साधना से ठीक हुआ गंभीर पामा (एक्जिमा)

SSRF द्वारा प्रकाशित प्रकरण-अध्ययनों (केस स्टडीस) का मूल उद्देश्य है, उन शारीरिक अथवा मानसिक समस्याओं के विषय में पाठकों का दिशादर्शन करना, जिनका मूल कारण आध्यात्मिक हो सकता है । यदि समस्या का मूल कारण आध्यात्मिक हो, तो यह ध्यान में आया है कि सामान्यतः आध्यात्मिक उपचारों का समावेश करने से सर्वोत्तम परिणाम मिलते हैं । SSRF शारीरिक एवं मानसिक समस्याओं के लिए इन आध्यात्मिक उपचारों के साथ ही अन्य परंपरागत उपचारों को जारी रखने का परामर्श देता है । पाठकों के लिए सुझाव है कि वे स्वविवेक से किसी भी आध्यात्मिक उपचारी पद्धति का पालन करें ।

साधना द्वारा गंभीर पामा पर नियंत्रण पाने का वीडियो

साधना प्रारंभ करने के पश्चात किस प्रकार समीर संघा ने गंभीर पामा (एक्जिमा) पर विजय प्राप्त की । जिससे वे २५ वर्षों से भी अधिक समय से ग्रस्त थे । उससे संबंधित वीडियो देखें ।

१. प्रस्तावना एवं संपादकीय टिप्पणी

हमें प्रायः अपने पाठकों से अभिप्राय प्राप्त होते हैं कि SSRFजालस्थल में विभिन्न विषयों पर प्रकाशित लेखों ने कैसे उनके जीवन में समस्याओं पर विजय पाने में उनकी सहायता की । समय-समय पर, पाठक हमसे सकारात्मक एवं उनके जीवन में हुए आकस्मिक परिवर्तन को साझा करते हैं, जो कि अत्यधिक असाधारण होते हैं । यह हमें पूर्णतया कृतज्ञता की अवस्था में पंहुचा देता है । कृतज्ञता से अभिभूत करनेवाला भाव केवल इसलिए है चूंकि हम इस प्रक्रिया का एक भाग हैं जो विश्वभर में आध्यात्मिक स्तर पर इतनी दृढता से लोगों की सहायता कर रही है । यहां हम आपसे वैंकोवर, कनाडा के श्री समीर संघा का एक ऐसा ही वृतांत साझा कर रहे हैं, जिसमें साधना प्रारंभ करने के पश्चात उनमें शारीरिक, मनोवैज्ञानिक एवं आध्यात्मिक स्तर पर व्यापक परिवर्तन पाया गयाI । उनका अनुभव उनके ही शब्दों में प्रस्तुत हैI ।

२. समीर को प्रभावित करनेवाली त्वचा की समस्याएं एवं एलर्जी

अपने जीवन को पीछे मुडकर देखने पर मेरा जीवन गंभीर त्वचा की स्थितियों, खाद्य एलर्जी, चिकित्सकों एवं चिकित्सालयों में प्रवास से भरा दिखता है । जिसके परिणामस्वरूप मैं कई बार निराशा होता एवं सोचता कि मेरे साथ ऐसा क्योंहो रहा है ?

