क्या सकारात्मक वाक्य (अफर्मेशन) प्रभावी सिद्ध होते हैं ?

क्या सकारात्मक वाक्य (अफर्मेशन) प्रभावी सिद्ध होते हैं ?

विषय सूची

. प्रस्तावना

“मैं कभी भी अच्छे से नहीं कर पाऊंगी !” – जेनिफर के मन में  यह विचार आया क्योंकि कार्यालय में उससे एक और गलती हो गई । परिपूर्ण इच्छाशक्ति के साथ और एक कप कॉफी पीने के पश्चात, वह एकाग्रचित्त होकर बैठी और सकारात्मक वाक्य (अफर्मेशन) काे दाेहराती रही – “मैं सबसे अच्छी  हूं, मैं अपना कार्य अच्छे से करती हूं”।

उसे इस नौकरी को करते हुए तीन वर्ष बीत चुके थे और पदोन्नति की कोई संभावना नहीं दिख रही थी । प्रत्येक चूक ने स्वयं के प्रति संदेह (आत्म संदेह) में और वृद्धि की तथा जो सकारात्मक वाक्य (अफर्मेशन) वह अपनी स्व-सहायक पुस्तक में पढती थी, अब उसपर विश्वास घटने लगा ।

स्व-सहायक पुस्तकों एवं मनोचिकित्सकों द्वारा, नकारात्मक अथवा व्यर्थ के विचारों का सामना करने में लोगों की सहायता होने हेतु, सकारात्मक वाक्यों (अफर्मेशन)  का लंबे समय से उपयोग किया जाता रहा है । यद्यपि वे प्रसिद्ध हैं, किंतु क्या वे वास्तव में व्यक्ति के जीवन की सर्व समस्याओं पर मात करने में सक्षम हैं ?  क्यों सकारात्मक वाक्य (अफर्मेशन) के प्रति जेनिफर का विशवास घटने लगा ? अंततः, हम सब सकारात्मक वाक्यों (अफर्मेशन) जैसे साधनों का प्रयोग इसलिए करते हैं क्योंकि हम जीवन की समस्याओं को दूर करने हेतु चिरस्थाई समाधान चाहते है । अब प्रश्न यह है कि – क्या सकारात्मक वाक्य (अफर्मेशन) इसका उत्तर है ?

. सकारात्मक वाक्य (अफर्मेशन) का अर्थ क्या है ?

सकारात्मक वाक्य (अफर्मेशन), सकारात्मक वक्तव्य होते हैं जिन्हें पुनः पुनः मन में ही दोहराया जाता हैं । कुल मिलाकर, ये नकारात्मकता को दूर करने, आत्मविश्वास का निर्माण करने और स्वयं में सकारात्मक परिवर्तन देखने में सहायता कर सकते हैं । नियमित रूपसे सकारात्मक वाक्य (अफर्मेशन) के दाेहराने से हमारी सोच में एवं कृतियों (व्यवहार) में परिवर्तन होने लगता है । उनकी प्रभावकारिता में वृद्धि करने हेतु, कुछ अन्य पहलुओं जैसे मानसिक चित्रण करना, प्राणायाम, ध्यान, जागरूक जीवन परिवर्तन, कुछ विशिष्ट लक्ष्य निर्धारित करना इत्यादि का भी प्रयोग किया जाता है ।

 सकारात्मक वाक्य (अफर्मेशन) बनाते समय ध्यान रखने योग्य कुछ पहलू आगे दिए गए हैं ।

  • सकारात्मक वाक्य (अफर्मेशन) बनाते समय हमें अपने शब्दों का चयन ध्यानपूर्वक करना चाहिए क्योंकि शब्दों का मन पर प्रभाव पडता है ।
  • अतः, हमें सकारात्मक वाक्यों (अफर्मेशन) में केवल सकारात्मक शब्दों का ही चयन करना चाहिए ।
  • सकारात्मक वाक्यों (अफर्मेशन) को वर्तमान काल में बनाना चाहिए ।
  • उन्हें प्रसंगानुरूप उचित बनाने से इच्छित लाभ प्राप्त करने में सहायता मिलती है ।
  • इसके अतिरिक्त, ये वाक्य बाेलते समय उसे मन में अनुभव करते हुए कहना चाहिए ।
  • सकारात्मक वाक्य (अफर्मेशन) वास्तविक परिस्थितियों का विचार न कर, केवल स्वयं को सकारात्मक विचार से आश्वस्त करने में सहायता करते हैं ।

. सकारात्मक वाक्यों (अफर्मेशन) के कुछ उदाहरण

सकारात्मक वाक्यों (अफर्मेशन) के कुछ उदाहरण आगे दिए गए है ।

  • मैं शारीरिक, मानसिक, भावनात्मक एवं आध्यत्मिक रूपसे पूर्णतया स्वस्थ हूं ।
  • मैं मन से शांत एवं संतुष्ट हूं ।
  • आज मैं जो कुछ भी करूंगा उसमें सफल होऊंगा ।

. विभिन्न प्रकार के सकारात्मक वाक्य (अफर्मेशन) 

