कला के रूपों के अनेक उपयोग हैं । इनमें आभूषण, वस्त्र, कमरे की सजावट, पलंग की चादर आदि से संबंधित कलाकृतियों को सम्मिलित कर सकते हैं । इस खंड में, वस्त्र पर कलाकृति के दो उदाहरण दिखाए गए हैं । एक में सात्त्विक कलाकृति (चित्र अ) को दर्शाया गया है, जबकि दूसरे में तामसिक कलाकृति (चित्र आ) को दर्शाया गया है ।

satvik asatvik

जब साधकों को यह निर्धारित करने के लिए एक सूक्ष्म प्रयोग करने के लिए कहा गया कि कौन सी कलाकृति से अधिक सकारात्मक आध्यात्मिक स्पंदन उत्सर्जित होते हैं, तो अधिकांश साधकों ने पाया कि आकृति ‘अ’ से सकारात्मक स्पंदन प्रक्षेपित होते हैं जबकि आकृति ‘आ’ से नकारात्मक स्पंदन प्रक्षेपित होते हैं । आध्यात्मिक शोध दल द्वारा उन्नत छठीं इंद्रिय के माध्यम से इन निष्कर्षों की पुष्टि की गई है ।

 

महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय में कला विभाग द्वारा सात्त्विक रचना तैयार की गई है । इसमें सात्त्विक रंग जैसे हल्के नीले और श्वेत रंगों के साथ-साथ फूलों की रचना एक समान है । फूलों का आकार भी सात्त्विक है । इसके विपरीत, तामसिक रचना विषम है । पैटर्न/स्वरूप/संरचना का आकार भी अव्यवस्थित है, और इससे तम प्रधान स्पंदन प्रक्षेपित होते हैं । उपयोग में लाए गए रंग एक दूसरे के पूरक नहीं हैं ।

 

वस्त्र शरीर के सबसे निकट होते हैं, इसलिए व्यक्ति पर उनके स्पंदनों का बहुत प्रभाव पडता है । एक व्यक्ति यदि पूरे दिन के लिए तामसिक कलाकृति वाले वस्त्र पहनता है, तो वह तम प्रधान स्पंदनों से प्रभावित होगा । दूसरी ओर, यदि वह व्यक्ति जो पूरे दिन के लिए सात्त्विक कलाकृति वाले वस्त्र पहनता है, तो वो उनकी सकारात्मकता से लाभान्वित होगा । तम प्रधान वस्त्र पहनने पर कुछ दुष्परिणामों का सामना करना पड सकता है, जिनमें सिरदर्द, विचारों की अस्पष्टता, नकारात्मक विचार आदि सम्मिलित हैं । दूसरी ओर, सत्त्व  प्रधान वस्त्र पहनने से जुडे कुछ लाभों में हल्कापन अनुभव होना, विचारों की स्पष्टता, नामजप एकाग्रता से होना आदि सम्मिलित हैं । यह केवल एक उदाहरण है कि कैसे कलाकृतियां लोगों को दिन-प्रतिदिन के आधार पर प्रभावित कर सकती हैं । किसी भी कलाकृति के संपर्क में आने से हम पर आध्यात्मिक स्तर पर प्रभाव पडता है । स्पष्टतया, हमारे आसपास की कलाकृतियों को सात्त्विक बनाने से सभी (प्रत्येक) को आध्यात्मिक लाभ होगा ।

६. निष्कर्ष

सात्त्विक कला का बहुत अधिक महत्त्व है । उपरोक्त दो उदाहरण बताते हैं कि सात्त्विक कला से लोगों को अपने जीवन में कैसे लाभ प्राप्त हो सकता है । इस खंड में निम्नलिखित लेखों में, हम कलाकृति बनाते समय महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय में साधकों ने इन सिद्धांतों को व्यावहारिक रूप से कैसे लागू किया, इसकी प्रक्रिया को तथा सात्त्विक कला के अंतर्गत कुछ विविध प्रमुख सिद्धांतों को समविष्ट करेंगे । हम सभी आध्यात्मिक स्तर पर अपने आस-पास की कला से प्रभावित हैं, इसलिए इन सिद्धांतों को सीखकर हम सभी लाभान्वित हो सकते हैं । एक कलाकार केवल इंद्रियों को आकर्षित करनेवाली कलाकृति बनाने तक ही सीमित नहीं है, अपितु वह अपनी कलाकृति के माध्यम से समाज में आध्यात्मिक शुद्धि (सात्त्विकता) बढाने में भी सक्रिय रूप से योगदान दे सकता/सकती है ।