१. पिप की प्रस्तावना

गत अनेक दशकों से व्यक्तियों अथवा वस्तुओं के चारों ओर विद्यमान ऊर्जाक्षेत्र (प्रभामंडल) को यंत्रों तथा विशिष्ट तकनीकों की सहायता से समझने के प्रयत्न हो रहे हैं । एक रूसी आविष्कारक सेम्योन किरलियन तथा उनकी पत्नी वेलेंटिना ने वर्ष १९३९ में ‘किरलियन फोटोग्राफी’ का अविष्कार किया । इसे वस्तुओं के चारों ओर व्याप्त प्रभामंडल (औरा) का पता लगाने के लिए जाना जाता था । किरलियन फोटोग्राफी के शोध के अनेक वर्ष उपरांत, मूलतः जीवविज्ञानी और बाद में उर्जाक्षेत्र-शोधकर्ता बने ब्रिटेन के हैरी ओल्डफील्ड ने १९८० के दशक में एक उर्जा क्षेत्र इमेजिंग तंत्र पॉलीकाँट्रास्ट इंटरफेरेंस फोटोग्राफी (पिप) विकसित किया ।

पॉलीकाँट्रास्ट इंटरफेरेंस फोटोग्राफी (पिप) ऊर्जा क्षेत्र वीडियो इमेजिंग की एक प्रक्रिया है । यह तकनीक प्रकाश के उन स्वरूपों को भी दिखाती है जिन्हें खुली आंखों से नहीं देखा जा सकता । ओल्डफील्ड ने विचार किया कि मानवीय ऊर्जा क्षेत्र, सम्भवतः फोटोन, जो कि प्रकाश के ऊर्जा पुंज होते हैं, को बाधित कर सकती है । उन्होंने यह तर्क दिया कि जब आपतित किरण (incident ray) वस्तु की ओर आती है तथा जब, परिवर्तित किरण (reflected ray) वस्तु से टकराकर निकलती है तब, दोनों समय आस पास के प्रकाश ऊर्जा-क्षेत्र को बाधित करेगा । उन्होंने एक ऐसा संगणक प्रोग्राम बनाया जो कि स्कैन किए जा रहे व्यक्ति अथवा वस्तु से परावर्तित होने वाली भिन्न-भिन्न प्रकाश गहनताओं (light intensities) का विश्लेषण करेगा । पिप सॉफ्टवेयर प्रकाश की विभिन्न श्रेणियों अथवा गुणवत्ताओं के बीच अंतर को समझ सकता है ।

वास्तव में पिप शरीर में प्रवेश कराने की प्रक्रिया से रहित (non-invasive) एक ऐसा विश्लेषण उपकरण है जिसका उपयोग अदृश्य प्रकाश अर्थात खुली आंखों से न दिखाई देने वाले प्रकाश के स्वरूपों को प्रकट करने के लिए किया जा सकता है । हैरी ओल्डफील्ड को विश्वास था कि चिकित्सीय रोगों के उपचार का भविष्य एक ऐसे प्रभावी स्कैनर की खोज करने में है जो कि न केवल स्थूल शरीर के रोग का पता लगा सके अपितु ऊर्जा क्षेत्र में हुए असंतुलन को भी देख सके । उन्होंने उपकरण में परीक्षण करने के लिए विभिन्न रंगों का प्रयोग किया । प्रत्येक रंग को एक विशेष अर्थ से संबोधित किया गया तथा उनका प्रयोग ऊर्जा-क्षेत्र में सकारात्मक स्पंदन तथा बाधा के क्षेत्र को दर्शाने के लिए किया गया । इस जानकारी का उपयोग विभिन्न तरीकों से किया जा सकता है जो कि अन्वेषक अथवा चिकित्सक के प्रशिक्षण तथा अनुभव पर निर्भर करते हैं । यह उपकरण ने उन शोधकर्ताओं के बीच में बहुत लोकप्रिय हुआ जो यह समझने का प्रयास कर रहे थे कि ऊर्जा क्षेत्र कैसे व्यक्ति के भविष्य के स्वास्थ्य का स्पष्ट संकेत होता है ।

२. पिप तकनीक का आध्यत्मिक शोध के लिए अनुरूपण

आरंभ में, कृपया ध्यान दें कि SSRF की सूक्ष्म जगत तथा सूक्ष्म शक्तियों में आध्यात्मिक शोध के लिए प्राथमिक पद्धति जागृत छठवीं इंद्रिय है ।