व्यावहारिक रूप से वे सभी पहलु जिन्हें हम दूर करना अथवा जिनमें सुधार लाना चाहते है, उनके लिए विभिन्न प्रकार के सकारात्मक वाक्य (अफर्मेशन)  होते हैं ।  प्रेम, स्वास्थ्य, धन, मानसिक स्वास्थ्य, चिंता, सफलता, बच्चों के लिए, इत्यादि पर यह दिए जा सकते हैं ।

. सकारात्मक वाक्य (अफर्मेशन) देने के लाभ

सकारात्मक वाक्य (अफर्मेशन) देने से मन की नकारात्मकता नष्ट होने में सहायता मिलती है । कुछ सीमा तक यह आत्मविश्वास में वृद्धि कर सकते हैं और व्यक्ति को सकारात्मक रूप से कृति करने के लिए प्रेरित कर सकते हैं । यदि मन को उसी के अनुसार छोड दिया जाए, तो वह नकारात्मकता में डूब सकता है । मन हठी ही होता है । इसलिए, सकारात्मक वाक्य (अफर्मेशन) केवल पढने से ही कुछ सकारात्मक दिशा तथा उत्साह मिल सकती है । यह सकारात्मक मन विकसित करने हेतु एक आधार बना सकते हैं ।

सामान्यतया सकारात्मक वाक्य (अफर्मेशन) मानसिक स्तर पर बनाए जाते हैं ।  किंतु, जब उनमें आध्यात्मिक तत्त्व जोडे जाएं, तब वे और भी अधिक प्रभावी बन जाते हैं । आध्यात्मिकता से जुडे सकारात्मक वाक्य (अफर्मेशन) के कुछ उदाहरण आगे दिए गए हैं ।

  • ईश्वर की कृपा से ही, मेरा स्वभाव बहुत खुला, निश्चिंत (तनाव मुक्त) और आनंदी बना है ।
  • ईश्वर की कृपा के कारण ही, मैं उन लोगों को क्षमा करने में समर्थ हूं जिन्होंने मुझे ठेस पहुंचाई थी ।
  • गुरु की कृपा से ही, मैं अपनी सभी चिंता से मुक्त हो गया हूं ।
  • ईश्वर की कृपा के कारण, मेरा मन सदैव सकारात्मक स्थिति में रहता है ।
  • ईश्वर की कृपा के कारण, मैं कोई भी नई बात सहजता से सीख पाता हूं ।

. क्या सकारात्मक वाक्य (अफर्मेशन) प्रभावी होते हैं ?

. पार्श्वभूमि की जानकारी

कई मनोवैज्ञानिक, लोगों के मानसिक स्वास्थ्य और जीवन की परिस्थितियों में उनकी प्रतिक्रियाओं में सुधार लाने हेतु, सकारात्मक वाक्य (अफर्मेशन) के पक्षधर होते हैं । किंतु, यह बात सामान्यतः ज्ञात नहीं है कि परिस्थिति के प्रति लोगों की जो प्रतिक्रिया होती है, वे आंतरिक रूप से इस बात पर निर्भर करती है कि उस परिस्थिति में व्यक्ति का अंतर्मन कैसी प्रतिक्रिया देता है । अतः, इस बात को ध्यान में रखते हुए, यह समझना महत्त्वपूर्ण है कि कौन से कारक सकारात्मक वाक्यों (अफर्मेशन) की परिणामकारकता को प्रभावित कर सकते हैं तथा क्या सकारात्मक वाक्य (अफर्मेशन) व्यक्ति के मन की विविध बाधाओं को दूर कर सकते हैं । आइए, एक चरण पीछे चलते है और पार्श्वभूमि की कुछ जानकारी की समीक्षा करते हैं :

  • मन के विषय में : मन का 90 प्रतिशत भाग अंतर्मन से निर्मित होता है, जो कि व्यक्ति की बाह्य चेतना से परे होता है, जबकि मन का मात्र 10 % भाग बाह्य मन से निर्मित होता है । अवचेतन मन में अनेक जन्मों से संस्कार निर्मित हुए होते हैं तथा इसमें आध्यात्मिक तत्त्व भी होता है । जब उसके साथ कुछ (जैसे कि किसी परिस्थिति के प्रति प्रतिकूल प्रतिक्रिया) आध्यात्मिक पहलू जुडा होता है, तो उसके विषय में आध्यत्मिक स्तर पर विचार करना चाहिए । अधिक जानकारी हेतु बाह्यमन एवं अंतर्मन की प्रकृति पर लेख देखें.
  • व्यक्ति के व्यक्तित्त्व के विषय में : व्यक्ति के अंतर्मन के अनेक संस्कार उसके व्यक्तित्त्व का निर्माण करते हैं । सकारात्मक संस्कार व्यक्ति के जीवन अथवा साधना में सहायक होते हैं । वे व्यक्ति में गुण निर्माण करते हैं । इसके विपरीत, जो संस्कार जीवन अथवा साधना में हानिकारक होते हैं, वें उसमें स्वभाव दोष निर्माण करते हैं । व्यक्ति के गुण एवं स्वभावदोष पर लेख देखें ।
अतः, सकारात्मक वाक्य (अफर्मेशन) देने जैसी मानसिक तकनीक के लिए मानसिक स्तर पर समस्याओं को प्रभावी रूप से हल करने हेतु, उस तकनीक में व्यक्ति के अंतर्मन के दोषों के संस्कारों को भी ध्यान में रखना आवश्यक है ।

