साधना करने से आध्यात्मिक शक्ति मिलती है । यदि हम इस शक्ति का उपयोग, उदाहरण के लिए सांसारिक लाभ हेतु प्रार्थना के रूप में करते हैं, तब यह आध्यात्मिक शक्ति व्यर्थ हो जाती है । इसका कारण यह है कि हम अपनी आध्यात्मिक शक्ति को अपने सांसारिक कामनाओं की पूर्ति हेतु व्यय (खर्च) कर देते हैं । जिससे हमारी आध्यात्मिक शक्ति का उपयोग आध्यात्मिक प्रगति हेतु न होकर इसके विपरीत साधना में हमारी हानि हो सकती है । सांसारिक अडचनों का कोई अंत नहीं है और उनमें से अधिकांश अडचनों का कारण हमारा प्रारब्ध है । आध्यात्मिक प्रगति होने से व्यक्ति की प्रारब्ध सहने की क्षमता बढती है तथा अंतिमतः वह उस पर विजय प्राप्त कर सकता है ।