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जन्म लेने के दो दिनों में ही, मेरी त्वचा में चकत्ते (rashes) एवं फूड एलर्जी उत्पन्न हो गईं । जब मैं लगभग पांच माह का था तब ये मेरे ये दोनों कष्ट इतने गंभीर हो गए कि मुझे चिकित्सालय में भर्ती कराना पडा था । मेरी माता को रात में दो से तीन बार मेरे वस्त्र बदलने पडते एवं मेरे बिछावन की चादर भी बदलनी पडती, क्योंकि मेरी त्वचा से निकलनेवाले पानी से मैं पूरा भीग जाता था । जब मैं दो वर्ष का था, तब भी रोग की गंभीरता के कारण पुनः दो सप्ताह चिकित्सालय में भर्ती रहा । तीन वर्ष का होने तक मेरा चिकित्सालय में पुनः-पुनः जाना होता रहा । रोग को रोकने के लिए मुझे मांस आधारित शिशु-आहार पर रखा गया एवं मुझे गाय का दूध अथवा सोया दूध पीना मना था । इस समय मेरे अभिभावकों ने भी दूसरे घर के तलघर (बेसमेंट) में रहने का प्रयास किया क्योंकि चिकित्सक का विचार था कि हमारे घर का शुष्क उष्मक (ड्राय हीटर) पामा का कारण बन रहा था एवं अन्य घर का जल उष्मक (वाटर हीटर) मेरी त्वचा के लिए अच्छा होगा । इस सिद्धांत का कोर्इ प्रभाव नहीं हुआ एवं मेरी त्वचा की स्थिति वैसी ही बनी रही ।

यह छायाचित्र जब मैं तीन वर्ष का था तब का है एवं जैसा कि आप देख सकते हैं कि मेरा मुख चकत्ते से भरा हुआ था ।

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जब मैं पांच वर्ष का था तब मुझे पारंपरिक चीनी औषधि दी गयी थी, जिसमें चाय के साथ जडीबूटियों के मिश्रण को पीना पडता । यद्यपि इसने ठीक कार्य किया एवं पांच से आठ वर्ष की आयुतक आकस्मिक सुधार हुए । तथापि त्वचा की स्थिति एवं एलर्जी पूर्णरूप से कभी ठीक नहीं हुईं; अपितु जब तक मैंने औषधि ली, तब तक वे केवल दबी रहीं । मैंने स्वयं के पूर्णतया कभी न ठीक होने की वास्तविकता को स्वीकार कर लिया था । मैं पावरोटी सहित लगभग सभी वस्तुओं से प्रत्यूर्ज (एलर्जिक) था । मेरे माता-पिता मेरे लिए चावल से बनी पावरोटी लाते जिससे मैं पावरोटी खा सकूं । मैं केवल मांस, कुछ फल, कुछ सब्जियां एवं चावल इतना ही खा सकता था । संक्षेप में यह एक अत्यंत सीमित आहार था । अन्य बच्चे जिस प्रकार खाद्यपदार्थों का आनंद लेते, मैं नहीं ले सकता था न मालपुआ, न बिस्कुट, न चॉकलेट एवं न पिज़्ज़ा; चूंकि इन सबसे मैं एलर्जिक था ।

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आठ वर्ष से लेकर १५ वर्ष की आयुतक मैंने त्वचा की अवस्था एवं खाद्य एलर्जी के लिए कई प्रकार की औषधियां ली । इनमें से कई हाइड्रोकोर्टिसोन मलहम थे; परंतु किसी से लाभ नहीं हुआ । मलहम की संख्या इतनी अधिक थी कि उनकी सूची अंतहीन लग रही थी । जब स्थिति गंभीर हो जाती तो मुझे कई बार प्रेड्निसोन नामक औषधि पर रखा गया। इससे कुछ समय के लिए कष्ट को नियंत्रण रखने में सहायता होती; परंतु शीध्र ही पुनः कष्ट और बढ जाते थे एवं मुझे पुनः प्रेड्निसोन पर रख दिया जाता । यह एक चक्र था । अधिक शक्तिवाली क्रीमों की मात्रा और उन्हें लगातार मलने से पलकों सहित मेरे आंखों के आस पास की त्वचा हलके बैगनी रंग की हो गयी थी ।

