इसे अच्छी प्रकार समझने हेतु, यह लेख पढने से पूर्व कृपया हमारा इलैक्ट्रोसोमैटोग्राफिक स्कैनिंग तकनीक द्वारा आध्यात्मिक शोध की प्रस्तावना यह लेख पढें ।
विषय सूची
- १. प्रस्तावना
- २. प्रयोग के कुछ विवरण
- ३. निरीक्षण
- ३.१ जलती मोमबत्ती को दस मिनट तक पकडने पर कुंडलिनी चक्रों की सक्रियता पर हुआ प्रभाव
- ३.२ घी के प्रज्वलित दीपक को दस मिनट तक पकडने पर कुंडलिनी चक्रों की सक्रियता पर हुआ प्रभाव
- ३.३ जलती मोमबत्ती को दस मिनट तक पकडने पर कुंडलिनी चक्रों की सक्रियता पर हुए प्रभाव की कालावधि
- ३.४ घी के प्रज्वलित दीपक को दस मिनट तक पकडने पर कुंडलिनी चक्रों की सक्रियता पर हुए प्रभाव की कालावधि
- ४. सूक्ष्म-ज्ञान विभाग का निष्कर्ष
- ४.१ जलती मोमबत्ती को पकडने पर साधकों के ऊपरी चार चक्रों की सक्रियता में हुर्इ वृद्धि का अध्यात्मशास्त्र
- ४.२ जलती मोमबत्ती से साधकों के शरीर में तमोगुण के संचयन के कारण चक्रों की सक्रियता में कमी होना
- ४.३ घी के प्रज्वलित दीपक से अनिष्ट शक्ति के कष्ट से मुक्त साधकों के शरीर में सत्त्वगुण ग्रहण किए जाने के कारण ऊपरी चार चक्रों की सक्रियता में वृद्धि होना
- ४.४. जो साधक अनिष्ट शक्तियों के कष्ट से पीडित नहीं है तथा आध्यात्मिक स्तर ६० प्रतिशत से अधिक है, उनके ऊपरी चार चक्रों का, घी के प्रज्वलित दीपक के कारण ग्रहण होनेवाली सात्त्विकता से, निर्गुण की ओर अग्रसर होना
- ४.५ घी के दीपक से प्रक्षेपित सत्व गुण से संपर्क होने के कारण, अनिष्ट शक्तियों की पीडा से ग्रस्त साधकों के ऊपरी चार चक्रों में विद्यमान काली शक्ति का आवरण का घट जाना, जिसके परिणामस्वरूप इन चक्रों की सक्रियता में वृद्धि होना
- ४.६ जो साधक अनिष्ट शक्तियों की पीडा से ग्रस्त नहीं हैं एवं जो कर्मयोग से साधना करते हैं, उनके द्वारा घी के जलते दीपक को पकड कर रखने से उनके तीन निचले चक्रों की सक्रियता बढने का आधारभूत शास्त्र
- ४.७. व्यक्ति को किस प्रकार की अनिष्ट शक्तियों का कष्ट है, उसका किस विशिष्ट चक्र पर सकारात्मक गुण का प्रभाव होता है, यह निर्भर होना
- ४.८ जो साधक अनिष्ट शक्तियों के कष्ट से पीडित हैं, उनमें जलती मोमबत्ती पकडने से होनेवाले प्रभाव की कालावधि प्रज्वलित घी के दीपक को पकडने से होनेवाले प्रभाव की कालावधि से अधिक होने का अध्यात्म शास्त्र
- ४.९ जिन साधकों को अनिष्ट शक्तियों का कष्ट है, उन पर सात्त्विक एवं राजसिक घटकों के प्रभाव की कालावधि कष्ट की मात्रा के अनुपात में होना
- ४.१० साधकों को अनिष्ट शक्तियों से होनेवाले कष्ट की मात्रा पर तामसिक घटकों के प्रभाव की कालावधि निर्भर होना
- ४.११ जिन साधकों को अनिष्ट शक्तियों का कष्ट नहीं है, उन पर जलती हुई मोमबत्ती के होनेवाले प्रभाव की कालावधि इस पर निर्भर है कि उनका आध्यात्मिक स्तर ६०प्रतिशत से अधिक है अथवा नहीं
- ४.१२ सात्त्विक घटकों का चक्रों पर होनेवाला प्रभाव साधकों को होनेवाले अनिष्ट शक्तियों के कष्ट की तीव्रता पर निर्भर होना
- ४.१३ जिन साधकोंको अनिष्ट शक्तियों का कष्ट नहीं है एवं जिनका आध्यात्मिक स्तर ६०प्रतिशत से अधिक है उन पर प्रज्वलित घी के दीपक का होनेवाला प्रभाव उनके साधना मार्ग पर निर्भर होता है ।
- ४.१४ जिन साधकों में सकारात्मक स्पंदन हैं, जिनका आध्यात्मिक स्तर ६० प्रतिशत से अधिक है एवं जिन्हें आध्यात्मिक कष्ट नहीं है उनके द्वारा प्रज्वलित घी का दीपक पकडने का प्रभाव, जलती हुई मोमबत्ती की अपेक्षा, अधिक कालावधि तक होता है, उसका आधारभूत अध्यात्म शास्त्र
- ५. निष्कर्ष
- ६. सारांश
१. प्रस्तावना
मोमबत्ती का प्रयोग सहस्रों वर्षों से हो रहा है । १८ वीं शताब्दी में मोमबत्ती मुख्यतः चर्बी से बनार्इ जाती थी और इसका व्यापक रूप से प्रयोग यात्रियों को अंधेरे में सहायता के लिए, घर तथा पूजास्थलों को रात्रि में प्रकाशित करने के लिए किया जाता था । इन दिनों मोमबत्ती मुख्यतः पॅराफीन से बनार्इ जाती है तथा यह विभिन्न आकृति, आकार तथा सुगंधों में मिलने लगी है । यद्यपि मोमबत्तियां अब प्रकाश का बडा स्रोत नहीं है, फिर भी रात्रि में जब बिजली चली जाती है, इनवर्टर की अनुपस्थिति तथा अन्य विकल्पों के अभाव में इसका प्रयोग व्यापक स्तर पर हो रहा है । मोमबत्ती जलाकर किया जानेवाला विरोध जलूस भी विश्वभर में प्रचलित है । विश्व के अनेक देशों में मोमबत्ती उत्सव, प्रेम, समारोह को परिभाषित करता तथा सजावट इत्यादि का प्रतीक बन गया है । इसके अतिरिक्त कब्र तथा मृत लोगों को श्रद्धांजलि देने के लिए अधिकाधिक मोमबत्ती का प्रयोग होता है । मोमबत्ती का अन्य प्रचलित प्रयोग उसे पूजाघर में जलाना भी हो गया है । विश्व के कुछ भागों में घी का दीपक जलाया जाता है, यद्यपि इसके प्रयोग मे तीव्र गति से गिरावट आ रही है ।
