वास्तु शुद्धि हेतु अध्यात्मिक उपचार की १० से अधिक पद्धतियां

वास्तु शुद्धि हेतु अध्यात्मिक उपचार की १० से अधिक पद्धतियां

विषय सूची

. वास्तु शुद्धि की प्रस्तावना

अध्ययन बताते हैं कि हम अपना ९० प्रतिशत से अधिक समय घर के भीतर ही व्यतीत करते हैं, उसमें भी लगभग ७० प्रतिशत घर/वास्तु में ही होता है । अभी वर्ष २०२० और २०२१ में महामारी के कारण अनेक स्थानों पर लगी बंदी (लॉकडाउन) के कारण, हमारे द्वारा घर पर व्यतीत किए जाने वाले समय का अनुपात और अधिक भी हो सकता है ।

हममें से अधिकांश के लिए, इस विश्व में हमारा घर छोटा सा स्थान है जहां हम आराम कर सकते हैं तथा अपनों के साथ रह सकते हैं । हम जैसा चाहते हैं इसे ठीक वैसा ही इसे बनाने में हम अत्यधिक समय व्यतीत करने का प्रयास करते हैं । सामान्यतया, घर बनाते समय हमारा ध्यान हमारी भौतिक आवश्यकताओं और आराम के साथ-साथ एक ऐसा स्थान बनाने पर होता है जहां हम शारीरिक और मानसिक रूप से सहज रह पाएं । हमारे घर हमारे व्यक्तित्व, अभिरुचि और जीवन शैली का प्रतिबिंब होते हैं ।

घर पर इतना समय व्यतीत करने के साथ, हम अपने घर को किस प्रकार रखते हैं, यह हमें प्रभावित करता है । हम उन भौतिक पक्षों से अवगत होते हैं जो हमें प्रभावित करते हैं जैसे यदि वह अस्वच्छ हो, अथवा घर में कुछ टूटा हुआ हो, तो हम इसे सुधारने का प्रयास करते हैं । परिवार के अन्य सदस्यों के साथ होने वाले किसी भी तनाव से हम अवगत होते हैं और उस तनाव को दूर करने के लिए समाधान निकालने का प्रयास करते हैं । यद्यपि, हममें से अधिकांश लोग हमारे वास्तु में विद्यमान उन किसी भी नकारात्मक स्पंदनों से अनभिज्ञ होते हैं जो हम पर आध्यात्मिक, तत्पश्चात शारीरिक/मनोवैज्ञानिक स्तर पर प्रतिकूल प्रभाव डालते हैं । सत्य तो यह है कि प्रत्येक घर में इससे संबंधित सूक्ष्म स्पंदन होते हैं, जो हमें और हमारे परिवारों को प्रभावित करते हैं ।

अतः यह सुनिश्चित करने हेतु कि घर में सकारातमक स्पंदन व्याप्त हो, हम वास्तु शुद्धि कैसे कर सकते हैं?

१.१ वास्तु शुद्धि का अर्थ

वास्तु शास्त्र जैसे प्राचीन शास्त्रों ने इस विषय में लोगों का मार्गदर्शन किया है कि यह कैसे सुनिश्चित किया जाए कि उनके परिसर में नकारात्मक स्पंदन अल्प होकर वहां सकारात्मक स्पंदन आकर्षित हों वास्तु शुद्धि इस शास्त्र का एक भाग है जो विशेष रूप से परिसर के आध्यात्मिक शुद्धीकरण से संबंधित है

वास्तु शुद्धि का अर्थ

इस लेख का उद्देश्य वास्तु शुद्धि के विषय में जानकारी प्रदान करना है जो आध्यात्मिक रूप से परिसर को शुद्ध करने में सहायता करेगी । यह प्राचीन संस्कृत शास्त्रों के दर्शन और महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय द्वारा परात्पर गुरु डॉ जयंत आठवलेजी के मार्गदर्शन में किए गए आध्यात्मिक शोध पर आधारित है ।

. मुझे कैसे ज्ञात होगा कि मेरे वास्तु में नकारात्मक स्पंदन हैं?

मुझे कैसे ज्ञात होगा कि मेरे वास्तु में नकारात्मक स्पंदन हैं?

क्या आप जानते हैं कि वास्तु में प्रवेश करते ही सूक्ष्म स्पंदनों को अनुभव करना संभव है ?