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उस कालावधि में, मुझे सदैव आश्चर्य होता कि बिना किसी कारण के अनायास ही मेरी त्वचा की स्थिति इतनी क्यों बिगड जाती है । एक दिन मैं ठीक रहता और बाहर खेल रहा होता और अगले ही दिन मैं बिस्तर में पडा होता । कभी-कभी मैं ठीक से सोने जाता एवं अगले दिन सूजी हुई आंखें, पूरे गर्दन एवं मुख पर लाल सूजन के साथ उठता एवं मेरी त्वचा पपडीदार एवं श्वेत हो जाती । मेरे माता-पिता को भी आश्चर्य होता कि रातोंरात अचानक ऐसे कैसे हो सकता हैI । हमारे पास कोई स्पष्टीकरण नहीं था । मैं इतने अल्प समय में सामान्य से अस्वस्थ कैसे हो सकता हूं, इसका कोई अर्थ नहीं था । यह सोते ही किसी युद्ध में प्रवेश करने एवं अगले दिन विकृत रूप के परिवर्तन के साथ उठने के समान था । यह इतनी अल्पावधि में कैसे और क्यों होता है, इसका कोई स्पष्ट कारण समझ में ही नहीं आता था ।

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चेहरा, कोहनी, घुटनों के पीछे एवं कानों के पीछे के भाग पामा से मुख्य रूप से प्रभावित थे । चिकित्सकों ने कहा कि मुझे यह समस्या जीवन भर रहेगी । उन्होंने कहा कि मेरे जीवन में आगे यह समस्या इतनी गंभीर नहीं रहेगी एवं अल्प भी हो जाएगी; परंतु यह तब भी मेरे साथ रहेगी । तब भी मुझे लगा कि वे अस्पष्ट थे क्योंकि उन्होंने यह कहकर विषय को समाप्त कर दिया कि मैं पूर्णतया ठीक हो जाऊंगा; किंतु ये कब होगा यह वे कभी नहीं बतला सके ।

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सोलह से तेईस की आयु के मध्य भले ही पामा दिखाई दे रहा था; किंतु उसमें सुधार हुआ । मेरी त्वचा पहले जैसी पपडीदार नहीं थी एवं मेरी आंखें पहले जैसी उत्साहहीन नहीं थीं । खाद्य एलर्जी भी थाेडी अल्प हुईं, किंतु अनोखी बात यह थी कि ये सदैव के लिए नहीं थीं । उदाहरण के लिए एक वर्ष मैं गेहूं खा सकता तो अगले वर्ष नहीं खा सकता, पुनः कभी खा सकता तो कुछ काल के पश्चात नहीं खा सकता था । इसका कोई अर्थ ही नहीं था ।

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वर्ष २००७ में, जब मैं २४ वर्ष का था, तब मेरी त्वचा की स्थिति शीघ्रता से बिगडने लगी । स्वयं के लिए एलोपैथी औषधियों का अप्रभावी इतिहास देखते हुए, मैं वैकल्पिक चिकित्सा पद्धतियों की ओर मुडा । इस बार मैं प्राकृतिक चिकित्सक (नेचुरोपेथ) के पास गयाI । उसने मुझे उच्च प्रोटीन आहार पर रखा एवं कहा कि पामा (एक्जिमा) को ठीक करने से पहले मुझे कुछ वजन बढाने की एवं सशक्त बनने की आवश्यकता है । उनकी चिकित्सा का तनिक भी प्रभाव नहीं पडा, अपितु मेरी स्थिति इतनी शीघ्रता से बिगडी कि उसने मुझे व्याकुल कर दिया । कहने की आवश्यकता नहीं कि मैंने तुरंत ही उस उपचार को छोड दिया ।

आगे मैं एक विख्यात समग्र चिकित्सक (holistic doctor) के पास गया जो जैव-उर्जा चिकित्सा (bio-energetic medicine) में प्रमाणित (certified) थे. वे तंत्रिकीय-मेरुदंडीय जैव- अभियांत्रिकी (Neural-Spinal Bio-Engineering (NSBE))एवं कॉन्टैक्ट रिफ्लेक्स एनालिसिस(Contact Reflex Analysis (CRA) के प्रमाणित विज्ञानों के साथ वैद्युत-त्वचीय जांच Electro-Dermal Screening (EAV))का उपयोग करते थे । कॉन्टैक्ट रिफ्लेक्स एनालिसिस द्वारा (Contact Reflex Analysis) उन्होंने पामा (एक्जिमा)के कारण का निदान स्ट्रेप्टोकॉकल रोगाणु संक्रमण (Streptococcal infection) बताया । शरीर स्वयं संक्रमण से छुटकारा पाने का प्रयत्न कर रहा था एवं मेरे शरीर से विषाक्त पदार्थों को हटाने में सामान्य विधियां सफल नहीं हो रही थीं । उन्होंने कहा एक किए एक ओर संक्रमण को त्वचा हटाने का प्रयत्न कर रही थी एवं इसी कारण से पामा (एक्जिमा) हो रहा था । उसने चमत्कार कर दिया एवं रक्तप्रवाह के संक्रमण को स्वच्छ करने में सहायता की एवं मेरी अवस्था आश्चर्यजनकरूप से सुधर गई । मैं इस चिकित्सक की सहायता के लिए बहुत कृतज्ञ था ।