यद्यपि मोमबत्ती के अनेक उपयोग हैं, क्या हम इस बात से परिचित हैं कि मोमबत्ती जलाने से आध्यात्मिक स्तर पर क्या होता है ? आधुनिक यंत्रों की सहायता से, एक जलती मोमबत्ती तथा प्रज्वलित घी के दीपक का आध्यात्मिक स्तर पर होने वाला प्रभाव सुनिश्चित करने के लिए हमने इलैक्ट्रोसोमैटोग्राफिक तकनीक द्वारा विश्व भर से दस साधकों पर एक तुलनात्मक अध्ययन किया, जिनमें पांच अनिष्ट शक्ति के कष्ट से पीडित थे तथा शेष पांच अनिष्ट शक्ति के कष्ट से मुक्त थे । हमने अध्ययन हेतु डीडीएफएओ यंत्र का प्रयोग किया ।
२. प्रयोग के कुछ विवरण
२.१ प्रयोग की कालावधि
३१ दिसंबर २००८ से २७ जनवरी २००९
२.२ प्रयोज्यों (सब्जेक्ट) का आयुवर्ग
२१ से ५६ वर्ष
२.३ कार्यप्रणाली
कार्यप्रणाली की विस्तृत जानकारी के लिए हमारा इलैक्ट्रोसोमैटोग्राफिक स्कैनिंग तकनीक के प्रयोग से आध्यात्मिक शोध की प्रस्तावना यह लेख पढें ।
सहभागी होनेवाले प्रत्येक साधक का मूलभूत पाठ्यांक (बेसलार्इन रीडिंग) लेने के उपरांत, हमने प्रत्येक साधक को दस मिनट के लिए एक-एक जलती मोमबत्ती हाथ में पकडने के लिए कहा । उद्दीपक अर्थात मोमबत्ती के संपर्क में रहने के दस मिनट के उपरांत पहली स्कैनिंग की गर्इ । इस पाठ्यांक का नामकरण अ १ किया गया । उसके उपरांत, मूलभूत पाठ्यांक तक पहुंचने तक १-४ घंटों के अंतराल में पाठ्यांक लिए गए और तब प्रयोग का वह भाग समाप्त हुआ ।
नया मूलभूत पाठ्यांक (बेसलार्इन रीडिंग) लेने के पश्चात, सभी साधकों को प्रज्वलित घी का दीपक हाथ में पकडने को कहा गया और प्रयोज्य के अपने मूलभूत अवस्था में पहुंचने तक ऊपरोक्त प्रक्रिया दोहराई गर्इ ।
३. निरीक्षण
जलती मोमबत्ती तथा प्रज्वलित घी के दीपक को दस मिनट तक पकडकर रखने के प्रभाव |
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साधकों के नाम |
ऊपरी चार चक्रों की सक्रियता पर हुआ प्रभाव |
निचले तीन चक्रों की सक्रियता पर हुआ प्रभाव |
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जलती मोमबत्ती पकडने पर |
घी के प्रज्वलित दीपक को पकडने पर |
जलती मोमबत्ती को पकडने पर |
घी के प्रज्वलित दीपक को पकडने पर |
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अनिष्ट शक्तियों के कष्ट से मुक्त |
श्री. पीएच. |
बढा |
घटा |
घटा |
बढा |
श्री.आर एस. |
बढा |
बढा |
घटा |
घटा |
|
श्री. वी डी. |
बढा |
बढा |
घटा |
घटा |
|
कु. एल वी. |
बढा |
घटा |
घटा |
घटा |
|
श्री. ए डी. |
घटा |
घटा |
बढा |
घटा |
|
कुल |
बढा |
४ |
२ |
१ |
१ |
घटा |
१ |
३ |
४ |
४ |
|
अनिष्ट शक्तियों के कष्ट से पीडित |
कु.बी एस. |
घटा |
बढा |
घटा |
घटा |
कु.वी एम. |
घटा |
बढा |
बढा |
बढा |
|
कु. एस जे. |
बढा |
बढा |
बढा |
घटा |
|
कु. ए पी. |
बढा |
बढा |
बढा |
घटा |
|
कु.वाय वी. |
बढा |
घटा |
बढा |
बढा |
|
कुल |
बढा |
३ |
४ |
४ |
२ |
घटा |
२ |
१ |
१ |
३ |
जलती मोमबत्ती तथा घी के प्रज्वलित दीपक को दस मिनट तक पकडकर रखने पर हुए प्रभाव की कालावधि |
|||
---|---|---|---|
साधकों के नाम |
जलते मोमबत्ती को पकडने पर |
प्रज्वलित घी के दीपक को पकडने पर |
|
अनिष्ट शक्तियों के कष्ट से मुक्त |
श्री. पीएच. |
३ घंटे १६ मिनट |
७७ घंटे ५६ मिनट |
श्री. आर एस. |
४ घंटे ३० मिनट |
३१ घंटे ५६ मिनट |
|
श्री. वी डी. |
७८ घंटे ३४ मिनट |
४४ घंटे १६ मिनट |
|
कु. एल वी. |
३ घंटे ५५ मिनट |
१६ घंटे ४५ मिनट |
|
श्री. ए डी. |
११ घंटे ३१ मिनट |
३ घंटे ९ मिनट |
|
अनिष्ट शक्तियों के कष्ट से पीडित |
कु. बी एस. |
२२ घंटे २१ मिनट |
३ घंटे ४५ मिनट |
कु. वी एम. |
३ घंटे ३६ मिनट |
१३० घंटे २५ मिनट |
|
कु. एस जे. |
३१ घंटे १५ मिनट |
२२ घंटे ३४ मिनट |
|
कु. ए पी. |
२४ घंटे १५ मिनट |
२३ घंटे ४ मिनट |
|
कु. वाय वी |
१५६ घंटे ४५ मिनट |
९५ घंटे १५ मिनट |
जलती मोमबत्ती तथा घी के प्रज्वलित दीपक को दस मिनट तक पकडकर रखने पर हुए प्रभाव की अधिकत्तम तथा न्यूनत्तम कालावधि | |||
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साधक का प्रकार | कालावधि | जलती मोमबत्ती | घी का प्रज्वलित दीपक |
अनिष्ट शक्तियों के कष्ट से मुक्त | न्यूनत्तम कालावधि | ३ घंटे १६ मिनट | ३ घंटे ९ मिनट |
अधिकत्तम कालावधि | ७८ घंटे ३४ मिनट | ७७ घंटे ५६ मिनट | |
अनिष्ट शक्तियों के कष्ट से पीडित | न्यूनत्तम कालावधि | ३ घंटे ३६ मिनट | ३ घंटे ४५ मिनट |
अधिकत्तम कालावधि | १५६ घंटे ४५ मिनट | १३० घंटे २५ मिनट |
हमारे निरीक्षणों का सारांश आगे दिया गया है :
३.१ जलती मोमबत्ती को दस मिनट तक पकडने पर कुंडलिनी चक्रों की सक्रियता पर हुआ प्रभाव
३.१.१ ऊपरी चार चक्रों की सक्रियता पर हुआ प्रभाव
- अनिष्ट शक्ति के कष्ट से मुक्त ८० प्रतिशत साधकों की सक्रियता ने वृद्धि दर्शायी ।• अनिष्ट शक्ति के कष्ट से मुक्त ८० प्रतिशत साधकों की सक्रियता ने वृद्धि दर्शायी ।
- अनिष्ट शक्ति के कष्ट से मुक्त ८० प्रतिशत साधकों की सक्रियता ने वृद्धि दर्शायी ।
३.१.२ निचले तीन चक्रों की सक्रियता पर हुआ प्रभाव
- अनिष्ट शक्ति के कष्ट से मुक्त २० प्रतिशत साधकों की सक्रियता ने वृद्धि दर्शायी ।
