केक काटने की अपेक्षा आरती उतारकर जन्मदिन मनाना – आध्यात्मिक परिप्रेक्ष्य

प्रमुख अन्वेषक : डॉ. नंदिनी सामंत, एम.बी.बी.एस., डी.पी.एम.

इस लेख को ठीक से समझने के लिए प्रथम हमारे इलैक्ट्रोसोमैटोग्राफिक स्कैनिंग तकनीक के प्रयोग से किया गया आध्यात्मिक शोध का परिचय लेख को पढें I

१. प्रस्तावना

जन्मदिन मनाने की कई पद्धतियां हैं । उनमें से अधिकतर हमें शारीरिक तथा मानसिक स्तर पर सुख प्रदान करती हैं । परंतु क्या हम अपने जन्मदिन मनाने से आध्यात्मिक स्तर पर भी लाभ प्राप्त कर सकते हैं ?

इस प्रयोग में, हमने जिस व्यक्ति का जन्मदिन मनाया जा रहा था उस व्यक्ति के कुंडलिनी चक्रों पर हुए प्रभाव का तुलनात्मक अध्ययन किया । जिन दो पद्धतियों का प्रयोग किया गया था उसमें से एक थी जिस व्यक्ति का जन्मदिन मनाया जा रहा था उसकी आरती उतारकर तथा दूसरी पद्धति थी केक काटकर ।

कुंडलिनी चक्र सूक्ष्म ऊर्जा केंद्र होते हैं । वे स्थूल देह के विभिन्न अंगों तथा मन और बुद्धि को कार्य करने के लिए आवश्यक सूक्ष्म ऊर्जा प्रदान करते हैं I

२. प्रयोग का संक्षिप्त विवरण

२.१ प्रयोग की अवधि

१९ फरवरी २००९ से २८ फरवरी २००९

२.२ प्रयोज्य (व्यक्ति) की आयु

१४ वर्ष

२.३ कार्यप्रणाली

कार्यप्रणाली के विवरण के लिए हमारा संदर्भ लेख इलैक्ट्रोसोमैटोग्राफिक स्कैनिंग तकनीक के प्रयोग से किया गया आध्यात्मिक शोध का परिचय देखें I

सिद्धार्थ पुरोहित एस.एस.आर.एफ. का एक बाल साधक है, उसे अनिष्ट शक्ति का कष्ट नहीं है । तिथि के अनुसार अर्थात हिन्दू पंचांग के अनुसार उसका जन्मदिन वर्ष २००९ में १९ फरवरी को था । इस दिन, डी.डी.एफ.ओ. उपकरण के प्रयोग से उसके कुंडलिनी चक्रों के मूलभूत पाठ्यांक (बेसलार्इन रीडिंग) प्रविष्ट करने के पश्चात, एक साधिका ने उसकी आरती उतारी ।

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उसके कुंडलिनी चक्रों पर आरती उतारने के हुए प्रभाव को मापने के लिए, हमने डी.डी.एफ.ओ. उपकरण के प्रयोग से उनकी स्कैनिंग की तथा १-४ घंटे के अंतराल पर तब तक पाठ्यांक (रीडिंग) लिए जब तक पाठ्यांक २१ फरवरी के मूलभूत पाठ्यांक तक नहीं पहुंच गया । तत्पश्चात प्रयोग के इस भाग का निष्कर्ष निकाला गया ।

२४ फरवरी को, जिस दिन रोमन कैलेंडर के अनुसार उसका जन्मदिन था, नई मूलाधार गणना (रीडिंग) लेने के पश्चात, हमने उससे केक काटने के लिए कहा तथा उपर्युक्त प्रक्रिया को पुनः उसकी मूलाधार (बेसलाइन) अवस्था के पहुंचने तक दोहराया गया, जो कि २८ फरवरी को पहुंची I

