पितृपक्ष और श्राद्धविधि

१. मृत पूर्वजोंके लिए वार्षिक विशेष समय कौनसा है ?

अगर आप दिवंगत पूर्वजों (पितृतक्ष) के पखवाड़े के बारे में अधिक जानना चाहते हैं तो कृपया हमारे वीडियो को देखें।

विश्व चक्रीय रूप से कार्य करता है, उदा. विषुव, अयनकाल, ग्रीष्म ऋृतु, शीत ऋृतु आदि । उसी प्रकार आध्यात्मिक विश्व में भी चक्रीय रूप से घटनाएं होती हैं । प्रतिवर्ष शरद ऋृतु (उत्तरी गोलार्ध के) में पितृपक्ष होता है, जिसमें हमारे मृत पूर्वज पृथ्वी के अर्थात भूलोक के समीप आते हैं । वर्ष २०२३  में पितृपक्ष २९ सितंबर से १४ अक्टूबर तक है ।

साधना के अभाव में अधिकतर पूर्वज मृत्योत्तर जीवन में अटक जाते हैं तथा आध्यात्मिक उर्जा के अभाव में गतिहीन हो जाते हैं । उनकी सांसारिक इच्छाएं वैसी ही रह जाती हैं, परंतु उनकी पूर्ति के लिए वे स्वयं कुछ नहीं कर पाते, इसलिए वे बेचैन रहते हैं । उपरोक्त कालावधि में, वे अपने वंशजों से संपर्क करने के लिए भूलोक के समीप आते हैं । मृत्योत्तर जीवन में अपने पूर्वजों की सहायता करने के लिए उनके वंशजों के लिए यह एक अद्वितीय अवसर होता है । जैसे कि हम अपने अभिभावकों तथा निकट संबंधियों की उनके जीवनकाल में अपना कर्तव्य मानकर सेवा करते हैं, उसी प्रकार उन की मृत्यु के उपरांत भी उनके प्रति हमारे कुछ कर्तव्य होते हैं ।

उपरोक्त कालावधि में पूर्वजों के करोडों सूक्ष्म-देहों का तथा उनकी अतृप्त वासनाओं के स्पंदनों के सूक्ष्म दबाव से वातावरण भर जाता है । उनकी आध्यात्मिक दुर्बलता एवं अतृप्त वासनाओं का लाभ उठाकर पितरों के सूक्ष्म देहों पर अनिष्ट शक्तियां भी आक्रमण करती हैं । अनिष्ट शक्तियां प्राय: उनकी इच्छाओं की पूर्ति कर उन्हें अपने वश में कर लेती हैं और उन्हें अपना दास बना लेती हैं । चूंकि मृत पूर्वजों के साथ हमारा कर्म बंधन रहता है, इसलिए अनिष्ट शक्तियां हम पर आक्रमण करने के लिए हमारे पूर्वजों का उपयोग कर सकती हैं । इसके फलस्वरूप इस कालावधि में हमारी इच्छाएं एवं व्यसन बढ सकते हैं क्योंकि हमारे मृत पूर्वज तथा अनिष्ट शक्तियां हमारे माध्यम से अपनी वासनाएं पूर्ण करने का प्रयास करती हैं ।

२. हमारे पूर्वजों को हमारी सहायता की आवश्यकता है, यह दर्शानेवाले कुछ स्थूल लक्षण

जब आप के पूर्वज आप के तथा आप के परिवार के सदस्यों तक पहुंचने का प्रयास कर रहे होंगे, इसके कुछ स्थूल लक्षण आगे दिएनुसार हैं :

  • आप के परिवार के कुछ सदस्यों को सतत कष्टों का सामना करना पड रहा हो । (अधिकतर समय मृत पूर्वज अपने परिजनों से संपर्क करने तथा उनसे सहायता मांगने के लिए उनके जीवन में समस्याएं उत्पन्न करते हैं । वे अपने प्रिय पुत्र अथवा उस वंशज को संपर्क करते हैं, जो साधना कर रहा हो; क्योंकि उनसे आध्यात्मिक सहायता मिलने की संभावना अधिक होती है । )
  • आपके सपनों में सांप दिखाई देते हैं ।
  • आपके सपनों में पूर्वज आते हैं ।
  • एक ही कौआ आप के घर के पास बार-बार आता है (कुछ समय के लिए पूर्वजों की सूक्ष्म देह कौए में प्रवेश करती है ।)

यह भी पढें :  मेरे मृत पूर्वज मुझे क्यों कष्ट देना चाहते हैं ?