- अनिष्ट शक्ति के कष्ट से पीडित ८० प्रतिशत साधकों की सक्रियता ने वृद्धि दर्शायी ।
३.२ घी के प्रज्वलित दीपक को दस मिनट तक पकडने पर कुंडलिनी चक्रों की सक्रियता पर हुआ प्रभाव
३.२.१ ऊपरी चार चक्रों की सक्रियता पर हुआ प्रभाव
- अनिष्ट शक्ति के कष्ट से मुक्त ४० प्रतिशत साधकों की सक्रियता ने वृद्धि दर्शायी ।
- अनिष्ट शक्ति के कष्ट से पीडित ८० प्रतिशत साधकों की सक्रियता ने वृद्धि दर्शायी ।
३.२.२ निचले तीन चक्रों की सक्रियता पर हुआ प्रभाव
- अनिष्ट शक्ति के कष्ट से मुक्त २० प्रतिशत साधकों की सक्रियता ने वृद्धि दर्शायी ।
- अनिष्ट शक्ति के कष्ट से पीडित ४० प्रतिशत साधकों की सक्रियता ने वृद्धि दर्शायी ।
३.३ जलती मोमबत्ती को दस मिनट तक पकडने पर कुंडलिनी चक्रों की सक्रियता पर हुए प्रभाव की कालावधि
३.३.१ न्यूनतम कालावधि
- अनिष्ट शक्ति के कष्ट से मुक्त साधकों को ३ घंटे १६ मिनट लगे ।
- अनिष्ट शक्ति के कष्ट से पीडित साधकों को ३ घंटे ३६ मिनट लगे ।
३.३.२ अधिकतम कालावधि
- अनिष्ट शक्ति के कष्ट से मुक्त साधकों को ७८ घंटे ३४ मिनट लगे ।
- अनिष्ट शक्ति के कष्ट से पीडित साधकों को १५६ घंटे ४५ मिनट लगे ।
३.४ घी के प्रज्वलित दीपक को दस मिनट तक पकडने पर कुंडलिनी चक्रों की सक्रियता पर हुए प्रभाव की कालावधि
३.४.१ न्यूनतम कालावधि
- अनिष्ट शक्ति के कष्ट से मुक्त साधकों को ३ घंटे ९ मिनट लगे ।
- अनिष्ट शक्ति के कष्ट से पीडित साधकों को ३ घंटे ४५ मिनट लगे ।
३.३.२ अधिकतम कालावधि
- अनिष्ट शक्ति के कष्ट से मुक्त साधकों को ७७ घंटे ५६ मिनट लगे ।
- अनिष्ट शक्ति के कष्ट से पीडित साधकों कों १३० घंटे २५ मिनट लगे ।
४. सूक्ष्म-ज्ञान विभाग का निष्कर्ष
प्रयोग से प्राप्त सारिणियां तथा ऊपरोक्त निरीक्षण हमने सूक्ष्म-परीक्षण करने की क्षमता से युक्त SSRF के सूक्ष्म-ज्ञान विभाग के साधकों को दिखाए । हमने उनसे कुछ निरिक्षणों से संबंधित प्रश्न पूछे और आध्यात्मिक स्तर पर वास्तव में क्या हो रहा था, यह समझने में भी हमने उनसे सहायता मांगी । उनके निष्कर्ष से हमें निरिक्षणों के मूल कारणों के प्रति स्पष्ट दृष्टि मिली तथा परिणाम को निश्चित करनेवाले विविध घटकों के बारे में भी हमें ज्ञात हुआ । हमारे प्रश्न और उनके उत्तर आगे दिए गए हैं ।
४.१ जलती मोमबत्ती को पकडने पर साधकों के ऊपरी चार चक्रों की सक्रियता में हुर्इ वृद्धि का अध्यात्मशास्त्र
प्रश्न : जलती मोमबत्ती को दस मिनट तक पकडने पर, डीडीएफएओ के पाठ्यांकों ने अनिष्ट शक्ति के कष्ट से मुक्त ८० प्रतिशत साधकों तथा अनिष्ट शक्ति के कष्ट से पीडित ६० प्रतिशत साधकों के कुंडलिनी के ऊपरी चार चक्रों की सक्रियता में वृद्धि क्यों दर्शायी ?
सूक्ष्म-ज्ञान विभाग : एक जलती मोमबत्ती तमप्रधान अर्थात तामसिक स्पंदनों को प्रक्षेपित करती है । जब एक मोमबत्ती जलार्इ जाती है, तब आध्यात्मिक आयाम में क्या होता है, यह नीचे दिए गए सूक्ष्म-ज्ञान पर आधारित चित्र में दर्शाया गया है । यह पूजनीया (श्रीमती) योया वालेजी को प्राप्त हुए सूक्ष्म-ज्ञान पर आधारित है ।
ऊपर दिखाया गया सूक्ष्म-ज्ञान पर आधारित चित्र दर्शाता है कि जलती मोमबत्ती तामसिक होती है ।
- अनिष्ट शक्ति के कष्ट से मुक्त साधकों द्वारा जलती मोमबत्ती को पकडने पर उनके ऊपरी चार चक्रों की सक्रियता में हुर्इ वृद्धि का प्रभाव तथा आधारभूत शास्त्र : जलती मोमबत्ती को १० मिनट पकडने पर अनिष्ट शक्ति के कष्ट से मुक्त साधकों के ऊपरी चक्र, जलती मोमबत्ती से प्रक्षेपित होनेवाले कष्टदायक स्पंदनों से लडने के लिए सक्रिय हुए । इन कष्टदायक स्पंदनों को मात देने के लिए ये चक्र सक्रिय हुए, इसलिए ऊपरी चार कुंडलिनी चक्रों से संबंधित डीडीएफएओ पाठ्यांकों ने सक्रियता में वृद्धि दर्शायी ।
- अनिष्ट शक्ति के कष्ट से पीडित साधकों द्वारा जलती मोमबत्ती को पकडने पर उनके ऊपरी चार चक्रों की सक्रियता में हुर्इ वृद्धि का प्रभाव तथा आधारभूत शास्त्र : जलती मोमबत्ती को १० मिनट पकडने पर अनिष्ट शक्ति के कष्ट से पीडित साधकों के ऊपरी चार कुंडलिनी चक्रों से संबंधित डीडीएफओ पाठ्यांकों ने भी सक्रियता में वृद्धि दर्शायी । तथापि कारण पूर्णत: विपरीत हैं । इन साधकों के ऊपरी चार चक्रों की सक्रियता में वृद्धि इसलिए हुर्इ क्योंकि उनके ऊपरी चार चक्रों में पाताल के उच्च स्तरीय सूक्ष्म-मांत्रिकों द्वारा निर्मित काली शक्ति के केंद्र जलती मोमबत्ती से प्रक्षेपित होनेवाले तमोगुण को अवशोषित करने के लिए सक्रिय हुए ।
४.२ जलती मोमबत्ती से साधकों के शरीर में तमोगुण के संचयन के कारण चक्रों की सक्रियता में कमी होना
प्रश्न : प्रयोग में भाग लेनेवाले दस साधकों में से, तीन साधकों के ऊपरी चार कुंडलिनी चक्रों से संबंधित डीडीएफएओ पाठ्यांकों ने सक्रियता में कमी दर्शायी ।
अनिष्ट शक्तियों के कष्ट से मुक्त ८० प्रतिशत साधकों के निचले तीन कुंडलिनी चक्रों से संबंधित डीडीएफएओ पाठ्यांकों ने सक्रियता में कमी दर्शायी । इन निरिक्षणों के पीछे का अध्यात्मशास्त्र क्या है ?