तथापि, वर्ष २००७ से बायोफीडबैक उपकरणों में हुई प्रगति का लाभ उठाते हुए, महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय एवं SSRF ऐसे उपकरणों का प्रयोग सजीव तथा निर्जीव वस्तुओं के प्रभामंडल तथा ऊर्जा क्षेत्र पर विभिन्न उद्दीपनों के प्रभाव का अध्ययन करने के लिए कर रहे हैं । मनुष्य के प्रसंग में, कुछ बायोफीडबैक उपकरण उनके चक्रों का भी अध्ययन कर सकते हैं । इसका बहुत लाभ प्राप्त हुआ है क्योंकि यह उन शोधकार्यों का भौतिक रूप से समर्थन तथा पुष्टि करने में सहायता करता है, जिन्हें हमने आध्यात्मिक माध्यमों से पहले ही कर लिया है  ।

विभिन्न उद्दीपनों के उजागर होने पर मनुष्य के जैविक ऊर्जा क्षेत्र में कैसे परिवर्तिन होता है, यह समझने के लिए हमने आध्यात्मिक शोध केंद्र में लोगों पर पी.आई.पी, तकनीक का सफल प्रयोग किया है । हमने पिप तकनीक का प्रयोग वस्तुओं की आध्यात्मिक शुद्धता का अध्ययन करने के लिए भी किया है ।

आगे विभिन्न पहलू दिए गए हैं जिनमें पिप का प्रयोग सूक्ष्म शक्तियों के भिन्न दृष्टिकोण को प्रदान करने के लिए किया गया है ।

  • सात्त्विक जीवन यापन: यह शोध का वह विषय है जो हमारे प्रतिदिन चुने जाने वाले विभिन्न विकल्पों से तथा हम अपने प्रत्येक निर्णय अथवा विकल्प को कैसे अधिक सात्त्विक (आध्यात्मिक रूप से शुद्ध) बना सकते हैं,  उससे संबंधित है । पिप यह दर्शाता है कि प्रतिदिन उपयोग में आने वाली विभिन्न वस्तुएं कैसे व्यक्ति के जैविक क्षेत्र (बायोफील्ड) को प्रभावित कर सकती हैं । आध्यात्मिक दृष्टिकोण से, प्रत्येक उद्दीपन में व्यक्ति के सत्त्व, रज एवं तम गुणों के अनुपात को प्रभावित करने की क्षमता होती है, जिसके फलस्वरूप व्यक्ति का जैविक क्षेत्र भी सकारात्मक अथवा नकारात्मक रूप से प्रभावित होता है । ‘आध्यात्मिक जीवन यापन’ पर लेख देखें ।           
  • आध्यात्मिक उपचार: महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय तथा SSRF ने विभिन्न अल्प मूल्य स्व-उपचार पद्धतियां विकसित की हैं । इन स्व-उपचार पद्धतियों की क्षमता का अध्ययन करने के लिए आध्यात्मिक कष्ट से पीडित अथवा अपीडित विभिन्न व्यक्तियों पर प्रयोग किए जाते हैं ।
  • आध्यात्मिक घटना: आध्यात्मिक शोध केंद्र तथा आश्रम में, शोध दल को ऐसी विभिन्न आध्यात्मिक घटनाओं का पता चला कि जो सजीव तथा निर्जीव वस्तुओं के प्रभाव में परिवर्तन लाती हैं । पिप तकनीक यह तथ्य स्पष्ट होने के लिए एक भिन्न दृष्टिकोण प्रदान करने में सहायता करती है कि इस प्रकार की घटना का प्रभाव सकारात्मक होगा अथवा नकारात्मक ।
  • साधना: साधना के विभिन्न साधनामार्गों जैसे ईश्वर का नामजप तथा स्वाभावदोष निर्मूलन के प्रभावों का अध्ययन किया गया ।

२.१ भारत के गोवा स्थित आध्यात्मिक शोध केंद्र में पिप की आधारभूत संरचना   

आध्यात्मिक शोध दल ने, पिप की नियम-पुस्तिका के सुझावों के अनुकूल, आध्यात्मिक शोध केंद्र में एक ऐसा कक्ष निर्माण किया जो पूर्ण रूप से पिप के प्रयोग के लिए समर्पित तथा उसके अनुरूप है । आगे कक्ष की कुछ विशेषताओं को तथा उसमें मानकीकृत वातावरण निर्माण करने के लिए जिन सावधानियों का ध्यान रखा गया गया है, वे निम्नवत हैं :