३. अवलोकन

ऊपर के चार चक्रों की गतिविधि

नीचे के तीन चक्रों की गतिविधि

जन्मदिन मनाने के प्रभाव की अवधि

प्रयोग

सहस्रार

आज्ञा चक्र

विशुद्ध

अनाहत

मणिपुरr

स्वाधिष्ठानthan

मूलाधार

आरती उतारकर जन्मदिन मानना

घट गर्इ

घट गर्इ

घट गर्इ

घट गर्इ

बढी

बढी

बढी

५० घंटे ३४ मिनट

केक काटकर जन्मदिन मनाना

घट गर्इ

घट गर्इ

घट गर्इ

घट गर्इ

घट गर्इ

बढी

बढी

९५ घंटे ७ मिनट

हमारे अवलोकनों का सारांश निम्नलिखित है ।

३.१ सिद्धार्थ के समक्ष आरती उतारकर जन्मदिन मनाने से उसके कुंडलिनी चक्रों की गतिविधि पर हुए प्रभाव

३.१.१ ऊपर के चार चक्रों की गतिविधि पर हुए प्रभाव

ऊपर के चार चक्रों की गतिविधि घट गर्इ ।

३.१.२ नीचे के तीन चक्रों की गतिविधि पर हुए प्रभाव

नीचे के तीन चक्रों की गतिविधि में वृद्धि हुई ।

३.२ सिद्धार्थ के केक काटकर जन्मदिन मनाने से उसके कुंडलिनी चक्रों की गतिविधि पर हुए प्रभाव

३.२.१ ऊपर के चार चक्रों की गतिविधि पर हुए प्रभाव

ऊपर के चार चक्रों की गतिविधि घट गई I

३.२.२ नीचे के तीन चक्रों की गतिविधि पर हुए प्रभाव

नीचे के तीन चक्रों में से दो की गतिविधि में वृद्धि हुर्इ ।

३.३ आरती उतारकर सिद्धार्थ का जन्मदिन मनाने से उसके कुंडलिनी चक्रों की गतिविधि पर हुए प्रभाव की अवधि

५० घंटे, ३४ मिनट

३.४ सिद्धार्थ के केक काटकर जन्मदिन मनाने से उसके कुंडलिनी चक्रों की गतिविधि पर हुए प्रभाव की अवधि

९५ घंटे, ७ मिनट

४. सूक्ष्म-ज्ञान विभागद्वारा प्राप्त विवरण

हमने SSRF के सूक्ष्म-ज्ञान विभाग के साधकों को जिनमें सूक्ष्म-विश्लेषण करने की क्षमता है, उन्हें सारणियां तथा उपर्युक्त अवलोकन दिखाए ।

हमने उनसे कुछ अवलोकनों के संदर्भ में प्रश्न किए तथा सूक्ष्म स्तर पर वास्तव में जो कुछ हुआ उसे समझने के लिए उनकी सहायता ली । उनके विवरण ने हमें अवलोकनों के मूल कारणों को, तथा परिणाम निश्चित करनेवाले विभिन्न परिवर्तनों को समझने की अंतर्दृष्टि प्रदान की । हमारे प्रश्न और उनके उत्तर निम्नलिखित थे :

४.१ आरती उतारकर सिद्धार्थ का जन्मदिन मनाने के पश्चात, उसके ऊपर के चार कुंडलिनी चक्रों के अनुरूप डीडीएफओ पाठ्यांक (रीडिंग) ने गतिविधि में कमी दर्शायी क्योंकि चक्र निर्गुण अवस्था में चले गए थे I

प्रश्न : हिन्दू पंचांग के अनुसार सिद्धार्थ के जन्मदिन पर उसकी प्रज्वलित दीप से आरती उतारने के पश्चात, उसके ऊपर के चार चक्रों के अनुरूप डीडीएफओ पाठ्यांकों (रीडिंग) ने गतिविधि में कमी क्यों दर्शायी ?

सूक्ष्म-ज्ञान विभाग : आरती उतारने के कृत्य से प्रक्षेपित होनेवाले सात्त्विक (सत्व प्रधान) स्पंदनों के संपर्क में आने से सिद्धार्थ के शरीर में पंचप्राण शक्तियां सक्रिय हुईं तथा उसके शरीर में चेतना (चैतन्य का वह स्वरूप जो मन तथा बुद्धि के कार्य को संचालित करता है) के कार्य में सुधार हुआ I फलस्वरूप, उनके पूरे शरीर में सत्वगुण शीघ्रता से फैलने लगा ।

