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अज्ञात कारण से मक्खियों एवं कीडों के मरने के संदर्भ में चलचित्र

स्पिरिच्युअल साइन्स रिसर्च फाऊंडेशन (SSRF) के अध्यात्मिक शोध केंद्र में बिना किसी प्रत्यक्ष कारण के कीडे एवं मक्खियां मर रहे हैं :

१. प्रस्तावना

हम सभी ने घर के आस पास मक्खियों की कष्टप्रद भिनभिनाहट सुनी है एवं एक सामान्य मक्खी के कारण होनेवाली झल्लाहट भी अनुभव की है, विशेषकर भोजन के संबंध में, यदि उसे खुला छोड दिया गया हो I हम सभी जानते हैं कि मक्खी गंभीर रोग उत्पन्न करने वाले कीटाणुओं की संवाहक है, जिसके परिणामस्वरूप घातक रोग जैसे (टार्इफार्इड), पेचिश एवं हैजा हो सकते हैं । यह सर्वविदित है कि मक्खियों के कारण १०० से भी अधिक प्रकार के कीटाणुओं का संक्रमण हो सकता है, परंतु सभी यह नहीं जानते कि घरेलू मक्खी एवं अन्य कीडे-मकोडे जैसे तिलचट्टे आध्यात्मिक रूप से अपवित्र होते हैं एवं आध्यात्मिक रूप से अशुद्ध स्पंदनों का प्रक्षेपण करते हैं ।

२. अनिष्ट शक्तियां कीडों का प्रयोग कर सकती हैं

आध्यात्मिक आयाम की अनिष्ट शक्तियां कभी-कभी इन कीडों का उपयोग लोगों को हानि पहुंचाने एवं वातावरण को आध्यात्मिक रूप से दूषित अर्थात अपवित्र करने में कर सकती हैं I शोधकाल में हम एक ऐसे फार्महाऊस पर पहुंचे जहां अनिष्ट शक्तियों का आक्रमण हुआ था ।

18इस सूक्ष्म आक्रमण का एक पहलू था, वर्षाकाल में घर पर निरंतर कई वर्षों से हाे रहा कीडों के दल का आक्रमण । इस फार्महाऊस के पास ही मकडी का एक विशाल जाला पाया गया एवं इस जाले से निकला मकडियों का विशाल उपद्रवी दल बहुत ही असामान्य था I पूरे घर पर कीडों के दल ने आक्रमण कर दिया था । यहां आप देख सकते हैं कीडों की भयावह मात्रा (संख्या), पूरे घर में रेंगते हुए पाए गए । इससे घर के निवासियों को घर खाली करने के लिए विवश होना पडा क्योंकि कीटनाशक का छिडकाव किए बिना, यह घर रहने योग्य नहीं था ।

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एक विशेष बात यह देखी गर्इ कि वे उन वस्तुओं पर विशेष रूप से एकत्र हुए जो आध्यात्मिक रूप से पवित्र थीं I उदाहरण के लिए देवताओँ के चित्रों एवं देवताओं की नामजप की पट्टियों पर सबसे अधिक आक्रमण हुआ एवं वे कीडों से भरे थे । हम उपर्युक्त चित्रों को केवल देखकर भी उनसे निकलने वाले नकारात्मक स्पंदनों को अनुभव कर सकते हैं क्योंकि ये कीडे आध्यात्मिक रूप से अपवित्र हैं ।

३. परम पूज्य डॉ. आठवलेजी के कक्ष में एवं आध्यात्मिक शोध केंद्र में मक्खियों के मरने की घटना

आजकल, कीडों को नियंत्रित करने के लिए हमारी पास विभिन्न कीट नियंत्रण उपाय उपलब्ध हैं I तब भी इस शोध से हमें ऐसे तथ्य का पता चला जो इस प्रकार के कीटों के लिए संभावित प्राकृतिक निवारकों पर प्रकाश डालती है I परम पूज्य डॉ. आठवलेजी, जो एक सर्वोच्च स्तर के संत हैं, उनके कक्ष में बहुत उच्च स्तर की आध्यात्मिक पवित्रता है । उनके इस कक्ष से अनेक दैवी घटनाओं; जैसे दैवी कण, दैवी सुगंध एवं सूक्ष्म नाद आदि का प्रारंभ हुआ है । यह भारत के गोवा स्थित रामनाथी में SSRF के आध्यात्मिक शोध केंद्र एवं आश्रम में है ।