  • कक्ष को केवल पिप प्रयोग के लिए ही रखा गया है तथा उस कक्ष का प्रयोग किसी अन्य उद्देश्य के लिए नहीं किया जाता है ।
  • पूरे कक्ष को अपरावार्तक श्वेत रंग दिया गया है जिससे किसी अन्य रंगीन प्रकाश का प्रभाव उस पर न पड सके ।
  • कक्ष के उन सभी फर्नीचर/सामान आदि पर श्वेत रंग किया गया है जिनका प्रयोग पिप के साथ वस्तुओं के परिक्षण हेतु किया जाता है ।
  • कक्ष में पूर्ण रंगवाली प्रकाश (full spectrum lighting) स्त्रोत के अतिरिक्त किसी भी अन्य प्रकाश का प्रयोग नहीं किया जाता । बाह्य प्रकाश पूर्णत: प्रतिबंधित है । एफ.एस.एल को मापित/विश्लेषित किए जानेवाले प्रयोज्य की ओर पिप की नियम-पुस्तिका अनुसार झुकाया गया है ।
  • इस प्रयोग में जिस वीडियो कैमरे का प्रयोग किया जाता है वह एक semi-professional fixed lens Panasonic P2 – HPX250 कैमरा है ।
  • पिप कक्ष में पिप सॉफ्टवेर के साथ संयोज्य एक संगणक रखा गया है जिसका उपयोग केवल उसी कार्य के लिए होता है ।

२.२ प्रयोगों में पिप का उपयोग करने की सामान्य कार्यप्रणाली

  • प्रयोग के दौरान प्रकाश मानकानुसार रखा जाता है तथा प्रकाश में कोई उतार चढाव न हो इसका ध्यान रखा जाता है । प्रयोज्यके स्कैन्स की अनुकूलता बनाए रखने के लिए मानकीकृत स्थितियां सुनिश्चित की जातीं हैं । इससे हम एक ही व्यक्ति के विभिन्न स्कैन्स की अधिक अच्छे ढंग से तुलना कर पाते हैं, उदाहरणार्थ एक ही विशिष्ट उद्दीपक से चिकित्सा के पूर्व और पश्चात ।
  • अनुच्छेद २.१ में वर्णित नियंत्रित वातावरण भी प्रयोग में किसी भी बाह्य प्रभावों को कम करता है ।
  • जब पिप स्कैन प्रगति पर होता है तब केवल एक ही अनुभवी प्रचालक (श्वेत कोट पहने) कक्ष में रहता है ।
  • प्रयोग के आरंभ में ही सभी कैमरों की सेटिंग्स (जैसे अनावरण एवं दूरी) स्थित कर दी जाती हैं तथा प्रयोग के अंत तक किसी भी स्थिति में उसे परिवर्तित नहीं किया जाता । कैमरे को लक्षित क्षेत्र के समस्तर पर रखा जाता है ।
  • स्कैन की जाने वाली वस्तु को एक आदर्श स्थान पर रखा जाता है ।
  • सर्वप्रथम, मूलपाठ्यांक लिया जाता है । यह उस वस्तु की अनुपस्थिति में कक्ष का स्कैन होता है जिस वस्तु का पश्चात में प्रयोग के उद्देश्य के लिए स्कैन किया जाना है । इसके उपरांत, आगे के पाठ्यांक के लिए वस्तु को कैमरा फ्रेम के सामने लाया जाता है । इससे वास्तविक  मूलभूत पाठ्यांक के साथ प्रत्येक वस्तु के प्रभाव की तुलना करने में सहायता मिलती है तथा फलस्वरूप शोध दल चारों ओर के क्षेत्र पर पडने वाले इसके प्रभाव का अध्ययन कर सकता है ।
  • आगे स्कैन की जाने वाली प्रत्येक नई वस्तु के पाठ्यांक लेने से पूर्व, वातावरण को पुनः मूल पाठ्यांक की स्थिति तक आने दिया जाता है ।  इससे यह सुनिश्चित करने में सहायता मिलती है कि कहीं पिछली  वस्तु के कारण पाठ्यांक में कोई अधिव्यापन (overlap) न हुआ हो ।
  • परिणामों का विश्लेषण प्रयोग के उपरांत, अनंतर किया जाता है । यह एक मानक संचालन प्रक्रिया है तथा भारत स्थित गोवा में आध्यात्मिक शोध केंद्र तथा आश्रम में आध्यात्मिक शोध दल इसका अनुसरण पिप तकनीक के प्रयोग के लिए करता है ।

२.३ पिप चित्र के रंगों की संदर्शिका (गाइड)  