सिद्धार्थ के, सकारात्मक स्पंदनों के साथ एक साधक होने के कारण, सत्वगुण आत्मसात करने की प्रक्रिया में उसे कोई भी अडचन नहीं हुर्इ, उनमें सत्व गुण त्वरित ही बढ गया था । इसी कारण उनके ऊपर के चार चक्र सत्व गुण से भर गए तथा निर्गुण अवस्था में चले गए । ये अवस्था अति जागृत चक्रों की सगुण अवस्था से भी परे और श्रेष्ठ है । तथापि, डीडीएफओ उपकरण के इस निर्गुण अवस्था की समझ मर्यादित होने के कारण, इसमें पाठ्यांकों को गतिविधि में कमी होने के रूप में दर्शाया गया था ।

४.२ आरती उतारने से उत्पन्न चैतन्य के लाभ से नीचे के तीनों चक्रों पर से काला आवरण दूर हो जाता है जिससे उनकी गतिविधि में वृद्धि हो जाती है ।

प्रश्न : आरती उतारकर सिद्धार्थ का जन्मदिन मनाने के पश्चात सिद्धार्थ के नीचे के तीनों कुंडलिनी चक्रों के अनुरूप डीडीएफओ पाठ्यांक ने गतिविधि में वृद्धि को क्यों दर्शाया ?

सूक्ष्म-ज्ञान विभाग : नीचे के तीन चक्र शारीरिक गतिविधियों के लिए सूक्ष्म ऊर्जा प्रदान करते हैं । सिद्धार्थ ने अपनी आरती उतारे जाने से चैतन्य ग्रहण किया । फलस्वरूप, उनके नीचे के तीनों चक्रों पर आए काले आवरण में कमी हुर्इ । इस कारण से, इन चक्रों की गतिविधि में वृद्धि हुई ।

४.३ केक काटने पर शरीर में तमोगुण का एकत्रीकरण होने से ऊपर के चारों कुंडलिनी चक्रों की गतिविधि में कमी आ गई

प्रश्न : रोमन कैलेंडर के अनुसार केक काटकर सिद्धार्थ द्वारा अपना जन्मदिन मनाने के पश्चात, उसके ऊपर के चारों कुंडलिनी चक्रों के अनुरूप डीडीएफओ पाठ्यांकों (रीडिंग) ने गतिविधि में कमी को क्यों दर्शाया ?

सूक्ष्म-ज्ञान विभाग : केक काटने का कृत्य कई कारणों से तामसिक होता है । केक बनाते समय अंडे का प्रयोग, केक पर जलार्इ गर्इ मोमबत्ती को फूंक मारना तथा चाकू से केक काटना ये सभी तामसिक क्रियाएं है । केक काटने के कृत्य से तमोगुण से संपर्क में आने पर सिद्धार्थ के शरीर में तमोगुण का एकत्रीकरण हो जाता है जिससे उसके ऊपर के चारों चक्रों की गतिविधि घट जाती है । इस प्रकार की तामसिक कृत्यों के निरंतर संपर्क में रहने से व्यक्ति में तमोगुण का निर्माण होता है और उसका स्वभाव सदा के लिए दुष्प्रभावित हो जाता है ।

४.४ केक काटना साधकों में काल के कारण व्याप्त काले आवरण के कार्य के लिए पूरक होता है, जिससे इसका प्रभाव आरती उतारने की अपेक्षा अधिक समय तक रहता है ।

प्रश्न : आरती उतार कर जन्मदिन मनाने से सिद्धार्थ के कुंडलिनी चक्रों पर प्रभाव की अवधि ५० घंटे और ३४ मिनट क्यों थी; जबकि केक काटकर जन्मदिन मनाने से यह ९५ घंटे और ७ मिनट थी ?

सूक्ष्म-ज्ञान विभाग : वर्तमान काल में, वातावरण के आध्यात्मिक रूप (रज-तम) से दूषित होने के कारण, साधकों पर पहले से ही वातावरण से होनेवाले कष्टदायक स्पंदनों का आवरण होता है । तम-प्रधान कृतियां जैसे केक काटना साधकों में व्याप्त काले आवरण के कार्य के लिए पूरक होती है । इस कारण आरती उतारने की अपेक्षा केक काटने का प्रभाव अधिक समय तक रहता है ।

४.५ सिद्धार्थ का मणिपुर चक्र स्वाभाविक रूप से निर्बल होने से, केक काटने पर उसका स्वाधिष्ठान चक्र मूलाधार चक्र की तुलना में अधिक निष्क्रिय हो रहा था I

प्रश्न : केक काटने पर सिद्धार्थ के मणिपूर चक्र की गतिविधि क्यों घटी; जबकि स्वाधिष्ठान तथा मूलाधार चक्र की गतिविधि बढी ?

