१. प्रस्तावना
महाराष्ट्र की कु.नेहा डोगरे परम पूजनीय डॉ. आठवलेजी के मार्गदर्शन में वर्ष १९९८ से साधना कर रही हैं । वे उस समय १४ वर्ष की थीं । वे वर्ष २००८ से पूर्णकाल साधना करने लगीं । कुछ वर्षों में उन्होंने सत्सेवा के रूप में विविध प्रकार के उत्तरदायित्व लिए हैं । इनमें अध्यात्म प्रसार तथा व्यवस्थापन से संबंधित उत्तरदारित्व सम्मिलित है । स्नातक करने के उपरांत नेहा SSRF के शोध केंद्र तथा आश्रम में आ गईं ।
२. एक संत के छायाचित्र का विरुपण कष्टदायक चित्र में होने का अनुभव
नेहा के भ्रमणभाष (मोबाईल फोन) के पार्श्वपृष्ठ (वॉलपेपर) पर परम पूजनीय डॉ. आठवलेजी का छायाचित्र था । ७ मार्च २०१० को उसने देखा कि परम पूजनीय डॉ. आठवलेजी के छायाचित्र के ऊपर एक बडा, कष्टदायक चित्र उभर आया है ।
नेहा को स्मरण है कि उस दिन चित्र उभरने से पहले, उन्हें कष्टदायक अनुभव हो रहे थे तथा उनका मन भी अशांत था ।
ये कष्ट नेहा के फोन पर कष्टदायक चित्र उभरने के उपरांत भी होते रहे तथा उनकी तीव्रता और भी बढ गई ।
इसके साथ ही, नेहा कष्टदायक संवेदना अनुभव करने लगी, उसने बताया कि यह अनुभव किसी नाली अथवा कुछ गंदी वस्तु देखने पर आनेवाली घिन जैसा था । नेहा अभी भी उस फोन में संतों के भजन सुन सकती थी तथा आनेवाले कॉल का प्रतिसाद दे सकती थी ।
उसने SSRF के सूक्ष्म-ज्ञान विभाग को उस कष्टदायक चित्र के बारे में बताया और उन्होंने इस कष्टदायक चित्र को अनिष्ट शक्तियों (भूत, प्रेत, राक्षस इत्यादि) द्वारा किया गया आक्रमण बताया । उसने इस आक्रमण के प्रभाव को न्यून करने के लिए आध्यात्मिक उपाय हेतु आवश्यक परामर्श भी लिया । जो उपाय उन्होंने किए, वे थे :
- भगवान की नामजप पट्टी भ्रमणभाष के चारों ओर रखना
- प्रार्थना बढाना
- संतों द्वारा लिखित प्रकाशनों में भ्रमणभाष को लपेटना (संतों के लेखन में चैतन्य होने के कारण आध्यात्मिक उपचार होते हैं ।)
कुछ दिनोंतक ऊपरोक्त उपचार करने पर, परम पूज्य डॉ.आठवलेजी का चित्र पूर्णतः विलुप्त हो गया तथा स्क्रीन पूर्णतः श्वेत हो गई ।
कुछ दिनों के उपरांत भी कष्टदायक चित्र रहा;किंतु वह थोडा छोटा हो गया था तथा यह समय के साथ-साथ छोटा होता गया ।
अंतिमतः भ्रमणभाष का पार्श्वपृष्ठ (वॉलपेपर) पूर्णतः लुप्त हो गया ।
३. विरूपीकरण की प्रक्रिया का विवरण
नेहा के भ्रमणभाष के प्रकरण में हुई घटना का विवरण इस प्रकार है :
परम पूज्य डॉ.आठवलेजी एक सर्वोच्च स्तर के संत हैं, इसलिए उनका छायाचित्र भी अत्यधिक मात्रा में चैतन्य प्रक्षेपित करता है । भ्रमणभाष पर पार्श्वपृष्ठ के रूप में उनका छायाचित्र ईश्वर की सगुण शक्ति से संबंधित था ।
अनिष्ट शक्तियों का उद्देश्य उनके चित्र को विकृत कर उसके स्थान पर कष्टदायक चित्र उभारकर परम पूज्य डॉ. आठवलेजी के छायाचित्र में विद्यमान चैतन्य को नष्ट करना था । कष्टदायक चित्र में विद्यमान नकारात्मकता तथा परम पूज्य डॉ.आठवलेजी के छायाचित्र में विद्यमान सकारात्मकता में सूक्ष्म-युद्ध हुआ ।
स्क्रीन का श्वेत होना ईश्वरीय शक्ति में हुआ परिवर्तन दर्शाता है, जो सूक्ष्म-युद्ध में प्रयुक्त की गई थी । श्वेत रंग निर्गुण शक्ति को दर्शाता है । किए गए आध्यात्मिक उपचारों के साथ इस ईश्वरीय निर्गुण शक्ति ने अनिष्ट शक्तियों (भूत, प्रेत, राक्षस इत्यादि) द्वारा उभारे गए कष्टदायक चित्र के आकार को शनैः-शनैः न्यून कर दिया ।
अनिष्ट शक्तियों (भूत, प्रेत, राक्षस इत्यादि) द्वारा किया गया विरूपण एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें प्रतिवर्त्तन नहीं हो सकता अर्थात इसे पूर्ववत नहीं किया जा सकता । इसलिए जब कष्टदायक चित्र में विद्यमान अनिष्ट शक्ति अल्प हो गई, तब भ्रमणभाष के स्क्रीन से पार्श्वपृष्ठ पूर्णतः विलुप्त हो गया ।