वर्तमान में पूरे विश्व में आध्यात्मिक रूप से अशुद्ध स्पंदनों की सामान्य वृद्धि और अनिष्ट शक्तियों की बढती गतिविधि के साथ, अधिकांश घरों में कुछ न कुछ प्रमाण में नकारात्मकता व्याप्त रहती ही है । इसलिए यह अनुशंसा की जाती है कि घर से नकारात्मकता को दूर करने के लिए नियमित रूप से उपाय करें ।

हमारे आध्यात्मिक शोध के आरंभिक चरण में पाया गया है कि परिसर से अधिक निवासियों का व्यक्तित्व/स्वभाव और परिसर में उनकी वे गतिविधियां हैं, जो परिसर में नकारात्मक स्पंदनों के निर्मित होने का मुख्य कारण हैं ।

२.१ अत्यधिक स्वभावदोष एवं अहं के परिणामस्वरूप उच्च स्तर के नकारात्मक स्पंदन निर्माण होना 

परिसर में लोगों के स्वभाव दोषों से नकारात्मक स्पंदन फैलते हैं

घर में नकारात्मक स्पंदनों का एक प्रमुख कारण उस घर के निवासियों के स्वभाव दोष हैं । जिन निवासियों में क्रोध, लोभ, ईर्ष्या, प्रतिशोध आदि जैसे स्वभाव दोषों की तीव्रता अधिक होती है, वे अपने चारों ओर तथा घर में आध्यात्मिक रूप से विषाक्त वातावरण निर्माण करने के लिए उत्तरदायी होते हैं । परिणामस्वरूप, परिसर नकारात्मक विचारों से भर जाता है, जो घर में नकारात्मकता को बढाते हैं और सूक्ष्म जगत से अनिष्ट शक्तियों को आकर्षित करते हैं ।

२.२ नियमित साधना का प्रभाव अथवा उसका अभाव 

एक मार्ग जो किसी के स्वभाव को अच्छे के लिए परिवर्तित करने में सहायता करता है, वह है नियमित साधना करना जो सार्वभौमिक/वैश्विक सिद्धांतों के अनुरूप हो । नियमित साधना से सकारात्मक शक्ति और ईश्वर की कृपा आकर्षित होती है । दुर्भाग्यवश, अधिकांश लोग साधना का अभ्यास नहीं करते हैं अथवा अपने दोषों और अहं को दूर करने का प्रयास नहीं करते हैं । इसलिए, प्रायः लोग वहीं रहते हैं जहां वे पहले से थे और वे घर के वातावरण को दूषित करने की प्रवृत्ति रखते हैं ।

२.३ परिसर का प्रयोग

भारत (८ वीं एवं ९ वीं ईस्वी) के उन्नत संत आदि शंकराचार्यजी के अनुसार धर्म वह है जिससे ३ उद्देश्य साध्य होते हैं : १. समाज व्यवस्था को उत्तम बनाए रखना २. प्रत्येक प्राणिमात्र की व्यावहारिक उन्नति साध्य करना ३. आध्यात्मिक स्तर पर भी प्रगति साध्य करना । - श्री आदि शंकराचार्य

साधना का एक और लाभ है, वह यह है कि इससे व्यक्ति की सात्त्विकता में वृद्धि होती है । ‘समान वस्तु परस्पर आकर्षित होती है’, इस सिद्धांत के अनुसार, सात्त्विक लोग सात्विक वस्तुओं का चयन करते हैं तथा इस प्रकार के निर्णय लेते हैं जिसके परिणाम सात्विक होते हैं । ऐसे लोग परिसर का योग्य प्रकार से उपयोग करते हैं । परिसर का अनुचित रूप से उपयोग करने से नकारात्मकता आकर्षित होती है । 

आध्यात्मिक उन्नति के साथ, एक अन्य बहुत महत्त्वपूर्ण प्रक्रिया घटित होती है । वह यह कि हमारी छठी इंद्रिय जागृत होने लगती है, और हम स्पन्दनों से यह अनुभव कर सकते हैं कि वे नकारात्मक हैं अथवा सकारात्मक । एक बार इस स्तर पर पहुंचने के उपरांत, हम यह आकलन कर सकते हैं कि अमुक वस्तु से नकारात्मक स्पंदन प्रक्षेपित हो रहे हैं और इसलिए हम उसे देखते ही टाल देते हैं । संक्षेप में, हम अधिक सात्त्विक जीवन शैली की ओर अग्रसर होते हैं ।

जैसा कि हम जीवन के इस अत्यंत महत्वपूर्ण भाग को, जो कि सात्त्विक जीवन यापन है, उसे समझने के लिए औपचारिक रूप से शिक्षित नहीं हैं, इसलिए हम विशुद्ध रूप से बौद्धिक जानकारी और सौंदर्यशास्त्र के आधार पर उस स्थान का चयन करते हैं जहां हम निवास करते हैं ।

२.४ परिसर में नकारात्मक स्पंदनों के कुछ सामान्य संकेत 

उपरोक्त बताए गए बिन्दुओं के अतिरिक्त, यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि ऐसी अनेक वस्तुएं हैं (जिन्हें घर में रखने पर) जो नकारात्मक स्पंदनों के निरंतर प्रक्षेपण का स्रोत हो सकती हैं । इनमें से कुछ वस्तुएं नीचे सूचीबद्ध हैं ।