सूक्ष्म-ज्ञान विभाग : किसी भी तम-प्रधान कृत्य से लगभग सभी कुंडलिनी चक्रों पर काले आवरण का निर्माण होता है । प्रत्येक व्यक्ति के स्वभाव के अनुसार उसके विशिष्ट चक्र विशिष्ट स्पंदनों को ग्रहण अथवा प्रक्षेपण प्रधानता से करते हैं । जो चक्र विशिष्ट स्पंदनों को आत्मसात अथवा प्रक्षेपण करने में स्वाभाविक रूप से निर्बल होते हैं वे तम-प्रधान कृत्य के समक्ष उजागर होने पर और अधिक निष्क्रिय हो जाते हैं । सिद्धार्थ की स्थिति में, चूंकि उसका मणिपुर चक्र निर्बल था, वह अधिक निष्क्रिय बन गया, अर्थात इस चक्र पर व्याप्त काला आवरण और बढ गया I

स्वाधिष्ठान तथा मूलाधार चक्र की गतिविधि में सुधार हुआ क्योंकि उनकी गतिविधि तम-प्रधान प्रक्रिया से लडने के लिए बढ गई I

४.६ जब आरती उतारी गर्इ तो आज्ञा चक्र के निर्गुण अवस्था में जाने के कारण उसमें कमी आ रही थी तथा जब केक काटा गया तो काला आवरण निर्माण होने के कारण उसमें कमी आ रही थी

प्रश्न : जब सिद्धार्थ का जन्मदिन आरती उतारकर तथा केक काटकर मनाया, तो उसके ऊपर के चारों चक्रों की गतिविधि में कमी आई । तथापि, उसके आज्ञा चक्र की गतिविधि में सर्वाधिक कमी आर्इ । इसका क्या कारण है ?

सूक्ष्म-ज्ञान विभाग : सिद्धार्थ के आज्ञा चक्र में कष्टदायक स्पंदन विद्यमान थे I

जब आरती उतारी गर्इ : सिद्धार्थ के आज्ञा चक्र में व्याप्त कष्टदायक स्पंदनों ने आरती उतारने से उत्पन्न हुए चैतन्य के प्रवेश होने की प्रक्रिया को रोकने का प्रयास किया । इस बाधा पर नियंत्रण पाने के लिए, यह चक्र निर्गुण अवस्था में चला गया । यह डीडीएफओ उपकरण द्वारा गतिविधि में कमी होने के रूप में दर्शाया गया था I

जब केक काटा गया : केक काटना एक तामसिक कृत्य होने के कारण, वातावरण रज-तम से दूषित हो गया था । इसके फलस्वरूप, वातावरण से अनिष्ट शक्तियों का आक्रमण बढ गया । अतः, चक्र काली शक्ति से ढंक गया था तथा निष्क्रिय हो गया I

५. निष्कर्ष

५.१ हमारे कर्म हमें प्रभावित करते हैं

हमारे प्रत्येक कर्म हमें तथा हमारे वातावरण को प्रभावित करते हैं । एक तामसिक कर्म हमें तथा हमारे वातावरण को तामसिक बनाता है; जबकि एक सात्त्विक कर्म हमें तथा हमारे वातावरण को सात्त्विक बनाता है । हममें से अधिकतर लोग जब कोर्इ कृत्य अथवा व्यवहार करते हैं, तो यह प्रायः शारीरिक तथा मानसिक स्तर पर होता है, जिसका परिणाम मन पर होता है । उदाहरण के लिए, जन्मदिन मनाने का सामान्य कृत्य, हमें प्रसन्नता तथा हर्ष प्रदान करता है । तथापि, कदाचित ही हम इसके आध्यात्मिक निहितार्थ (पहलू) पर ध्यान देते हैं । जैसा कि आध्यात्मिक शोध ने दर्शाया है, सामान्य प्रतीत होनेवाले कर्मों का हम पर तथा हमारे आस-पास के लोगों पर आध्यात्मिक स्तर पर अत्यधिक प्रभाव हो सकता है ।