. सकारात्मक वाक्यों (अफर्मेशन) की परिसीमा

मन की आध्यात्मिक प्रवृत्ति को ध्यान में रखते हुए, हमें आध्यात्मिक शोध से सकारात्मक वाक्यों (अफर्मेशन) की कुछ सीमाएं ज्ञात हुई, जो निम्नलिखित हैं ।

१. सकारात्मक वाक्य (अफर्मेशन) द्वारा केवल बाह्यमन पर ही ध्यान दिया जाना – जब व्यक्ति सकारात्मक वाक्य (अफर्मेशन)  दोहराता है, तो उसका प्रभाव मुख्य रूप से बाह्यमन तक ही सीमित होता है । जबकि मन का मात्र १० प्रतिशत भाग ही बाह्यमन होता है । चूंकि सकारात्मक वाक्य (अफर्मेशन) केवल बाह्यमन को ही संज्ञान में लेता है, इसलिए, व्यक्ति में नकारात्मक लक्षणों को दूर करने के संदर्भ में सकारात्मक वाक्यों (अफर्मेशन)  का प्रभाव सीमित होता है ।

२. सकारात्मक वाक्य (अफर्मेशन) का सर्वसामान्य होना तथा विशिष्ट (प्रसंगानुरूप) न होना – मन सदैव विशिष्ट प्रसंग के अनुसार कार्य करता है । इसलिए, जब हम मन के लिए सामान्य वाक्य दोहराते हैं तो वह पूर्णरूप से उसे स्वीकार नहीं करता ।

उदाहरण के लिए, आगे दिया गया प्रसंग देखते हैं ।

‘मुझे उस पार्टी में हीन भावना अनुभव हो रही थी, वहां मुझे लगा कि मेरे सभी मित्र धनवान हैं और मैं पीछे रह गया हूं ।’

अब, यदि मैं मन में यह सकारात्मक वाक्य (अफर्मेशन) दोहराता हूं कि ‘मैं धनवान हूं’ अथवा ‘मैं धनी बनने के योग्य हूं’ तो यह उपराेक्त विशिष्ट प्रसंग को संज्ञान में नहीं लेगा । इस प्रकरण में, प्रसंग वह पार्टी थी, जहां मुझे अपने मित्रों से हीन भावना अनुभव हुई ।

इसलिए, हीन भावना के मूल स्वभाव दोष का संस्कार अछूता ही रह गया तथा उसपर सुधार नहीं हो सका । अतः, मेरा मन उस प्रसंग को निरंतर सोचता रहेगा और दुःखी रहेगा, इससे हीन भावना का अनुभव और प्रबल हो जाएगा और परिणामस्वरूप सकारात्मक वाक्यों (अफर्मेशन) का वास्तविक उद्देश्य विफल हो जाएगा ।

इस उदाहरण से, आप देखेंगे कि कैसे सकारात्मक वाक्य (अफर्मेशन) वास्तव में सतही स्तर पर अधिक कार्य करते हैं । सकारात्मक वाक्य (अफर्मेशन) कारणीभूत संस्कार को, जो कि सभी समस्याओं का वास्तविक मूल कारण होता है, उसे संबोधित नहीं करते /संज्ञान में नहीं लेता ।

३. सकारात्मक वाक्यों (अफर्मेशन) का वास्तविकता से मेल नहीं खाने के कारण, मन का उन्हें कल्पना समझना

क्या सकारात्मक वाक्य (अफर्मेशन) प्रभावी सिद्ध होते हैं ?यदि मन को ऐसे सकारात्मक वाक्य (अफर्मेशन) पुनः पुनः दोहराए जाएं जो अवास्तविक हैं, तो मन उन्हें नकार देगा ।

उदाहरण के लिए, मान लें कि मेरा पति मेरे साथ अनुचित व्यवहार करता है तथा इसके कारण मैं कठिन परिस्थितियों से संघर्ष कर रही हूं ।

यदि मैं यह सकारात्मक वाक्य (अफर्मेशन) देती हूं, ‘मुझे प्रेम मिल रहा है’, तो यह मेरे दुखों पर नमक छिडकने जैसे होगा और अपशब्द कहना जो कि मूल कारण है, वह अछूता ही रह जाएगा ।

४. सकारात्मक वाक्यों (अफर्मेशन) द्वारा आध्यात्मिक कारकों की ओर ध्यान नहीं दिया जाना

क्या सकारात्मक वाक्य (अफर्मेशन) प्रभावी सिद्ध होते हैं ?सकारात्मक वाक्यों (अफर्मेशन) की मर्यादा को समझने हेतु, एक उदाहरण देखते हैं । मान लें कि मैं एक अच्छे साथी के साथ जीवन बिताना चाहता हूं । किंतु वास्तविकता यह है कि मेरा विवाह नहीं हो पा रहा है और हर बार जब भी किसी से मेरा संबंध जुडता है तो वह अंत समय में टूट जाता है । मेरा विवाह नहीं होने का मूल कारण वास्तव में मेरा प्रतिकूल प्रारब्ध है । वास्तव में, इस जीवनकाल में मेरे प्रारब्ध में मेरा विवाह होना लिखा ही नहीं है ।

