तीव्र अर्धशीर्षी (माईग्रेन) – साधना द्वार इससे छुटकारा मिलना

SSRF द्वारा प्रकाशित प्रकरण अध्ययनों का मूल उद्देश्य है, उन शारीरिक अथवा मानसिक समस्याओं के विषय में पाठकों का दिशादर्शन करना, जिनका मूल कारण आध्यात्मिक हो सकता है । यदि समस्या का मूल कारण आध्यात्मिक हो, तो यह ध्यान में आया है कि सामान्यतः आध्यात्मिक उपचारों का समावेश करने से सर्वोत्तम परिणाम मिलते हैं । SSRF शारीरिक एवं मानसिक समस्याओं के लिए इन आध्यात्मिक उपचारों के साथ ही अन्य परंपरागत उपचारों को चालू रखने का परामर्श देता है । पाठकों के लिए सुझाव है कि वे स्वविवेक से किसी भी आध्यात्मिक उपचारी पद्धति का पालन करें ।

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आगे दिया प्रकरण अध्ययन (case study) इस बात का प्रमाण है कि साधना आरंभ करने के, दृढ प्रयास कैसे जीवन की जटिल समस्याएं सुलझाने में सहायक होते हैं । श्रीमती मानसी राजंदेकर के संदर्भ जीवन की जटिल समस्या थी, बार-बार होनेवाला तीव्र अर्धशीर्षी (माईग्रेन)।

आइए पढते हैं उनके अनुभवों का सार उनके ही शब्दों में …

जब मैं पांचवी कक्षा में थी तबसे अर्धशीर्षी (माईग्रेन) आरंभ हुआ, जो अगले आठ वर्षों तक जारी रहा, जब मैं महाविद्यालय के प्रथम वर्ष में थी । हर एक-दो सप्ताह के अंतराल में अर्धशीर्षी की वेदना होती और कम से कम चौबीस घंटों तक बनी रहती । गरदन के पास सिर के मूल से लेकर, पूरे ललाट पर इतनी तीव्र और अनियंत्रित वेदना होती थी कि उस समय मैं कुछ नहीं कर पाती थी । यहां तक की विद्यालय जाना, भोजन करना इत्यादि भी कठिन हो जाता था । बस दिनभर लेटी रहती जिससे सिर में हो रही वेदना सह सकूं । हमारे पारिवारिक चिकित्सक द्वारा दी गई तीव्र वेदनाशामक औषधियां भी मेरी वेदना दूर नहीं कर पाती थी । ऐसा लगता था कि वेदना किसी वेदनाशामक औषधि से नहीं थमती; तभी थमती है जब उसकी इच्छा होती है । इस वेदना की तीव्रता बतानी हो, तो यह उस वेदना से भी अधिक थी, जब मेरे दांतों का रूट केनाल बिना एनेसथेसिया दिए किया गया था । अर्धशीर्षी की वेदना से मेरे हाथ और पैर भी संवेदनहीन होने लगते थे । इसलिए मेरी मां को भी हमेशा मेरी चिंता लगी रहती थी कि कहीं मैं वेदना न सह पाऊं तो…। मुझे ऐसा लगता था कि चिकित्सक भी मेरी सहायता करने में सक्षम नहीं हैं । जब मैंने होमियोपैथी चिकित्सा पद्धति अपनाई तब वेदना की बारंबारता ऐलोपैथी उपचार की तुलना में घट गई ।

एक दिन मैं SSRF के कुछ साधकों से मिली । वे परम पूज्य डॉ.जयंत आठवले जी के मार्गदर्शनानुसार साधना कर रहे थे । जीवन में प्रथम बार मुझे पता चला कि प्रत्येक व्यक्ति को नियमित साधना करनी चाहिए तथा जीवन का उद्देश्य आध्यात्मिक रूप से प्रगति करना है । मुझे स्मरण है कि उसी क्षण से मैंने अपने कुलदेवता और श्री गुरुदेव दत्त (पितृदोषों अर्थात अपने मृत पूर्वजों के कारण होनेवाले कष्टों से सुरक्षा प्रदान करते हैं, का नामजप आरंभ कर दिया । पहले दिन से ही, मैं घरेलू काम करते हुए प्रतिदिन पांच घंटे नामजप करने लगी । साधना आरंभ करने के उपरांत मुझे स्मरण है कि मुझे केवल एक बार अर्धशीर्षी हुई और उसकी तीव्रता अति सौम्य थी ।

मुझे स्मरण है कि साधना आरंभ करने के तीन माह उपरांत पहली बार मेरी भेंट परम पूज्य डॉ. जयंत आठवलेजी से उनके नागपुर दौरे पर हुई थी । वह भी एक अनुभूति ही थी । उनके चारों ओर भीड जमा थी और मैं उनसे मिलने के लिए आतुर हो रही थी । मैंने उनसे प्रार्थना की, यदि यही साधना का पथ है जिसे मुझे अपनाना है, तो कृपया मेरी आपसे भेंट होने दें । वे मेरी ओर मुडे और उन्हें मार्ग देने के लिए भीड हट गई, तो मैंने स्वयं को उनके सामने पाया । हमारी आंखें मिलीं और उन्हें मार्ग देने के लिए मैं भी हट गई तब उन्होंने स्मित हास्य किया ।

उसके उपरांत से मुझे कभी अर्धशीर्षी हुई हो, इसका मुझे स्मरण नहीं है ।

SSRF की टिप्पणी