  1. गंदगी और अस्वच्छता
  2. अपने घर में अव्यवस्था, अर्थात व्यवस्थितपना का आभाव और झमेला करना
  3. भीत पर कलाकृति (कलाकृतियों से प्रायः नकारात्मक स्पंदन प्रक्षेपित होते हैं)
  4. घर में ऐसी कलाकृतियां रखना जो नकारात्मक स्पंदन प्रक्षेपित करती हों
  5. फर्नीचर को अनुचित रूप से लगाना
  6. चादरों, पर्दों, भीत पत्रक (वॉलपेपर) आदि की रचना एवं उनका रंग
  7. भीतों को ऐसे रंगों से रंगाना जो सात्त्विक न हों अथवा जिनमें उच्च विषमता हो जैसे श्वेत भीत और काला फर्श
  8. फर्श की ऐसी टाइलों का उपयोग करना जिनकी रचना अथवा रंग सात्त्विक न हो
  9. परिसर में चलने वाले संगीत और मनोरंजक कार्यक्रम का प्रकार (ध्वनि का परिसर पर प्रबल प्रभाव पडता है जो कि सकारात्मक अथवा नकारात्मक हो सकता है)
  10. घर में किसी प्रकार के मांस अथवा अण्डे पकाना (इनकी दुर्गंध से घर के स्पंदनों में परिवर्तन होकर वह नकारात्मक बनता है । ये सबसे तीव्र कारण हैं जिनके फलस्वरूप परिसर अशुद्ध हो जाता है ।)

ऐसा कहा जाता है कि उपचार से बचाव अच्छा है । नकारात्मक स्पंदनों को परिसर में प्रवेश करने से रोकना, यह परिसर में नकारात्मकता के निर्माण को अल्प करने में एक लंबा मार्ग निर्धारित करता है । उपरोक्त को पढने के पश्चात, कदाचित यह तुरंत स्पष्ट नहीं हो सकता कि कौन सी वस्तुएं नकारात्मक स्पंदन उत्पन्न करती हैं । हमने ऐसी वस्तुओं/घर की साज-सज्जा के कुछ उदाहरणों का एक स्लाइड शो एक साथ प्रस्तुत किया है जो नकारात्मक स्पंदन प्रक्षेपित करती हैं तथा जिनसे बचना चाहिए ।

3. वास्तु शुद्धि की पद्धतियां

आध्यात्मिक शोध के माध्यम से, हमने कुछ पद्धतियों की पहचान की है, जिनमें किसी परिसर को आध्यात्मिक रूप से शुद्ध करने में सहायता होने हेतु विभिन्न  वस्तुओं और ध्वनियों का उपयोग होता है । ये ऐसे सरल परंतु शक्तिशाली साधन हैं जिनका उपयोग कोई भी कर सकता है । हम अनुशंसा करते हैं कि सभी को नियमित रूप से अपने घर के परिसर को स्वच्छ करने हेतु इन पद्धतियों का उपयोग करना चाहिए । यदि कोई साधना भी करता हो, तो भी नीचे दी गई पद्धतियां यह सुनिश्चित करने में सहायता करेंगी कि साधना से उत्पन्न मूल्यवान शक्ति परिसर में व्याप्त नकारात्मकता से युद्ध करने में व्यर्थ न जाए । हमने उन्हें पञ्चतत्त्वों के अनुसार वर्गीकृत किया है, जिनसे वे सम्बंधित हैं, अर्थात, पृथ्वी, जल/आप, अग्नि/तेज, वायु और आकाश ।

३.१ मुख्य रूप से ‘आप’ तत्त्व से संबंधित पद्धतियों के उपयोग द्वारा वास्तु शुद्धि

  1. घर के चारों ओर तीर्थ (विभूति मिश्रित जल) छिडकना

(आप एवं तेज तत्त्व से संबंधित)

अपने घर की वास्तु शुद्धि करने हेतु पवित्र जल (तीर्थ) छिडकने के लिए तुलसी के पत्तों का उपयोग करें

  • एक गिलास अथवा कटोरी में जल लें और उसमें एक चुटकी विभूति मिलाएं ।
  • संरक्षण हेतु प्रार्थना करें ।
  • तुलसी के पत्तों के साथ अपनी उंगलियों अथवा उसकी टहनी का उपयोग करके ईश्वर का नामजाप करते हुए इसे घर के परिसर के चारों ओर छिडकें । यह सुनिश्चित करें कि पवित्र जल (तीर्थ) घर के कोने-कोने तक पहुंचे, क्योंकि वहां नकारात्मकता एकत्रित हो सकती है ।
  • विभूति से बने तीर्थ के विषय में और विभूति को कैसे प्राप्त करें, इसके विषय में अधिक जानकारी के लिए कृपया विभूति द्वारा बनाया पवित्र जल (तीर्थ) पर लेख देखें ।