अब यदि मैं स्वयं को यह सकारात्मक वाक्य (अफर्मेशन) देता हूं – ‘मुझे सर्वश्रेष्ठ जीवन साथी मिलने  वाला है’ – तो कभी न कभी मेरा मन इसे पूर्णरूप से नकार देगा । यहां अफर्मेशन सफल नहीं होगा क्योंकि इसने आध्यात्मिक कारक को ध्यान में नहीं रखा ।

५. यदि हम मन को लंबे समय तक अवास्तविक चित्र दिखाते हैं और जब किसी कठिन परिस्थिति में हार जाते हैं, इससे सकारात्मक वाक्य (अफर्मेशन) से निर्मित काल्पनिक बुलबुला फूट जाता है, तब विश्वास की कमी अथवा असफल होने जैसी क्षति हो सकती है ।

क्या सकारात्मक वाक्य (अफर्मेशन) प्रभावी सिद्ध होते हैं ?मान लें कि मैं सकारात्मक वाक्य (अफर्मेशन) दे रहा हूं, ‘मैं जो कुछ भी करता हूं, उसमें सफल होता हूं ।’ किंतु यदि मैं अपनी परीक्षा में असफल हो रहा हूं तथा अपने परिवार की परिस्थितियों के कारण अत्यधिक तनाव में हूं, तो यह सकारात्मक वाक्य (अफर्मेशन) देना मन को एक झूठ भी लग सकता है । यदि किसी का मन निरंतर निराश होता रहे, तो इसके फलस्वरूप सकारात्मक वाक्य (अफर्मेशन)  में तथा स्वयं से उसका विश्वास न्यून हो सकता है ।

 

. क्या पूर्णरूपसे आतंरिक परिवर्तन लाने हेतु कोई अधिक प्रभावी मार्ग है ? 

हमारे स्वभाव में वास्तविक रूप से सकारात्मक परिवर्तन लाने हेतु, हमें अंतर्मन के स्तर पर कार्य करना आवश्यक है । स्वभावदोषों के नकारात्मक संस्कारों को, जो न केवल इस जन्म के अपितु पिछले अनेक जन्मों के विचारों तथा कृतियों से निर्मित हुए हैं, उन्हें समाप्त करने हेतु आध्यात्मिक शक्ति की आवश्यकता होती है ।

SSRF, मन में नकारात्मक संस्कारों (स्वभाव दोषों) को दूर करने हेतु साधना का एक चरण जिसे स्वभाव दोष निर्मूलन प्रक्रिया कहते हैं, उसे करने का सुझाव देती है । प्रक्रिया के एक भाग के रूप में, मन को प्रसंग के अनुरूप विशिष्ट स्वसूचना दी जाती है, जो स्वभावदोषों के संस्कारों को दूर करने में सहायक होती है । जैसे-जैसे संस्कार न्यून होते जाते हैं, व्यक्ति भीतर से शुद्ध होते लगता हैं, फलस्वरूप पूर्ण परिवर्तन आ जाता है । स्वसूचना क्या है, कृपया यह लेख देखें ।

. सकारात्मक वाक्य (अफर्मेशन) की तुलना में स्वसूचना के लाभ

सकारात्मक वाक्यों (अफर्मेशन) की तुलना में स्वसूचनाओं से जो लाभ होते है, उन्हें आगे दी गई सारणी में संक्षेप रूप में दर्शाया गया है

पहलू सकारात्मक वाक्य (अफर्मेशन)  स्वसूचना
१. क्या यह अंतर्मन के स्तर पर कार्य करता है ? नहीं (केवल बाह्यमन पर कार्य करता है ) हां
२. क्या यह विशिष्ट (प्रसंगानुरूप) होता है ? नहीं, यह बहुत सामान्य होता है हां, इसे विशिष्ट प्रसंग के लिए बनाया जाता है
३. क्या यह व्यक्ति को उसकी चूकों का भान करवाता है ? नहीं हां, विभिन्न स्तरों पर – चूक होने से पूर्व, चूक होते समय तथा चूक होने के उपरांत
४. चूक होने के पीछे जो स्वभाव दोष होता है, क्या यह उसे ध्यान में लेता है ? सामान्य एवं अस्पष्ट तरीके से हां, व्यक्ति के स्वभाव के अनुसार पूर्ण रूप से योग्य हो, उस प्रकार से
५. क्या यह आध्यात्मिक कारकों को महत्व देता है ? नहीं हां
६. क्या यह व्यक्ति में हो रहे सुधार का निरीक्षण करने में सक्षम है ? नहीं हां, प्रगति की स्वसूचना के माध्यम से
७. क्या यह परिप्रेक्ष्य का अभ्यास करने का निर्देश देता है ? नहीं हां