सूक्ष्म-ज्ञान विभाग : चैतन्य ग्रहण करने की दृष्टि से, मोमबत्ती से प्रक्षेपित तमोगुण का संपर्क होने पर शरीर निष्क्रिय हो जाता है ।
जलती मोमबत्ती से प्रक्षेपित तमोगुण को इन साधकों के शरीर ने ग्रहण किया । परिणामस्वरूप उनके शरीर में तमोगुण एकत्रित हो गया । इसलिए इन साधकों के चक्र निष्क्रिय हो गए ।
४.३ घी के प्रज्वलित दीपक से अनिष्ट शक्ति के कष्ट से मुक्त साधकों के शरीर में सत्त्वगुण ग्रहण किए जाने के कारण ऊपरी चार चक्रों की सक्रियता में वृद्धि होना
प्रश्न : दस मिनटों तक घी का प्रज्वलित दीपक पकडने पर अनिष्ट शक्तियों के कष्ट से मुक्त ८० प्रतिशत साधकों के ऊपरी चार कुंडलिनी चक्रों से संबंधित डीडीएफएओ पाठ्यांकों ने सक्रियता में वृद्धि क्यों दर्शायी ?
सूक्ष्म-ज्ञान विभाग : पूज्य (श्रीमती) योया वालेजी को प्राप्त सूक्ष्म-ज्ञान पर आधारित नीचे दिया गया चित्र, दर्शाता है कि जब घी के दीपक को प्रज्वलित किया गया, तब आध्यात्मिक आयाम में क्या हुआ ।
निचले तीन चक्रों की तुलना में ऊपरी चार चक्र सत्त्वगुण के प्रति अधिक संवेदनशील होते हैं । इसलिए, वे सत्त्वगुण को त्वरित ग्रहण कर शरीर में संरक्षित कर लेते हैं । चूंकि साधक को अनिष्ट शक्ति का कोर्इ कष्ट नहीं था, इसलिए ग्रहण करने की प्रक्रिया में कोर्इ भी बाधा नहीं थी । फलस्वरूप सत्त्वगुण का शीघ्र एकत्रित होने के कारण चक्र सक्रिय हो गए ।
४.४. जो साधक अनिष्ट शक्तियों के कष्ट से पीडित नहीं है तथा आध्यात्मिक स्तर ६० प्रतिशत से अधिक है, उनके ऊपरी चार चक्रों का, घी के प्रज्वलित दीपक के कारण ग्रहण होनेवाली सात्त्विकता से, निर्गुण की ओर अग्रसर होना
प्रश्न : घी के प्रज्वलित दीपक को दस मिनट तक पकडने के उपरांत, श्री. पीएच एवं श्री. एडी, जो अनिष्ट शक्तियों के कष्ट से पीडित नहीं है तथा इनका आध्यात्मिक स्तर ६० प्रतिशत से अधिक है, इनके ऊपरी चार चक्रों के डीडीएफएओ पाठयांक ने ऐसे संकेत क्यों दर्शाए कि उनकी सक्रियता न्यून हुई है ?
सूक्ष्म-ज्ञान विभाग: चूंकि श्री. पीएच. एवं श्री. एडी. के अनिष्ट शक्ति के कष्ट से पीडित न होने के कारण घी के दीपक से प्रक्षेपित सत्व गुण को ग्रहण करने में कोई गतिरोध नहीं था । इसलिए उन्होंने सत्त्व गुण शीघ्रता से ग्रहण कर उसे शरीर में संचित भी कर लिया । सत्व गुण के शीघ्र संचयन होने के कारण उनके ऊपरी चार चक्र अधिक मात्रा में सक्रिय हो गए । यदि किसी भी वस्तु में सत्व गुण में नाटकीय दर से बढता है, तो वह उस वस्तु के परे चला जाता है । इसका अर्थ है कि वह सगुण से निर्गुण की ओर चला जाता है । यही इन साधकों के साथ हुआ, जिसके कारण डीडीएफएओ उपकरण ने निर्गुण स्थिति को चक्रों की निष्क्रियता के रूप में दर्शाया ।
४.५ घी के दीपक से प्रक्षेपित सत्व गुण से संपर्क होने के कारण, अनिष्ट शक्तियों की पीडा से ग्रस्त साधकों के ऊपरी चार चक्रों में विद्यमान काली शक्ति का आवरण का घट जाना, जिसके परिणामस्वरूप इन चक्रों की सक्रियता में वृद्धि होना
प्रश्न : घी के प्रज्वलित दीपक को दस मिनट तक पकडने के उपरांत, जो साधक अनिष्ट शक्तियों के कष्ट से पीडित हैं, उनके ऊपरी चार चक्रों के डीडीएफएओ पाठयांक ने उनकी सक्रियता में वृद्धि क्यों दर्शाया ?
सूक्ष्म ज्ञान विभाग : अनिष्ट शक्तियों के कष्ट से पीडित साधकों पर निरंतर होनवाले अनिष्ट शक्तियों के आक्रमणों के कारण एवं अनिष्ट शक्तियोंद्वारा काली शक्तियों के केंद्र निर्माण किए जाने के कारण ऊपरी चार चक्रों में अधिक मात्रा में काली शक्ति संचयित हुई थी । इस कारण वे चक्र निष्क्रिय हो गए अर्थात कार्य करने की उनकी क्षमता न्यून हो गई । घी के प्रज्वलित दीपक से प्रक्षेपित सत्व गुण के संपर्क होने के कारण रज- तम प्रधान काली शक्ति का आवरण नष्ट हो गया । इसके फलस्वरूप, ऊपरी चार चक्र कार्यरत हुए अर्थात वे सक्रिय हो गए ।
४.६ जो साधक अनिष्ट शक्तियों की पीडा से ग्रस्त नहीं हैं एवं जो कर्मयोग से साधना करते हैं, उनके द्वारा घी के जलते दीपक को पकड कर रखने से उनके तीन निचले चक्रों की सक्रियता बढने का आधारभूत शास्त्र
प्रश्न : अनिष्ट शक्तियों के कष्ट से मुक्त पांच साधकों के सामने घी का जलता दीपक रखने के उपरांत, श्री. पीएच के निचले तीन कुंडलिनी चक्रों के डीडीएफएओ पाठयांक ऐसे क्यों आए, जिससे यह संकेत मिला कि वे सक्रिय हो गए हैं ?