३. हम अपने पूर्वजों की सहायता कैसे कर सकते हैं ?

SSRF के व्याख्यानों में हमने देखा है कि उपस्थित लोग इस विषय में विशेष रूचि दिखाते हैं कि वे उनके मृत पूर्वजों की आत्माओं के लिए क्या कर सकते हैं तथा मृत्यु के पश्चात पूर्वजों ने उनका जीवन कैसे प्रभावित किया है ।

स्वयं की रक्षा एवं अपने मृत पूर्वजों की सहायता के लिए हम निम्नांकित बातें कर सकते हैं :

३. श्री गुरुदेव दत्त का नामजप करना

आध्यात्मिक सुरक्षा हेतु किए जानेवाले इस नामजप के दो लाभ हैं । हमारे मृत पूर्वजों द्वारा होनेवाले कष्टों से हमारी रक्षा होने हेतु यह सुरक्षा-कवच निर्माण करता है तथा पूर्वजों को गति मिलने के लिए आवश्यक आध्यात्मिक ऊर्जा प्रदान करता है ।

  • सामान्य व्यक्ति (जो नियमित साधना नहीं कर रहा) उनके लिए SSRF का सुझाव है कि है, वे इस पखवाडे में प्रतिदिन न्यूनतम घंटे जप करना चाहिए ।
  • नियमित साधना करनेवाले साधक साधना की तीव्रता ध्यान में रखते हुए उसे १ घंटे तक न्यून कर सकते हैं । उदा. प्रतिदिन अनेक घंटों तक साधना करनेवाले साधक ‘श्री गुरुदेव दत्त’ नामजप केवल १ घंटा करें ।

यहां ध्यान रखनेवाली बात यह है कि ‘श्री गुरुदेव दत्त’ नामजप करने से केवल ५० प्रतिशत आध्यात्मिक लाभ होगा । शेष ५० प्रतिशत लाभ ‘श्राद्ध विधि’ करने से होगा ।

३.२ श्राद्ध विधि करना

आध्यात्मिक दृष्टि से प्रभावशाली श्राद्ध विधि करने से न केवल मृत पूर्वजों की इच्छाओं की पूर्ति होती है, अपितु उनकी आगे की यात्रा हेतु उन्हें ऊर्जा प्राप्त होती है । मृत पूर्वज की एक भी तीव्र अतृप्त इच्छा उसकी आगे की यात्रा बाधित करती है । श्राद्ध से प्राप्त ऊर्जा उस इच्छा की पूर्ति के लिए प्रयोग में लार्इ जाती है । अत: नियमित रूप से श्राद्ध करने पर उनकी वासनाएं शनै: शनै: न्यून होती हैं तथा उन्हें गति मिलने लगती है ।

श्राद्धकर्म का अन्य महत्त्वपूर्ण लाभ यह है कि जिन मृत पूर्वजों के लिए यह विधि की जाती है उनकी मानसिकता में सकारात्मक परिवर्तन लाने में सहायता करता है I ऐसा विशेषकर उन पूर्वजों के संदर्भ में होता है जिनके पुण्य अधिक / आसक्तियां अल्प हों तथा जो आध्यात्मिक रूप से अधिक सकारात्मक हैं I इसका अर्थ है कि जब विधि को भाव के साथ किया जाए तो इससे मृत पूर्वजों की साधना करने की इच्छा में वृद्धि हो सकती है तथा फलस्वरूप उनकी आध्यात्मिक प्रगति होगी I तदनुसार जब पूर्वज भूलोक पर जन्म लेंगे तो उनके मन में साधना का बीज स्थापित रहेगा । फलस्वरूप उन्हें अपनी आध्यात्मिक यात्रा को प्रारंभ करने में सहायता मिलेगी ।