3हमने देखा कि यदि कोई मक्खी भूल से भी परम पूज्य डॉ. आठवलेजी के कक्ष में प्रवेश करती है तो वह शीघ्र ही निष्क्रीय हो जाती है । मक्खी उडना बंद कर देती है एवं भूमि पर धीरे धीरे सरकने लगती है । कुछ ही समय में वह इतनी शक्तिहीन होने लगती है मानो नशे की अवस्था में हो । स्पर्श करने से भी पर भी मक्खी भय की प्रतिक्रिया नहीं देती ।

4कुछ घंटों के पश्चात हमने यह देखा कि मक्खी उलट-पुलट कर मर गर्इ । यह बहुत विशेष है क्योंकि एक सामान्य मक्खी का सामान्य जीवन काल, तापमान और रहने की स्थिति पर के अनुसार १५ से ३० दिनों का होता है । पर जब मक्खी परम पूज्य डॉ. आठवलेजी के कक्ष में प्रवेश करती है तो १५ से २० मिनटों के भीतर ही यह देखा गया कि उसकी चाल बहुत सुस्त हो जाती है । धीरे-धीरे वह हिलना भी बंद कर देती है I कक्ष में प्रवेश करने के लगभग दो घंटे में मक्खी मर जाती है ।

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यह उन विभिन्न प्रकार के कीडों का चित्र है जो परम पूज्य डॉ. आठवलेजी के कक्ष में प्रवेश करने के थोडे समय में ही मर गए थे । हमने यह भी देखा कि ऐसी ही घटना आध्यात्मिक शोध केंद्र के अन्य कक्षों में जैसे आश्रम के ध्यानमंदिर में भी होती है ।

४. रोगों की रोकथाम में नए शोध के लिए मार्ग प्रशस्त करना ?

इस साधारण निरीक्षण के वास्तव में दूरगामी प्रभाव हो सकते हैं एवं यह स्वास्थ्य सेवा के उस पहलू को दर्शाता है जो रोगों के रोकथाम में सरकार के लाखों रुपए बचा सकता है । यह तथ्य कि मक्खियां १०० से भी अधिक कीटाणुओं की वाहक हो सकती हैं, हममें यह जिज्ञासा जगाता है कि जो प्रभाव आध्यात्मिक रूप से पवित्र वातावरण में मक्खियों पर देखा गया क्या वही प्रभाव उन कीटाणुओं पर भी पडता है ।

हम अपने पाठकों के साथ कुछ और उदाहरण एवं इस घटना का अध्यात्म शास्त्र साझा करना चाहते हैं I

१. आध्यात्मिक शोध द्वारा हमने पाया कि आध्यात्मिक रूप से अपवित्र प्राणी उदाहरणार्थ मक्खियां एवं कीडे आध्यात्मिक रूप से पवित्र वातावरण, जैसे परम पूज्य डॉ. आठवलेजी के कक्ष, में नहीं रह सकते I जब हम निरंतर साधना करते हैं तो हम अपनी एवं आसपास के वातावरण की पवित्रता बढाते हैं । यह आध्यात्मिक रूप से अपवित्र कीटाणुओं एवं कीडों के प्राकृतिक निवारक के रूप में कार्य करता है ।

२. इस समय हमें भारत की सर्वाधिक महत्वपूर्ण और प्रतिष्ठित गंगा नदी, के विषय में (कई दशक पूर्व) किया वैज्ञानिक अवलोकन सुनकर कुतुहल उत्पन्न हुआ । इसका जल पवित्र एवं आध्यात्मिक रूप से शुद्ध माना जाता है I कनाडा में मेकगील विश्वविद्यालय के डॉ. एफ.सी. हेरिसन बताते हैं, ‘‘एक विचित्र तथ्य जो कभी संतोषजनक रूप से नही समझाया गया, वह है गंगा नदी के जल में हैजे के कीटाणुओं की ३ अथवा ४ घंटे में त्वरित मृत्यु हो जाना I” एक अन्य प्रसिद्ध फ्रांसीसी चिकित्सक डॉ. फेलिक्स डी’हेरेले का भी यही निरीक्षण था ।