सूक्ष्म ज्ञान विभाग : प्रत्येक व्यक्ति अपनी मूल प्रकृति के अनुसार साधना करता है । अत:, विशिष्ट साधनामार्ग की पद्धति के अनुसार विशिष्ट चक्र की सक्रियता अनुरूप लाभदायक अर्थात उसके कार्य के लिए अनुकूल होती है । जब कर्मयोग के अनुसार साधना करनेवाले साधक सत्त्व प्रधान अर्थात सात्त्विक गुण क संपर्क में आते हैं, तब शारीरिक क्रिया से संबंधित उनके निचले तीन कुंडलिनी चक्र सक्रिय होते हैं । श्री. पीएच कर्मयोग के अनुसार साधना करनेवाले साधक हैं । इसलिए, घी का दीपक सम्मुख रखने के उपरांत उनके निचले तीन चक्र सक्रिय हो गए ।
४.७. व्यक्ति को किस प्रकार की अनिष्ट शक्तियों का कष्ट है, उसका किस विशिष्ट चक्र पर सकारात्मक गुण का प्रभाव होता है, यह निर्भर होना
प्रश्न : अनिष्ट शक्तियों का कष्ट होनेवाले साधकों के प्रज्वलित घी का दीपक पकडकर १० मिनट तक रखने के उपरांत, उनमें से ४० प्रतिशत साधकों के निचले तीन कुंडलिनी चक्रों के डीडीएफएओ पाठ्यांक ऐसे क्यों आए, जिससे यह संकेत मिला कि वे सक्रिय हो गए हैं ?
सूक्ष्म ज्ञान विभाग : व्यक्ति किस प्रकार की अनिष्ट शक्ति से आविष्ट है, उसके अनुसार चक्रों पर सकारात्मक एवं नकारात्मक कैसा प्रभाव होगा यह निर्भर होता है । श्रीमती वी एम. एवं श्रीमती वाय वी. के निचले तीन चक्र उस समय कनिष्ठ स्तरीय सूक्ष्म मांत्रिकों से प्रभावित थे ।(उच्च स्तरीय सूक्ष्म मांत्रिक ऊपरी चक्रों को प्रभावित करते हैं) । इसलिए, प्रज्वलित घी के दीपक की सात्त्विकता का उनके निचले तीन चक्रों पर प्रभाव हुआ, जिसके कारण वे सक्रिय हो गए ।
४.८ जो साधक अनिष्ट शक्तियों के कष्ट से पीडित हैं, उनमें जलती मोमबत्ती पकडने से होनेवाले प्रभाव की कालावधि प्रज्वलित घी के दीपक को पकडने से होनेवाले प्रभाव की कालावधि से अधिक होने का अध्यात्म शास्त्र
प्रश्न : जो साधक अनिष्ट शक्तियों के कष्ट से पीडित हैं, उनके जलती मोमबत्ती को पकडने से होनेवाले प्रभाव की कालावधि १५६ घंटे ४५ मिनट थी, परंतु प्रज्वलित घी के दीपक को पकडने के प्रभाव की कालावधि १३० घंटे २५ मिनट था । इस अंतर का अध्यात्मशास्त्रीय आधार क्या है ?
सूक्ष्म ज्ञान विभाग :
- जो साधक अनिष्ट शक्तियों के कष्ट से पीडित हैं, उनमें कष्टदायक स्पंदनों को सर्वाधिक प्रतिसाद देनेवाले काली शक्ति के केंद्र पहले से होते हैं; तामसिक मोमबत्ती का प्रभाव सात्त्विक प्रज्वलित दीपक से अधिक होना : जिन साधकों को अनिष्ट शक्तियों का कष्ट है, उनमें अनिष्ट शक्तियां काली शक्ति के केंद्र का निर्माण करती हैं । ये केंद्र उनके आसपास के कष्टदायक स्पंदनों को शीघ्र एवं सर्वाधिक प्रतिसाद देते हैं । वातावरण के रज-तमात्मक घटकों के प्रति उनका शरीर अनुकूल होता है । इसलिए, रज- तम प्रधान घटकों का प्रभाव किसी भी सात्त्विक घटकों के प्रभाव से अधिक काल तक होता है । इसीलिए मोमबत्ती पकडने से होनेवाले प्रभाव की कालावधि प्रज्वलित घी के दीपक के प्रभाव की कालावधि से अधिक थी ।
- प्रज्वलित घी के दीपक से निकलनेवाले सात्त्विक स्पंदन शरीर में विद्यमान अनिष्ट शक्तियों के विनाश के लिए प्रयोग में लाए जाना; इसलिए घी के दीपक का प्रभाव मोमबत्ती के प्रभाव से कम होना : जिन साधकों को अनिष्ट शक्तियों का कष्ट है, उनके शरीर में सत्व गुण सूक्ष्म युद्ध के समान प्रभाव डालता है । इसलिए यद्यपि शरीर सात्विक घटकों से अधिक सकारात्मक ऊर्जा प्राप्त करता है, उसका प्रयोग कष्टदायक केंद्रों को नष्ट करने के लिए होता है । इसलिए सात्त्विक घटकों का प्रभाव तामसिक घटकों के समान नहीं होता है; अल्प होता है । इसलिए, उनके निचले तीन चक्रों पर प्रभाव हुआ, जिसके कारण वे सक्रिय हो गए ।
४.९ जिन साधकों को अनिष्ट शक्तियों का कष्ट है, उन पर सात्त्विक एवं राजसिक घटकों के प्रभाव की कालावधि कष्ट की मात्रा के अनुपात में होना
प्रश्न : एक साधिका, श्रीमती वी एम., जिन्हें अनिष्ट शक्तियों का कष्ट है, के सामने प्रज्वलित घी के दीपक से होनेवाले प्रभाव की कालावधि १३० घंटे २५ मिनट थी, परंतु मोमबत्ती पकडने से होनेवाले प्रभाव की कालावधि मात्र ३ घंटे ३६ मिनट थी । मोमबत्ती की अपेक्षा प्रज्वलित घी के दीपक से होनेवाले प्रभाव की कालावधि के अधिक होने का आधारभूत कारण क्या है ?