तथापि, यह अल्प समय के लिए था अगले वर्ष, २००८ के अंत में, मेरी स्थिति एक बार पुनः बिगड गई यह बहुत भयभीत करनेवाला था, चूंकि इस बार इसने अधिक तीव्रता से प्रहार किया ।I अकस्मात ही, विश्वविद्यालय की कक्षाओं में सम्मिलित होने की कालावधि में मैं अति अस्वस्थ हो गया I मुझे कक्षाओं को छोडने के लिए विवश होना पडाI मेरी त्वचा इतनी शुष्क हो गई थी कि मैं अधिकतर समय बिछावन पर ही रहता । I यहां तक कि स्नान करना भी कठिन था क्योंकि स्नान के समय शरीर की गतिविधि से त्वचा को कष्ट होता, उन पर दरारें आती एवं रक्तस्राव होता ।

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सबसे कष्ट देनेवाली बात थी कि खुजली एवं जलन की संवेदना उत्पन्न हो जाने कारण मेरे मुख की त्वचा उखडने लगी । जिसके फलस्वरूप मुख के दोनों ओर मुझे खुजलाना पडता । परिणामस्वरूप, त्वचा छिल जाती एवं रक्त निकलने लगता एवं इससे गीला द्रव रिसता रहता । तत्पश्चात वह सूख जाता एवं ठीक हो गया है, ऐसा लगता; परंतु कुछ घंटों के पश्चात अकस्मात ही जलन एवं खुजली का दूसरा तीव्र प्रहार मेरे मुख पर होता और यह मेरे खुजलाने का कारण बनता । ऐसा लगता जैसे मुझ पर प्रत्येक कुछ घंटों में किसी प्रकार का आक्रमण होता I। यह रक्तस्राव, रिसने, पपडीदार बनने, सूखने, इस प्रकार के समान लक्षणों का पुनः होते रहने का एक निरंतर चक्र था । यह बहुत पीडादायक एवं अत्यधिक असुविधाजनक था ।

अनिद्रा एवं दुःस्वप्न : लगभग उसी समय, मुझे सोने में समस्या होने लगी I जब भी मुझे नींद आती, मैं डरावने स्वप्न देखता और मैं पसीने से लथपथ होकर उठ जाता । तब मैं बिछावन से बाहर आकर स्वयं को सुखाता अथवा अपने वस्त्र बदलता एवं तब सोने जाता एवं पुनः वहीं घटनाएं घटतीं I मैं पुनः अन्य दुःस्वप्न के कारण पसीने में भीग कर जाग उठता । मैं सुबह के लगभग ४ अथवा ५ बजे तक नहीं सो पाता । इस प्रकार मैं कुछ ही घंटे सो पाता I