५.२ केक काटकर जन्मदिन मनाने के हानिकारक प्रभाव

अधिकतर कृत्य जो आध्यात्मिकता के आधार से रहित होते हैं तथा मात्र सुख प्रदान करते हैं वे तमप्रधान होते हैं । केक काटकर जन्मदिन मनाना तमप्रधान होता है क्योंकि इसमें तमप्रधान कृत्य सम्मिलित होते हैं, जैसे केक पर मोमबत्ती जलाना, उन्हें फूंक मारकर बुझाना, केक को चाकू से काटना इत्यादि इसी कारण से ये वातावरण को तथा वातावरण में रहनेवाले लोगों को हानिकारक रूप से प्रभावित करते हैं । अतः, ऐसे लोगों के कुंडलिनी चक्र निष्क्रिय हो जाते हैं अथवा वे तमोगुण को ग्रहण करने के लिए और अधिक सक्रिय हो जाते हैं । मात्र सत्त्वगुण ही हमारे जीवन को वास्तव में सुखी तथा आनंदमय बनाता है ।

५.३ आरती उतारकर जन्मदिन मनाने से उत्पन्न सात्त्विकता के लाभ

सारणी के दिए प्रमाण के अनुसार, आरती उतारकर अपना जन्मदिन मनाने से हमारे कुंडलिनी चक्रों में से तमोगुण घटता है तथा वे सक्रिय होते हैं ।

५.४ घटना की पूर्ण जानकारी प्राप्त करने में सूक्ष्म-ज्ञान का महत्त्व

सूक्ष्म-ज्ञान समझ पाने में सक्षम होने के कारण ही हम सिद्धार्थ के आज्ञा चक्र की गतिविधि में हुर्इ कमी का उचित कारण जान सके । दोनों ही प्रयोगों में डीडीएफओ उपकरण ने आज्ञा चक्र की गतिविधि में कमी होना दर्शाया, किंतु दोनों के कारण भिन्न थे – आरती उतारते समय उसके आज्ञाचक्र का निर्गुण अवस्था में जाना, तथा केक काटते समय उसका काली शक्ति से भर जाना I इस घटना की पूर्ण जानकारी को प्राप्त करने में सूक्ष्म ज्ञान समझने के महत्त्व को दर्शाता है ।

संदर्भ हेतु देखें लेख – आधुनिक शोध में प्रयुक्त उपकरणों की मर्यादाओं पर टिप्पणी

५.५ दैनिक जीवन में सूक्ष्म-ज्ञान का महत्त्व

हममें से अधिकतर के पास अपने प्रत्येक कृत्य का आशय समझने के लिए सूक्ष्म-ज्ञान विभाग के साधकों की सुविधा नहीं होती जिससे कि वे हमें वह समझा सकें । जब हम अपनी दिन-प्रतिदिन की गतिविधियों को इस धारणा से करते हैं कि हम स्वयं के तथा वातावरण के लिए सर्वोचित पद्धति से कार्य कर रहे हैं । किंतु वास्तव में हम उस समय उन कार्यों को सूक्ष्म स्तर पर अपने हित में नहीं कर रहे होते हैं । SSRF द्वारा सात्त्विक जीवन शैली पर समर्पित खंड हमें इसे आरंभ करने के लिए कुछ मूलभूत दिशानिर्देश प्रदान कर सकता है ।

तथापि यह उत्तम होगा कि हम यह सतर्कता रखें कि प्रत्येक क्षण हम सात्त्विक जीवन जी रहे हैं अथवा नहीं । इस हेतु छठवीं ज्ञानेंद्रिय को विकसित करने के लिए, अपने प्रत्येक कृत्यों के आध्यात्मिक पहलुओं को समझने के लिए तथा उसके अनुसार कृत्य करने के लिए, सबसे उत्तम मार्ग है अध्यात्म के छः मूलभूत सिद्धांतों के अनुसार नियमित, निरंतर साधना करना ।

ऐसा करके, हम मात्र जन्मदिनों में ही नहीं अपितु प्रत्येक दिन अधिकाधिक आध्यात्मिक लाभ प्राप्त करने में दूसरों की तथा स्वयं की सहायता करते हैं ।