अनिष्ट शक्तियां प्रायः घर के कोनों में एकत्रित हो जाती हैं । कोने ऐसे स्थान हैं जहां २ दिशाएं मिलती हैं । परिणामस्वरूप कुछ मात्रा में घर्षण उत्पन्न होता है जिससे आध्यात्मिक रूप से अशुद्ध अथवा रज-तम स्पंदन उत्पन्न होते हैं । इस आध्यात्मिक अशुद्धता की ओर अनिष्ट शक्तियां आकर्षित होती हैं । यही कारण है कि इस लेख में हम विशेष रूप से घर के कोनों में विभिन्न उपचार पद्धतियों को लागू करने का सुझाव देंगे ।

२. गोमूत्र मिश्रित जल छिडकना 

अपने घर की वास्तु शुद्धि हेतु जल में गोमूत्र की कुछ बूंदों का उपयोग करें

इसमें ऊपर दिए गए चरणों का पालन किया जा सकता है । यद्यपि, विभूति का उपयोग करने के स्थान पर, गोमूत्र की कुछ बूंदों का उपयोग किया जा सकता है । इसमें आध्यात्मिक शुद्धीकरण का एक शक्तिशाली प्रभाव होता है ।

गोमूत्र पर अधिक जानकारी इस लेख में पढ सकते हैं – आध्यात्मिक उपचार पद्धति के रूप में  गोमुत्र

कृपया ध्यान दें कि गोमूत्र केवल भारतीय नस्ल की (देशी) गाय से प्राप्त किया जाना चाहिए । गाय की किसी अन्य नस्ल से प्राप्त मूत्र से उपचार नहीं होगा ।

३.२ प्रमुख रूप से तेज तत्त्व से संबंधित पद्धतियों के उपयोग द्वारा वास्तु शुद्धि

१. घी अथवा तिल के तेल का दीपक प्रज्वलित करना 

घी का दीपक आपके घर में सकारात्मकता को आकर्षित और प्रक्षेपित करने का एक प्रमाणित तरीका है ।

घी भारतीय गाय के दूध से बना विशुद्ध मक्खन है । घी का दीपक चैतन्य को आकर्षित करता है और इस सकारात्मक ऊर्जा को वातावरण में प्रक्षेपित करता है । परिणामस्वरूप वातावरण की आध्यात्मिक शुद्धि शीघ्रता से होती है । इसे दिन में एक बार विशेषतः संध्या को सूर्यास्त के समय प्रज्वलित किया जा सकता है । यदि घी उपलब्ध न हो, तो तिल के तेल का उपयोग भी कर सकते हैं क्योंकि यह भी आध्यात्मिक रूप से शुद्ध (सात्त्विक) तेल होता है ।

२. एसएसआरएफ निर्मित अगरबत्ती प्रज्वलित करना 

अपने घर की परिधि के चारों ओर प्रज्वलित अगरबत्ती घुमाने (ले जाने) से नकारात्मकता दूर होती है

  • एसएसआरएफ शॉप पर उपलब्ध किसी भी सुगंध की एसएसआरएफ अगरबत्ती लें ।
  • समान सुगंध की दो अथवा अधिक अगरबत्तियां प्रज्वलित करें ।
  • रक्षण हेतु प्रार्थना करें ।
  • ॐ नमो भगवते वासुदेवाय (२०२५ तक उपयोग करने हेतु अनुशंसित नामजप) का नामजप करते हुए घर के चारों और प्रज्वलित अगरबत्ती ले जाएं ।
  • अगरबत्ती को घर के चारों ओर घडी की सुई की विपरीत दिशा में ले जाया जा सकता है । इसे घडी की विपरीत दिशा में ले जाने से ईश्वर का मारक तत्व सक्रिय होता है । ईश्वर के मारक तत्त्व से नकारात्मक स्पंदन नष्ट हो सकते हैं । मारक स्पंदन घडी की विपरीत दिशा में घूमते हैं । इसलिए, यदि हम इस पद्धति से वास्तु शुद्धि का प्रयास करते हैं, तो नकारात्मक स्पंदन अधिक मात्रा में नष्ट हो जाते हैं ।
  • प्रज्वलित अगरबत्ती को घर के कोनों में कुछेक बार (२-३ बार) घुमाना महत्वपूर्ण है ।
  • इसे घर के चारों ओर घुमाने के पश्चात, इसे पूजाघर के निकट, बैठक कक्ष अथवा घर में ऐसे किसी अन्य स्थान पर रख सकते हैं जहां आपको लगता हो कि यहां शुद्धि की आवश्यकता है ।