इसके पश्चात भी मैं बिछावन से नहीं उठ पाता था क्योंकि मैं उस समय अपने शरीर द्वारा सहन किए शारीरिक कष्ट से बहुत थका हुआ होता । मैं उठने के लिए ऊर्जा एकत्रित होने तक अपराह्न तक बिछावन में लेटा रहता । उसके पश्चात मैं नहाता एवं कुछ खाता कि शीघ्र ही रात हो जाती । जब अन्य लोग सोने की तैयारी करते मैं पूर्णतया जगा हुआ रहता । मेरे माता-पिता एवं भाई के कार्य से लौटने पर उन सबसे अत्यल्प संवाद होने के कारण मुझे अत्यंत एकाकी अनुभव होता । यह प्रतिदिन की बात हो गई, मैं पूरी रात अकेला जगा रहता । सवेरे ४ अथवा ५ बजे तक मैं घर में इधर-उधर घूमता, टीवी देखता और तब सोने जाता I

निराशा : त्वचा की समस्याओं, खाद्य प्रत्युर्जताओं, अनिद्रा रोग एवं दुःस्वप्नों से ग्रसित, मैंने स्वयं को निराशा की ओर बढते पाया । मैं शारीरिक रूप से इतना दुर्बल हो गया कि मुझे लगा, मैं शीघ्र ही मर जाऊंगा । निरंतर नकारात्मक विचार आते । मेरे मन में स्वाभाविक रूप से विचार आता कि यदि मैं स्वस्थ भी हुआ तो भी मेरे शरीर की इतनी हानि हो गर्इ है कि मुझे एक वर्ष में अथवा आगे कैंसर हो जाएगा एवं मेरी मृत्यु हो जाएगी । मुझे ऐसा लगने लगा कि अब मेरे लिए धरती पर अधिक समय शेष नहीं है । इन भयभीत करनेवाले विचारों के साथ गंभीर खुजली, डरावने स्वप्नों की पुनरावृत्ति, रात्रि में पसीना आना एवं नींद की अल्पता, इतना सब झेलना मेरी सहन शक्ति से परे था । शारीरक कष्ट तो अति कष्टदायक थे ही; किंतु निरंतर अशांत करनेवाले विचार भी इतने बुरे थे कि मुझे लगा जैसे मैं मानसिक संतुलन खो बैठूंगा ।

मैं उन्हीं चिकित्सक के पास गया जिन्होंने एक वर्ष पूर्व मेरा उपचार करने के लिए कॉन्टैक्ट रिफ्लेक्स एनालिसिस का प्रयोग किया था । मेरे मुख का निरीक्षण करते हुए, उन्होंने कहा, “मुझे नहीं पता कि मैं क्या करुं ।” मैं यह वाक्य उस व्यक्ति से सुन रहा था जो वैकल्पिक चिकित्सा पद्धतियों में कनाडा के सबसे विख्यात चिकित्सकों में से एक माने जाते थे । उन्होंने मुझे कहा कि वे कुछ नहीं कर सकते एवं उनके द्वारा उपचार प्रारंभ करने से पहले मुझे अपनी स्थिति अधिक नियंत्रित करने के लिए चिकित्सालय जाना चाहिए । इस समय तक कोई रोगाणु संक्रमण नहीं था एवं इसका कोई कारण भी प्रतीत नहीं हो रहा था । कनाडा के सबसे अच्छे समग्र चिकित्सक द्वारा यह कहने के पश्चात कि वह कुछ नहीं कर सकता, उस समय मुझे स्मरण है कि मैंने स्वस्थ होने की आशा ही छोड दी । मैंने पुनः स्टेरोएड (steroid) मलहम लगाना आरंभ किया जो पामा को अल्प करने में सहायक थी; किंतु उसके पूर्ण निर्मूलन में असमर्थ था ।