इस सारणी को विस्तृत रूप से समझने के लिए, कृपया नीचे दिए गए खंडों को देखें

१. अंतर्मन पर कार्य करना

सकारात्मक वाक्य (अफर्मेशन) मात्र मन की सतह को छूते हैं, किंतु अंतर्मन ज्यों का त्यों ही रह जाता है क्योंकि सकारात्मक वाक्य (अफर्मेशन) संस्कारों के स्तर पर कार्य नहीं करते । स्वसूचानाएं प्रत्यक्ष रूप से स्वभाव दोषों के संस्कारों पर कार्य करती हैं । इसलिए, अंतर्मन पर कार्य किया जाता है और फलस्वरूप हम मन की शुद्धि को अनुभव करते हैं । वें व्यक्ति के दोषों को दूर करने में सहायता करती हैं ।

उदाहरण के लिए, यदि मैं यह सकारात्मक वाक्य (अफर्मेशन) देता हूं कि ‘मैं हर दिन बेहतर और बेहतर होता जाऊंगा’, तो यह मुझे मद्यपान के व्यसन को छोडने में सहायता नहीं करेगा । किसी  मद्यपान के व्यसन से ग्रसित व्यक्ति को मद्यपान के दुष्प्रभावों के बारे में हम चाहे कितने भी सुझाव दे दें अथवा हम सामान्य सकारात्मक वाक्य (अफर्मेशन)  दें, तब भी इसका उस पर स्थायी प्रभाव नहीं पडेगा । वह तब भी मद्यपान करना नहीं छोडेगा, भले ही उसे यह बताया जाए कि इससे उसका लीवर प्रभावित होगा तथा खराब भी हो सकता है अथवा उसे लीवर कैंसर भी हो सकता है ।

किंतु, जब इसकी स्वसूचना इस प्रकार दी जाए, ‘जब मैं मद्यपान करने वाला होऊंगा, तब मुझ यह भान होगा कि मद्यपान करना मेरे स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है तथा इससे लीवर की समस्याएं अथवा कैंसर हो सकता है, इसलिए मैं मद्यपान करना छोड दूंगा’, फलस्वरूप व्यक्ति पर धीरे-धीरे इसका प्रभाव पडने लगता है । उसकी मद्यपान की आदत चरण दर चरण घटने लगती है ।

  • स्वसूचना देने के प्रथम चरण में, उसे मद्यपान करने के उपरांत यह स्मरण होगा कि उसे मद्यपान नहीं करना चाहिए था ।
  • द्वितीय चरण में, उसे मद्यपान करते समय यह स्मरण रहेगा कि उसे मद्यपान नहीं करना चाहिए; किंतु वह इसकी तीव्र इच्छा को रोकने में असमर्थ होगा ।
  • तीसरे चरण में, जैसे ही वह मद्यपान करने लगेगा, तब उसे स्मरण रहेगा कि उसे यह नहीं करना है और वह रुक जाएगा ।
  • और अंततः, वह अब कभी मद्यपान नहीं करेगा क्योंकि उसके अंतर्मन से मद्यपान करने का संस्कार नष्ट हो गया है ।

दंड पद्धति : स्वसूचनाओं में, विरोध चिकित्सा (aversion therapy) का भी उपयोग किया जाता है तथा इसे दंड पद्धति भी कहते है । यदि केवल स्वसूचनाएं देने से परिवर्तन नहीं हो रहा है तब यह पद्धति शीघ्र परिवर्तन लाने में सहायता करती है ।

उदाहरण के लिए, ऊपर दिए गए मद्यपान के उदाहरण के लिए स्वसूचना इस प्रकार हो सकती है, ‘जब मैं मद्यपान करने वाला होऊंगा, तब मुझे इसका भान होगा और मैं स्वयं को चिकोटी काटूंगा तथा इस विचार को रोकूंगा क्योंकि यह मेरे स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है तथा कैंसर का कारण बन सकता है ।’

मूल कारण को महत्व देना : स्वसूचना से दूसरे प्रकार से  यह सहायता होती है, कि ये समस्या के मूल कारण पर ध्यान देता है ।

उदाहरण के लिए, व्यक्ति चिंता अथवा व्याकुलता के कारण मद्यपान कर सकता है । यदि ऐसी बात है, तो वह इस पर आत्मनिरीक्षण कर सकता है कि उसकी चिंता अथवा व्याकुलता का कारण क्या है । यह जीवन की कोई विशिष्ट घटना अथवा परिस्थिति के कारण भी हो सकता है । इसलिए, विशिष्ट प्रसंग के अनुसार स्वसूचना देने से  चिंता का स्वभाव दोष दूर होने में सहायता होगी । स्वभाव दोष पद्धति के अनुसार, यदि यह दोष दूर हो जाता है, तब चिंता स्वतः ही दूर हो जाएगी तथा फलस्वरूप व्यसन भी छूटेगा ।