सूक्ष्म ज्ञान विभाग :
- सामान्य नियम – प्रज्वलित घी का दीपक सात्त्विक होता है, इसलिए उसका प्रभाव तामसिक जलती हुई मोमबत्ती से अधिक काल के लिए होता है: जलता हुआ दीपक जलती हुई मोमबत्ती से अधिक सात्त्विक है । सत्व गुण के प्रभाव की गहराई एवं कालावधि की मात्रा जलती हुई मोमबत्ती से अधिक होती है । इसका कारण यह है कि तमो गुणमें सहज ही विघटन की प्रवृत्ति होती है एवं उसमें सत्व गुणकी अपेक्षा अधिक निष्क्रियता होती है । इसलिए उसका प्रभाव कम कालावधि तक होता है । सत्व गुण में तमो गुण की अपेक्षा सात कुंडलिनी चक्रों को अधिक प्रभावित करने की एवं वह प्रभाव अधिक कालावधि तक रखने की क्षमता होती है ।
- सात्त्विक घटक का प्रभाव भाव पर निर्भर होना : सात्विक वस्तु पकडते समय हमारा भाव जितना अधिक होगा, उतनी अधिक मात्रा में हमारे शरीर में सात्त्विकता का संचय होता है । इसलिए भाव महत्वपूर्ण है ।
- जलती हुई मोमबत्ती से निकले कष्टदायक स्पंदनों का प्रयोग अनिष्ट शक्तिद्वारा उस वातावरण में उपस्थित सभी पर आक्रमण करने के लिए किया जाता है, इसलिए साधक पर उसका प्रभाव अल्प कालावधि के लिए होता है : जलती हुई मोमबत्ती (हाथ में) पकडने पर उसके तामसिक स्पंदनों का श्रीमती वी एम. की अपेक्षा निकटतम वातावरण में अधिक प्रभाव हुआ । यह इसलिए है क्योंकि मांत्रिकों ने उस वातावरण में उपस्थित सभी पर आक्रमण करने के लिए जलती हुई मोमबत्ती का प्रयोग किया । इसलिए साधक पर उसका प्रभाव अल्प हुआ ।
- आविष्ट करनेवाली अनिष्ट शक्ति यदि शक्तिशाली हो तो उसका शरीर पर होनेवाला प्रभाव अधिक होना : यदि साधक को आविष्ट करनेवाली अनिष्ट शक्ति शक्तिशाली हो तो वह अनिष्ट शक्ति जलती हुई मोमबत्ती से निकलनेवाले कष्टदायक स्पंदन ग्रहण कर लेती है, जिससे साधक के शरीर में विद्यमान काली शक्ति के केंद्र शक्तिशाली हो जाते हैं । उस स्थिति में जलती हुई मोमबत्ती का प्रभाव साधक की कुंडलिनी चक्रों पर अधिक कालावधि तक रहता है ।
४.१० साधकों को अनिष्ट शक्तियों से होनेवाले कष्ट की मात्रा पर तामसिक घटकों के प्रभाव की कालावधि निर्भर होना
- प्रश्न : जिन दो साधकों को अनिष्ट शक्तियों का कष्ट है, उन पर जलती हुई मोमबत्ती पकडने पर होनेवाले प्रभाव की कालावधि में जो व्यापक अंतर आया, उसका आधारभूत अध्यात्मशास्त्रीय कारण क्या है ? जब श्रीमती वी एम. ने जलती हुई मोमबत्ती पकडी तब उसका प्रभाव ३ घंटे ३६ मिनट तक था, परंतु श्रीमती वाय वी.. ने जब जलती हुई मोमबत्ती पकडी तब उसका प्रभाव १५६ घंटे ४५ मिनट तक था ।
सूक्ष्म ज्ञान विभाग :
- श्रीमती वी एम. को अनिष्ट शक्तियों का सौम्य (थोडा) कष्ट है । इसलिए जलती हुई मोमबत्ती पकडने पर उससे प्रक्षेपित तमो गुण को उन्होंने अल्प मात्रा में ग्रहण किया । उनमें विद्यमान सत्व गुण ने उस तमोगुण का नाश कर दिया । इसलिए जलती हुई मोमबत्ती पकडने का प्रभाव मात्र ३ घंटे ३६ मिनट तक रहा ।
- इसके विपरित श्रीमती वाय वी. को अनिष्ट शक्तियों का तीव्र कष्ट है । वे शक्तिशाली सूक्ष्म स्तरीय मांत्रिक से आविष्ट हैं । शक्तिशाली मांत्रिक से आविष्ट व्यक्ति के ऊपरी चार चक्रों में वातावरण से निकलनेवाले कष्टदायक स्पंदनों को प्रतिसाद देने की, ग्रहण करने की एवं प्रक्षेपित करने की अधिक क्षमता होती है । इसलिए श्रीमती वाय वी. को आविष्ट करनेवाले शक्तिशाली सूक्ष्म स्तरीय मांत्रिक ने जलती हुई मोमबत्ती से निकले तमोगुण को अधिक मात्रा में आकर्षित कर लिया । इसलिए उसका प्रभाव १५६ घंटे ४५ मिनट की दीर्घ अवधि तक रहा ।
४.११ जिन साधकों को अनिष्ट शक्तियों का कष्ट नहीं है, उन पर जलती हुई मोमबत्ती के होनेवाले प्रभाव की कालावधि इस पर निर्भर है कि उनका आध्यात्मिक स्तर ६०प्रतिशत से अधिक है अथवा नहीं
प्रश्न : जिन्हें अनिष्ट शक्तियों का कष्ट नहीं है, ऐसे दो साधकों को पर जलती हुई मोमबत्ती पकडने पर होनेवाले प्रभाव की कालावधि में जो अंतर होता है, उसका आधारभूत अध्यात्मशास्त्रीय कारण क्या है ? श्रीr पीएच. पर जलती हुई मोमबत्ती का प्रभाव ३ घंटे १६ मिनट तक था, परंतु श्रीr वीडी. पर उसका प्रभाव ७८ घंटे ३४ मिनट था ।
सूक्ष्म ज्ञान विभाग : श्रीr. पीएच. का आध्यात्मिक स्तर ६०प्रतिशत से अधिक है, एवं उनमें सकारात्मक शक्ति से जुडे स्पंदन अधिक मात्रा में हैं । इसलिए जब उन्होंने जलती हुई मोमबत्ती पकडी, तब उन्होंने उससे निकलनेवाले तमोगुण को अल्प मात्रा में ग्रहण किया । इसलिए उन पर ३ घंटे १६ मिनट की अल्प कालावधि तक यह प्रभाव रहा । यद्यपि श्रीr. वीडी. को अनिष्ट शक्तियों का कष्ट नहीं है, उनका आध्यात्मिक स्तर ६०प्रतिशत से कम है । इसीलिए जलती हुई मोमबत्ती से निकलनेवाले तमोगुण को अधिक मात्रा में ग्रहण कर लिया । इसलिए उन पर ७८ घंटे ३४ मिनट की दीर्घ अवधि तक प्रभाव दिखाई दिया ।
४.१२ सात्त्विक घटकों का चक्रों पर होनेवाला प्रभाव साधकों को होनेवाले अनिष्ट शक्तियों के कष्ट की तीव्रता पर निर्भर होना
प्रश्नः श्रीमती वी एम., जिन्हें अनिष्ट शक्तियों का कष्ट है, द्वारा प्रज्वलित घी का दीपक पकडने से होनेवाला प्रभाव १३० घंटे २५ मिनट तक रहा । परंतु, श्रीमती बी एस, जिन्हें भी अनिष्ट शक्तियों का कष्ट है, द्वारा प्रज्वलित घी का दीपक पकडने से होनेवाला प्रभाव मात्र ३ घंटे ४५ मिनट तक ही रहा । श्रीमती बी एस की अपेक्षा, श्रीमती वी एम. पर हुए प्रभाव की कालावधि में जो अंतर होता है, उसका आधारभूत कारण क्या है?