जब स्थिति बहुत बिगड गई तब मैंने उसी माह आयुर्वैदिक चिकित्सक से उपचार करवाना प्रारंभ किया । सीआरए (CRA) चिकित्सक से उपचार करवाने के पश्चात मैं आयुर्वेदिक चिकित्सक से मिला था । कुछ दिनों के उपरांत आयुर्वैदिक चिकित्सक ने मुझसे कहा कि जब उसने पहली बार मेरी स्थिति एवं मुख को देखा, वह वास्तव में मुझसे भयभीत हो गया क्योंकि उसने ऐसा पहले कभी नहीं देखा था । उसने मुझे जडी-बूटियों का मिश्रण लेने का परामर्श दिया । इससे थोडी राहत मिली; किंतु स्थिति नियंत्रण से दूर थी । कुल मिलाकर मैं एलोपैथी, पारंपरिक चीनी औषधि, प्राकृतिक चिकित्सा, जैव-उर्जा चिकित्सा (bio-energetic medicine) में प्रमाणित चिकित्सक एवं आयुर्वैदिक चिकित्सक के पास गया; किंतु सभी के उपचार अल्प समय तक एवं केवल अस्थायी रूप से ही प्रभावी हुए । ऐसा लग रहा था जैसे मैंने उपलब्ध सभी प्रकार की औषधियों का प्रयोग कर लिया था ।

३. सफलता

जनवरी २००९ के एक दिन मैं बहुत कठिनता से बिछावन से उठा । स्नान के पश्चात मैं संगणक कक्ष में गया । इतने में ही मेरी समस्त ऊर्जा समाप्त हो गई एवं मैं यह सोचता रहा कि मैं युवा ही मृत्यु को प्राप्त होनेवाला हूं । मैं शारीरिक, भावनात्मक एवं मानसिक रूप से पूर्णरूपेण थक गया था । आधुनिक विज्ञान की सभी विधाएं मेरा उपचार करने में असमर्थ हो गर्इं, इसलिए मैं सूचनाजाल (इंटरनेट) पर अपने उपचार हेतु समग्र उपचार पद्धतियों को ढूंढने लगा । मैंने “प्राकृतिक रूप से पामा के उपचार” शीर्षक से खोज आरंभ की । तभी एक विशेष कडी (लिंक) दिखी जिसमें लिखा था कि पामा का उपचार आध्यात्मिक रूप से हो सकता है । मैं इतना उत्सुक था कि मैंने उस कडी को तत्क्षण खोला । वह मुझे सीधेSSRFS SSRF के सूचनाजाल (वेबसार्इट) पर ले गया जिस पर जॉन एवं माधव गाडगीळ के दो प्रकरण अध्ययन थे । उन्हें भी पामा था जो ईश्वर के नामजप के आध्यात्मिक उपचार से ही ठीक हुआ था । लेख में आगे बताया गया था कि उनके प्रकरणों में, पामा का मूल कारण अनिष्ट शक्तियां (भूत, दानव, दैत्य इत्यादि) एवं मृत पूर्वज थे । उस क्षण में, मुझे आतंरिक रूप से समझ में आया कि मुझे अंततः अपने त्वचा की स्थिति एवं एलर्जी होने के कारणों का पता चल गया, जिसने मुझे बचपन से ही त्रस्त कर रखा था ।

अब केवल यही व्याख्या शेष थी । आधुनिक विज्ञान एवं वैकल्पिक चिकित्सा पद्धतियां दोनों ही मेरा उपचार नहीं कर पाए थे । अतः मेरे रोग का मूल कारण आध्यात्मिक ही हो सकता था, शारीरिक नहीं । मैंने उसमें लॉग-इन बनाकर प्रवेश किया एवं SSRF से पूछा कि मुझे विशेष रूप से कौनसा नामजप करना चाहिए । उन्होंने त्वरित मेरे प्रश्न का उत्तर दिया एवं मुझे जन्म के धर्मानुसार एवं “श्री गुरुदेव दत्त” का नाम जप आरंभ करने का परामर्श दिया ।

प्रारंभ में अधिक समय तक जप कर पाना कठिन था । मैंने आरंभ एक दिन में दोनों जप १५-१५ मिनट करने से किया, इस प्रकार कुल ३० मिनट करने लगा । तदोपरांत प्रत्येक सप्ताह के साथ, मैंने धीरे-धीरे इसे बढाने का प्रयत्न किया । लगभग दो माह में कुल मिलाकर मैं लगभग ६ घंटे नाम जप करने लगा । प्रत्येक दिन मुझसे अधिकाधिक निरंतर नाम जप होने लगा । जब मैंने प्रथम बार नाम जप आरंभ किया तो उसका कोर्इ प्रभाव नहीं हुआ । त्वचा की स्थिति वैसी ही थी एवं उस समय मेरी प्रत्यूर्जताएं भी गंभीर थी । मेरा आहार बहुत प्रतिबंधित था एवं अधिक नहीं खा पाता था अन्यथा मेरी त्वचा की स्थिति पुनः बिगड जाती । नाम जप करते रहने से ऐसा लगा कि मेरी परिस्थिति और बुरी हो गई है ।