अधिक जानकारी के लिए, हमारे इन लेखों को देखें :
SSRF निर्मित अगरबत्तियों के सर्वाधिक लाभ हेतु सर्वोत्तम उपयोग
SSRF द्वारा निर्मित अगरबत्ती से बनी विभूति का रख-रखाव

हमने एसएसआरएफ की अगरबत्तियों का उपयोग करने का सुझाव दिया है क्योंकि इसे परात्पर गुरु डॉ आठवलेजी के संकल्प के साथ विकसित किया गया है । परात्पर गुरु वे गुरु होते हैं जिनका आध्यात्मिक स्तर ९०% से अधिक होता है । व्यावसायिक रूप से उपलब्ध अगरबत्ती में वास्तु शुद्धि के लिए अपेक्षित आध्यात्मिक बल नहीं हो सकता ।

. विभूति फूंकना

तेज तथा वायु तत्त्व से संबंधित

विभूति फूंकने से नकारात्मकता दूर होती है

  • अपनी हथेली पर थोडी विभूति लें ।
  • रक्षण हेतु प्रार्थना करें ।
  • ॐ नमो भगवते वासुदेवाय का नामजप करते हुए परिसर में विभूति फूंकें । दिशा किसी निकास की ओर होनी चाहिए ।

अधिक जानकारी के लिए हमारा यह लेख पढें –
SSRF की अगरबत्ती से निर्मित विभूति फूंकना – एक आध्यात्मिक उपचार

४. धूप से शुद्धि करना

पृथ्वी एवं तेज तत्त्व से संबंधित

SSRF की एक धूप बत्ती लें, उसे प्रज्वलित करें, उसके होल्डर में रखें और एक थाली में रख दें ।
  • रक्षण हेतु प्रार्थना करें ।
  • ॐ नमो भगवते वासुदेवाय का जाप करते हुए इसे घर के चारों ओर ले जाएं । यह सुनिश्चित करें कि धुआं वातावरण में फैल जाए क्योंकि धुआं और इसकी सुगंध उपचारक प्रभाव उत्पन्न करते हैं । ऊपर वर्णित SSRF की अगरबत्ती की उपचारक पद्धति के समान, धूप को भी परिसर के चारों ओर वामावर्त (घडी की सुई की विपरीत दिशा) दिशा में ले जाया जा सकता है ।
  • इसे घर के चारों ओर घुमाने के पश्चात, इसे पूजाघर के निकट, बैठक कक्ष अथवा किसी अन्य घर में ऐसे किसी अन्य स्थान पर रख सकते हैं जहां आपको शुद्धि की आवश्यकता लगती हो ।
  • अध्यात्मशास्त्र के अनुसार, वातावरण में वायु के रूप में कुछ सकारात्मक शक्तियां व्याप्त होती हैं । जब धूप प्रज्वलित होती है, तब ये सकारात्मक शक्तियां धूप की पवित्र सुगंध की ओर आकर्षित होती हैं और परिसर में प्रवेश करती हैं, फलस्वरूप उसकी शुद्धि हो जाती है । इससे परिसर की नकारात्मक शक्तियों को दूर करने में सहायता होती है ।
५. कर्पूर प्रज्वलित करना 

तेज तत्त्व एवं पृथ्वी तत्त्व से संबंधित (जब कर्पूर के चूर्ण को सूंघते हैं, तो यह वायु तत्त्व के स्तर पर कार्य करता है । जब कर्पूर को प्रज्वलित किया जाता है, तब यह तेज तत्त्व और पृथ्वी तत्त्व के स्तर पर कार्य करता है ।)

कर्पूर प्रज्वलित करना और उसे घर के चारों ओर घुमाने से परिसर की वास्तु शुद्धि होती है

  • कर्पूर की सुगंध से शिव तत्त्व आकर्षित होता है । भगवान शिव ईश्वर के मारक तत्त्व से संबंधित देवता हैं, जो आध्यात्मिक शुद्धीकरण में सहायता करते हैं ।
  • कोई भी धातु अथवा मिट्टी का पात्र लें और उसमें कर्पूर के कुछ टुकडे डालें । कृपया ध्यान दें कि वह पात्र काला पड जाए, इसलिए पात्र का चयन उसी अनुसार करें ।
  • यहां भीमसेनी कर्पूर (एक प्राकृतिक, शुद्ध कर्पूर) का प्रयोग करने की अनुशंसा की जाती है क्योंकि यह सात्त्विक होता है, अतः इससे शिव तत्त्व अधिक प्रमाण में आकर्षित होता है ।
  • रक्षण हेतु प्रार्थना करें ।
  • कर्पूर प्रज्वलित करें और ॐ नमो भगवते वासुदेवाय का नामजप करते हुए इसे परिसर के चारों ओर ले जाएं, धुआं फैलने दें । इससे परिसर की शुद्धि होने में सहायता प्राप्त होती है । चूंकि कर्पूर अत्यधिक ज्वलनशील होता है, इसलिए इसे प्रज्वलित करते समय और घर के चारों ओर ले जाते समय सावधानी रखें ।
  • उपयोग किए गए कर्पूर की गुणवत्ता के आधार पर, कर्पूर प्रज्वलित करने से काला धुआं निकल सकता है, इसलिए कृपया इसे घर के चारों ओर ले जाते समय आवश्यक सावधानी रखें ।
  • प्रज्वलित कर्पूर को घडी की सुई की विपरीत दिशा में घर के चारों ओर घुमाया जा सकता है ।