सूक्ष्म ज्ञान विभाग : श्रीमती वी एम. को अनिष्ट शक्तियों का सौम्य (थोडा) कष्ट है । इसलिए प्रज्वलित घी का दीपक पकडने पर उससे ग्रहण किया गया सत्व गुण शनै: शनै: नष्ट हो गया । इसलिए प्रज्वलित घी के दीपक का प्रभाव १३० घंटे २५ मिनट की लंबी अवधि तक रहा ।
इसके विपरीत श्रीमती बी एस. को अनिष्ट शक्तियों का तीव्र कष्ट है तथा वह शक्तिशाली मांत्रिकसे आविष्ट है । शक्तिशाली मांत्रिक ने उनके शरीर में काली शक्ति के केंद्र बनाए हैं, जो कष्टदायक स्पंदनों को शीघ्रता से एवं सर्वाधिक मात्रा में प्रतिसाद देते हैं । उनका शरीर किसी बाह्य सात्त्विक घटक का कार्य होने देनेके लिए पोषक नहीं होता है । वस्तुत:, किसी सात्त्विक घटक का उनके शरीर पर युद्ध जैसा प्रभाव पडता है । इसलिए उनके शरीर ने सात्त्विक स्पंदन आकर्षित कर भी लिए तो भी वे शरीर में स्थित काले केंद्रों को नष्ट करने के लिए प्रयोग में लाए जाते हैं । इसीलिए उनका प्रभाव अल्प अवधि तक रहता है ।
४.१३ जिन साधकोंको अनिष्ट शक्तियों का कष्ट नहीं है एवं जिनका आध्यात्मिक स्तर ६०प्रतिशत से अधिक है उन पर प्रज्वलित घी के दीपक का होनेवाला प्रभाव उनके साधना मार्ग पर निर्भर होता है ।
प्रश्नः एक साधक श्री. एडी., जिन्हें अनिष्ट शक्तियों का कष्ट नहीं है एवं जिनका आध्यात्मिक स्तर ६० प्रतिशत से अधिक है, उन पर प्रज्वलित घी का दीपक के पकडने से होनेवाला प्रभाव ३ घंटे ९ मिनट तक रहा । परंतु, श्री. पीr एच. जिन्हें अनिष्ट शक्तियोंका कष्ट नहीं है एवं जिनका आध्यात्मिक स्तर ६०प्रतिशत से अधिक है, ने जब प्रज्वलित घी का दीपक पकडा, तब होनेवाला प्रभाव ७७ घंटे ५६ मिनट तक रहा । श्रीr. एडी. की अपेक्षा, श्री. पीएच. पर प्रज्वलित घी के दीपक का प्रभाव लंबी कालावधि तक रहा, इसका आधारभूत कारण क्या है ?
सूक्ष्म ज्ञान विभाग : जिन साधकों का आध्यात्मिक स्तर ६० प्रतिशत से अधिक है, उनके ऊपरी चार चक्रों में सत्व गुण को प्रतिसाद देने की एवं उसका घनीकरण करने की अच्छी क्षमता होती है । इसीलिए जैसे ही श्री. एडी. के ऊपरी चार चक्रों में सत्व गुण संचित हुए, वैसे ही उन्होंने अपना सगुण रूप छोडकर निर्गुण की ओर जाना प्रारंभ किया । जब सकारात्मक उर्जा होनेवाले साधकों में सत्व गुण बढने लगता है, तब सत्व गुण की ओर प्रतिसाद देने की उनकी क्षमता बढ जाती है । जिन साधकों का आध्यात्मिक स्तर ६०प्रतिशत से अधिक है, उनकी सुषुम्ना नाडी कार्यरत हो जाती है । कार्यरत सुषुम्ना नाडी के कारण सभी चक्र निर्गुण अर्थात निष्क्रिय स्थिति में चले जाते हैं । इसीलिए श्री. एडी. के प्रज्वलित घी के दीपक को पकडने का सातों कुंडलिनी चक्रों पर प्रभाव मात्र ३ घंटे ९ मिनट तक रहा ।
अपनी आध्यात्मिक यात्रा में, कुछ व्यक्ति निर्गुण से सगुण की ओर जाते हैं, तो कुछ सगुण से निर्गुण की ओर । श्री. पीएच. का आध्यात्मिक स्तर ६०प्रतिशत से अधिक है, तथा उनमें सकारात्मक उर्जा से जुडे स्पंदनों की मात्रा अधिक है । चूंकि वे कर्मयोग से साधना करते हैं, उनकी आध्यात्मिक रचना के अनुसार उनके निचले तीन चक्र सत्व गुण के लिए संवेदनशील रहते हैं । इसीलिए जब उन्होंने प्रज्वलित घी का दीपक पकडा था तब उनके निचले तीन चक्रों ने सत्व गुण आकर्षित कर उसे संचित कर लिया । इसलिए वे सगुण स्थिति के परे चले गए तथा उन्होंने निष्क्रियता की ओर प्रवृत्ति दिखाई । तदुपरांत, इस संचयित सत्व गुण ने ऊपरी चार चक्रों में विद्यमान चैतन्य को जागृत करने की दिशा में अपनी यात्रा आरंभ की । इसके फलस्वरूप, कुछ समय के उपरांत ऊपरी चार चक्रों ने भी अपनी सगुण स्थिति त्याग कर वे भी निष्क्रिय हो गए, जो कि निर्गुण स्थिति दर्शाती है । चूंकि इस प्रक्रिया को अधिक समय लगा, श्री. पी एच. द्वारा प्रज्वलित घी का दीपक पकडने पर होनेवाला प्रभाव ७७ घंटे ५६ मिनट तक की लंबी अवधि तक रहा ।
४.१४ जिन साधकों में सकारात्मक स्पंदन हैं, जिनका आध्यात्मिक स्तर ६० प्रतिशत से अधिक है एवं जिन्हें आध्यात्मिक कष्ट नहीं है उनके द्वारा प्रज्वलित घी का दीपक पकडने का प्रभाव, जलती हुई मोमबत्ती की अपेक्षा, अधिक कालावधि तक होता है, उसका आधारभूत अध्यात्म शास्त्र
प्रश्न : एक साधक श्री. पीएच, जिनमें सकारात्मक स्पंदन हैं, जिनका आध्यात्मिक स्तर ६०प्रतिशत से अधिक है एवं जिन्हें अनिष्ट शक्तियों का कष्ट नहीं है, उन पर जलता हुआ घी का दीपक पकडने पर होनेवाला प्रभाव १३० घंटे २५ मिनट तक रहा । परंतु, जब उन्होंने जब जलती हुई मोमबत्ती को पकडा तब उसका प्रभाव मात्र ३ घंटे ३६ मिनट तक रहा । जलता हुआ घी का दीपक पकडने पर होनेवाला प्रभाव, जलती हुई मोमबत्ती की अपेक्षा, लंबे कालावधितक रहता है, उसका आधारभूत कारण क्या है ?