SSRF की टिप्पणी : प्राय: जब कोई उपचार आरंभ किया जाता है, तो अनिष्ट शक्ति एवं उपचार की आध्यात्मिक सकारात्मकता के मध्य सूक्ष्म युद्ध होता है । इस प्रकार के सूक्ष्म-युद्ध का एक परिणाम यह है कि लक्षण ठीक होने से पहले अस्थायी रूप से और अधिक गंभीर हो सकते हैं I

कभी-कभी परिस्थिति अचानक बिगड जाती, किंतु मैं स्वयं को इस तथ्य का स्मरण दिलाता रहा कि रातों-रात यह परिस्थिति परिवर्तित नहीं होनेवाली । प्रारंभ में अच्छे दिन एवं बुरे दिन होते ही हैं । तथापि जैसे-जैसे समय व्यतीत होता गया, अच्छे दिन की संख्या बुरे दिनों की संख्या से अधिक होने लगी एवं चमत्कारिक रूप से त्वचा का स्वस्थ होना आरंभ हो गया । नामजप के तीन सप्ताह पश्चात त्वचा पर रोग के लक्षणों का दिखार्इ देना घट गया । लगभग चार माह पश्चात मैंने अनुभव किया कि मेरी खाद्य- प्रत्युर्जताओं में भी सुधार हो गया था एवं तब मात्र कुछ स्थानों में जैसे गले के पीछे अब मात्र कुछ शुष्क धब्बे ही शेष थे । त्वचा ने पुनः अपनी नमी को प्राप्त करना आरंभ कर दिया, मेरे मुख से रिसाव लुप्त हो गया एवं घाव सूखने लगे । यहां तक कि मेरे मस्तक पर बाल जो झड गए थे वे भी पुनः बढने लगे । नामजप के आरंभ करने तक अभी मेरे दो वर्ष से भी अल्प समय हुआ है एवं मेरे त्वचा की स्थिति अत्यधिक सुधार हुआ था। अब सूखापन, रिसाव, शुष्कता अथवा रक्त का निकलना नहीं होता है । मैं एक चमत्कार का साक्षी बन रहा था एवं मैं स्वयं इसका केंद्र था ।

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४. साधना आरंभ करने के अन्य लाभ

यह तो मात्र उपचार का आरंभ था । लगभग ३ सप्ताह के पश्चात, खाद्य प्रत्युर्जताएं भी अल्प होनी आरंभ हो गई; परंतु उस समय यह मुझे नहीं पता था,I कुछ कालोपरांत पता चला कि मेरी मां ने यह जांचने के लिए कि जिन खाद्य पदार्थों के प्रति मैं प्रत्यूर्ज था, उन खाद्यपदार्थों को जानकारी के बिना ग्रहण करने से मुझे कष्ट होता है अथवा नहीं, इसलिए मेरी जानकारी के बिना ही वे उन्हें मेरे आहार में सम्मिलित करने लगी । अब मैंने धान्य जैसे जौ एवं रोटी को भी पुनः खाना आरंभ कर दिया । धीरे-धीरे मुझे भान होने लगा था कि मेरी खाद्य प्रत्युर्जताएं भी समाप्त होनी आरंभ हो गर्इ हैं ।