६. अग्निहोत्र विधि करना

अग्निहोत्र विधि के अनेक लाभ हैं, जिनमें एक लाभ है वहां के वातावरण की शुद्धि करना जहां इसे संपन्न किया जाता है

कृपया हमारा यह लेख देखें : अग्निहोत्र कैसे करें ?

७. देवताओं की नामजप-पट्टियां लगाना

देवताओं की शक्तियां उनके नाम से जुडी होती हैं । कक्ष के चारों ओर विशिष्ट दिशाओं में एक विशिष्ट क्रम में उच्च-स्तरीय देवताओं की नामजप-पट्टियों को लगाने से सूक्ष्म स्तर पर परिसर की रक्षा होने में सहायता होती है । ऐसा करने से, ऊपर और नीचे की दिशाओं सहित सभी दिशाओं से परिसर सुरक्षित रहता है । जिन दिशाओं में संबंधित देवता के नाम की पट्टियां रखी जानी चाहिए, उनका विवरण नीचे दिया गया है । नामजप-पट्टियों को भीत के उस क्षेत्र पर लगाना चाहिए जहां भीतें छत से मिलती हैं । ऐसा करने पर, उनसे एक सूक्ष्म सुरक्षात्मक छत निर्मित होती है, जो परिसर की सुरक्षा करती है । कृपया ध्यान दें कि कुछ दिशाओं के लिए एक से अधिक देवताओं की नामजप-पट्टी का सुझाव दिया गया है । दोनों को उसी दिशा में लगाना चाहिए ।

दिशा देवता की नामजप-पट्टी
उत्तर ||ॐ नमः शिवाय|| (भगवान शिव)
दक्षिण ||श्री गुरुदेव दत्त|| (भगवान दत्तात्रेय) एवं

||श्री गणेशाय नमः|| (भगवान गणेश)

पूर्व ||श्रीराम जय राम जय जय राम|| (भगवान श्रीराम)

||ॐ नमो भगवते वासुदेवाय|| (भगवान श्रीकृष्ण) एवं

||श्री हनुमते नमः|| (भगवान हनुमान)

पश्चिम ||श्री दुर्गादेव्यै नमः|| (दुर्गा देवी)

३.३ प्रमुख रूप से आकाश तत्त्व से सम्बंधित पद्धतियों के उपयोग से वास्तु शुद्धि

१. बक्सों के माध्यम से वास्तु शुद्धि

बक्से के उपचार द्वारा परिसर से नकारात्मकता को बाहर निकालने के लिए आकाश तत्त्व की शक्ति का उपयोग होता है ।

  • स्वच्छ गत्ते के रिक्त बक्से लें । किसी भी उचित आकार के बक्सों का उपयोग किया जा सकता है ।
  • इन्हें कक्ष के कोनों में रखें । बक्से की रिक्ति वाला भाग कक्ष की ओर तथा दूसरा भाग भीत की ओर हो । एक कक्ष के चारो कोनों में चार बक्से भी रख सकते हैं, जिसमें केंद्र की ओर बक्से का रिक्त भाग वाला मुख हो ।
  • बक्से की रिक्ति में आकाश तत्त्व होता है, जिससे अध्यात्मिक शुद्धि होने में सहायता होती है ।
  • बक्सों को कुछ घंटे के लिए बाहर धूप में रखकर अथवा SSRF की अगरबत्ती को बक्से के भीतर घुमाकर शुद्ध किया जा सकता है ।

अधिक जानकारी के लिए आध्यात्मिक उपचार पद्धति : बक्से के उपचार पर हमारा लेख पढें ।

२. परात्पर गुरु अथवा उच्चतम कोटि के संतों द्वारा किए गए मार्गदर्शन अथवा भजन का ऑडियो चलाना

संत भक्तराज महाराजजी (बाएं) और परात्पर गुरु डॉ आठवलेजी (दाएं) जैसे उच्चतम स्तर के संतों की वाणी चैतन्य से भारित होती है, जो आकाश तत्व के सिद्धांत के स्तर पर परिसर की शुद्धि करती है ।