सूक्ष्म ज्ञान विभाग : चूंकि श्री. पीएच. का आध्यात्मिक स्तर ६०प्रतिशत से अधिक है एवं उनके शरीर में सकारात्मक स्पंदन हैं, वे जलते हुए घी के दीपक से निकलनेवाले सात्त्विक स्पंदन अधिक मात्रा में ग्रहण कर पाए । इसीलिए प्रज्वलित घी का दीपक पकडने पर होनेवाला प्रभाव ७७ घंटे ५६ मिनट तक की लंबी अवधि तक रहा । जलती हुई मोमबत्ती हाथ में पकडने के उपरांत उसमें से निकलने वाले तामसिक स्पंदनों को कुछ मात्रा में ही ग्रहण किया गया तथा वे भी उनके शरीर की सात्त्विकता के कारण नष्ट हो गए । अत:, सात चक्रों पर होनेवाला प्रभाव भी ३ घंटे १६ मिनटों के अल्प कालावधि तक रहा ।
५. निष्कर्ष
५.१ जलती हुई मोमबत्ती से निकलनेवाले तमोगुणके हानिकारक प्रभाव
- जिन साधकों को आध्यात्मिक कष्ट नहीं है, वे जब जलती हुई मोमबत्ती पकडते हैं तब वे मोमबत्ती से निकलने वाले तामसिक स्पंदनों के संपर्कमें आते हैं । इसके कारण, तमोगुण उनके शरीर में एकत्रित होता है, जिसके फलस्वरूप उनके ऊपरी तथा निचले चक्रों की कार्यशीलता न्यून हो जाती है ।
- अनिष्ट शक्तियों के कष्ट से पीडित व्यक्ति में विद्यमान काली शक्ति के केंद्र जलती हुई मोमबत्ती से निकलनेवाले कष्टदायक स्पंदनों को शीघ्रता से एवं सर्वाधिक प्रतिसाद देते हैं । इसलिए जलती मोमबत्ती का प्रभाव प्रज्वलित घी के दीपक की अपेक्षा अधिक कालावधि तक रहता है । इसके विपरीत, जलते हुए घी के दीपक से निकलनेवाले सात्त्विक स्पंदन शरीर में विद्यमान कष्टदायक केंद्रों को नष्ट करने के लिए प्रयोग में लाए जाते हैं । इसलिए उसका प्रभाव अल्प कालावधितक रहता है ।
- प्रज्वलित घी के दीपक के प्रभाव की कालावधि अनिष्ट शक्ति के कष्ट की तीव्रता के अनुसार होता है : जिस व्यक्ति को अनिष्ट शक्तियों का सौम्य कष्ट है, उस पर जलती हुई मोमबत्ती का प्रभाव कम कालावधि तक होता है । यह इसलिए क्योंकि जलती हुई मोमबत्ती से प्रक्षेपित तम गुण अल्प मात्रा में ग्रहण किया जाता है । जो व्यक्ति शक्तिशाली सूक्ष्म स्तरीय मांत्रिक से आविष्ट है, वह अधिक मात्रा में तमोगुण ग्रहण करता है । इसलिए उसका प्रभाव अधिक कालतक रहता है ।
५.२ प्रज्वलित घी के दीपक से सात्विकता का लाभ
- जिन्हें आध्यात्मिक कष्ट नहीं हैं, ऐसे साधक जब प्रज्वलित घी का दीपक पकडते हैं, तब सात्विक स्पंदनों के संपर्क में आने के कारण सत्व गुण उनके शरीर में संचयित होता है । इसके फलस्वरूप, उनके ऊपरी चार चक्रों की गतिविधि घट जाती है । कर्मयोग से साधना करनेवालों के निचले तीन चक्रों की गतिविधि भी घट जाती है ।
- जिन साधकों का आध्यात्मिक स्तर ६०प्रतिशत से अधिक है एवं जिन्हें अनिष्ट शक्तियों का कष्ट नहीं है, उनके शरीर में, प्रज्वलित घी के दीपक से प्रक्षेपित होनेवाले सात्त्विक स्पंदनों के संपर्क में आने के कारण, सत्व गुण बढता है । इसके फलस्वरूप ऊपरी चार चक्र अपनी सगुण स्थिति त्याग देते हैं तथा निर्गुण स्थिति की ओर अग्रसर होते हैं । इसीलिए उनकी गतिविधि कम हो जाती है ।
- सात्त्विक स्पंदन प्रक्षेपित करनेवाले जलते घी के दीपक के संपर्क में आने के कारण अनिष्ट शक्तियों के कष्ट से पीडित साधकों के ऊपरी चार चक्रों पर आया काला आवरण कम होने लगता है । जिन्हें आध्यात्मिक कष्ट हैं, ऐसे साधक जब प्रज्वलित घी का दीपक हाथ में लेते हैं, तब सात्विक स्पंदनोंके संपर्क में आने के कारण, ऊपरी चार चक्रों पर काली शक्ति के कारण आया काला आवरण कम होने लगता है । अत:, उन चार चक्रों की गतिविधि बढ जाती है । ऐसे साधक यदि कनिष्ठ स्तरीय अनिष्ट शक्तियों से आविष्ट हो तो उनके निचले तीन चक्रों की गतिविधि भी बढ जाती है ।
- जिन्हें अनिष्ट शक्तियों का सौम्य स्तर का कष्ट है, ऐसे साधक जब प्रज्वलित घी का दीपक पकडते हैं, तब इससे ग्रहण होनेवाला सत्व गुण धीरे-धीरे घटता है । अत:, उसका प्रभाव दीर्घ अवधितक रहता है । जिन्हें अनिष्ट शक्तियों का तीव्र कष्ट है, उन्हें प्राप्त सत्व गुण उनके शरीर में विद्यमान कष्टदायक काली शक्ति के केंद्रों को नष्ट करने के लिए प्रयुक्त होता है । इसलिए उसका प्रभाव कम कालावधि तक रहता है ।
- जो साधक अपनी आध्यात्मिक यात्रा में निर्गुण से सगुण की ओर जा रहे होते हैं, ऐसे साधक जब प्रज्वलित घी का दीपक पकडते हैं तब उसका उनके सातों कुंडलिनी चक्रों पर प्रभाव अल्प कालावधि के लिए होता है । जिनकी आध्यात्मिक यात्रा सगुण से निर्गुण की ओर हो रही हो, ऐसे साधकों में यह प्रभाव दीर्घ कालावधि तक होता है ।
६. सारांश
६.१ मोमबत्ती का न्यूनतम प्रयोग
- इस प्रयोग में हमने जलती हुई मोमबत्ती के संपर्क में आने के कारण होनेवाले हानिकारक प्रभाव देखे । वर्तमान में, मोमबत्ती का उपयोग अत्यधिक मात्रा में हो रहा है । अब ये प्रभाव ज्ञात होने के कारण हमें उसका उपयोग न्यूनतम मात्रा में करना चाहिए ।
६.२ मोमबत्ती का हानिकारक प्रभाव सीमित रखने के उपाय
जब मोमबत्ती का प्रयोग करना अपरिहार्य हो, तब हम उसके हानिकारक प्रभाव कम करने के लिए प्रयास कर सकते हैं । जलती हुई मोमबत्ती के आसपास हम नामजप का सुरक्षा कवच तैयार कर सकते हैं । जलती हुई मोमबत्ती के दुष्प्रभाव से हमारी रक्षा कीजिए, ऐसी भावपूर्ण प्रार्थना भी हम भगवान से कर सकते हैं ।
६.३ यथा संभव घी के दीपक का उपयोग करने का प्रयास करें
इस प्रयोग ने जलते हुए घी के दीपक के लाभ हमें दिखाए । वर्तमान में, घी के दीपक के उपयोग करने की प्रथा शीघ्रता से न्यून हो रही है । मोमबत्ती की तुलना में प्रयोग में लाने में आनेवाली थोडीसी कठिनाई तथा घी के दीपक से होनेवाले अत्यधिक लाभ ज्ञात न होना, यह एक इसका प्रमुख कारण है । अब इसका महत्व समझ में आने के कारण हमें उसका यथा संभव उपयोग करने का प्रयास करना चाहिए ।
६.४ भगवान की प्रतिमा के सामने घी का दीपक जलाने का महत्व
पूजाघर, भगवान की मूर्ति के समक्ष दीपक जलाने का मुख्य आध्यात्मिक उद्देश्य होता है, मूर्ति से प्रक्षेपित सात्विकता ग्रहण करना । जब हम मोमबत्ती जलाते हैं, तब हम सात्विकता ग्रहण नहीं कर पाते तथा साथ ही साथ हम अपने वातावरण में तामसिक स्पंदन फैलाते हैं । इसके विपरीत जब हम घी का दीपक जलाते हैं, तब हम सात्विकता ग्रहण करने हेतु सर्वाधिक सक्षम होते हैं । ये सब सूत्र ध्यान में रखते हुए हमें यथासंभव भगवान की मूर्ति के समक्ष दीपक जलाने का प्रयास करना चाहिए ।