लगभग चार माह के पश्चात मैंने अनुभव किया कि मेरी खाद्य एलर्जी अब समाप्त हो गर्इ थीं एवं त्वचा पर अब मात्र कुछ धब्बे ही शेष थे, जैसे गले के पीछे की त्वचा कुछ शुष्क थी । जून २००९ में मैं वैंकोवर क्षेत्र में SSRF के दो अन्य साधकों के साथ भगवान श्रीकृष्णजी के मंदिर गया । यह नामजप आरंभ करने के कुछ माह पश्चात की ही बात थी । जब हम पंक्ति में भोजन के लिए प्रतीक्षा कर रहे थे तो मुझे लगा कि मैं अपनी खाद्य एलर्जियों के कारण कुछ नहीं खा पाऊंगा । मुझे वहां थोडा विचित्र लगा क्योंकि मैं वहां स्वयं न खाते हुए अन्य सभी को बैठकर खाते देख रहा था ।

पंक्ति में, रेन एवं क्रिस्टन (SSRF के वे दोनों साधक जिनके साथ मैं था) ने मुझे बताया कि संभवतः मेरी खाद्य प्रत्युर्जताएं शारीरिक समस्या न होकर वास्तव में आध्यात्मिक समस्या हो सकती हैं । उन्होंने मुझे भोजन करने से पूर्व प्रार्थना करने एवं भोजन को ईश्वर के चरणों में अर्पण करने की सलाह दी । अतः मैंने चावल, लोबिया, दही एवं रोटी को अपनी थाली में परोसा एवं भोजन करने से पूर्व नम्रतापूर्वक प्रार्थना की । उसी समय मैंने स्वयं को सुरक्षित अनुभव किया एवं लगा जैसे कि मुझे ये पता है कि मैं सुरक्षित हूं । मैंने भोजन ग्रहण किया एवं कुछ भी अनिष्ट नहीं हुआ ! न कोई प्रतिक्रिया, न कोई त्वचा सबंधी विकार, कुछ भी नहीं । उस दिन, ऐसा लगा मानो यह जानते हुए कि मैं ईश्वर द्वारा संरक्षित हो रहा था, इसलिए सूक्ष्म-अनिष्ट शक्ति भोजन द्वारा मुझ पर आक्रमण नहीं कर सकी ।

इस प्रकार के परिवर्तन होना अपने आप में एक बहुत बडी अनुभूति है । इसने मुझे वास्तव में प्रत्येक समस्या को समग्र दृष्टि से देखना सिखाया अर्थात शारीरिक, मानसिक एवं आध्यात्मिक स्तर पर समस्या का समाधान करना सिखाया । मैं परम पूज्य डॉ. आठवलेजी के प्रति अत्यधिक कृतज्ञ हूं । उनके मार्गदर्शन में SSRF का शोध दल विश्व के लिए इस अमूल्य ज्ञान को तैयार करता है । मेरी ईश्वर एवं गुरुदेवजी से प्रार्थना है कि मेरा यह अनुभव किसी के जीवन में साधना के महत्व को स्पष्ट करे एवं जो लाभ मुझे मिला उसी तरह SSRF जालस्थल के पाठकों को भी इस ज्ञान का लाभ मिले ।

SSRF की टिप्पणी :

  • समीर द्वारा बचपन से भोगे जा रहे उन समस्त समस्याओं का मूल कारण, मृत पूर्वज से उसका नकारात्मक लेन देन था ।
  • SSRF SSRF भी समीर को आगे आने एवं हमारे साथ इस असाधारण अनुभव, जो कि साधना के बल के साक्षिदार हैं, को साझा करने के लिए विशेष रूप से धन्यवाद देता है । अन्य गुण जो हमने समीर में देखा वह यह है कि हमें किसी भी जानकारी की आवश्यकता होने पर हमें उपलब्ध करवाने के लिए अधिक प्रयास करने की उसकी तीव्र इच्छा एवं तत्परता थी । उसके हमारे पूरे वार्तालाप के समय उसके शब्दों एवं र्इ-मेल में व्यक्त कृतज्ञता अत्यंत हृदयस्पर्शी थी । SSRF समीर को उसकी आध्यात्मिक यात्रा एवं अपने दूसरे जन्म के लिए हार्दिक शुभकामनाएं देता है I