२. प्रसंगानुरूप होना

स्वसूचना  किसी विशिष्ट स्वभाव दोष से संबधित विशिष्ट प्रसंगों अथवा चूकों पर बनाया जाता है । स्वभावदोष निर्मूलन प्रक्रिया के लिए, किसी भी समय पर, उन २ से ३ दोषों का चयन किया जाता है जिन्हें दूर किया जाना है तथा प्रत्येक दोष से संबंधित चूक पर स्वसूचना बनाई जाती है । उदाहरण के लिए, मान लें कि मुझे आलस्य तथा अपेक्षा, इन दोषों को दूर  करने हेतु चुना है । तब हम इन दोनों दोषों से संबंधित एक-एक चूक का चयन करेंगे तथा प्रत्येक चूक पर प्रसंगानुरूप विशिष्ट स्वसूचना बनाएंगे । फलस्वरूप मन को स्पष्ट रूप से समझने में आसानी होगी । इस प्रकार, यह बहुत प्रभावी होती हैं ।

स्वसूचनाएं भूतकाल में अपूर्ण रहे प्रसंगों के समाधान करने में भी सहायता करता है

उदाहरण : मैं अब और किसी दूसरे लडके पर विश्वास नहीं कर सकती तथा उसके साथ संबंध नहीं जोड सकती । इसका कारण यह है कि मेरे पूर्व के प्रेमी नोह के साथ मेरा संबंध अधूरा रह गया । उसने किसी दूसरी लडकी के लिए मुझे छोड दिया था ।

स्वसूचना : जब भी मैं यह सोचूंगी कि मैं दूसरे व्यक्ति पर कैसे विशवास करूं क्योंकि वह भी नोह जैसा हो सकता है, तब मुझे भान होगा कि यह पूर्व की घटना थी । यह मेरे प्रारब्ध का एक भाग था । अब ईश्वर मेरे साथ है तथा वे मुझे किसी अच्छे व्यक्ति से मिलाने में मेरी सहायता करेंगे । इसलिए मैं नए लोगों से मिलने के लिए तैयार रहूंगी ।

३. भान करवाने की विशेषता के कारण स्वसूचना का और अधिक प्रभावी होना

उदाहरण के लिए, मान लें कि मैं भूल्लकडपन दोष के निर्मूलन हेतु प्रयास कर रहा हूं, तथा चूक है रात में बाहरवाले द्वार को ताला लगाना भूल जाना । अतः, इसके लिए स्वसूचना इस प्रकार हो सकती है : ‘जब मैं सोने जा रहा होऊंगा, तब मुझे क्या बाहर के दरवाजे पर ताला लगा है, यह जांचने का भान होगा कि और मैं दरवाजे पर ताला लगाऊंगा । इस स्वसूचना को दोहराने से, उचित कृति करने का भान बढता जाएगा तथा हम चूक होने से बच जाते है । इस प्रकार भुल्लकडपन के स्वभावदोष का संस्कार घटते जाता है ।

४. स्वसूचनाओं को व्यक्ति की आवश्यकता के अनुसार बनाया जाना, जिससे उसमें शीघ्र परिवर्तन लाने में सहायता होना

प्रत्येक व्यक्ति भिन्न होता है अतः उनसे की जाने वाली चूकें अथवा उनमें विद्यमान स्वभावदोष भी भिन्न होते हैं । एक ही चूक के संबंध में, स्वभाव के प्रकार के आधार पर मूल दोष में अंतर होगा । उदाहरण के लिए, मान लें कि चूक है : मेरे दल के सदस्य मार्क ने बैलेंस शीट में चूक की और मुझे उस पर क्रोध आ गया ।

अब दो भिन्न लोगों में, क्रोध आने का कारण भिन्न हो सकता है ।

यदि मुझमें यह सोचकर प्रतिक्रिया आती है कि, ‘मार्क इतनी मूर्खतापूर्ण गलती कैसे कर सकता है ?  मैं ऐसी गलती कभी नहीं करूंगा’, तब मुझमें, ‘अहंकार’ का स्वभाव दोष प्रधान है ।

अथवा

यदि मुझमें यह सोचकर प्रतिक्रिया आती है कि ‘मार्क सदैव ऐसी चूकें करता है । मैं उससे त्रस्त हो गया हूं’, तब मुझमें ‘पूर्वाग्रह’ का स्वभावदोष प्रबल है ।

इस प्रकार से विश्लेषण करने के उपरांत स्वसूचना बनाया जाता है । इस प्रकार, यह व्यक्ति की समस्या के वास्तविक मूल कारण को दूर करने में सहायता करती है । परिणामस्वरूप स्वभाव में शीघ्रता से सकारात्मक परिवर्तन होते हैं ।

५. स्वसूचना का आध्यात्मिक स्तर पर कार्य करना

स्वसूचना में आध्यात्मिक शक्ति होती है । हम स्वसूचना को भाव के स्तर पर भी बना सकते हैं, अर्थात उसमें दिया जाने वाला दृष्टिकोण आध्यत्मिक हो सकता है । यह हमें अधिक आध्यत्मिक लाभ प्राप्त करने तथा इन्हें अधिक प्रभावी बनाने में सहायता करता है ।

उदाहरण के लिए : मेरी चूक है – ‘मुझे यह भय था कि अपनी कंपनी की अपेक्षा के अनुसार, माइक्रोसॉफ्ट एक्सेल में जटिल सूत्रों का प्रयोग कैसे करना है, यह सीखने एवं समझने में मैं असमर्थ रहूंगा’ ।

