वर्ष २००० के आसपास SSRF के आध्यात्मिक शोध केंद्र से जुडे साधकों ने अनेक असामान्य चित्र व अन्य वस्तुएं शोधकेंद्र को भेजी । इन वस्तुओं में आकस्मिक परिवर्तन आए थे, जिनका कोई स्पष्ट कारण नहीं था । वस्तुओं का स्वत: जल जाना, चटकना, दरार पडना, खरोंच आना, धब्बे आना, छेद हो जाना इस प्रकार के भीषण विरुपण दिखाई दिए। उसी प्रकार के परिवर्तन SSRF के शोधकेंद्र के परिसर में और कुछ जिज्ञासुओं के व्यक्तिगत सामान व घरों में भी दिखाई दिए ।
प्रारंभ में साधक इन आश्चर्यचकित करनेवाले परिवर्तनों से सभी स्तब्ध थे क्योंकि इनका कोई स्पष्ट कारण नहीं था । पjaरम पूज्य डॉ. आठवलेजी ने तत्काल स्पष्ट किया कि इन वस्तुओं पर सूक्ष्म आयाम की अनिष्ट शक्तियों का आक्रमण हुआ है और यही इन परिवर्तनों का कारण है । तब से हमने इनका अध्ययन छठी इंद्रिय के माध्यम से से बायोफीडबैक उपकरण की सहायता से किया ।
अब तक हमने निर्जीव वस्तुओं पर इस प्रकार के हजारों बिना किसी बाह्य कारण के हुए विचित्र और अपनेआप होनेवाले परिवर्तनों का सामना और अध्ययन किया है । इस भाग में हम अनिष्ट शक्तियों द्वारा प्रभावित हमारे वस्तु संग्रह का छोटा सा भाग और कुछ चुने हुए व्यक्ति प्रकरण-अध्ययनों के पीछे का आध्यात्मिक शास्त्र प्रस्तुत करेंगे। इस शोध को बताने का कारण समाज को सूचित करना है कि इस प्रकार की अद्भुत घटनाएं होती हैं । इससे आपके अथवा आपके परिवार द्वारा अनुभव की गईं अद्भुत घटनाओं से संबंधित प्रश्नों का उत्तर भी मिलेगा।
उच्चतम स्तर की अनिष्ट शक्तियों (मांत्रिकों) के आक्रमण निर्जीव वस्तुओं के साथ-साथ सजीव वस्तुओं पर भी हुए है। हम ऐसे आक्रमणों पर किया आध्यात्मिक शोध भी प्रस्तुत करेंगे।
अनिष्ट शक्तियों के इन आक्रमणों की कुछ मुख्य विशेषताएं इस प्रकार हैं :
- आपने देखा होगा कि यहां दिखाए गए अधिकतर आक्रमण परम पूज्य भक्तराज महाराज व उनके शिष्य परम पूज्य डॉ. आठवलेजी के छायाचित्रों पर है । ऐसा इसलिए है क्योंकि वे समष्टि साधना से संबद्ध संत हैं। ये व्यष्टि साधना से संबद्ध अन्य संप्रदायों के संतों से भिन्न हैं । इसलिए प.पू भक्तराज महाराज व परम पूज्य डॉ. आठवलेजी पर अधिकतम आक्रमण होते हैं । उच्चतम स्तर की अनिष्ट शक्तियों (मांत्रिकों) के आक्रमण को सहन करने का सामर्थ्य भी केवल उच्च स्तर के संतों जैसे प.पू भक्तराज महाराज एवं परम पूज्य डॉ. आठवलेजी में है । एक अन्य कारण यह भी है कि पांचवे और छठे पाताल के मांत्रिक सामान्य व्यक्तियों अथवा समष्टि साधना से संबंध न रखनेवाले संतों पर आक्रमण कर अपनी शक्ति व्यर्थ नहीं करते । समष्टि साधना से संबद्ध संत अन्य संतों से भिन्न है; क्योंकि वे प्रत्येक व्यक्ति की साधना संप्रदाय में फंसे बिना करवा लेते है। वे शारीरिक और मानसिक स्तर पर जैसे दान, सामाजिक कार्य इत्यादि के लिए ईश्वर के साधनों को व्यर्थ न कर पूर्णतया आध्यात्मिक स्तर पर सहायता करते है। ऐसा इसलिए है क्योंकि वे इस बात को समझते हैं कि हमारे जीवन में आनेवाली लगभग प्रत्येक समस्या का मूल कारण आध्यात्मिक आयाम में है।
- और यदि एक छायाचित्र पर आक्रमण होता है तो इससे न केवल वह चित्र प्रभावित होता है अपितु इस प्रकार के सभी चित्र जो अन्य साधकों के घर पर रखे हैं, वे भी प्रभावित होते है । अत: साधकों को मिलनेवाले चैतन्य की मात्रा घट जाती है ।
- जब मांत्रिक प.पू भक्तराज महाराजजी एवं परम पूज्य डॉ. आठवलेजी के किसी विशेष चित्र पर आक्रमण करते है तो उसका उद्देश्य उस चित्र से निकलने वाले चैतन्य को नष्ट करना होता है। इस प्रकार मांत्रिक उन चित्रों से जिज्ञासुओं व समाज कोप्राप्त होनेवाले चैतन्य को घटाने में सफल होते हैं । परिणामस्वरुप मांत्रिक चैतन्य को आगे बढने से रोकने का प्रयास करते हैं।
- जब मांत्रिक किसी छायचित्र पर आक्रमण करते हैं, तो यह आक्रमण केवल उस छायाचित्र पर न होता, यह उस व्यक्ति पर आक्रमण होता है जिसका वह चित्र है । उदाहरण के लिए यदि आक्रमण परम पूज्य डॉ. आठवलेजी के चित्र पर है, तो इसका प्रभाव प्रत्यक्ष उनपर भी होता है । अध्यात्म के इस सिद्धांत के अनुसार शब्द, स्पर्श, रूप, रस, गंध एवं इससे संबंधित शक्ति एक साथ रहते है । इस सिद्धांत का उपयोग नकारात्मक दिशा में भी होता है जहां किसी व्यक्ति के छायाचित्र का प्रयोग काला जादू करने के लिए किया जाता है। एक सामान्य व्यक्ति पर अनिष्ट शक्ति का ऐसा आक्रमण (जैसा संतों के छायाचित्र पर किया गया) बडी सरलता से उसकी मृत्यु का कारण बन सकता है ।
- मांत्रिक साधकों की साधना में बाधा लाने के लिए उनपर आक्रमण करते हैं । इसके विपरीत एक सामान्य व्यक्ति पर अनिष्ट शक्ति का आक्रमण अधिकतर उसे भयभीत करने अथवा पुराना लेनदेन समाप्त करने के लिए होता है। कुछ प्रकरणों में यह उनपर किसी परिचित व्यक्ति द्वारा करवाए गए काले जादू के कारण भी हो सकता है ।