कोर्इ व्यक्ति संत को कैसे पहचान सकता है ?

संत, जो आध्यात्मिक विकास के सर्वोच्च शिखर पर हैं, एक सामान्य व्यक्ति के लिए उन्हें पहचानना असंभव है । इसे अच्छे से समझने के लिए चलिए कुछ तत्सम उदाहरण देखते हैं ।

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साथ ही यदि कोर्इ व्यक्ति आध्यात्मिक विकास के सर्वोच्च शिखर पर विराजमान संत की आध्यात्मिक प्रगल्भता अथवा उनका स्तर मापना चाहता है तो उसे भी संत के स्तर का बनना पडेगा ।

एक साधारण व्यक्ति अथवा एक धार्मिक व्यक्ति अथवा परिपक्व साधक को कोर्इ व्यक्ति संत है अथवा नहीं, यह निर्णय करने की क्षमता नहीं होती । यहां तक कि साधक भी अपने आध्यात्मिक स्तर से २० प्रतिशत अधिक तक ही उच्च आध्यात्मिक स्तरवाले व्यक्ति के तरंगों को अनुभव कर सकता है । ऐसा इसलिए होता है क्योंकि जब आध्यात्मिक स्तर का अंतर २० प्रतिशत से अधिक हो तब तरंगें भी समझने में अत्यधिक सूक्ष्म हो जाती हैं ।

दो संतों के मध्य अंतर करना

उसी तर्क के अनुसार, एक नियमित साधना करनेवाले सामान्य साधक के लिए अथवा किसी भी प्रकार की साधना न करनेवाले व्यक्ति के लिए दो संतों के मध्य आध्यात्मिक प्रगल्भता में अंतर संबंधी निर्णय लेना असंभव है ।

किन संत का अनुसरण करना चाहिए ?

किसी साधारण व्यक्ति के लिए ब्रह्मांड को समझनेकी संभावना केवल पंचज्ञानेंद्रिय, मन तथा बुद्धि तक ही होती है ।

प्रायः लोग पहले से ही धारणा बना लेते हैं कि संतों को कैसा होना चाहिए तथा उन्हें कैसे वर्त्तन करना चाहिए । यह उनकी आध्यात्मिक समझ की कुंठित सोच के आधार पर हो सकता है । इससे वे अपने स्तर पर स्थूल रूप से गलत निर्णय ले सकते हैं कि किसे संत माना जाए तथा किसका अनुसरण किया जाए । फलस्वरूप वे :

1. आध्यात्मिक रूप से प्रगत व्यक्ति से प्रक्षेपित होनेवाली सूक्ष्म सकारात्मक तरंगों को अनुभव करने में अक्षम होते हैं ।

2. आध्यात्मिक रूप से प्रगत व्यक्ति वास्तव में आध्यात्मिक रूप से प्रगत है यह तब तक नहीं समझ पाता जब तक अध्यात्म के अधिकारी व्यक्ति ना बता दे कि अमुक व्यक्ति  आध्यात्मिक रूप से प्रगत है ।

इससे सामान्य साधक के मन में शंका उत्पन्न होती है कि एक ओर तो हम जानते हैं कि संत आध्यात्मिक ज्ञान के प्रकाशस्तंभ स्वरूप होते हैं; किंतु मैं एक संत को नहीं पहचान सकता, तो मुझे संत के रूप में किस पर श्रद्धा रखनी चाहिए ।

इस प्रश्न का उत्तर यह है कि व्यक्ति को अध्यात्म के छः मूलभूत सिद्धांतो के अनुसार अपनी साधना करने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए । यदि अध्यात्म का विद्यार्थी र्इश्वर प्राप्ति हेतु एक पग आगे बढाता है, तब उस साधक की सहायता हेतु र्इश्वर १० पग बढाते हैं । तथा साधक की आध्यात्मिक जिज्ञासा तथा क्षमता में वृद्धि करने के लिए योग्य आध्यात्मिक मार्गदर्शक से मिलवाते