अतः, भाव के स्तर पर स्वसूचना इस प्रकार हो सकती है:  “जब मुझे यह सोचकर भय लगेगा कि अपनी कंपनी की अपेक्षा के अनुसार, माइक्रोसॉफ्ट एक्सेल में जटिल सूत्रों का प्रयोग कैसे करना है, यह सीखने एवं समझने में मैं असमर्थ रहूंगा, तब मुझे भान होगा कि ईश्वर हर क्षण मेरे साथ हैं तथा मैं इस कौशलता को एक एक करके सीखूंगा और मैं ईश्वर का नामजप निरंतर करूंगा ।

हमारा परामर्श है कि स्वसूचना देने के साथ ही साधना के अन्य चरण जैसे नामजप, सत्सेवा इत्यादि को भी करें । फलस्वरूप स्वभावदोषों के संस्कार शीघ्रता से नष्ट होंगे ।

६. हममें कैसे सुधार हो रहा है यह ध्यान देने में प्रगति की स्वसूचना सहायक होना

स्वभावदोष निर्मूलन प्रक्रिया में, हम प्रगति की स्वसूचना बनाते हैं, जिससे मन को यह समझने में सहायता होती है कि हममें सकारात्मक परिवर्तन हो रहे हैं । जब मन हममें कैसे सकारात्मक परिवर्तन हुआ, यह देखता है, तो इससे उत्साह बढता है और व्यक्ति अधिक प्रयास करने हेतु प्रेरित होता है । सकारात्मक वाक्य (अफर्मेशन) इस पहलू पर ध्यान नहीं देते । अधिक जानकारी हेतु कृपया प्रगति की स्वसूचना (शीघ्र प्रकाशित होगा ) पर हमारा लेख देखें ।

७. स्वसूचना में दिए गए दृष्टिकोण का अभ्यास करना

यह स्वसूचना में दिए गए उचित दृष्टिकोण का अभ्यास करने में सहायता करती है ।

  • उदाहरण के लिए, यदि मैं आलस्य के दोष पर स्वसूचना दे रहा हूं कि, ‘जब मेरा मन व्यायाम करने को टालेगा, तब मुझे भान होगा कि अच्छा स्वास्थ्य बनाए रखने के लिए व्यायाम महत्वपूर्ण है, और मैं ३० मिनट के लिए व्यायाम करूंगा ।’ इसलिए इस स्वसूचना को मात्र कहना ही पर्याप्त नहीं होगा अपितु वास्तव मैं व्यायाम करके इस पर कृति भी करनी होगी ।
  • जब प्रसंग हो रहा हो तब स्वसूचना सत्र करने से मन को शांत रखने और योग्य तरीके से कृति करने में सहायता होती है । इससे सकारात्मक परिवर्तन भी होता है । उदाहरण के लिए, नकारात्मक सोच को दूर करने के लिए स्वसूचना इस प्रकार हो सकती है ; ‘जब मुझे यह विचार आएगा कि मैं एक अच्छी मां नहीं हूं, तब मुझे यह भान होगा कि मैं अपने बालक के पालन पोषण के लिए अपने पूरे प्रयास कर रही हूं । शिक्षकों ने बताया है कि मेरे बच्चे के वर्तन में सुधार हुआ है तथा वह अपने विद्यालय का कार्य भी अच्छे से कर रहा है । इसलिए, मैं शांत रहूंगी उसके पालन पोषण का हर संभव प्रयास करूंगा ।’ यहां पर, विशिष्ट नकारात्मक विचार (इस प्रकरण में, ‘मैं एक अच्छी मां नहीं हूं) आने पर यह सकारात्मक दृष्टिकोण दोहराने से अंतर्मन में ‘नकारात्मक सोच’, इस स्वभाव दोष के संस्कार को दूर करने में सहायता होगी । इसके विपरीत सकारात्मक वाक्यों (अफर्मेशन) में यह पहलू नहीं होता ।

. स्वसूचनाओं को मनोचिकित्सकों द्वारा परखा एवं आजमाया होना तथा सकारात्मक वाक्य (अफर्मेशन) की तुलना में अधिक प्रभावी होना

परात्पर गुरु डॉ आठवले (एक उच्चत्तम कोटि के संत जिंनकी कृपा से SSRF की स्थापना हुई) जो एक पूर्व विश्व प्रसिद्ध नैदानिक सम्मोहन विशेषज्ञ (क्लिनिकल हिपनोथेरेपिस्ट) हैं, उन्होंने तनाव को न्यून करने और लोगों के जीवन की गुणवत्ता में सुधार लाने हेतु स्वभाव दोष निर्मूलन प्रक्रिया को विकसित किया । एक दशक से भी अधिक समय तक सहस्रों रोगियों का उपचार करने के उपरांत, उन्हें यह ज्ञात हुआ कि व्यक्ति के स्वभावदोष (जैसे क्रोध, ईर्ष्या, इत्यादि) उसके तनाव के प्रमुख मानसिक कारण होते हैं और व्यक्ति के स्वभावदोष पर ही यह निर्भर करता है कि विभिन्न परिस्थितियों में उसकी प्रतिक्रिया कैसी रहेगी । स्वभावदोष निर्मूलन प्रक्रिया कर लोगों के स्वभाव दोषों का उपचार करते समय, उन्होंने अपने रोगियों के मानसिक स्वास्थ्य में शीघ्रता से सुधार होते हुए देखा । पश्चात, जब उन्होंने इस पद्धति को विशिष्ट साधना के साथ जोडा, तब उनके रोगियों के मानसिक स्वास्थ्य पर और भी अधिक सकारात्मक प्रभाव पडा । ऐसा ही उनके मार्गदर्शन में साधना करने वाले साधकों में भी देखा गया ।