  • एक खरे उच्च स्तरीय संत की वाणी चैतन्य से भारित होती है तथा इसके स्पंदनों से एक प्रबल उपचारक प्रभाव उत्पन्न होता है । परात्पर गुरु समान उच्च स्तरीय संतों की वाणी से सबसे प्रबल उपचारक प्रभाव उत्पन्न होता है।
  • ध्वनि आकाश तत्त्व से सम्बंधित होती है, जो कि सबसे शक्तिशाली महाभूत है । अत: ध्वनि द्वारा आध्यात्मिक शुद्धि शीघ और प्रभावशाली होती है ।
  • जब कोई भजन उच्च स्तर के संत द्वारा रचा और गाया जाता है, तो उससे प्रक्षेपित होने वाली सकारात्मकता अत्यधिक मात्रा में होती है ।
  • घर में इस प्रकार की श्रव्य ध्वनियां चलाने से परिसर में चैतन्य प्रसारित होने में सहायता होती है तथा परिसर में एकत्रित हुई किसी भी प्रकार की काली शक्ति का विघटन होता है ।
  • आदर्श रूप से, श्रव्यों (ऑडियो) को अत्यधिक तीव्र ध्वनि में चलाया जाना चाहिए । यदि यह संभव नहीं है, तो इसे धीमे स्वर में बजाने से भी शुद्धि होने में सहायता मिलेगी । इस प्रकार की श्रव्य ध्वनियों को पूरी रात चलाने से पूरी रात सकारात्मकता का एक सतत स्रोत प्रवाहित होने में सहायता होती है, जिससे आध्यात्मिक संरक्षण प्रदान होता है ।
  • हम प्रति दिन न्यूनतम कुछ घंटे यह श्रव्य (ऑडियो) ध्वनि चलाने का सुझाव देते हैं । यद्यपि, इन्हें पूरा समय चलाकर रख सकते हैं ।

संत भक्तराज महाराज द्वारा गाए भजनों की श्रव्य ध्वनि/ ऑडियो डाउनलोड करने के लिए, कृपया ऑडियो १, ऑडियो २, ऑडियो ३, ऑडियो ४, ऑडियो ५ पर क्लिक करें । 

परात्पर गुरु डॉ आठवलेजी द्वारा साधना के विषय में मार्गदर्शन का एक ऑडियो डाउनलोड करने के लिए, कृपया यहां क्लिक करें ।

(ऑडियो फाइल के विषय में अधिक जानकारी एवं विवरण हेतु देखें . – पीडीएफ डाउनलोड करें)

एक संत की वाणी में रिकॉर्ड किए गए देवताओं के नामजप भी चला सकते हैं

३. शंखनाद करना

शंख की ध्वनि नकारात्मक शक्तियों को दूर करती है और सकारात्मकता ग्रहण करने हेतु परिसर की शुद्धि करती है

शंख की ध्वनि में वातावरण में व्याप्त नकारात्मक स्पंदनों को नष्ट करने और वातावरण को आध्यात्मिक रूप से शुद्ध करने की क्षमता होती है । जब एक शंख ३ बार बजाया जाता है, तो वातावरण में अनिष्ट शक्तियों की गतिविधि अल्प हो जाती है और एक सुरक्षा कवच का निर्माण होता है । वातावरण शुद्ध होने से परिसर में रहने वाले लोगों में सकारात्मकता अधिक ग्रहण होती है । साथ ही, परिसर में साधना करने वाले साधक अपनी साधना से अधिकतमआध्यात्मिक लाभ ग्रहण करने में सक्षम होते हैं तथा वातावरण में व्याप्त नकारात्मकता से युद्ध करने में साधना व्यर्थ नहीं होती । प्रातः स्नान करने के पश्चात तथा सूर्यास्त के समय शंखनाद किया जा सकता है ।

शंखनाद होने का ऑडियो डाउनलोड करने के लिए यहां क्लिक करें

४. घर में देवताओं के चित्र एवं पूजाघर होना

घर में स्थित पूजाघर अथवा मंदिर सकारात्मकता का एक सतत स्रोत होता है

  • घर में पूजाघर होने से घर की सात्त्विकता में वृद्धि होती है ।
  • हमारी साधना में वृद्धि के लिए यह एक अनुस्मारक के रूप में कार्य करता है ।
  • यद्यपि, यह सुनिश्चित करने के लिए इसका इस प्रकार रख रखाव किया जाना चाहिए कि इसकी देखभाल की जाती रहे और प्रतिदिन पूजा पाठ (इसमें स्वच्छता, धूप दीप दिखाना, पुष्प अर्पित करना और देवताओं को नमस्कार करना सम्मिलित है) किए जाते हों । न्यूनतम यह सुनिश्चित करना चाहिए कि पूजाघर प्रतिदिन स्वच्छ किया जाए और देवता के समक्ष एक दीपक अथवा अगरबत्ती प्रज्वलित कर उन्हें प्रणाम किया जाए ।
  • इसमें अनेक देवताओं के चित्र न हों । अधिकाधिक ४-५ चित्र अथवा प्रतीक ही रखे जाने चाहिए । एक शिष्य के रूप में आध्यात्मिक स्तर प्राप्त साधकों के संबंध में, प्रायः एक ही चित्र रखा जाता है तथा वह उनके गुरु का होता है ।