३.२.१ श्राद्धकर्म की सरल विधि

पारंपरिक रूप से श्राद्धकर्म दीर्घ विधि है । इसलिए कुछ लोगों के लिए अनेक घटक जुटाकर श्राद्धकर्म करना कठिन हो सकता है । जो व्यक्ति पूरी विधि नहीं कर सकता, उसके लिए SSRF ने श्राद्धकर्म के कुछ सरल चरण बताएं हैं । पारंपरिक रूप से श्राद्धकर्म घर के सबसे बडे पुरुष सदस्य को करना चाहिए । परंतु यह सरल विधि घर का कोर्इ भी पुरुष अथवा स्त्री सदस्य कर सकता है । (मासिक धर्म के ५ दिनों में स्त्रियां यह विधि न करें ।)

आदर्श रूप से नीचे दी गर्इ विधि पितृपक्ष के पखवाडे में प्रतिदिन करनी चाहिए । परंतु यह संभव न हो, तो पखवाडे के किसी एक दिन अवश्य करनी चाहिए । यदि संभव हो, तो जिस दिन श्राद्धकर्म करने का विचार हो, उस दिन उपवास करें ।

चरण १ : पितरों के लिए ग्रास निकालना

पके हुए चावलों में काले तिल मिलाकर एक थाली में १ प्याला पानी के साथ रखें । इसे घर के पिछवाडे, बरामदे अथवा घर के बाहर कहीं भी रखें । इस ग्रास के लिए आप शुद्ध शाकाहारी भोजन भी बना सकते हैं । ग्रास रखने का उचित समय दोपहर ११ से ४ बजे के बीच है ।

 

 

 

चरण २ : मृत पूर्वजों से प्रार्थना

प्रार्थना कर इस जन्म आैर पिछले जन्मों के अपने मृत पूर्वजों को मानस पद्धति से पुकारकर ग्रास ग्रहण करने हेतु बुलाएं । मृत पूर्वजों के सूक्ष्मदेह कौए के रूप में ग्रास ग्रहण करने के लिए आते हैं । भगवान दत्तात्रेय से प्रार्थना करें, ‘मेरे पूर्वज इस ग्रास से तृप्त हों ।

 

 

 

चरण ३ : विधिवत जल देना (पितृतर्पण)

घर में दक्षिण की आेर मुख कर खडे हो जाएं । घास की बडी पत्ती (आदर्श रूप से दर्भ) लें । प्रार्थना करें कि यह पवित्र हो । दर्भ में तेजतत्त्व संजोए रखने की क्षमता अधिक होती है । इसलिए इसे धारण करनेवाले व्यक्ति आैर वातावरण को शुद्ध करता है । इस दर्भ (घास की पत्ती) को दाएं हाथ की अनामिका (छोटी उंगली के पासवाली उंगली) पर अंगूठी के समान बांध लें । बाएं हाथ में पानी का प्याला पकडें आैर दार्इं हथेली पर पानी उंडेलें । इस पानी को अंगूठे आैर तर्जनी के (अंगूठे पासवाली उंगली के) बीच से बह जाने दें । यदि संभव हो, तो नीचे सोने, चांदी अथवा तांबे की थाली रखें ।

 

चरण ४ : ग्रास का विधिवत विसर्जन

यदि शाम तक कौए ने भोजन को नहीं छुआ, तो भोजन को सूर्यास्त के पूर्व विसर्जित करना होगा । इसकी सर्वश्रेष्ठ विधि है । भोजन को बहते जल जैसे नदी अथवा समुद्र में प्रवाहित करें । यदि यह संभव न हो, तो तालाब में प्रवाहित करें । अंतिम विकल्प है, भोजन को भूमि में गाड देना । इसे पुनः घर लेकर न जाएं ।

 

 

 

३.२.२ श्राद्धकर्म का विकल्प

यदि अपरिहार्य परिस्थितियों अथवा आर्थिक समस्याआें के कारण उपरोक्त में से कोर्इ भी चरण संभव न हो, तो अंतिम विकल्प के रूप में आप विधि के इस विकल्प का विचार कर सकते हैं ।