विभिन्न आयु वर्ग एवं विविध संस्कृतियों वाले ५० साधकों (जिन्होंने इस पद्धति का अभ्यास किया) पर, उनके जीवन में स्वभावदोष निर्मूलन प्रक्रिया के प्रभाव को समझने हेतु एक अध्ययन किया गया । अध्ययन यह समझने पर केंद्रित था कि साधकों के ३ प्रमुख दोषों को न्यून करने में यह पद्धतियां कितनी प्रभावी थी तथा इसके लिए कितना समय लगा ।

प्रमुख निष्कर्ष

  • स्वभावदोष निर्मूलन प्रक्रिया का उपयोग करते हुए, उनके स्वभावदोषों की तीव्रता ५०-८० प्रतिशत तक घटने में लगा औसत समय २ वर्ष ५ माह था ।
  • ७० प्रतिशत से अधिक स्वभावदोष ३.५ वर्षों की अवधि में ५०-८० प्रतिशत तक घटे ।
  • इस अध्ययन में सम्मिलित हुए लगभग १०० प्रतिशत लाेगाें ने कहा कि यह प्रक्रिया प्रतिदिन करने से जीवन की कठिन परिस्थितियों में भी उन्होंने अपना मन शांत अनुभव किया ।
  • निष्कर्ष दर्शाते हैं कि थोडे समय में ही व्यक्ति के व्यवहार एवं स्वभावदोषों में चिरस्थायी परिवर्तन लाया जा सकता है, फलस्वरूप व्यक्ति तनाव दूर करने और प्रसन्नता अनुभव करने में सक्षम हो पाता है ।

 

डॉ. आशा ठक्कर (MBBS, DPM, MD Psychiatry [Bom.])  तथा डॉ. नंदिनी सामंत (MBBS, DPM) जो दोनों २० से भी अधिक वर्षों से मनोरोग चिकित्सा का अभ्यास कर रही हैं, इनके सहित अनेक चिकित्सक परात्पर गुरु डॉ आठवलेजी के कार्य से जुडे तथा उन्होंने स्वसूचना देने वाले रोगियों तथा साधकों में आश्चर्यजनक सकारात्मक परिवर्तन देखे । अनेक रोगियों को लाभ प्राप्त हुआ और उन्होंने डर, तनाव, दुःख, निराशा, हकलाना, मनोराज्य में रमना, क्रोध तथा विविध प्रकार के दाेषाें पर विजय प्राप्त की है ।

डॉ आशा ठक्कर (MBBS, DPM, MD Psychiatry [Bom.]) द्वारा स्वभावदोष निर्मूलन एवं तनाव प्रबंधन प्रक्रिया के विषय को भारत के गोवा में ३ एवं ४ नवंबर २०१७ को आयोजित तनाव प्रबंधन के चौथे अंतराष्ट्रीय सम्मलेन (ICSM 2017) में प्रस्तुत किया गया । इस सम्मलेन में विश्वभर के चिकित्सकों ने भाग लिया तथा इसे बहुत सराहा गया ।

१०. निष्कर्ष

हम जानते है कि वर्तमान में तनाव, निराशा, व्यसन, आत्महत्या, वैवाहिक जीवन की समस्याएं इत्यादि में अत्यंत वृद्धि हुई है । स्वभाव दोष प्रक्रिया एक महत्वपूर्ण साधन है जो मूल स्तर पर ऐसी परिस्थितयों एवं समस्याओं के कारण आए दुःख को दूर करना सम्भव बनाती है । यदि स्वभावदोष निर्मूलन प्रक्रिया के साथ अपने पंथ के अनुसार नियमित साधना की जाए, तो इसके लाभ बढ जाएंगे । स्वभावदोष निर्मूलन प्रक्रिया एवं साधना का समग्र संयोजन अंतर्मन के सूक्ष्म संस्कारों पर कार्य करता है । किसी भी प्रकार की मानसिक समस्या को दूर होने में लंबा समय लगता है । स्वभावदोष निर्मूलन प्रक्रिया तथा साधना मन को सकारात्मक रूप से प्रभावित करती है, इसलिए इससे व्यक्ति के शारीरिक स्वास्थ्य में भी सुधार होता है । इस प्रकार, यह प्रक्रिया एक सफल एवं आनंदी जीवन के लिए अत्यावश्यक बन जाती है ।