प्रत्येक पिप स्कैन से एक पिप चित्र का निर्माण होता है जिसमें विभिन्न रंग होते हैं । सॉफ्टवेयर में डाला गया तथा पिप नियम पुस्तिका (२००७ प्रकाशन) में प्रकाशित किया गया । तथा उनमें से प्रत्येक को संभावित व्याख्या दी जाती है । नीचे दी गई तालिका में, दार्इं ओर, पिप नियम पुस्तिका के अनुसार इन रंगों की व्याख्या उपलब्ध कराई गई है । कुछ विशिष्ट रंगों को सकारात्मक अथवा नकारात्मक दोनों में से कोई एक के रूप में पहचाना गया है । कुछ प्रकरणों में एक रंग के सकारात्मक तथा नकारात्मक दोनों अर्थ हो सकते हैं तथा तब उसकी व्याख्या को पिप चित्र का विश्लेषण करने वाले व्यक्ति पर छोड दिया जाता है ।

पिप चित्रों के रंगों के संबंध में, महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय तथा SSRF में आध्यात्मिक शोध दल ने इसके आगे और जानकारी प्राप्त की तथा प्रत्येक रंग की सुस्पष्ट मानसिक-आध्यात्मिक स्पंदनिक व्याख्या को उजागर किया । इन व्याख्याओं को नीचे दी गई तालिका में बाई और दर्शाया गया हैं । उदाहरण, पिप चित्रों में हरे रंग की चार आभाएं प्रकट हुई । पिप नियम पुस्तिका में हरे रंग का सामान्य रूप में एक ही अर्थ बताया गया है तथा यह समझाया गया है कि यह सकारात्मक एवं नकारात्मक दोनों हो सकता है । आध्यात्मिक शोध दल ने हरे रंग की प्रत्येक आभा से जुडे आध्यात्मिक स्पंदनों को  स्पष्ट उल्लेख के साथ पहचाना है तथा वास्तव में वह सकरात्मक है अथवा नकारात्मक इसका वर्णन किया है ।

पिप रंगों की इस आगे की तथा विस्तृत जानकारी की जांच, दल के उपकरण के साथ हुए व्यापक अनुभव तथा जागृत छठवीं इंद्रिय के साथ साथ पिप के विशेषज्ञ उपयोगकर्ताओं की सहायता से आरंभ की गई । पिप पर किए गए सभी अवलोकन व विश्लेषण अब तालिका की बाई ओर दर्शाई गई रंग प्रणाली के अनुरूप है ।

२.४ पिप चित्रों का अवलोकन

पिप चित्र का अवलोकन करते समय, वस्तु और मेज के रंगों को नहीं लिया जाता क्योंकि पिप तकनीक प्रमुख रूप वस्तु अथवा व्यक्ति के चारों ओर व्याप्त ऊर्जा क्षेत्र की गणना करती है । चित्र का अवलोकन करते समय वस्तु पर आने वाली छाया से त्रुटिपूर्ण परिणाम आ सकते है । रंगीन त्वचा एवं शरीर रूप-रेखा से भी त्रुटिपूर्ण परिणाम आ सकते है । इसलिए यह निर्णय लिया गया कि अवलोकन में वस्तु तथा मेज को सम्मिलित न किया जाए । वस्तु के पीछे की दीवार समतल तथा अपरावर्तक-श्वेत रंग की होने से, प्रभामंडल स्पष्ट रूप से दिखाई देता है तथा उसका अवलोकन कम से कम अथवा बिना किसी बाधा के सहजता से किया जा सकता है ।

आध्यात्मिक शोध दल ने किसी भी पिप चित्र में सकारात्मक तथा नकारात्मक स्पंदनों का कुल परिमाण मापने के लिए एक पद्धति विकसित की । छवि संपादन (इमेज एडिटिंग) सॉफ्टवेयर के प्रयोग से पिप चित्र को है । इससे ग्राफ के प्रत्येक वर्ग में रंगों के अनुपात का पता लगाना सरल हो जाता है । इस पद्धति के प्रयोग से, पिप चित्रों में प्रत्येक रंग के प्रतिशत में हुए परिवर्तन की मात्रा निर्धारित की जा सकती हैं ।

मूल पाठ्यांक से उद्दीपन के प्रत्येक परिवर्तन के साथ पिप चित्र में सकारात्मक तथा नकारात्मक रंगों में हुए परिवर्तनों को संक्षेप में तथा संयुक्त रूप से प्रस्तुत करने के लिए सारिणी बनार्इ जाती है ।