  • बाहर खुले स्थान पर जाएं तथा दक्षिण की आेर मुख करें ।
  • अपने दोनों हाथ ऊपर उठाएं (शरणागति दर्शाने हेतु) आैर भगवान दत्तात्रेय से प्रार्थना करें – ‘‘मैं असहाय हूं, मैं अपने सभी पूर्वजों को प्रणाम करता हूं । मेरे सभी मृत पूर्वज मेरी भक्ति से प्रसन्न हों । हे भगवान दत्तात्रेय, आप कृपा कर मेरे मृत पूर्वजों को गति प्रदान करें आैर मुझे पितरों के ऋण से मुक्त करें ।’’

ध्यान रखें, इस विधि के सभी चरणों में सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण है आपका भाव तथा र्इश्वर एवं दत्तात्रेय भगवान के प्रति कृतज्ञता । हमारी प्रार्थना है कि आपको इस विधि से अधिकतम आध्यात्मिक लाभ हो ।

३.२.३ श्राद्ध विधि तथा उसके कारणीभूत अध्यात्मशास्त्र  विषय में अधिक जानकारी पढें

श्राद्ध एवं उसकी विधि के संदर्भ में अधिक जानने हेतु SSRF के ग्रंथ विक्रय भंडार में उपलब्ध ‘श्राद्ध’ ग्रंथ पढें । मृत्यु के उपरांत एवं अगले जन्म तक की कालावधि गर्भ में पलनेवाले शिशु समान होती है । शिशु सुदृढ जन्में इसलिए गर्भ में स्थित भ्रूण की जिस प्रकार रक्षा की जाती है, उसी प्रकार श्राद्ध के विविध विधियों के माध्यम से मृत पूर्वजों की भी वैसी ही रक्षा की जाती है । श्राद्ध के समय उच्चारित मंत्रों के माध्यम से उत्पन्न तरंगें, पुरोहितों के आशीर्वाद, आप्तों की सद्भावनाएं एवं पिंडदान एवं अन्य विधियुक्त पूजा के कारण असाधारण परिणाम मिलते हैं, जिसके संदर्भ में तर्क से समझना संभव नहीं । श्राद्ध के कारण पूर्वज के सूक्ष्म शरीर के सर्व ओर संरक्षक कवच निर्माण हो जाता है, जिसके कारण उसे गति मिलने में सहायता होती है । पाताल एवं भुवर्लोक में ये विधि लाभदायक सिद्ध होते हैं ।

टिप्पणी : जिस प्रकार माता अपने गर्भ में पल रहे शिशु का जन्म तक संरक्षण करती है, उसीप्रकार श्राद्ध संपन्न होने के उपरांत उसकी विधियां पूर्वजों के लिए एक संरक्षक कवच प्रदान करती हैं ।

महत्वपूर्ण टिप्पणी : धार्मिक विधि करते समय वंशज के भाव के आधार पर, मृत पूर्वज अधिक अथवा अल्प मात्रा में लाभान्वित होते हैं । धार्मिक विधि में सम्मिलित होते समय वंशजों का भाव जितना अधिक होगा, मृत पूर्वजों का उनके मृत्योपरांत उतनी सहायता होगी ।

श्राद्ध विधि पुरुषों द्वारा करना आवश्यक है । जिसके माता-पिता का निधन हुआ है एवं जिसे भाई नहीं है, ऐसी अकेली स्त्री उसकी ओर से पुरोहित को यह विधि करने के लिए निवेदन कर सकती है ।

  • स्वयं की साधना बढाना : जब कोई प्रतिदिन साधना करता है, तब उसकी आध्यात्मिक उन्नति होती है, जिससे उसका आध्यात्मिक संरक्षण बढ जाता है । पितृपक्ष के समय  श्री गुरुदेव दत्त का नामजप  पूर्वजाें को उनके मृत्योपरांत की यात्रा हेतु गति प्रदान करता है ।