३. गंगा नदी पर SSRF द्वारा किया आध्यात्मिक शोध दर्शाता है कि वर्ष २०१४ में भी, गंगा नदी के जल में भौतिक प्रदूषण का स्तर उच्च होने पर भी गंगा नदी ने अपनी कालातीत सात्विकता के स्तर को एवं आध्यात्मिक पवित्रता को बनाए रखा है । गंगा की आध्यात्मिक पवित्रता भौतिक प्रदूषण से अत्यल्प प्रभावित हुर्इ है I इसे एक उदाहरण द्वारा भली प्रकार से समझा जा सकता है I जैसे किसी संत का भौतिक शरीर मैला अथवा रोगी होने पर भी उनसे प्रक्षेपित होनेवाले चैतन्य को अत्यल्प मात्रा में प्रभावित करेगा I ऐसा इसलिए क्योंकि व्यक्ति का आध्यात्मिक स्तर एवं आध्यात्मिक पवित्रता उसकी शारीरिक अवस्था एवं उसके रंग-रूप से भिन्न होते हैं I

४. हमने यह भी देखा कि जब हमने फार्महाऊस में कीडों पर पवित्र जल का छिडकाव किया तो उन्होंने तुरंत इधर-उधर भागना प्रारंभ कर दिया और जब हमने मकडी के जाले पर अल्प मात्र में पवित्र विभूति को फूंका तो वे भी तुरंत इधर उधर फैलने लगीं I ऋग्वेद पर आधारित एक विशिष्ट विधि का अनुष्ठान इस परिसर पर करने पर अनेक वर्षों के पश्चात वर्ष २०१४ में कीडों के आक्रमण को रोका जा सका I

५. एक अन्य व्यक्ति ने खटमलों के गंभीर प्रसंग की शिकायत की जो नौ बार कीटनाशकों का छिडकाव करवाने पर भी अप्रभावी था । वह समस्या तब न्यून हुई जब किराएदार ने श्री गुरुदेव दत्त का नाम जप करना प्रारंभ किया, एवं वहां कक्ष की दीवारों पर देवता के नामजप की पट्टियां लगार्इं, पवित्र विभूति फूंकी एवं अगरबत्तियां जलार्इं I

6दूसरी ओर तितलियों ने (कीट प्रजाति का ही भाग होने पर भी) आध्यात्मिक अनुसंधान केंद्र के परिसर में एक भिन्न आचरण दर्शाया I मृत होने के स्थान पर वे परिसर में साधकों पर बैठकर खेलते हुए पाई जातीं I ऐसा होने का कारण हमें अपने आध्यात्मिक शोध से ज्ञात हुआ कि तितलियां सात्विक अथवा आध्यात्मिक रूप से पवित्र कीट है । चूंकि समान गुणधर्म के लोग आपस में आकर्षित होते हैं, तितलियां जो कीडों में आध्यात्मिक रूप से सबसे पवित्र है, स्वाभाविक रूप से आध्यात्मिक शोध केंद्र की सात्विकता की ओर आकर्षित होती हैं । जब एक तितली परम पूज्य डॉ. आठवलेजी के कक्ष में गई एवं उनकी अंगुलियों पर बैठी तो उसके पंख चमकने लगे ।

क्या कीटाणुओं एवं कीडों के अनायास मृत होने के इन सभी निरिक्षणों को जोडा जा सकता है ? एवं यदि ऐसा है तो रोगों की रोकथाम के संदर्भ में इसका क्या अर्थ निकलता है ?

एक अपील

SSRF वैज्ञानिकों से इस घटना का अधिक विस्तार से अध्ययन करने में सहायता की मांग करता है । इस क्षेत्र के वैज्ञानिक एवं शोधकर्ता लॉगइन प्रणाली द्वारा टिप्पणी कर हमसे संपर्क कर सकते हैं । यह लेख, लेखों की श्रृंखला का एक भाग है जिसमें हम आध्यात्मिक शोध केंद्र एवं रामनाथी आश्रम – एक भवन जो विश्व के ७ आश्चर्यों से परे है को समाविष्ट कर रहे हैं । यह वह स्थान है जहां एक ही छत के नीचे सकारात्मक एवं नकारात्मक दोनों प्रकार की सैकडों आध्यात्मिक घटनाएं घटित होती हैं ।