नामजप को श्वास के साथ जोडने के क्या लाभ हैं ?

१. प्रस्तावना

SSRF साधना के आधारस्तंभ के रूप में ईश्वर का नामजप करने की अनुशंसा करता है । ईश्वर के नाम को अपनी श्वास के साथ जोडने से व्यक्ति को अनेक लाभ होते हैं और साधना के रूप में उसका नामजप गुणात्मक होने लगता है ।

२. नामजप को श्‍वास के साथ जोडने के प्रभाव ?

साधना में प्रगति के अनुसार नामजप साधना के चरण एवं उनका महत्त्व :

नामस्मरण के विविध पहलू महत्त्व
केवल ईश्वर का नामजप करना १०%
नामजप को श्वास के साथ जोडना ३०%
केवल श्वास पर ध्यान केंद्रित करना ३०%
नामजप का परिणाम अनुभव करना २ (उदाः भाव, चैतन्य, आनंद, एवं शांति की अनुभूति होना) ३०%
केवल अपने अस्तित्व का भान होना तथा मैं और ईश्वर अलग हैं, ऐसे लगना ९०%
मैं और ईश्वर एक हैं, ऐसा भान होना १००%

टिप्पणी :

  • ऐसा इसलिए क्योंकि अंततः हमें ईश्वर के नामजप के भौतिक (स्थूल) पहलू को पार कर आगे जाना है ।
  • हम देखते हैं कि जैसे-जैसे हमारी आध्यात्मिक प्रगति होती है, साधना से होनेवाली अनुभूतियां और महत्वपूर्ण हो जाती हैं । मूलतः साधना में प्रगति होने के साथ हमारा ध्यान ईश्वर (नाम के) के सूक्ष्म पहलुओं पर केंद्रित होने लगता है ।

३. नामजप को श्‍वास के साथ जोडने से क्या लाभ है ?

३.१ अयोग्य विचारों का ह्रास होना

इन दिनों वायुमंडल में रज-तम गुणों में वृद्धि हुई है । इसका एक कारण है, वर्तमान समय में मनुष्यों का निम्न आध्यात्मिक स्तर । जिन लोगों में रज-तम अधिक होता है उनमें अनावश्यक विचार जैसे काम, क्रोध, मत्सर, लोभ इत्यादि के विचार अधिक होते हैं । ये अयोग्य विचार एकत्रित होकर सूक्ष्म अमूर्त स्तर पर वातावरण को दूषित करते हैं ।

ये अयोग्य एकं दूषित विचार और इनसे उत्पन्न स्पंदन हमारे श्‍वास के साथ सूक्ष्म रूप से हमारे भीतर प्रविष्ट होकर मानसिक स्तर पर हमें विचलित करते हैं । जब हम नामजप को श्‍वास के साथ जोडते हैं, तब वायुमंडल में विद्यमान अनावश्यक विचारों का हमारे भीतर प्रवेश अवरुद्ध हो जाता है ।

परिणामत: व्यक्ति मानसिक शांति, इच्छाओं की न्यूनता, मानसिक स्वास्थ्य में वृद्धि एवं आनंद तथा सुख के उच्चतम स्तर की अनुभूति अपेक्षाकृत तीव्र गति से प्राप्त करता है ।

३.२ वर्तमान में रहना

अधिकांशत: हमारे विचार अतीत की घटनाओं अथवा भविष्य से संबंधित होते हैं । ये विचार अन्य संबंधित विचारों को उत्पन्न करते हैं । जिससे हमारा ध्यान एवं आसक्ति, हमारी पंच ज्ञानेंद्रियों, मन तथा बुद्धि तक ही सीमित रह जाती हैं । उदा. किसी को आनेवाली परीक्षा के कारण तनाव हो सकता है अथवा अतीत की किसी पीडा के अनुभव के कारण ।

आध्यात्मिक उन्नति का एक मुख्य पहलू यह है कि अतीत को भूलकर एकं भविष्य की चिंता छोडकर, वर्तमान में रहते हुए ईश्वर प्राप्ति का ध्येय साध्य करना । साधना के उच्चतम स्तर पर व्यक्ति कालानुभूति से परे हो जाता है और मात्र ईश्वर का अस्तित्व अनुभव करता है । तब ना तो कोई अतीत होता है और ना ही वर्तमान, उसे प्रत्येक क्षण मात्र ईश्वर से एकरूप होने का भान रहता है ।

नामजप को श्‍वास से जोडकर उस पर ध्यान केंद्रित करने से हम वर्तमान में रहना सीखते हैं ।

३.३ अखंड नामस्मरण

हम दिनभर निरंतर श्‍वास लेते हैं, और जब श्‍वास के साथ नामजप को जोडते हैं, तो इससे नामजप की निरंतरता में वृद्धि होती है ।इससे हमारी निम्न प्रकार से सहायता होती है :

  • दिनभर ईश्वर का जप और अधिक करने में
  • ईश्‍वरीय शक्ति को अनुभव करने में

३.४ वातावरण का शुद्धीकरण होना

जब हम ईश्वर का नाम लेते हुए श्‍वास छोडते हैं, तो वातावरण की आध्यात्मिक शुद्धि होती है ।

४. श्‍वास के साथ नामजप के सहायक सूत्र

सामान्य रूप से श्‍वास लें, श्‍वास लेने और छोडने के साथ नामजप को जोडने का प्रयास करें । व्यक्ति श्‍वास के कारण जीवित रहता है ना कि नाम से । अतएव श्‍वास पर ध्यान दें और इसके साथ नाम को जोडें । नामजप की गति के साथ श्‍वास को नहीं जोडना चाहिए ।

४.१ श्‍वास के साथ नामजप जोडने के उदाहरण

निम्नांकित चित्र में व्यक्ति की श्‍वास के साथ ईश्‍वरीय नामजप के विविध पहलुओं का स्पष्ट प्रस्तुतीकरण किया गया है, जो यह दर्शाता है कि ईश्वर के नाम के किस अंश का जप श्‍वास लेते एवं छोडते समय करना चाहिए ।

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