३.४ सात्त्विक पौधे

तुलसी सबसे सात्त्विक पौधों में से एक है तथा इससे सकारात्मकता प्रक्षेपित होती है

  • तुलसी सबसे सात्त्विक पौधा है
  • इसमें वातावरण में निरंतर सकारात्मकता प्रसारित करने की क्षमता है । ऐसा और अधिक तब होता है जब साधक द्वारा इसे भावपूर्वक सींचा जाता है और उसकी देखभाल की जाती है ।

. यदि हम नकारात्मक स्पंदनों को दूर न करें, तब क्या होगा ?

जो लोग वास्तु शुद्धि से परिचित नहीं हैं, वे लोग इसे दिए जाने वाले महत्त्व और गंभीरता के विषय में आश्चर्य कर सकते हैं । आध्यात्मिक शोध से पता चला है कि यदि घर में इसका पालन नहीं किया जाता है तो इसके अनेक दुष्परिणाम होते हैं । ये परिणाम न केवल आध्यात्मिक स्तर पर होते हैं; अपितु वे हमें शारीरिक और मनोवैज्ञानिक स्तर पर भी प्रभावित करते हैं । हमने नीचे कुछ ऐसी समस्याओं को सूचीबद्ध किया है जो परिसर में नकारात्मकता होने के कारण उत्पन्न हो सकती हैं । यह सूची आपको केवल इस बात का आभास करवाने के लिए है कि किस प्रकार की समस्याएं हो सकती हैं, यह किसी भी प्रकार से परिपूर्ण/विस्तृत नहीं है ।

स्तर पर

समस्याएं/बाधाएं

शारीरिक

थकान, आलस्य, शारीरिक व्याधि, भोजन एवं जल में आध्यात्मिक शक्ति क्षीण होना और उनमें नकारात्मक का प्रभामंडल होना, मस्तक में भारीपन और सिर में वेदना, अत्यधिक सुस्ती रहना, अरुचि, आर्थिक हानि, घर में टूट-फूट होना और उपकरणों का काम न करना, गतिविधियों में बाधाएं आना ।

मानसिक

चिडचिडाहट, नकारात्मक विचार, स्पष्टता का अभाव और मन भ्रमित रहना, उत्साह का अभाव, अत्यधिक यौन विचार आना, अवसाद, पारिवारिक क्लेश, अध्ययन अथवा एकाग्रचित्त होने में असमर्थता, अत्यधिक क्रोध, व्यसन हेतु वातावरण पूरक होना ।

आध्यात्मिक

अनिष्ट शक्तियों द्वारा आक्रमण होना, पूर्णिमा एवं अमावस्या पर नकारात्मक प्रभाव में वृद्धि होना, अनिष्ट शक्तियों का अस्तित्त्व अनुभव होना, नामजप तथा किसी भी प्रकार की साधना में बाधाएं आना, सांसारिक जीवन में आसक्ति बढना, साधना अथवा अपने गुरु के विषय में भ्रम निर्माण होना, गर्भवती स्त्री पर दुष्परिणाम होना, अकाल मृत्यु की संभावना में वृद्धि होना ।

५. वास्तु शुद्धि करने के लाभ

नियमित रूप से वास्तु शुद्धि करना घर की आध्यात्मिक स्वच्छता करने समान है, और इससे घर में सकारात्मकता आने में सहायता होती है । इससे घर के सभी निवासियों को शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक स्तर पर लाभ होता है । समस्याएं अल्प होती हैं, व्याधियां अल्प होती हैं, लोग अधिक उत्साही अनुभव करते हैं, परिवार के सदस्यों के मध्य अधिक सामंजस्य होता है, और इन सभी के परिणामस्वरूप समग्र रूप से अच्छाई की भावना निर्माण होती है । हमारे आध्यात्मिक शोध से पता चला है कि जब घर के निवासी वास्तु शुद्धि के साथ-साथ नियमित साधना करते हैं, तो  परिसर, उसके आसपास की मिट्टी और जल का प्रभामंडल सकारात्मक रूप से प्रभावित होता है ।